उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में भारतीय जनता पार्टी अपने पसंदीदा पिच पर एक बड़ा मोर्चा हार गई। साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में हिंदुत्व और जातीय गोलबंदी में माहिर बीजेपी ने ‘मोदी मैजिक’ का मिथक गढ़ा, जो इस बार धराशायी हो गया। जिस इलाके में साल 2019 में 27 से 20 लोकसभा सीटें जीतकर बीजेपी ने एक ऊंची मीनार खड़ी की थी, वो भरभराकर ढह गई। इंडिया गठबंधन के आगे उसकी लकीर छोटी पड़ गई। बीजेपी को सबसे तगड़ा झटका बनारस में लगा, जहां मोदी का मजबूत किला दरकता नजर आया।
पूर्वांचल में दो लड़कों की जोड़ी हिट रही। पूर्वांचल में कांग्रेस ने बीजेपी से न सिर्फ अमेठी सीट छीनी, बल्कि इलाहाबाद में शानदार विजय पताका फहराकर इंडिया गठबंधन को एक बड़ी मजबूती दी। पूर्वांचल में पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार एनडीए जबरदस्त नुकसान उठाना पड़ा है। पिछले चुनाव के आंकड़ों पर गौर करें तो साल 2019 में पूर्वांचल की 27 सीटों में से बीजेपी ने 18 और उसकी सहयोगी अपना दल (एस) ने दो सीटें जीती थीं। इस बार पूर्वांचल में इस क्षेत्र में बीजेपी को सिर्फ 10 सीटें ही मिल पाई हैं। पिछले चुनाव में फकत एक सीट जीतने वाली समाजवादी पार्टी ने अबकी 15 सीटों पर न सिर्फ अपना कब्जा जमाया है, बल्कि उसने बीजेपी के सामने तगड़ी चुनौती भी पेश की है।
पूर्वांचल में बीजेपी साल 2014 और साल 2019 से चुनाव में मजबूती के साथ सत्ता में आई थी। इस इलाके में अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन के बावजूद मोदी मैजिक बेअसर रखा। मोदी ने सेंगोल को नए संसद भवन में स्थापित करने से लेकर काशी-तमिल संगमम और सौराष्ट्र-तमिल संगमम की शुरुआत करने तक का दांव खेला, लेकिन इस चुनाव में किसी भी तरह का दांव नहीं चल सका। मौजूदा चुनाव का नतीजा इस बात को तस्दीक करता है कि बीजेपी की मजबूत दीवार अब दरकने लगी है।
दरक गई बीजेपी की मजबूत दीवार
पूर्वांचल के नतीजों को देखें तो राहुल-अखिलेश ने सियासी गलियारों में एक बड़ा बदलाव किया है। साल 2019 में पूर्वांचल की 27 सीटों में से बीजेपी ने 18 और उसकी सहयोगी अपना दल (एस) ने दो सीटें जीती थीं। अबकी बीजेपी को सिर्फ दस सीटों पर संतोष करना पड़ा। एनडीए में शामिल अपना दल (एस) को अपने खाते की राबर्ट्सगंज सीट गंवानी पड़ी। यहां अपना दल (एस) की प्रत्याशी रिंकी कोल की बुरी हार ने पहाड़ी इलाके में एक बड़ा सन्नाटा खींचा है। सपा ने इस सीट पर बीजेपी के पूर्व सांसद छोटेलाल खरवार को उतारा था।
2019 के लोकसभा चुनाव के बाद पूर्वांचल में भगवा रंग का वर्चस्व था, लेकिन अब यह बदलकर सुर्ख लाल हो गया है। आजमगढ़ से समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव और लालगंज से दरोगा प्रसाद सरोज ने जीत हासिल की है। गाजीपुर में सपा के अफजाल अंसारी ने जीत दर्ज की है। घोसी में राजीव राय ने सुभासपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर को हराया है। बलिया में पहली बार कोई ब्राह्मण सांसद बना है। सपा के सनातन पांडेय ने पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे और राज्यसभा सदस्य नीरज शेखर को हराया है। राबर्ट्सगंज से सपा के छोटेलाल खरवार ने जीत हासिल की और जौनपुर में सपा के टिकट पर बाबू सिंह कुशवाहा विजयी हुए हैं।
