अवमानना मामला: सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कामरा ने नहीं मांगी माफी

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जब सुप्रीम कोर्ट में कुणाल कामरा पर अवमानना का मुकदमा चलाए जाने के ऑर्डर्स हुए थे, तब कुणाल ने तीन बातें कही थीं। पहली ये कि वे माफी नहीं मांगेंगे, दूसरी ये कि वे अपने लिए वकील नहीं करेंगे और तीसरी ये कि वे जुर्माना नहीं देंगे। कुणाल कामरा अपनी पहली बात पर अभी तक कायम हैं। उन्होंने अपना हलफनामा गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कर दिया है और इस हलफनामे में एक भी हलफ माफी का नहीं है। हालांकि वकील न करने की जिद में कुणाल मात खा गए और सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल करने के लिए उन्हें अपने लिए एक वकील करना ही पड़ा। रही बात जुर्माने की तो वह अदालत तय करेगी कि कितना जुर्माना या सजा होनी है, उसके बाद ही कुणाल की तीसरी बात का आधार सामने आएगा। बहरहाल, यह मसला नहीं है। मसला है वह हलफनामा, वह एफिडेविट, वे बातें, जो कुणाल कामरा ने कही हैं और जो अभिव्यक्ति से जुड़े किसी भी कंटेंप्ट के केस में आगे भी नजीर रहेंगी।

छह पेज के इस हलफनामे से हमने मुख्य बातें निकाली हैं। स्टैंड अप कॉमेडियन कुणाल कामरा ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि यह कहना कि सुप्रीम कोर्ट की आलोचना करने वाले उनके ट्वीट या चुटकुले दुनिया की सबसे शक्तिशाली अदालत की नींव हिला सकते हैं, ऐसा कहना उनकी काबिलियत को जरूरत से अधिक करके आंकना है। गुरुवार को कुणाल कामरा ने सुप्रीम कोर्ट में खुद पर चल रहे अवमानना के मुकदमे में अपना पक्ष एफिडेविट के रूप में पेश किया। आपको याद होगा कि अर्णब गोस्वामी को जमानत देने के लिए जब सुप्रीम कोर्ट ने सैकड़ों मुकदमे की लाइन तोड़ते हुए उन्हें जमानत दे दी थी, तब कुणाल कामरा ने एक के बाद एक कई ऐसे ट्वीटस किए थे, जिन्हें अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने अदालत की अवमानना माना था और इसके बाद उन पर अवमानना का मुकदमा चलाए जाने की अनुमति दी थी।

हालांकि कुणाल कामरा ने पहले मुकदमे के बाद भी सुप्रीम कोर्ट की खिल्ली अपने अंदाज में उड़ाते रहे, जिसके बाद उन पर अवमानना का एक और मुकदमा कायम किया गया था। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने एफिडेविट में कुणाल कामरा ने कहा कि न्यायपालिका में जनता का भरोसा न्यायपालिका के अपने खुद के कर्मों से बनता है, न कि किसी की आलोचना या किसी के कमेंट करने पर बनता है। कामरा ने जो हलफनामा दायर किया है, उसमें उन्होंने कहा है कि जैसा कहा जा रहा है कि मेरे ट्वीट्स दुनिया की सबसे ताकतवर अदालत की नींव हिला सकते हैं, ये मेरी काबिलियत को ओवरइस्टीमेट करना है।

अपने एफिडेविट में कुणाल कामरा ने कहा है कि यह मानना कि लोकतंत्र में सत्ता की कोई भी संस्था आलोचना से परे है, एक तरह से यह कहने की तरह है कि एक बीमार योजना वाले लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों को यह कह दिया जाए कि आप इस तालाबंदी में घर वापसी का रास्ता खुद खोजिए। कुणाल कामरा ने कहा कि यह तर्कहीन और अलोकतांत्रिक है। अपने हलफनामे में उन्होंने आगे कहा कि चुटकुले एक कॉमेडियन के परसेप्शन से बनते हैं और चुटकुलों का उपयोग लोगों को हंसाने के लिए किया जाता है। कुणाल ने कहा कि बहुत से लोग ऐसे चुटकुलों पर रिएक्ट नहीं करते हैं जो उन्हें मजेदार नहीं लगते हैं, ये ठीक वैसे ही होता है, जैसे कि राजनीतिक नेता अपने आलोचकों की उपेक्षा करते हैं। गुरुवार को कुणाल कामरा की तरफ से उनकी एडवोकेट प्रीता श्रीकुमार अय्यर ने उनका हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया।

कुणाल कामरा ने कहा था कि जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ एक फ्लाइट अटेंडेंट हैं जो प्रथम श्रेणी के यात्रियों को शैंपेन ऑफर कर रहे हैं, क्योंकि वो फास्ट ट्रैक्ड हैं। जबकि सामान्य लोगों को यह भी नहीं पता कि वो कभी चढ़ या बैठ भी पाएंगे, सर्व होने की तो बात ही नहीं है। कुणाल कामरा के इस ट्वीट को कोर्ट की अवमानना माना गया। बहरहाल, गुरुवार 28 जनवरी को दाखिल इस हलफनामे में कुणाल कामरा ने आगे कहा कि हालात में दोष या कमियां होती हैं, ह्यूमर उसे कुंद करने की कोशिश करता है और उन दोषों या कमियों के चलते जो पीड़ित हैं, ह्यूमर उन्हें थोड़ा आराम पहुंचाने का उपाय देता है। कुणाल ने आगे कहा कि अगर अदालत को लगता है कि उसने लाइन पार कर ली है और इस इंटरनेट बंद करना चाहती है, तो मैं अपने कश्मीरी दोस्तों की तरह हर 15 अगस्त को खुशी खुशी हैप्पी इंडिपेंडेंस डे पोस्ट कार्ड लिखूंगा।

