सबसे कठिन दौर में मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने राजनैतिक जीवन के सबसे कठिन दौर से गुजर रहे हैं। अगर माना जाए कि 2014 में वे अपनी लोकप्रियता के शिखर पर थे तो आज की तारीख में अब तक के सबसे निचले पायदान पर हैं। उनकी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों ही छवियों में गिरावट आई है। हाल की घटनाओं ने साबित किया है कि पूरी दुनिया में उनका एक भी देश ऐसा दोस्त नहीं है जब मुसीबत के वक्त उनके साथ खड़ा हो सके। इसी तरह राष्ट्रीय स्तर पर भी उनकी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, उनकी अपनी पार्टी भारतीय जनता पार्टी और उनके घोर समर्थकों में भी बड़े पैमाने पर उनके विरोधी उभरे हैं।

नोटबंदी के बाद से ही छवि में गिरावट

यूं तो मोदी जी की छवि 2016 से ही गिरनी शुरू हो गई। 8 नवंबर, 2016 की रात आठ बजे मोदी जी ने अचानक एलान किया कि रात 12 बजे के बाद 500 और 1000 के नोट बंद हो जाएंगे। तब मोदी जी को लगा था कि वे बहुत क्रांतिकारी कदम उठा रहे हैं। उन्होंने बाद में बताया कि इससे काला धन खत्म हो जाएगा और आतंकवाद और नक्सलवाद पर भी काफी हद तक लगाम लग जाएगा। उन्हें लगा कि लोग उनके इस कदम की भूरि-भूरि प्रशंसा करेंगे। लेकिन हुआ उल्टा।

लोगों की तकलीफें बढ़ गईं। लोगों को पैसों की किल्लत आने लगी। अपने पास रखे 500 और हजार के नोट बदलवाने और अपना ही पैसा निकालने के लिए लोगों को बैंकों के सामने लाइन में लगना पड़ा। इसमें 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। लोगों की परेशानी बढ़ती देख और अपनी छवि खराब होती देख मोदी ने लोगों से पचास दिन का समय मांगा और कहा कि अगर पचास दिन में हालत नहीं सुधरी तो वो जिस चौराहे पर कहेंगे सजा भुगतने के लिए मैं आ जाऊंगा। लेकिन कदम ही उन्होंने इतना भयानक उठाया था कि पचास दिन क्या पांच सौ दिन में भी हालात नहीं सुधरे। लोग आज तक उनके चौराहे पर आने का इंतजार कर रहे हैं।

नोटबंदी का असर अभी खत्म भी नहीं हुआ था कि उन्होंने जीएसटी लागू कर दी। 101वें संशोधन अधिनियम के रूप में जीएसटी पारित की गई। राष्ट्रपति ने 12 अप्रैल, 2017 को केंद्रीय जीएसटी कानून को स्वीकृति दी और जीएसटी 1 जुलाई, 2017 से लागू हो गई। नोटबंदी के साल भर के भीतर ही यह दूसरा झटका था। नोटबंदी ने जहां छोटे और मध्यम वर्ग के व्यापारियों को प्रभावित किया था, वहीं जीएसटी ने उनकी कमर ही तोड़ दी। नोटबंदी के समय लोगों को समझाया गया कि धनपतियों का काला धन खत्म हो जाएगा। इसका गरीब लोगों पर थोड़े समय के लिए भले असर पड़े लेकिन उद्योगपतियों और धन पशुओं पर इसका लंबे समय के लिए असर होगा।

लेकिन बाद में जब रिपोर्ट आई और पता चला कि इसका असर सिर्फ गरीब और मध्यम वर्ग पर पड़ा तो लोगों को बड़ी निराशा हुई और मोदी के प्रति उनका गुस्सा उनके मन में भर गया। जीएसटी की भूमिका ने दिल में भरे गुस्से को स्थायी रूप प्रदान कर दिया। पहले जहां गरीब तबका मोदी के शासन को अपने खिलाफ मान रहा था वहीं मध्यम वर्ग ने भी इन्हें अपने खिलाफ ही महसूस किया। वो तो पुलवामा कांड के बाद बालाकोट पर हमला करके किसी तरह इन्होंने देशभक्ति की भावना को उभारा और 2019 का चुनाव जीतने में येन केन प्रकारेण सफल रहे। उस चुनाव के बाद इन्होंने लोगों के मन में यह बात बैठाने की कोशिश की कि लोगों ने नोटबंदी और जीएसटी लागू करने के फैसले को सही माना है। पर लोगों ने इसे स्वीकार नहीं किया।