मछलीशहर (सुरक्षित) सीट से सपा की युवा प्रत्याशी अधिवक्ता प्रिया सरोज ने जीत दर्ज की है। 25 वर्षीय प्रिया पहली बार चुनाव लड़कर जीती हैं। सलेमपुर से सपा के रमाशंकर राजभर जीते हैं। पूर्वांचल में केंद्रीय मंत्री महेंद्रनाथ पांडेय हैट्रिक नहीं बना सके, वह चंदौली से चुनाव हार गए। उन्हें सपा के वीरेंद्र सिंह ने मात दी है। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे, भाजपा से राज्यसभा सांसद नीरज शेखर भी चुनाव हार गए। यहां नारद राय भी ऐन वक्त पर भाजपा में शामिल हुए, लेकिन पार्टी को इसका कोई फायदा नहीं मिला। भोजपुरी स्टार दिनेश लाल यादव निरहुआ ने 2022 के उपचुनाव में सपा के धर्मेंद्र यादव को हराया था, लेकिन इस चुनाव में वे सीट गंवा बैठे। गाजीपुर सीट पर भाजपा ने पारसनाथ राय को मैदान में उतारा था। उन्हें पूर्व केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा का करीबी माना जाता है, लेकिन वे भी सीट हार गए।
पिछले चुनाव में सपा पूर्वांचल की सिर्फ आजमगढ़ सीट ही जीत पाई थी। उस समय अखिलेश यादव मैदान में उतरे थे। चुनाव जीतने के बाद उन्होंने यह सीट छोड़ी तो बीजेपी ने लोकगायक निरहुआ को मैदान में उतारकर अपना कब्जा जमा लिया था। इस बार बाजी फिर पलट गई। समाजवादी पार्टी ने बीजेपी से आजमगढ़ के अलावा सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, मछलीशहर, बलिया, बस्ती, संतकबीर नगर और चंदौली सीट भी छीन ली। बीजेपी के कब्जे वाली इलाहाबाद सीट कांग्रेस की झोली में चली गई। बीजेपी को मछलीशहर सीट भी गंवानी पड़ी। बीएसपी पूर्वांचल की जिन आधा दर्जन सीटों पर अपना कब्जा जमाया था, वहां उसे मुंह की खानी पड़ी। लालगंज, जौनपुर, गाजीपुर, श्रावस्ती, घोसी और अंबेडकरनगर सीटें उसके हाथ से निकल गईं। बीएसपी ने सिर्फ सीटें ही लूज नहीं की, बल्कि उसके वोटर भी इंडिया गठबंधन के खेमें में जाकर खड़े हो गए।
क्यों छोटी पड़ गई मोदी की लकीर
पूर्वांचल की सबसे हॉट सीट बनारस में मोदी मैजिक चला ही नहीं। राहुल-अखिलेश ने यहां बहुत कुछ बदल दिया। तीसरी मर्तबा मैदान में उतरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीत की लकीर बहुत छोटी हो गई। चंदौली से हैट्रिक लगाने मैदान में उतरे कैबिनेट मंत्री महेंद्रनाथ पांडेय को भी पराजय का सामना करना पड़ा। पटेल समुदाय और पिछड़ों की सियासत करने वाली केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल को इस चुनाव में मुश्किलों का सामना करना पड़ा। कड़े संघर्ष के बाद वो चुनाव जीत पाईं। नवीं मर्तबा सांसद बनने के लिए बीजेपी के टिकट पर सुल्तानपुर से चुनाव लड़ रहीं मेनका गांधी को भी कराही हार मिली।
पूर्वांचल में बीजेपी के पिछड़ने और मोदी मैजिक के बेअसर होने के कई कारण गिनाए जा रहे हैं। पूर्वांचल की माटी से जुड़े दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार अमरेंद्र राय कहते हैं, “दो लड़कों की जोड़ी ने मोदी मैजिक को बेअसर किया। संविधान संशोधन और आरक्षण के समीकरण आगे बीजेपी की कल्याणकारी योजनाएं बेअसर रहीं। संविधान और आरक्षण के जिन मुद्दों को विपक्ष ने उठाया, उससे दलित और पिछड़े गोलबंद हुए। बीजेपी चाहकर भी इन मुद्दों का आखिर तक काट नहीं ढूंढ पाई। नतीजा बीजेपी बिखरती चली गई। जिन सांसदों के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी काम कर रही थी, उन्हें दोबारा मैदान में उतारने की वजह से बीजेपी को सर्वाधिक डेंट लगा। एक तरफ जहां आरएसएस के कार्यकर्ताओं की घोर उपेक्षा की गई तो दूसरी ओर, पार्टी के कार्यकर्ताओं की। दूसरे दलों के नेताओं को तवज्जो दिए जाने से कॉडर वाले कार्यकर्ता खामोश होकर अपने घरों में कैद होकर रह गए।”
