वाराणसी/नई दिल्ली। आज शुक्रवार (12 अगस्त, 2023) को वाराणसी के राजघाट स्थित सर्व सेवा संघ को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर ध्वस्त कर दिया गया। खबर लिखे जाने तक परिसर में प्रशासन के बुलडोजर गांधी-विनोबा-जेपी की विरासत को मिट्टी में मिलाने में लगे रहे। परिसर के मुख्य दरवाजे पर भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया है।
ध्वस्तीकरण तो वाराणसी जिला प्रशासन और पुलिस नगर निगम के बुलडोजर से कर रहा है। लेकिन इस ध्वस्तीकरण के पीछे कुछ सफेदपोश चेहरे हैं जो अपने को नौकरशाह, पत्रकार, गांधीवादी और समाजवादी कहते हैं। सबसे पहले इस ध्वस्तीकरण अभियान के पीछे पीएम नरेंद्र मोदी हैं, जो गांधी-विनोबा-जेपी के विचार से डरते हैं। उनके इशारे पर वाराणसी के कमिश्नर कौशलराज शर्मा इस अभियान के अगुवा हैं। वहीं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष रामबहादुर राय, तथाकथित समाजवादी रामेश्वर मिश्र ‘पंकज’, प्रो. कुसुमलता केडिया, गांधीवादी प्रो. रामजी सिंह, महादेव विद्रोही जैसे लोग भी सर्व सेवा संघ के ध्वस्तीकरण के पाप में शामिल हैं।
सर्व सेवा संघ के पदाधिकारियों, कार्यकर्ताओं और गांधीजनों ने संस्थान को बचाने की भरसक कोशिश की। हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति तक से गुहार लगाई। इस क्रम में 14 जून, 2023 को सर्व सेवा संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं वरिष्ठ गांधीवादी कार्यकर्ता चंदन पाल ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को गांधी विद्या संस्थान और सर्व सेवा संघ की क्रयशुदा जमीन को आयुक्त, वाराणसी द्वारा जबरन अवैध कब्जा कराये जाने के संबंध में एक ज्ञापन दिया था।
“सर्व सेवा संघ गांधी विचार का राष्ट्रीय शीर्ष संगठन है। इसकी स्थापना मार्च 1948 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में सम्पन्न हुए सम्मेलन में हुआ। इस सम्मेलन में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू सहित शीर्ष राष्ट्रीय नेताओं यथा–आचार्य कृपलानी, आचार्य विनोबा भावे, मौलाना अबुल कलाम आजाद, लोकनायक जयप्रकाश नारायण, जेसी कुमारप्पा एवं अन्य नेता उपस्थित थे।”
आचार्य विनोबा भावे की पहल पर उक्त जमीनें स्व. लालबहादुर शास्त्री जी के सहयोग से सर्व सेवा संघ ने 1960, 1961 एवं 1970 में रेलवे से खरीदा है, जिसका डिविजनल इंजीनियर नार्दन रेलवे, लखनऊ द्वारा हस्ताक्षरित तीन रजिस्टर्ड सेल डीड हैं। 1960 में खरीद की जमीन की रकम रुपये 26,730, 1961 में खरीद की गयी जमीन की रकम रुपये 3,240 एवं 1970 में खरीद की गयी जमीन की रकम रुपये 4,485 स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, वाराणसी के क्रमश: ट्रेजरी चलान नं. 171 दि. 5 मई 1959, ट्रेजरी चलान नं. 31 दि. 27.04.1961 एवं ट्रेजरी चलान नं. 3 दि. 18.01.1968 के माध्यम से भुगतान किया गया है और यह रकम सरकार के खजाने में गयी है। अत: इसे कूटरचित कहना आचार्य विनोबा भावे, राधाकृष्ण बजाज, लोकनायक जयप्रकाश नारायण, लालबहादुर शास्त्री, जगजीवन राम एवं डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जैसे व्यक्तित्वों को लांक्षित करना है।

वर्ष 1960 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने सर्व सेवा संघ को गांधी विचार के उच्च अध्ययन एवं शोध के लिए एक राष्ट्रीय संस्थान की स्थापना का सुझाव दिया। तद्नुसार सर्व सेवा संघ ने अपनी जमीन पर राजघाट, वाराणसी में ‘दी गांधीयन इन्स्टीट्यूट ऑफ स्टडीज’(गांधी विद्या संस्थान) की स्थापना की।

वर्ष 2007 से 14 मई, 2023 तक संस्थान पर जिला प्रशासन का ताला बंद रहा, संचालन नहीं किया गया। इसके लिए सर्व सेवा संघ की ओर से प्रत्यक्ष मिलकर और लिखित रूप से निवेदन किया गया कि संस्थान की लाइब्रेरी अमूल्य है, किताबें नष्ट हो रही हैं, अत: इसकी जिम्मेवारी सर्व सेवा संघ को दे दी जाय। लेकिन मंडलायुक्त की ओर से सकारात्मक पहल नहीं की गयी।
सर्व सेवा संघ परिसर, वाराणसी में मंडलायुक्त का 18 जनवरी, 2023 को अचानक आगमन हुआ। इसके बाद 28.02.2023 को पूर्वान्ह 11.30 बजे आयुक्त के कैम्प कार्यालय में ‘क्षेत्रीय निदेशक, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, क्षेत्रीय केन्द्र, वाराणसी के अनुरोध के क्रम में गांधी विद्या संस्थान परिसर को प्रदान करने के संबंध मे’ एक बैठक बुलाई गयी है।