2020 में कोरोना आ गया। 24 मार्च, 2020 की शाम मोदी जी फिर टीवी पर अवतरित हुए और अचानक घोषणा की कि रात 12 बजे के बाद लाकडाउन लगा दिया जाएगा। उस दौरान लोगों को बड़ी तकलीफों के साथ गुजरना पड़ा। सरकार ने न तो किसी के रहने का इंतजाम किया न किसी के खाने-पीने का। ऊपर से काम बंद हो गया। शहर में लोग रहें कैसे ? ऐसी हालत में लोगों को अपने मूल घर की याद आई। लोग अपने गांवों की ओर चल पड़े। लेकिन सड़कों पर सब कुछ बंद। यातायात के साधन नहीं। जाएं तो जाएं कैसे? ऐसे में लोग साइकिल और पैदल हजारों किलो मीटर की यात्रा कर अपने घर पहुंचे।

नोटबंदी और जीएसटी से सरकार के प्रति जो गुस्सा था वह अचानक लगाये गए लॉकडाउन से और बढ़ गया। रही सही कसर ऑक्सीजन की कमी और अस्पताल में सुविधाओं की कमी ने पूरी कर दी। करीब 50 लाख लोगों की मौत हो गई। लोगों के पास इतने पैसे तक नहीं थे कि वे अपने परिजनों की लाशों का विधिवत अंतिम संस्कार कर सकें। किसी ने लाशों को बालू में दबाया तो किसी ने गंगा में बहा दिया। गंगा नदी लाशों से पट गई। इस सबका नतीजा यह निकला कि 2024 के चुनाव में पार्टी को पूर्ण बहुमत भी नही मिला। 2014 में बीजेपी को 282 सीटें मिली थीं, 2019 में 303 सीटें लेकिन 2024 में पार्टी 240 सीटों पर ही सिमट गई। यह भी कहा गया कि चुनाव आयोग की मेहरबानी नहीं रही होती तो पार्टी 160 सीटों पर ही सिमट गई होती।

पुलवामा का दांव उलटा पड़ा

इसी बीच पुलवामा की ही तरह पहलगाम में घटना घटी। आतंकवादियों ने 28 लोगों की हत्या कर दी। सरकार को एक बार फिर मौका मिला पुलवामा जैसा ही माहौल बनाने का। सरकार ने पाकिस्तान के आतंकवादी ठिकानों पर हमला बोल दिया। सेना ने पाकिस्तान में नौ आतंकवादी ठिकानों पर हमला किया। पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई की तो सेना ने पाकिस्तानी मिसाइलों और उसके द्रोणों को बीच रास्ते में ही मार गिराया। लग रहा था कि सेना इस बार पाकिस्तान और उसकी छत्रछाया में पल रहे आतंकवादियों को अच्छा सबक सिखाएगी तभी अचानक सरकार ने संघर्ष विराम कर दिया।

बाद में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि उन्होंने व्यापार न करने की धमकी देकर दोनों देशों को संघर्ष विराम पर राजी होने को तैयार किया। यह मोदी जी के लिए एक नये तरह की समस्या थी। इसका सीधा मतलब निकाला गया कि मोदी जी ट्रंप के फोन से डर गये और इन्होंने संघर्ष विराम के लिए हामी भर दी। लोग पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को याद करने लगे जब 1971 में अमेरिका ने धमकाया तो इंदिरा गांधी खड़ी हो गईं। अमेरिका ने अपना तब का सबसे शक्तिशाली सातवां बेड़ा भारत की ओर रवाना कर दिया। बावजूद इसके बिना डरे इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान को अलग कर बांग्लादेश बनाकर ही दम लिया। 

संघ, बीजेपी, समर्थक भी खिलाफ

मोदी जी ने 2024 के चुनावों के लिए 400 पार का नारा दिया था। लेकिन अटके जाकर 240 पर। बहुमत से भी कम। पूर्ण बहुमत न पाने पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने महसूस किया कि मोदी जी की लोकप्रियता अब कम हो रही है। इनके बूते अब सरकार नहीं बनाई जा सकती। लिहाजा उसने इनको कसने का मन बनाया। वह चाहता था कि पार्टी अब मोदी और अमित शाह की मर्जी की बजाय उसकी मर्जी से चले। उसी का नतीजा है कि आज तक बीजेपी का अध्यक्ष नहीं चुना जा सका। जबकि जेपी नड्डा का कार्यकाल कब का पूरा हो चुका है।

मोदी जी जिसे अध्यक्ष बनाना चाहते हैं संघ उस से सहमत नहीं और संघ जिसे बनाना चाहता है मोदी और शाह उस पर सहमत नहीं। संघ के अलावा बीजेपी में भी मोदी और शाह के विरोधी बढ़ते जा रहे है। पहले सिर्फ नितिन गडकरी थे जो खुलकर मोदी और शाह के विरोध में अपनी बात रखते थे। लेकिन अब ऐसे दूसरे लोग भी सामने आए हैं जो मोदी और शाह के फरमान को नहीं मान रहे हैं। योगी आदित्यनाथ को मोदी और शाह चाहकर भी अभी तक मुख्यमंत्री पद से नहीं हटा पाए हैं।

