मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा- नौकरियों के मामले में झूठ बोल रहे हैं नरेंद्र मोदी

Estimated read time 1 min read

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा ने चुनाव के दौरान प्रति वर्ष 2 करोड़ नौकरियां देने का वादा किया था। मोदी और भाजपा के इस वादे के मुताबिक 9 साल में देश के युवाओं को करीब 18 करोड़ नौकरियां मिलनी चाहिए थी। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि मोदी सरकार के पिछले पांच साल के आंकड़ों को देखे तो केवल 12 लाख 20 हजार नौकरियों पर ही लोगों की नियुक्ति हुई है। इसका मतलब है कि प्रति वर्ष औसतन 2,44,000 नौकरियां!

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने शुक्रवार को ट्वीट किया कि “मोदी सरकार के तहत भारत ने पिछले पांच वर्षों में केवल 12.2 लाख औपचारिक नौकरियां जोड़ी हैं! इसका मतलब है कि प्रति वर्ष औसतन केवल 2,44,000 नौकरियां!”

कांग्रेस ने मोदी शासन में महंगाई, संवैधानिक संस्कृति पर हमले और सामाजिक वैमनस्य के अलावा बेरोजगारी को सबसे अहम मुद्दे के तौर पर पेश किया है। खड़गे ने कहा कि “हम इस आंकड़े का आविष्कार नहीं कर रहे हैं। यह मोदी सरकार ही है जिसने यह नैरेटिव रचा कि ईपीएफ नियमित योगदानकर्ता औपचारिक नौकरियों के सृजन के बराबर है! ईपीएफ डेटा इसकी पुष्टि करता है। भाजपा ने प्रति वर्ष दो करोड़ नौकरियों का वादा किया था! इसका मतलब है कि 9 साल में 18 करोड़ नौकरियां पैदा हो सकती थीं। नवीनतम ईपीएफ आंकड़े बताते हैं कि पांच वर्षों में केवल 12.2 लाख नौकरियां जुड़ीं।”

खड़गे ने कहा कि “हमारा युवा अंधकारमय भविष्य की ओर देख रहा है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि सड़कों पर गुस्सा और हिंसा है। रोजगार देने में बुरी तरह विफल रही भाजपा! अकल्पनीय बेरोजगारी, दर्दनाक मूल्य वृद्धि और भाजपा द्वारा थोपी गई सुनियोजित नफरत के कारण यह भयावह स्थिति पैदा हुई है। हमारे गरीबों और मध्यम वर्ग के अस्तित्व के लिए, भाजपा को सत्ता से बाहर करना होगा। भारत के पास बहुत कुछ है।”

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) ने पिछले वर्षों में लगातार बेरोजगारी दर को बहुत अधिक पाया है; नवीनतम आंकड़ा 8.1 प्रतिशत है।

मोदी ने खुद 2021 में 1.2 करोड़ औपचारिक नौकरियों के सृजन का दावा करने के लिए ईपीएफओ के पेरोल डेटा का हवाला दिया। 9 फरवरी, 2022 को राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस का जवाब देते हुए, मोदी ने राज्यसभा में कहा था कि “ईपीएफओ का पेरोल डेटा विश्वसनीय है। 2021 में 1.2 करोड़ नए सदस्यों ने ईपीएफओ पोर्टल पर अपना नामांकन कराया। इनमें से 60 से 65 लाख की उम्र 18 से 25 साल के बीच है यानी ये उनकी पहली नौकरी है। ये सभी औपचारिक नौकरियां हैं। रिपोर्ट से पता चलता है कि हाल के दिनों में नियुक्तियां बढ़ी हैं। विनिर्माण क्षेत्र में सुधार हुआ है, जिससे अधिक नौकरियां पैदा हुई हैं।”

जनवरी 2018 में मोदी ने एक टीवी इंटरव्यू में कहा था कि भारत में रोजगार की कमी को लेकर झूठ फैलाया जा रहा है जबकि एक साल में 18 से 25 साल के 70 लाख युवाओं के ईपीएफ खाते खोले गए हैं। मोदी 15 जनवरी, 2018 को भारतीय प्रबंधन संस्थान, बैंगलोर के प्रोफेसर पुलक घोष और भारतीय स्टेट बैंक के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट- “टुवर्ड्स ए पेरोल रिपोर्टिंग इन इंडिया”-का हवाला दे रहे थे।

यहां तक कि अन्य भाजपा मंत्रियों ने भी बढ़ती बेरोजगारी की कहानी का मुकाबला करने के लिए ईपीएफ डेटा का हवाला देना शुरू कर दिया। लेकिन विपक्षी दलों और आलोचकों ने इस तर्क का जमकर विरोध किया और कहा कि ईपीएफ डेटा को नए रोजगार के रूप में पेश नहीं किया जा सकता क्योंकि यह न तो नौकरी के नुकसान का हिसाब देता है, न ही अनौपचारिक क्षेत्रों में मौजूदा नौकरियों के औपचारिककरण का। कई अर्थशास्त्रियों ने इस बात पर जोर दिया कि नौकरी की स्थिति खराब हो गई है और यहां तक कि सरकार में मौजूदा रिक्तियां भी नहीं भरी गई हैं।

जबकि मासिक रूप से जारी किया जाने वाला ईपीएफ डेटा केवल अनंतिम है, इसे साल के अंत में संशोधित किया जाता है, जिससे पूरी तस्वीर बदल जाती है। कई कर्मचारी नौकरी छोड़ने या रिटायरमेंट के बाद भी ईपीएफ से पैसा नहीं निकालते हैं क्योंकि यह जमा पर आकर्षक ब्याज देता है। दिसंबर में जारी 2021-22 के वार्षिक ईपीएफओ डेटा के नवीनतम संस्करण में औपचारिक क्षेत्र में रोजगार सृजन में मंदी देखी गई।

(प्रदीप सिंह जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।)

+ There are no comments

Add yours

प्रदीप सिंह https://www.janchowk.com

दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

You May Also Like

More From Author