साहिब जी का सऊदी अरब से कार्यक्रम छोड़ भारत आना!

इस बार साहिब जी की संवेदनशीलता देखकर सब लोग चौंक पड़े हैं। जन्नतें कश्मीर में पुलवामा के बाद ये दूसरा ऐसा बड़ा हादसा हुआ है। जिसने देश वासियों को दुखित किया है। खास बात ये कि जहां डग-डग पर शाह जी की पुलिस और सशस्त्र बल की तैनाती की बात होती हो उस कश्मीर में पुलवामा और पहलगाम में देशवासियों की जो मौतें हुईं। वह हृदयविदारक हैं। अफसोसनाक है कि पुलवामा के रहस्य की गुत्थी अभी तक नहीं सुलझी है और इस बार पर्यटकों से धर्म पूछकर गोली चलाकर लोगों को मारने वालों का भी पता चलने वाला नहीं है। बंगाल की तरह हो सकता है, उन्हें भी कश्मीरी ना आती हो। ये भी प्रायोजित हो।यदि दबाव पड़ा तो सीधे सादे सच्चे कश्मीरी सलाखों के पीछे भेज दिए जाएंगे।

इस बात के पीछे गृहमंत्री अमित शाह का तत्कालीन दौरा और समग्र सुरक्षा की बात कहना, रहस्य को गहराता है। उतनी ही महत्वपूर्ण यह बात भी है कि साहिब जी ने अपना कश्मीर दौरा तब क्यों रद्द किया था? क्या ये सोची समझी साज़िश है। वे सऊदी अरब गए और यहां पहलगाम की बैसरन घाटी में ये हादसा हो गया। प्रश्न चिन्ह तो सीधा गृहमंत्री पर ही लगता है?

एक तरफ़ वे वक्फ़ बिल पर मुस्लिम समर्थन लेने गए थे। यहां कथित मुस्लिम आतंकियों ने ये क्या कर दिया हिंदू-हिंदू को चुन चुन 27 लोगों को गोलियों से भूंन दिया।सच्चाई ये है इसमें मरने वाले मुस्लिम भी हैं। ये भी सच है कि गोली चलाने वालों ने छुपकर गोलियां दागी धर्म पूछने की बात झूठी है। सुरक्षा का वादा धारा 370 हटाने से मिला है। पहलगाम में 11 पर्यटकों जिसे एक मुस्लिम कपड़े के व्यापारी ने बचाया। वे कह रहे हैं कि उस समय यहां तकरीबन दो हजार पर्यटक थे। लेकिन हमारी सुरक्षा का जंगल में कोई इंतज़ाम नहीं था। ना कहीं पुलिस थी और ना सेना के लोग। लगता है कि यह किसी बड़ी साज़िश के तहत हुआ है। देखें इस सच्चाई को सामने लाने का कौन दुस्साहस करता है?

सच तो यह है कश्मीरी मुसलमान जिस बेसब्री से पर्यटकों का इंतजार करते हैं वैसा शायद ही कहीं होता हो। इनसे ही तो उनकी साल भर की रोजी-रोटी चलती है। वे तो उन्हें मेहमान मानते हैं और उनकी सुरक्षा का दायित्व होटल से लेकर पूरी कश्मीर यात्रा का लेते हैं। जिन लोगों ने कश्मीर भ्रमण किया होगा वो इस सत्य को भली-भांति जानते होंगे। वे कभी भी इस तरह का अनावश्यक काम नहीं कर सकते।

फिर क्या ये पाकिस्तानी थे क्या? जी ये तो हो ही नहीं सकता। हमारे सीमा सुरक्षा बल की नज़रों से वे बच नहीं सकते।

इसीलिए ज़्यादा गुंजाइश दूसरे राज्यों से आयातित बंगाल की तरह ही वे बाहरी हो सकते हैं क्योंकि इस तरह की कारगुजारियों में अव्वल साहिब और शाह के अलावा और कोई नहीं हो सकता है। क्योंकि धर्म और कपड़ों की पहचान करते हुए हज़ारों लोग यहां मारे गए हैं। इस बार हो सकता है कुछ उल्टा पुल्टा कर मुसलमानों को आतंकवादी बनाकर कश्मीर की सरकार को लपेटे में लिया जा सकता है। 

साहिब जी यहां आने की चुस्ती-फुर्ती भी मायनेखेज़ है। ऐसी फुर्ती के लिए मणिपुर तरस गया। चलो ये भी अच्छा काम हो गया अरब देश भी साहिब की चिंता में शुमार हो गए होंगे और अमेरिकी उपराष्ट्रपति के सामने मुस्लिम आतंक की चिंता भी सामने आ गई होगी जो सपरिवार जयपुर में आराम फरमा रहे हैं।डोनाल्ड ट्रम्प ने भी भारत के आतंकियों से निपटने में सहयोग देने की बात कह दी है।अब क्या चाहिए कश्मीर में जाइए और आंसू बहाइए  मुआवजा की भारी भरकम घोषणा कीजिए। बेचारे पर्यटकों के परिवार सहायता राशि पाकर साहिब की जय जयकार करने लगेंगे। सब दर्द भूल जाएंगे। पहलगाम दूसरे पुलवामा की तरह अपने वास्तविक अपराधियों की तलाश में छटपटाता रहेगा।

(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट हैं।)

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