असहिष्णुता के खिलाफ पदमश्री लौटाने वालीं सिरमौर पंजाबी लेखिका दलीप कौर टिवाणा नहीं रहीं

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अंतरराष्ट्रीय स्तर की जानी-मानी पंजाबी लेखिका दलीप कौर टिवाणा का शुक्रवार शाम फेफड़ों की बीमारी के कारण मोहाली में देहांत हो गया। वह 84 साल की थीं। उन्हें भारतीय साहित्य अकादमी, सरस्वती सम्मान और पदमश्री से नवाजा जा चुका है। पदम श्री उन्हें 2004 में दिया गया था लेकिन 2015 में देश में बढ़ती असहिष्णुता के चलते उन्होंने यह सम्मान लौटा दिया था।

तब सरकार को लिखे विरोध पत्र में उन्होंने कहा था कि फिरकापरस्त ताकतें देश में जो माहौल बना रही हैं, उसके विरोध स्वरूप मैं पदमश्री लौटा रही हूं। डॉक्टर दिलीप कौर टिवाणा ने लिखा था, “गौतम बुद्ध और गुरु नानक की धरती पर अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहे हैं। एक संवेदनशील लेखक के तौर पर मुझे यह बर्दाश्त नहीं। यहां हिंसा और नफरत के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए, लेकिन इस तरह के हालात पैदा किए जा रहे हैं। मैं इसका पुरजोर विरोध करती हूं।”

पदमश्री लौटाने के बाद उन्होंने कहा था कि अगर फासीवादी ताकतों की अराजकता को न रोका गया तो एक दिन यह देश पूरी तरह नरक बन जाएगा। हमें इनसे लड़ना चाहिए। डॉक्टर दिलीप कौर टिवाणा इन दिनों फैलती अराजकता को लेकर बेहद चिंतित और बेचैन थीं। वह अक्सर कहा करती थीं कि जो 1947 और 1984 में नहीं देखा, उसे अब देख रहे हैं।

मुसलमानों से हमारी सांस्कृतिक और मानवीयता सांझा है, लेकिन मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार उन्हें पराया मानकर उन पर जुल्म कर रही है। जबकि भारत सब धर्मों से सजा एक गुलदस्ता है, कोई एक फूल सूखेगा तो आखिरकार पूरा गुलदस्ता ही सूख जाएगा। करीब 30 उपन्यास, 15 कहानी संग्रहों के साथ-साथ उनकी कई गद्य पुस्तकें मुख्य रूप से पंजाबी के अतिरिक्त (अनूदित होकर) हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, मराठी, गुजराती, तमिल और कन्नड़ में भी छपी हैं।

पाकिस्तान में भी उनका विशाल पाठक समुदाय है। उनके दो उपन्यासों ‘ऐहो हमारा जीवणा’ (यही है हमारा जीवन) और ‘लंघ गए दरिया’ (गुजर गए दरिया) के संस्करण रिकॉर्ड संख्या में प्रकाशित होते रहे हैं। उनका नाम पंजाबी की सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली लेखिकाओं में शुमार है। अमृता प्रीतम उन्हें अपनी बेटी मानती-कहती थीं। डॉक्टर टिवाणा पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला में प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष रही हैं। 1971 में बहुत कम उम्र में उन्हें ‘ऐहो हमारा जीवणा’ के लिए अखिल भारतीय साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया था।

उनकी रचनाओं में पंजाबी सभ्याचार के तमाम रंग और विसंगतियां मिलती हैं। उनकी आत्मकथा के भी कुछ खंड प्रकाशित हैं। आखरी खंड की बाबत उन्होंने कहा था कि इसे उनकी मृत्यु के बाद प्रकाशित किया जाए। उनकी मृत्यु की खबर पंजाब और देश-विदेश में फैलते ही उनके प्रशंसकों-पाठकों के बीच गहरा शोक व्याप्त हो गया। 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और जालंधर में रहते हैं।)

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