महाराष्ट्र में बैलेट पेपर से चुनाव कराने की कवायद शुरू

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17 फरवरी को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) पर अंगुली उठाने का एक चक्र पूरा हो गया। भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी से शुरू हुआ ये सिलसिला, कांग्रेस, बसपा व तमाम दूसरे दलों से होते हुए भाजपा तक वापस आ पहुंचा है। किसान आंदोलन के बीच हुए पंजाब के निकाय चुनाव में भाजपा का सूपड़ा साफ हुआ तो उसके उम्मीदवार ईवीएम का रोना रोने लगे हैं।

गुरुदासपुर के वार्ड 12 से भाजपा उम्मीदवार ने चुनाव परिणाम आने के बाद कहा कि 12 वार्ड से बीजेपी हमेशा जीतती आई है पर इस बार उसे शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। उनका कहना है कि चुनाव में जमकर धांधली की गई है। बीजेपी के उम्मीदवारों को हराने के लिए सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किया गया। उनकी दलील है कि उनके अपने घर में ही 15-20 लोग हैं, लेकिन केवल 9 वोट मिले हैं। कांग्रेस ने ईवीएम में गड़बड़ी की है। 

भाजपा उम्मीदवार के इस आरोप पर ट्विटर पर बड़ी मजेदार प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं। एक यूजर ने लिखा है, “चलो सही है इतना तो मान गए कि ईवीएम में गड़बड़ी हो सकती है।” 

वहीं एक दूसरे ट्विटर यूजर ने लिखा कि “घर वालों ने भी बीजेपी के खिलाफ वोट डाल दिए।” एक और ट्विटर यूजर लिखते हैं, “अब बताइए आपको घर वाले ही पसंद नहीं कर रहे अपने तो देश क्या करेगा।” तो एक अन्य ट्विटर यूजर ने लिखा, ” वाह आपके घर के लोग आपको वोट नहीं कर रहे हैं और आप लोग कहते हो किसानों के फायदे के लिए बिल लाए गए हैं। बिल में क्या फायदा है ये तो आप लोग अपने घरों में भी समझा नहीं पाए।”

वहीं एक और यूजर ने लिखा है “मज़ा आ गया मोदी जी कृपया आप इस महिला उम्मीदवार का दर्द समझें ईवीएम बैन करो।”

दरअसल हाल के वर्षों में विशेषज्ञों ने ईवीएम और वीवीपीएटी (मतदाता सत्यापित पेपर ऑडिट ट्रेल) मशीनों के इस्तेमाल से होने वाली इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग की कमजोरियों के बारे में बार-बार चिंता व्यक्त की है। लेकिन भारत के चुनाव आयोग ने इन चिंताओं को दूर करने के बजाय, बड़े पैमाने पर उनकी अनदेखी की या आधी-अधूरी और असंतोषजनक समाधान की पेशकश की।

59.5 प्रतिशत लोगो बैलट पेपर से मतदान के पक्ष में 

11 फरवरी, 2021 को पत्रकार पूनम अग्रवाल ने ट्विटर पर एक सर्वे किया। जिसमें 60 हजार लोगों ने भाग लिया। इस सर्वे में पूछा गया कि यदि आपको मतदान के लिए बैलट पेपर और ईवीएम में से एक चुनने का विकल्प मिले तो आप क्या चुनेंगे? और इस सर्वे में 59.5 प्रतिशत लोगों ने बैलट पेपर से मतदान करने का विकल्प चुना जबकि 40.5 लोगों ने EVM से मतदान के विकल्प को चुना।

‘द क्विंट’ की संपादक पत्रकार पूनम अग्रवाल एक रिपोर्ट में सवाल उठाती हैं कि क्या भारत का चुनाव आयोग मतदाताओं को केवल EVM से वोट डालने के लिए मजबूर कर रहा है? क्या चुनाव आयोग को मतदाताओं को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन और बैलट पेपर के बीच चयन करने की अनुमति देनी चाहिए?

