बंगाल की शर्मनाक पराजय हजम नहीं कर पा रहे हैं मोदी-शाह

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पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनाव में मिली शर्मनाक हार को प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह हजम नहीं कर पा रहे हैं। अब उन्हें संविधान की धारा 356 में ही अपनी इज्जत बचाने की राह नजर आ रही है। राज्य सरकार के दो मंत्रियों, सुब्रत मुखर्जी और फिरहाद हकीम, की गिरफ्तारी इसी की भूमिका है। इस मामले में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मोदी शाह के मुआफिक ताश का पत्ता चल दिया है। यह उनका जज्बाती उफान था या रणनीतिक कौशल इस पर आगे चर्चा करेंगे।

 चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते फिर रहे थे कि भाजपा की सरकार के पहले मंत्रिमंडल की बैठक में वे मौजूद रहेंगे। पर लोगों ने सरकार बनाने की बात तो दूर रही कुल 75 विधायक देकर पूरे मंसूबे पर पानी फेर दिया। जनता द्वारा दिए गए लोकतांत्रिक फैसले को उलटने की साजिश रची जा रही है। आइए एक एक कर के नजर डालते हैं कि कैसे यह खेल खेला जा रहा है। सबसे पहले चुनाव परिणाम आने के बाद बंगाल में हुई हिंसा की घटनाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में रिट दायर की गई। यहां गौरतलब है कि इस बार की हिंसा कोई अनोखी नहीं थी क्योंकि बंगाल और चुनावी हिंसा के बीच का संबंध 50 साल से भी अधिक पुराना है। हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान एक्टिंग चीफ जस्टिस ने बंगाल में नई सरकार आने के बाद कानून व्यवस्था और हिंसा थमने पर सरकार की प्रशंसा की थी।

नई सरकार के शपथ ग्रहण करने के बाद ही राज्यपाल जगदीप धनखड़ पश्चिम बंगाल के हिंसा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने के लिए निकल पड़े। कूच बिहार का दौरा करने गए तो उनके साथ भाजपा के सांसद निशीथ प्रामाणिक भी मौजूद थे। राज्यपाल जब नंदीग्राम आए तो शुभेंदु अधिकारी ने उनका स्वागत किया पर उनके साथ नंदीग्राम नहीं गए। इतना ही नहीं राज्यपाल हिंसा की वजह से विस्थापितों से मिलने के लिए असम के धुबरी में भी चले गए। वापसी में सिलीगुड़ी में एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि उन्हें हिंसा से प्रभावित तृणमूल  समर्थकों के बारे में कोई जानकारी नहीं है। यानी जो काम भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष को करना चाहिए था उसे राज्यपाल करने लगे। पर कहते तो यही है कि राज्यपाल एक संवैधानिक प्रमुख हैं। अब यह बात दीगर है कि बंगाल के राज्यपाल प्रदेश में भाजपा के अध्यक्ष की भूमिका निभाने लगे हैं। 

 आइए अब मंत्री सुब्रत मुखर्जी एवं फिरहाद हकीम और पूर्व मंत्री मदन मित्र एवं पूर्व मेयर शोभन चटर्जी की गिरफ्तारी पर चर्चा करते हैं। राज्यपाल ने उनकी गिरफ्तारी के लिए अपनी अनुमति 7 मई को दे दी थी। ममता बनर्जी ने 10 मई को मुख्यमंत्री पद का शपथ लिया था। इस सवाल को न्यायालय पर छोड़ देते हैं कि क्या राज्यपाल को अनुमति देने का अधिकार है या नहीं। पर यह भी तो सच है कि 7 मई को ममता बनर्जी मुख्यमंत्री और विमान बनर्जी स्पीकर के पद पर बने हुए थे। अगर राज्यपाल ने संवैधानिक अधिकार के तहत अनुमति दी थी तो उन्होंने मुख्यमंत्री और स्पीकर को इसकी जानकारी क्यों नहीं दी थी। क्या इससे यह नहीं लगता है कि जब बंगाल में भाजपा की सरकार नहीं बन पाई एक साजिश के तहत यह गिरफ्तारी की गई।

शोभन चटर्जी के लिए तो गिरफ्तारी की अनुमति की जरूरत नहीं थी तो फिर उन्हें पहले गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया। याद दिला दे कि शोभन चटर्जी को भाजपा का कोलकाता का कोऑर्डिनेटर बनाया गया था और जब उन्होंने भाजपा को छोड़ दिया तो उन्हें अभियुक्त बना दिया गया। सिटी सेशन जज की यह टिप्पणी इस गिरफ्तारी की साजिश का खुलासा करती है। उन्होंने अपने आदेश में कहा है कि चार्जशीट के मुताबिक इस मामले की जांच पूरी हो चुकी है। सीबीआई ने उन्हें हिरासत में देने की अपील भी नहीं की है। लिहाजा उन्हें जेल में बंद रखे जाने का कोई औचित्य नहीं है।

 दूसरी तरफ ममता बनर्जी ने मोदी और शाह की बिछाए हुए जाल में जज्बात के बस या रणनीति के तहत अपना पांव रख दिया है। सिटी सेशन जज के आदेश के खिलाफ सीबीआई की अपील पर हाईकोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस अरिजीत बनर्जी की बेंच की टिप्पणी से इसका खुलासा होता है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का सीबीआई कार्यालय में जाना हाईकोर्ट को नागवार लगा है। राज्य के कानून मंत्री मलय घटक के सिटी सेशन कोर्ट में बने रहने को हाईकोर्ट ने उचित नहीं माना है।  बेंच ने कहा कि इसका अर्थ यह होगा कि राज्य में कानून व्यवस्था नहीं है। बेंच ने टिप्पणी की है कि मुख्यमंत्री को सीबीआई कार्यालय नहीं जाना चाहिए था। क्योंकि सीबीआई हाईकोर्ट के आदेश पर ही इस मामले की जांच कर रही है।

दूसरी तरफ भाजपा को यह याद रखना चाहिए कि 1977 में जनता पार्टी की सरकार में संविधान की धारा 356 पर एक अंकुश लगाया गया था। अगर किसी सरकार को इस धारा के तहत बर्खास्त किया जाता है तो संसद के दोनों सदनों से इस अध्यादेश को पास कराना पड़ेगा। क्या मोदी सरकार यह कर पाएगी, क्या यह पूरे विपक्ष को एकजुट नहीं कर देगा।

(कोलकाता से वरिष्ठ पत्रकार जेके सिंह की रिपोर्ट।)

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