स्वतंत्रता दिवस के मौके पर भोपाल स्थित माखन लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति दीपक तिवारी द्वारा अपने अध्यापकों और कर्मचारियों के सामने दिया गया संबोधन एक ऐसे अभिभावक की चिंता को सामने लाता है जो परिवार के बिखरने की आशंका से ग्रस्त हो। लेकिन उसके साथ ही वह अपनी जिम्मेदारी को भी समझता हो और उसको हल करने के लिए क्या रास्ता होगा। उसकी क्या दिशा होगी और उसके विचार क्या होंगे। वह इन सब चीजों को लेकर स्पष्ट है। कुलपति तिवारी ने इस मौके पर महज एक घंटे में भारत के 2000 सालों के इतिहास को जिस तरह से समेटने की कोशिश की वह उनकी अद्भुत प्रतिभा कौशल को दर्शाता है। इस पूरे व्याख्यान की सबसे खास बात यह थी कि यह बेहद सरल शब्दों में और सृजनात्मक तरीके से दिया गया।
देश में राजनीतिक कार्यकर्ता, शिक्षाविद, इतिहासकार, आंदोलनकारी और देश-समाज से जुड़े तमाम लोग जो समाज को अपने-अपने तरीके से बनाने और उसे सुधारने के काम में जुटे हैं, इससे बहुत कुछ सीख सकते हैं। दरअसल इस दौर की चुनौतियां बहुत बड़ी हैं और साथ ही उतनी कठिन भी हैं। और सामने एक ऐसी ताकत आ गयी है जो हर तरीके से संपन्न है। इस कड़ी में उसकी तरफ से पहला काम यह हुआ है कि उसने लोगों के दिमाग में अपनी पैठ बना ली है। ऐसे में देश और पूरे समाज को उसके चंगुल से निकालने की पहली शर्त यह बन जाती है कि उसे लोगों के दिमाग से निकाला जाए। और पिछले 70 सालों में उसने जो कूड़ा-कचरा भर दिया है उसे साफ किया जाए। इस कड़ी में एक नहीं हजारों दीपक तिवारी की जरूरत होगी। लेकिन कैसे किया जा सकता है उसको समझने के लिए सबसे पहले जरूरी है कि दीपक तिवारी को सुना जाए। लिहाजा पेश है पूरा संबोधन-
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