मुकुल राय किस पार्टी में हैं: भाजपा या तृणमूल?

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राज्यसभा के पूर्व सदस्य, पूर्व रेल मंत्री, पूर्व भाजपा नेता व विधायक मुकुल राय इन दिनों किस पार्टी में हैं। तृणमूल में या भाजपा में। यह एक मुश्किल सवाल बन गया है। जो दिख रहा है अगर उसे सच मान लें तो वह तृणमूल कांग्रेस में हैं, अगर तथ्यों पर गौर करें तो वे भाजपा में हैं।

पश्चिम बंगाल विधानसभा के अध्यक्ष विमान बनर्जी ने जो दिख रहा है उसे नहीं देखा है। उन्होंने विधानसभा चुनाव के बाद के तथ्यों के आधार पर यह मान लिया है कि मुकुल राय कृष्णा नगर उत्तर से चुने गए भाजपा विधायक हैं। इसलिए उन्हें लोक लेखा समिति (पीएसी) का चेयरमैन नियुक्त कर दिया है। क्योंकि संसदीय परंपरा के मुताबिक विपक्ष के विधायक या सांसद को ही लोक लेखा समिति का चेयरमैन नियुक्त किया जाता है। यह नियुक्ति विधानसभा के अध्यक्ष के अधिकार क्षेत्र में आती है।

अब विधानसभा में विपक्ष एवं भाजपा के नेता शुभेंदु अधिकारी ने इसके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। दूसरी तरफ विधानसभा के अध्यक्ष विमान बनर्जी का दावा है कि उन्होंने जो कुछ भी किया है वह कानून के दायरे में रहते हुए किया है। दूसरी तरफ जो दिखता है वह यह है कि मुकुल राय 11 जून को तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए थे। तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख एवं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उन्हें तृणमूल कांग्रेस का झंडा थमा कर तृणमूल में शामिल कर लिया था। पूरे बंगाल ने इसे देखा था पर अध्यक्ष महोदय कहते हैं कि उन्होंने ऐसा कुछ नहीं देखा था। विधानसभा रिकॉर्ड के मुताबिक मुकुल राय कृष्णा नगर उत्तर से भाजपा के विधायक चुने गए हैं। मजे की बात तो यह है कि भाजपा ने अपने विधायकों की जो सूची दी थी उनमें मुकुल राय का नाम नहीं था।

पीएसी के सदस्य पद के लिए भरे गए नामांकन पत्र में उनके प्रस्तावक हैं गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के विधायक रूहेन सादा लेपचा और तृणमूल विधायक अरुण मायती। मुकुल राय को विधानसभा में भी भाजपा के विधायकों के साथ की सीट दी गई है। मुकुल राय ने भी खुद को विधानसभा अध्यक्ष के पैमाने पर खरा साबित करने की कोशिश भी की है। मसलन विधानसभा में राज्यपाल के भाषण के बाद जब भाजपा विधायकों ने बायकट किया तो मुकुल राय भी शुभेंदु अधिकारी के व्हिप का पालन करते हुए विधानसभा में नहीं आए। अलबत्ता जब भाजपा विधायक राज्यपाल के भाषण का विरोध कर रहे थे तब मुकुल राय अपनी सीट पर खामोशी से बैठे हुए थे। मुकुल राय की नियुक्ति के बाद भाजपा विधायकों ने सभी स्टैंडिंग कमेटी के चेयरमैन पद से अपना इस्तीफा सौंप दिया है।

मुकुल राय किस पार्टी में हैं यह जानने के लिए पहले यह जानना पड़ेगा कि मौजूदा मंत्री मानस भुइयां 2016 में किस पार्टी में थे। वे 2016 में कांग्रेस के टिकट पर शबांग विधानसभा से विधायक चुने गए थे। जब 2016 में पीएसी का चेयरमैन चुने जाने का सवाल आया तो विधानसभा अध्यक्ष ने मानस भुइयां को कांग्रेस का विधायक करार देते हुए पीएसी का चेयरमैन नियुक्त कर दिया। करार देना इसलिए लिखा है कि तब तक वे कांग्रेस से नाता तोड़कर तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम चुके थे। कांग्रेस विधायक दल के नेता अब्दुल मन्नान ने दावा किया था कि उनका समर्थन माकपा विधायक सूजन चक्रवर्ती के पक्ष में है। पर विधानसभा अध्यक्ष ने कांग्रेस को सबसे बड़ा दल करार देते हुए कांग्रेस के टिकट पर चुने गए मानस भुइयां को चेयरमैन बनाए जाने का फैसला लिया। उन्होंने कहा कि मानस भुइयां की नियुक्ति करके विपक्ष के विधायक की नियुक्ति की परंपरा का पालन किया है।

मानस भुइयां की तृणमूल में जाने की कहानी भी बहुत दिलचस्प है। विधानसभा के 2016 के चुनाव के दौरान तृणमूल कार्यकर्ता जयदेव जाना की हत्या हो गई थी। इस मामले में मानस भुइयां और उनके भाई सहित आठ लोगों के खिलाफ  एफआईआर दर्ज कराई गई थी। पश्चिम मिदनापुर की जिला अदालत ने मानस भुइयां सहित सभी के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी कर दिया था।

इसके बाद कलकत्ता हाई कोर्ट में मानस भुइयां ने अग्रिम  जमानत की याचिका दायर कर दी। तत्कालीन जस्टिस नादिरा पथरिया की डिविजन बेंच ने उनकी अग्रिम जमानत की याचिका खारिज कर दी।  इसके बाद ही विधानसभा भवन में मानस भुइयां की मुख्यमंत्री के साथ एक आपातकालीन बैठक हुई थी।  बाहर आने के बाद उन्होंने कहा था कि क्षेत्र के विकास कार्यों को लेकर चर्चा की गई थी। इसके बाद मानस भुइयां पीएससी के चेयरमैन बने रहे। हां उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर इसके बाद फाइलों में न जाने कहां गुम हो गई।

जाहिर है कि ऐसे में मुकुल राय भी पीएसी के चेयरमैन बने रहेंगे। अब शुभेंदु अधिकारी मानें या ना मानें। 

 सरकार के खर्च का लेखा-जोखा देखने के लिए 1967 में पीएसी का गठन और चेयरमैन  नियुक्त किए जाने की परंपरा शुरू हुई थी। विपक्ष के विधायक को ही चेयरमैन बनाया जाता रहा है। विधानसभा 2011 के चुनाव में  कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस ने गठबंधन बनाकर लड़ा था। माकपा विधायक अनिसुर्रहमान को पीएसी का चेयरमैन नियुक्त किया गया था। लेकिन 2016 के बाद से तस्वीर बदल गई। दलबदल कानून के तहत हाई कोर्ट में रिट दायर गई थी। तत्कालीन जस्टिस दीपंकर दत्ता ने मामले की सुनवाई के बाद इसे वापस अध्यक्ष के पास यथाशीघ्र फैसला करने का अनुरोध करते हुए भेज दिया था। अब शुभेंदु अधिकारी अगर सुप्रीम कोर्ट जाते हैं तो फैसला आने तक का इंतजार करना पड़ेगा।

(जेके सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल कोलकाता में रहते हैं।)

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