इसके आगे कुणाल कामरा ने जो कहा, वो उनके विरोधियों के कान थोड़े लाल करने वाला है। कुणाल ने अपने एफिडेविट में कहा कि उन्हें यकीन है कि अगर जजों पर कॉमेडी की जाती है या उनका मजाक उड़ाया जाता है, तो महज इससे जज अपनी ड्यूटी नहीं कर पाएंगे, ऐसा नहीं हो सकता। उन्होंने यह भी कहा कि देश में असहिष्णुता की संस्कृति बढ़ती जा रही है और जहां अपराध को एक मौलिक अधिकार के रूप में देखा जाता है और इसे बहुत अधिक पसंद किए जाने वाले राष्ट्रीय इनडोर खेल की स्थिति तक बढ़ा दिया गया है। एफिडेविट में अपनी इस बात को आगे बढ़ाने के लिए कुणाल कामरा ने कॉमेडियन मुनव्वर फारुकी के मामले का उदाहरण दिया।

उन्होंने कहा कि हम मुन्नवर फारुकी जैसे कॉमेडिन के भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला होते देख रहे हैं। वे ऐसे चुटकुले के लिए जेल में हैं, जो उन्होंने सुनाया ही नहीं है। और स्कूली छात्रों से देशद्रोह के मामले में इंटरोगेशन की जा रही है। कामरा ने कहा कि ऐसे समय में उन्हें उम्मीद है कि यह अदालत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दिखाएगी। इससे पहले इसी मसले पर कुणाल कामरा ने एक लेटर लिखा था, जिसे उन्होंने सोशल मीडिया में पोस्ट किया था। इसमें उन्होंने लिखा था कि “प्रिय जजों, श्री केके वेणुगोपाल जी, मैंने हाल ही में जो ट्वीट किए, उन्हें अदालत की अवमानना बताया गया है। मैंने जो भी ट्वीट किए वे सुप्रीम कोर्ट के एक प्राइम टाइम लाउडस्पीकर के पक्ष में दिए गए पक्षपाती फैसले के प्रति मेरा नजरिया था।

मेरा मानना है कि मुझे स्वीकार करना चाहिए कि मुझे अदालत लगाने में बड़ा मजा आता है और अच्छी ऑडियंस पसंद आती है। सुप्रीम कोर्ट जजों और देश के शीर्ष कानूनी अधिकारी जैसी ऑडियंस शायद सबसे वीआईपी हों, लेकिन मुझे समझ आता है कि मैं किसी भी जगह परफॉर्म करूं, सुप्रीम कोर्ट के सामने वक्त मिल पाना दुर्लभ होगा।” अपने पहले के लेटर में कुणाल कामरा आगे कहते हैं कि मेरी राय नहीं बदली है, क्योंकि दूसरों की निजी स्वतंत्रता के मामलों पर सुप्रीम कोर्ट की चुप्पी बिना आलोचना के नहीं गुजर सकती। मैं अपने ट्वीट्स वापस लेने या उनके लिए माफी मांगने की मंशा नहीं रखता हूं। मुझे लगता है कि वे यह खुद बयान करते हैं।

मैं अपनी अवमानना याचिका अन्य मामलों और व्यक्तियों, जो मेरी तरह किस्मत वाले नहीं हैं, की सुनवाई के लिए समय मिलने (कम से कम 20 घंटे अगर प्रशांत भूषण की सुनवाई को ध्यान में रखें तो) की उम्मीद रखता हूं। क्या मैं यह सुझा सकता हूं कि नोटबंदी से जुड़ी याचिका, जे एंड के के विशेष दर्जे को रद्द करने वाले फैसले के खिलाफ याचिका, इलेक्टोरल बॉन्ड्स की कानूनी वैधता को चुनौती देने वाली याचिका और अन्य कई ऐसे मामलों में सुनवाई की ज्यादा जरूरत है। वरिष्ठ एडवोकेट हरीश साल्वे की बात को थोड़ा सा मरोड़ कर कहूं तो ‘अगर ज्यादा महत्वपूर्ण मामलों को मेरा वक्त मिलेगा तो क्या आसमान फट पड़ेगा?’ अपनी चिट्ठी के अंत में कामरा कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने मेरे ट्वीट्स को अब तक कुछ भी घोषित नहीं किया है, लेकिन वे जब भी करें तो मैं उम्मीद करता हूं कि अदालत की अवमानना घोषित करने से पहले वे थोड़ा हंसेंगे।

अपने एक ट्वीट में मैंने सुप्रीम कोर्ट में महात्मा गांधी की जगह हरीश साल्वे की फोटो लगाने को कहा था। मैं जोड़ना चाहूंगा कि पंडित नेहरू की फोटो हटाकर महेश जेठमलानी की फोटो लगा दी जाए।” आपको याद दिला दें कि कुणाल कामरा और अर्णब गोस्वामी के बीच 36 का आंकड़ा रहा है। दोनों के बीच इसकी शुरुआत रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद से ही हो गई थी। बाद में कुणाल कामरा ने फ़्लाइट में भी अर्णब गोस्वामी को घेरा और उनसे कुछ सवाल पूछे थे। लेकिन अर्णब गोस्वामी ने उनके सवालों का जवाब देना तो दूर, उनसे बात तक नहीं की थी। कामरा ने इस घटना का वीडियो अपने ट्विटर अकाउंट पर शेयर किया था। इसके बाद इसे मामले ने काफ़ी तूल पकड़ा था।

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