वरिष्ठ पत्रकार अमरेंद्र पूर्वांचल में बीजेपी के खराब प्रदर्शन की कई वजहें गिनाते हैं। वह कहते हैं, “जमीनी कार्यकर्ताओं में मायूसी, बाहरी लोगों को चुनाव मैदान में उतार, कड़े विरोध के बावजूद पुराने चेहरों पर दांव लगाना उसे भारी पड़ा। दूसरी ओर, कांग्रेस-सपा ने बेहतरीन तालमेल के साथ अपनी रणनीति बदली। सपा ने सोशल इंजीनियरिंग का सहारा लिया। उसने न सिर्फ यादव-मुस्लिम की सरपस्ती का ठप्पा हटाया, बल्कि ओबीसी (गैर-यादव) और दलितों को खास तवज्जो दी। सोशल इंजीनियरिंग के उसके नए फार्मूले ने असर दिखाया। संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने के मुद्दे को हर ओबीसी और दलितों तक पहुंचाने में भी सपा कामयाब रही है।”
“आरएसएस और बीजेपी के कोर-एजेंडे में शामिल राम मंदिर निर्माण जनवरी 2024 में पूरा हो गया। आधे-अधूरे मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में सिर्फ मोदी पर फोकस किया गया। बीजेपी के दूसरे नेताओं को तवज्जो नहीं दी गई। राम आएंगे का मुद्दा भी बेअसर रहा। बीजेपी ने अपनी अयोध्या सीट भी गंवा दी, जिसे उसका सबसे बड़ा गढ़ माना जाता था। किसानों की अनदेखी से भी अन्नदाता नाराज थे। सपा ने मुफ्त आटा और डाटा, महंगाई, बेरोजगारी, अग्निवीर, किसान आंदोलन जैसे मुद्दों से मतदाताओं के मन को छूने का प्रयास किया। इसमें संविधान बचाओ का नारा बेहद असर करता नजर आया जिसने बसपा का बेस वोट बैंक कहे जानेवाले मतदाताओं को जोड़ने में मदद की। इंडिया गठबंधन ने अग्निवीर योजना और बेरोजगारी को एक बड़े मुद्दे के रूप में उठाया। नौजवानों ने इन मुद्दों को गंभीरता से लिया, जिससे बीजेपी के पांव उखड़ते चले गए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘400 पार’ के नारे की हवा निकल गई।”
बीजेपी को क्यों मिली पराजय?
देश की विशाल आबादी वाले यूपी के पूर्वांचल के रास्तों से ही केंद्र सरकार में होने वाले निर्णय और आमतौर पर प्रधानमंत्री की कुर्सी भी निकलती रही है। यही वजह है कि इस इलाके में सभी सियासी पार्टियां अपनी दखल बनाए रखना चाहती हैं। अबकी कांग्रेस और सपा ने उत्तर प्रदेश में मजबूती से वापसी की है। वरिष्ठ पत्रकार विनय मौर्य कहते हैं, “लोकसभा चुनाव से पहले ही मोदी ने बीजेपी का लवादा अपने कंधों से उताकर फेंक दिया था। अबकी बार-मोदी सरकार के नारे को पूर्वांचल के वोटरों ने जुमला ही समझा। दो ‘लड़कों’ ने प्रधानमंत्री मोदी को कड़ी चुनौती दी और बीजेपी के चार सौ पार के जादुई नारे को बेअसर कर दिया। यह स्थिति देश के उस इलाके में है जिसे बीजेपी ‘हिंदुत्व की सबसे बड़ी प्रयोगशाला’ मानती रही है। साल 2019 के मुकाबले बनारस में मोदी भी बहुत ही कम वोटों से चुनाव जीत पाए।”
साल 1989 के बाद के यूपी में कांग्रेस का जनाधार तेजी से खिसका था। वोटरों के एक बड़े तबके ने कांग्रेस के चुनाव चिह्न हाथ के पंजे को लगभग भुला ही दिया था। इस चुनाव में राहुल गांधी न्याय यात्रा ने संजीवनी का काम किया। मुसलमानों के साथ ही दलित भी उसकी छतरी के नीचे आकर शिद्दत से खड़े हो गए। सपा का कैडर भले ही कमजोर रहा, लेकिन उनहोंने अपनी मौजूदगी बनाए रखी। यूपी में जिस दलित गोलबंदी ने मायावती को चार बार मुख्यमंत्री बनाया उनकी पार्टी बसपा इस बार काफी पीछे छूट गई।
