केरल विधानसभा ने पास किया कृषि कानूनों के खिलाफ प्रस्ताव

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केंद्रीय कृषि क़ानून के खिलाफ़ आज केरल में विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर सर्वसम्मति से कृषि बिल के खिलाफ रेजोल्यूशन पास किया गया। केरल ऐसा करने वाला देश का चौथा राज्य बन गया है। 

सुबह नौ बजे शुरू हुए सत्र में मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की मौजूदगी में कृषि बिल के खिलाफ प्रस्ताव लाया गया। प्रस्ताव में कहा गया है कि केंद्र सरकार किसानों की वास्तविक चिंताओं को दूर करे और तीनों कृषि कानूनों को वापस लिया जाए। प्रस्ताव पेश करते हुए सीएम पिनारई विजयन ने कहा कि “मौजूदा हालात को देखते हुए एक बात पूरी तरह स्पष्ट है कि अगर किसानों का आंदोलन जारी रहा, तो इससे केरल भी गंभीर रूप से प्रभावित होगा। इसमें कोई शक नहीं है कि अगर दूसरे राज्यों से खाद्य पदार्थों की आपूर्ति बंद होती है तो केरल को भूखा रहना होगा।” 

हालांकि शुरुआत में बीजेपी के एकमात्र विधायक ओ. राजगोपाल ने विरोध के लिए इसका विरोध किया, लेकिन वोटिंग के दौरान चुप रहे। बता दें कि विजयन की सरकार विधानसभा का सत्र काफ़ी पहले बुलाना चाहती थी, लेकिन राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने पहले सत्र बुलाने की मंजूरी नहीं दी थी। इस पर काफ़ी विवाद भी हुआ था। लेकिन बाद में राज्यपाल ने इस सत्र के लिए सहमति जताई। 

राज्यपाल की मंजूरी के बाद आज सुबह 9 बजे केरल विधानसभा में एलडीएफ और यूडीएफ दोनों पार्टियों के विधायकों के समर्थन के साथ तीन विवादास्पद केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया गया है। केरल के सीएम पिनाराई विजयन ने एक घंटे के विशेष सत्र में केवल किसानों के मुद्दे पर चर्चा की और विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया। नए कानूनों को तत्काल निरस्त करने की मांग करते हुए प्रस्ताव को आगे बढ़ाते हुए सीएम विजयन ने कहा कि देश अब किसानों के जरिए किए जा रहे विरोध प्रदर्शन का गवाह है। संसद में पारित कृषि कानून न केवल किसान विरोधी है, बल्कि कॉर्पोरेट समर्थक भी है। साथ ही अब तक विरोध के दौरान कम से कम 32 किसानों की मौत हो गई है। 

केरल के मुख्यमंत्री विजयन ने कहा, “जब लोगों को अपने जीवन को प्रभावित करने वाले कुछ कानूनों के बारे में चिंता होती है, तो विधानसभाओं की नैतिक जिम्मेदारी होती है कि वे एक गंभीर दृष्टिकोण रखें।” 

उन्होंने आगे कहा कि “कृषि देश की संस्कृति का हिस्सा है। केंद्र ऐसे समय में कानून लेकर आया, जब कृषि क्षेत्र चुनौतियों का सामना कर रहा था। इससे किसान चिंतित थे कि वे वर्तमान समर्थन मूल्य (एमएसपी) को भी खो देंगे।”

इससे पहले कांग्रेस शासित तीन राज्यों पंजाब, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में इन केंद्र कृषि कानूनों के खिलाफ प्रस्ताव लाया गया था। 

राजस्थान की विधानसभा में 31 अक्तूबर को तीन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदेश विधानसभा में तीन कृषि संशोधन विधेयक पेश किए थे। इन विधेयकों के तहत किसानों का उत्पीड़न करने वाले को 3 से 7 साल की जेल और 5 लाख रुपए तक जुर्माना लगाया जा सकता है। 

इससे पहले 20 अक्तूबर को पंजाब में 4 कृषि बेल पास कराए गए थे, उसके बाद 27 अक्तूबर को छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने केंद्र के एग्रीकल्चर एक्ट को निष्प्रभावी करने के लिए कृषि उपज मंडी संशोधन बिल 2020 पारित किया था। 

केरल सरकार द्वारा कृषि क़ानून  के खिलाफ़ पास किये गये प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया देते हुए फरीदकोट के ज़िला प्रधान बिंदर सिंह गोलेवाला ने कहा है, “केरल सरकार ने अच्छा किया है क्योंकि ये कानून किसानों के हित में नहीं है, इस बात को केंद्र को भी समझना चाहिए तथा 4 जनवरी को होने वाली बैठक में कानून को रद्द कर देना चाहिए।” 

वहीं दूसरी ओर दिल्ली के सिंघु बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर, चिल्ला बॉर्डर, गाज़ीपुर बॉर्डर और शाहजहांपुर बॉर्डर पर किसानों का अनिश्चितकालीन धरना जारी है। 26 नवंबर से शुरु हुआ किसान आंदोलन आज 36वें दिन में प्रवेश कर गया। कल नये साल पर दिल्ली और देश के दूसरे हिस्सों के नागरिक दिल्ली बॉर्डर पर किसानों के साथ होंगे। वहीं 4 जनवरी को सरकार और किसान यूनियनों के बीच 8वें दौर की बैठक होगी। जिसमें एमएसपी की गारंटी और एमएसपी पर खरीद की गारंटी का क़ानून बनाने और तीनों कृषि क़ानूनों को रद्द करने के मसले पर बात होनी है। 

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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