इस बैठक में सर्व सेवा संघ के स्थानीय प्रतिनिधि रामधीरज उपस्थित रहे। बैठक में कोई निर्णय नहीं हुआ। सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष चंदन पाल और प्रबंधक ट्रस्टी शेख हुसैन की ओर से पत्रांक 2022-23/1250 दि. 28.02.2023 जारी कर मण्डलायुक्त महोदय को इस निवेदन के साथ अवगत कराया गया कि ‘संस्थान के विवादित मामले माननीय उच्च न्यायालय, इलाहाबाद में विचाराधीन हैं।

अचानक 15 मई, 2023 को परिसर में भारी पुलिस बल के साथ मजिस्ट्रेट और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के पदाधिकारियों का आना हुआ। मण्डलायुक्त के आदेश के अनुसार गांधी विद्या संस्थान की लाइब्रेरी, प्रशासनिक भवन एवं परिसर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र को दे दिया गया है।

02 दिसंबर, 2020 को सर्व सेवा संघ की जमीन के एक हिस्से पर कौशलराज शर्मा के निर्देश पर कब्जा कर लिया गया था। उस वक्त ये वाराणसी के जिलाधिकारी थे। जब इस घटना का प्रतिवाद किया गया, तो प्रशासन की ओर से कहा गया कि काशी कॉरिडोर के लिए इस स्थान का इस्तेमाल होगा और यह 6 महीने का ही काम है। इसके बाद वापस हो जाएगा। काशी कॉरिडोर का काम समाप्त हो गया, लेकिन आज भी इस हिस्से पर प्रशासन का कब्जा बना हुआ है।

28 फरवरी 2023 को गांधी विद्या संस्थान के संचालन समिति के अध्यक्ष के नाते बुलाई गयी बैठक में गांधी विद्या संस्थान को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र को सौंप देने का मुद्दा रखना। जिला न्यायालय (एडीजे दशम) के 28.05.2007 के आदेश द्वारा आयुक्त की अध्यक्षता में गठित संचालन समिति का दायित्व संस्थान के संचालन का था, न कि संस्थान को किसी अन्य व्यक्ति अथवा संस्था को देने का अधिकार। आयुक्त द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन किया जाना।

संस्थान की अमूल्य लाइब्रेरी, नष्ट हो रहीं किताबों की सुरक्षा के बारे में सर्व सेवा संघ के प्रतिनिधियों द्वारा प्रत्यक्ष मिलकर और लिखित निवेदन के उपरांत भी आयुक्त की ओर से संस्थान की जिम्मेवारी सर्व सेवा संघ को नहीं दिया जाना।

उत्तर रेलवे लखनऊ की ओर से 11 अप्रैल 2023 को सर्व सेवा संघ के ऊपर कूटरचित दस्तावेज तैयार किये जाने और आपराधिक कृत्य बताते हुए मुकदमा किया जाना। स्पष्ट है कि 02 दिसंबर 2020 और पिछले 18 जनवरी 2023 से 15 मई 2023, यानी इन पांच महीनों में ही कई घटनाक्रमों को अंजाम दिया गया।

सर्व सेवा संघ की स्थापना 1948 में हुआ। वर्ष 1956 से ही वाराणसी में सर्व सेवा संघ का काम चल रहा है। वर्ष 1960 में जब सर्व सेवा संध ने रेलवे से जमीन खरीदा, तब इस साधना केन्द्र परिसर का निर्माण हुआ और 1964 में इस साधना केन्द्र का उद्घाटन स्व. लालबहादुर शास्त्री जी ने अपने कर-कमलों किया। फिर यहां सर्व सेवा संघ का कामकाज चलने लगा। साधना केन्द्र का यह परिसर सर्वोदयी व वरिष्ठ गांधीवादी आचार्य विनोबा भावे, लोकनायक जयप्रकाश नारायण व उनकी पत्नी प्रभावती जी, अच्युत पटवर्धन, बालकोबा भावे, दादा धर्माधिकारी, नारायण देसाई, विमला ठकार, निर्मला देशपांडे, कृष्णराज मेहता, शंकर राव देव, आचार्य राममूर्ति, अमरनाथ भाई आदि का कर्म-स्थल रहा है। यह भी उल्लेखनीय है कि विश्व प्रसिद्ध पुस्तक ‘Small is Beautiful’ की रचना इसी साधना केन्द्र परिसर में रहकर विश्वविख्यात अर्थशास्त्री प्रो. ई. एफ. शुमाखर ने की थी।
(प्रदीप सिंह की रिपोर्ट।)
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