जौनपुर के वरिष्ठ पत्रकार कपिलदेव मौर्य ने जनचौक से बातचीत में कहा कि दो प्रतीकों पर यूपी के दो लड़कों ने मोदी का जादू बेअसर किया। वे वोटरों को यह भरोसा दिलाने में कामयाब हो गए कि बाबा साहेब का बनाया संविधान खतरे में है। बीजेपी सत्ता में आई तो वह इसे बदल देगी। मायावती की ढुलमुल नीति और उनके खराब चुनावी प्रदर्शन के चलते यूपी के दलितों का भरोसा लगातार टूटता जा रहा है। इसे साफ तौर पर देखा जा सकता है कि यह समुदाय तेजी से कांग्रेस और सपा की ओर बढ़ रहा है।
कपिलदेव यह भी कहते हैं कि, “पूर्वांचल में चुनाव नतीजों का औंधे मुंह गिरना कई नजीर खड़ा करता है। अयोध्या के वोटरों ने बीजेपी के प्रत्याशी लल्लू सिंह को लल्लू साबित कर दिया और सपा के ‘अवधेश’ प्रसाद को चुन लिया। साथ ही उस योगी को भी बता दिया कि वास्तविक रामद्रोही कौन है? अपने बड़बोलेपन के लिए कुख्यात स्मृति ईरानी को भी वोटरों ने नहीं बख्शा। जिस तरह से साल 2014 में कांग्रेस को बीजेपी ने नकार दिया था, ठीक वैसा ही नजारा इस चुनाव में भी देखने को मिला। सबसे बड़ी बात यह है कि नरेंद्र मोदी खुद को ‘विकास के महानायक’ बताकर सत्ता में आए और हिंदुत्व का चोला ओढ़ लिया। आवाम महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्ट्राचार से जूझता रहा और वह दिल्ली के सिंहासन पर बैठकर मनमानी करते रहे।”
“अबकी इंडिया गठबंधन सूबे में बेहतर रणनीति और सामाजिक व जातिगत समीकरणों के साथ वोटरों के सामने पहुंचा। एम-वाई (मुस्लिम-यादव) के बजाय पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक और आधी आबादी) के समीकरण को प्रतिस्थापित किया। टिकट वितरण में यादव समुदाय का हित मारकर सपा ने बाकी तबकों को ज्यादा अहमियत दी। सामान्य सीटों पर दलित प्रत्याशी खड़े करने का प्रयोग करने से भी नहीं चूकी। उसके इस प्रयोग ने प्रदेश में बीस-इक्कीस प्रतिशत बताए जाने वाले दलित मतदाताओं को पुरानी दुश्मनी भुलाकर उसकी ओर लाने में बड़ी भूमिका निभाई। बीजेपी प्रत्याशियों को जिताने के लिए मायावती द्वारा बार-बार प्रत्याशियों की हेराफेरी से दलित वोटर नाराज हो गए और इनका थोक वोट इंडिया गठबंधन में चला गया।
लोकसभा सीट विजेता उपविजेता वाराणसी नरेंद्र मोदी (भाजपा) अजय राय (कांग्रेस)
भदोही विनोद बिंद (भाजपा) ललितेश (टीएमसी)
मिर्जापुर अनुप्रिया पटेल (अपना दल) रमेश चंद बिंद (सपा)
चंदौली वीरेंद्र सिंह (सपा) महेंद्र नाथ पांडेय (भाजपा)
बलिया सनातन पांडेय (सपा) नीरज शेखर (भाजपा)
आजमगढ़ धर्मेंद्र यादव (सपा) दिनेश लाल यादव (भाजपा)
लालगंज (सु.) दरोगा सरोज (सपा) नीलम सोनकर (भाजपा)
गाजीपुर अफजाल अंसारी (सपा) पारसनाथ राय (भाजपा)
घोसी राजीव राय (सपा) अरविंद राजभर (सुभासपा)
राबर्ट्सगंज (सु.) छोटेलाल (सपा) रिंकी कोल (अपना दल)
जौनपुर बाबू सिंह (सपा) कृपाशंकर सिंह (भाजपा)
मछली शहर प्रिया सरोज (सपा) बीपी सरोज (भाजपा)
सलेमपुर रमाशंकर राजभर (सपा) रविंद्र कुशवाह (भाजपा)
(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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