“मजहब का भेदभाव किए बिना लाचार की करें मदद; हिंदू-मुस्लिम को न बांटे, भाईचारे से रहें”

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शिवपुरी (मप्र)। ”मजहब का भेदभाव किए बिना लाचार की हर दम करें मदद। हिंदू-मुस्लिम को न बांटे, भाईचारे से रहें” यह पैगाम देकर मोहम्मद कय्यूम अपने दोस्त अमृत की लाश लेकर, अपने गृह नगर बंदी बलास जिला बस्ती (उत्तर प्रदेश) की ओर रवाना हो गया। वह पिछले चार दिन से जिले में ही था। इस दौरान अमृत कुमार और मोहम्मद कय्यूम के सैम्पल की रिपोर्ट भी आ गई, जिसमें दोनों की रिपोर्ट कोरोना निगेटिव थी। पोस्टमार्टम की कार्यवाही पूरी हो जाने और गाड़ी के बंदोबस्त के बाद जब मोहम्मद कय्यूम नगर से निकला, तो वह बेहद मायूस था। वह दोस्त जो उसके साथ सूरत से हंसते-खेलते आया था, अब उसकी लाश मोहम्मद कय्यूम के साथ जा रही है।

अमृत कुमार अपने घर में अकेला कमाने वाला था। घर वालों की आर्थिक स्थिति ऐसी न थी कि वे उसका शव लेने शिवपुरी आ पाते। यही वजह है कि उन्हें जाने में एक दिन लग गया। जब उत्तर प्रदेश सरकार ने गाड़ी का बंदोबस्त किया, तब अमृत का शव लेकर मोहम्मद कय्यूम बंदी बलास जिला बस्ती निकला।

गौरतलब है कि मोहम्मद कय्यूम और अमृत कुमार गुजरात की औद्योगिक नगरी सूरत से चल कर अपने घर बंदी बलास जिला बस्ती (उत्तर प्रदेश) के लिए निकले थे, लेकिन 14 मई की दोपहर को अमृत कुमार की अचानक तबीयत खराब हो गई। ट्रक ड्राईवर और बाकी प्रवासी मजदूरों को लगा कि यह कोरोना संक्रमण का मामला है। जिसके चलते ट्रक ड्राईवर इन दोनों दोस्तों को जिले के पड़ौरा में उतारकर आगे बढ़ गया। समय पर सही इलाज ना मिलने की वजह से अमृत की मौत हो गई। दोनों दोस्तों का सैम्पल लिया गया, जिसमें वे कोरोना निगेटिव निकले। डी-हाईड्रेशन और हीट स्ट्रोक की वजह से अमृत की मौत हुई थी।

इस पूरे घटनाक्रम में भले ही व्यवस्था का विद्रूप चेहरा और पलायन की भयावहता सामने निकलकर आई हो, लेकिन एक अच्छी मिसाल भी सामने आई। जिसमें जाति-मजहब की दीवारें तोड़कर, लोग एक-दूसरे की मदद करने के लिए आगे आये। मोहम्मद कय्यूम ने अपने दोस्त अमृत जाटव को बचाने के लिए आखिरी दम तक कोशिश की। वहीं जिले के कई नौजवान बीजेपी नेता सुरेन्द्र शर्मा (प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य), समाजसेवी आदिल शिवानी, पत्रकार अशोक अग्रवाल ने हर संभव मदद की। आदिल शिवानी और उनके दोस्तों ने इन दोनों को पहुंचाने के लिए गाड़ी का बंदोबस्त भी कर दिया था, सरकारी व्यवस्था हो जाने के बाद वे पीछे हटे। अलबत्ता मोहम्मद कय्यूम के रास्ते के खर्च और अमृत के अंतिम संस्कार के लिए उन्होंने मदद जरूर की।

(ज़ाहिद खान वरिष्ठ पत्रकार हैं।)    

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