मोदी की सबसे बड़ी ताकत उनके समर्थक थे। मोदी कुछ भी करते थे, वे बहुत ही आक्रामक अंदाज में उनके कार्यों का समर्थन करते थे। लेकिन सीज फायर के बाद वे समर्थक भी मोदी से नाराज हो गये हैं। सोशल मीडिया पर वे खुलकर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं। इस प्रकार मोदी को संघ, बीजेपी और अपने समर्थकों से भी विरोध का सामना करना पड़ रहा है।

अंतरराष्ट्रीय छवि भी खराब हुई

मोदी अपने पूरे कार्यकाल में विदेश दौरे करते रहे हैं। उन्होंने जितने विदेश दौरे किये हैं, शायद ही किसी दूसरे भारतीय प्रधानमंत्री ने इतने दौरे किये हों। जब मोदी देश की समस्याओं को सुलझाने में नाकाम हो गये तो इनके समर्थकों ने कहना शुरू कर दिया कि अकेला मोदी क्या-क्या करे। देश की छवि विदेश में चमकाए या देश संभाले। तब मोदी विदेशों में जहां-जहां जाते थे मोदी-मोदी के नारे लगते थे। मासूम समर्थक (अंध भक्त) क्या जानें कि वह प्रायोजित भीड़ होती थी जो मोदी-मोदी चिल्लाती थी। अब जब पाकिस्तान से संघर्ष हुआ तो उसके पक्ष में फिर भी तीन देश खुलकर आए। चीन, तुर्किए और अजरबैजान। करीब आधा दर्जन देशों ने परोक्ष तौर पर उसका समर्थन किया। जबकि भारत के पक्ष में एक देश तक नहीं खड़ा हुआ।

तब अंधभक्तों की आंखें खुलीं। उन्हें पहली बार महसूस हुआ कि आखिर मोदी विदेश जाकर क्या करते रहे। 70 से ज्यादा देशों की यात्रा की, बड़े-बड़े नेताओं से गले मिले, ओबामा, ट्रंप, जिनपिंग, पुतिन से दोस्ती की बड़ी-बड़ी बातें कीं। फिर क्या वजह है कि कोई भी देश इनके समर्थन में क्यों नहीं खड़ा हुआ? जिस व्यक्ति के फोन करने से यूक्रेन और रूस का युद्ध रुकवाने की बात कही गई आखिर विश्व समाज में उसकी हैसियत क्या है? आखिर में जब मोदी ने तय किया कि वह विदेशों में अपना पक्ष रखने के लिए डेलीगेशन भेजेंगे तो भक्तों की आंखों पर लगी पट्टी खुल गई कि मोदी जी ने अब तक विदेश जाकर सिर्फ सैर-सपाटा किया है। अगर उन्होंने देश हित को ध्यान में रखकर विदेश दौरे किये होते तो आज अपना पक्ष रखने के लिए डेलीगेशन भेजने की नौबत न आती।

आडवाणी जैसी गलती

एक पुराने गीत की लाइन है- प्यार भी खोया मैंने सब कुछ हार के। मोदी जी पर आज ये लाइन बिलकुल सटीक बैठ रही है। उन्होंने बहुत कुछ तो खोया ही है अपने लोगों का प्यार भी खो दिया है। एक वक्त के लोकप्रिय नेता लालकृष्ण आडवाणी अपने एक कार्य से अपने कार्यकर्ताओं की नजर से गिर गये थे। उन्होंने पाकिस्तान जाकर जिन्ना की मजार पर जाने की भूल की थी। भला जिस पार्टी का वजूद ही मुसलमान और पाकिस्तान विरोध पर टिका हुआ हो उसका नेता जिन्ना की मजार पर कैसे जा सकता है ? उनका हस्र आप सबको मालूम है। मोदी जी ने भी अचानक सीज फायर करके वैसी ही गलती कर दी है। जिस तरह से आडवाणी जी अपने कट्टर समर्थकों की नजर में गिर गये थे आज मोदी जी भी अपने कट्टर समर्थकों की नजर में गिर गये हैं। देखना है इनका हस्र भी आडवाणी वाला होता है या कुछ और?

(अमरेंद्र कुमार राय वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

More From Author

दिल्ली में सीवर व नालों की सफाई के लिए सफाई कर्मचारियों को उतारा जाना शर्मनाक : सफाई कर्मचारी आंदोलन

राहुल गांधी के निर्देश पर क्या थम जायेगी हरियाणा में गुटबाजी?

Leave a Reply