पन्ना। मध्यप्रदेश का पन्ना एक पिछड़ा जिला माना जाता है। हीरे के लिए मशहूर होने के बावजूद पन्ना संसाधनहीनता, पलायन, और बेरोजगारी जैसी चुनौतियों से जकड़ा हुआ है। वैसे तो पन्ना में सार्वजनिक जनजीवन की कई कहानियाँ समाई हुई हैं, जो कभी स्वयं तो कभी दूसरों के जरिए बाहर आती हैं। लेकिन, आज हम जो कहानी पेश कर रहे हैं, वह एक छापेमारी की कहानी है।

दरअसल, पन्ना टाइगर रिजर्व के उमरावन गांव में आदिवासी घरों पर वन अधिकारियों द्वारा दिनांक 16/03/2025 को छापा मारे जाने की घटना सामने आई है। आरोप है कि वन अधिकारियों ने दो गोंड आदिवासी महिलाओं के घरों पर छापा मारकर गहने, घरेलू सामान, और नकदी जैसे कीमती सामानों को जब्त कर लिया। यह छापा तब मारा गया, जब आदिवासी लोग चना और मटर की कटाई के लिए बाहर गए हुए थे।
घटनाक्रम में दिया गया ज्ञापन पत्र
छापेमारी की इस घटना के बाद पीड़ित आदिवासी परिवार ने कलेक्टर, एसपी, और डीएफओ (वन विभाग, पन्ना) के लिए एक प्रार्थना पत्र लिखा है, जिस पर दिनांक 17/03/2025 अंकित है। पत्र में उल्लेख है कि उमरावन एक छोटा-सा गांव है, जो बाडोर ग्राम पंचायत के अंतर्गत आता है। यहाँ गोंड आदिवासी परिवार रहते हैं, जो कठिन परिस्थितियों में अपना पेट पाल रहे हैं। दिनांक 16/03/2025 को करीब दोपहर 12 बजे वन विभाग की 6-7 गाड़ियाँ उमरावन पहुँचीं। इन गाड़ियों में 70-80 वन कर्मी आए थे। बिना किसी सूचना और अनुमति के वन विभाग के लोग मतिया बाई गोंड (आदिवासी विधवा महिला) और अमतिया बाई गोंड (पति रामनाथ गोंड) के घरों में घुस गए।
मतिया बाई मजदूरी करके अपने परिवार का पेट पालती हैं। बीते एक माह से मतिया बाई और उनके घर के सदस्य अमानगंज में चना और मटर की कटाई के लिए गए थे। इस स्थिति में वन कर्मियों ने मतिया बाई के घर का ताला तोड़कर अंदर प्रवेश किया। इसके बाद उन्होंने मतिया बाई के घर से उनके बेटों और बेटी की शादी के लिए बनाए गए सोने-चाँदी के गहने जब्त कर लिए। साथ ही, एक खाट, चार पायों वाला तख्त, दो कुल्हाड़ियाँ, दो हँसियाँ, चार नग उड़सा-बिल्ला, और कुछ नकदी भी उठाकर ले गए।
इसके बाद वन कर्मी रामनाथ गोंड के सूने घर में घुसे और वहाँ से चार कुल्हाड़ियाँ, एक पावर बैंक, नए कपड़े, और एक हजार रुपये उठा ले गए। पत्र में आगे दर्ज किया गया कि वन कर्मियों ने गाँव वालों को धमकी दी कि यदि किसी ने विरोध किया, तो उनके घर गिरा दिए जाएँगे, बच्चों को उठा लिया जाएगा, और झूठे मामलों में फँसाकर जेल भेज दिया जाएगा।

वन विभाग के अधिकारियों ने खुलेआम धमकी दी कि वे गाँव के एक-एक व्यक्ति को उठा लेंगे और घरों पर बुलडोजर चलवा देंगे। इस घटना से गाँव में भय और आतंक का माहौल बना हुआ है। पत्र में मामले की जाँच, कानूनी कार्रवाई, एससी-एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज करने, जब्त सामान को लौटाने, और सुरक्षा प्रदान करने की मांग की गई है। अंत में निवेदन किया गया कि मामले पर जल्द कार्रवाई की जाए। इस पत्र पर गाँव के लोगों ने अपने हस्ताक्षर कर सहमति भी जाहिर की।
पीड़ित आदिवासी परिवार के बोल
छापेमारी की इस घटना में पीड़ित मतिया बाई से हमने चर्चा की। इस चर्चा में वह बताती हैं, “मैंने अपने बेटे-बेटी की शादी के लिए गहने और पलके बनाए थे। लेकिन, हमारा सब कुछ वन विभाग वाले ले गए। हम निर्दोष हैं, फिर भी हमारे साथ ऐसा हुआ।” आगे मतिया कहती हैं, “मैं एक विधवा औरत हूँ। मेरे जीने का सहारा मेरे बेटा-बेटी हैं। बच्चों को मैंने बड़े संघर्षों से पाला है। अब उनकी शादी करना चाहती थी, पर हमारा गहना और पैसा वन विभाग ने जब्त कर लिया, तो शादी करना कठिन हो गया है। इस मामले की शिकायत हमने अधिकारियों से भी की। तब हमें आश्वासन दिया गया है कि मामले की जाँच की जा रही है। हमारा सरकार से निवेदन है कि हमारे साथ न्याय करे और हमारा पूरा सामान वापस करवाए।”

वन कर्मियों पर यह आरोप भी है कि उन्होंने रामनाथ गोंड के सूने घर पर छापा मारा। रामनाथ के परिजनों में से अमतिया बाई से जब हमने बातचीत की, तो उन्होंने बताया, “हमारी कुल्हाड़ी से लेकर घर के कई सामान, यहाँ तक कि अधिकारियों ने नए कपड़े और फोन का पावर बैंक तक नहीं छोड़ा। हमें यह समझ नहीं आ रहा कि जब हमारा कोई दोष नहीं, तो हमारे साथ ऐसा क्यों किया जा सकता है? घटना के पीछे का विशेष कारण हमें पता नहीं। अब हम बस यह चाहते हैं कि हमें हमारा सामान वापस मिल जाए।”
घटना पर प्रत्यक्षदर्शियों का विचार
घटनाक्रम के प्रत्यक्षदर्शी ग्रामीणों से भी हमने आँखों देखे हाल पर संवाद किया। इस संवाद में एक प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं, “वन कर्मियों ने छापा मारने से पहले ग्रामीणों से कोई सलाह नहीं की। न ही छापे की कोई विशेष वजह बताई। सीधे छापे की कार्रवाई की। आदिवासी परिवार के साथ जो किया गया, वह बहुत गलत है। आज दो आदिवासी घरों पर छापेमारी की गई है। कल और आदिवासी घरों पर छापेमारी हो सकती है। ऐसे में हमारे संसाधन छिन जाएँगे। हम चाहते हैं कि मामले में न्याय हो।”
दूसरे प्रत्यक्षदर्शी का कहना है, “वन अधिकारी जब मतिया बाई और अमतिया के सूने घरों पर छापा मार रहे थे, तब मैं सहित कई गाँव वालों ने उन्हें रोका था, लेकिन अधिकारी नहीं रुके। हमने अधिकारियों से यह भी कहा कि घर की तलाशी लेने के लिए आपके पास कोई आदेश है, तो वह दिखाएँ। मगर, गाँव वालों को कोई आदेश नहीं दिखाया गया। मेरा मानना है कि आदिवासी परिवारों पर छापेमारी करना नाइंसाफी है। पीड़ित लोगों के साथ इंसाफ किया जाए।”
(सतीश भारतीय स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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