न तो भारत का संविधान और न ही जनप्रतिनिधित्व कानून, जो भारत के चुनाव नियमों की पैरवी करता है, कहता है कि एक मतदाता को ईवीएम और वीवीपीएटी के माध्यम से अपना वोट डालना है या चुनाव आयोग को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग के माध्यम से चुनाव कराना चाहिए। तो फिर मतदाताओं को बैलट पेपर के जरिए वोट देने का विकल्प क्यों नहीं दिया जाता है?

महाराष्ट्र सरकार मतदाताओं को बैलट पेपर का विकल्प देने पर कर रही विचार 

महाराष्ट्र सरकार चुनाव कराने के लिए बैलेट पेपर को फिर से शुरू करने पर विचार कर रही है। संभवतः मार्च में राज्य विधानसभा के बजट सत्र में इससे जुड़ा विधेयक पेश हो सकता है। विधानसभाध्यक्ष नाना पटोले ने मीडिया से कहा है कि उन्होंने उद्धव ठाकरे सरकार को ईवीएम के साथ बैलेट पेपर पर चुनाव कराने के लिए एक ड्राफ्ट तैयार करने का निर्देश दिया है। अगर ड्राफ्ट तैयार है तो विधेयक को आगामी बजट सत्र में पेश किया जा सकता है। 

हालांकि पेश किया गया बिल केवल राज्य विधान सभा चुनावों और स्थानीय चुनावों के लिए लागू होगा। अगर ठाकरे सरकार इस विचार पर आगे बढ़ती है तो महाराष्ट्र, बैलेट पेपर और ईवीएम पर एक साथ चुनाव के लिए इस तरह का कानून लाने वाला पहला राज्य होगा। 

दरअसल मतदाताओं को बैलट पेपर और ईवीएम दोनों का विकल्प देने पर बहस ज्यूडिशियल एक्टिविस्ट सतीश महादेवराव यूके द्वारा महाराष्ट्र विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष नाना पटोले को दी गई याचिका के बाद शुरू हुई। ज्यूडिशियल एक्टिविस्ट सतीश यूके की इस याचिका के आधार पर, नाना पटोले ने महाराष्ट्र में होने वाले चुनावों में बैलेट पेपर के माध्यम से मतदान फिर से शुरू करने के लिए एक विधेयक का मसौदा तैयार करने के विचार को आगे बढ़ाया है।

यदि महाराष्ट्र सरकार इस तरह के बिल को मंजूरी देती है, तो यह राज्य विधानसभा चुनाव और राज्य के अन्य स्थानीय स्तर के चुनावों में लागू होगा।

वहीं महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर नाना पटोले ने कहा है, “हर नागरिक को हर 5 साल में सरकार चुनने का मौलिक अधिकार है। कई बार याचिकाकर्ताओं ने ईवीएम पर संदेह जताते हुए अदालत का रुख किया है। हमारे संविधान ने मतदाताओं को किसी भी विधि से अपना वोट डालने की अनुमति दी है। मतदाताओं को ईवीएम पर संदेह है क्योंकि कई यह सुनिश्चित नहीं कर रहे हैं कि उनका वोट सही तरीके से पंजीकृत किया गया है या नहीं। यह हमारे लोकतंत्र के लिए एक बड़ा झटका है।”

नाना पटोले ने आगे कहा. “अनुच्छेद 328 राज्य सरकार को इस तरह का कानून बनाने का अधिकार देता है।’ उन्होंने कहा कि चुनाव, ईवीएम से होना है या बैलेट पेपर से यह फैसला राज्य करेगा। जो लोग लोकतंत्र में विश्वास करते हैं। जो लोग बैलेट पेपर में यकीन रखते हैं। वह इससे खुश होंगे।”

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

(नोट-कुछ इनपुट द क्विंट से लिए गए हैं।)

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