उत्तर भारत के पश्चिमी सीमा से लगते पंजाब प्रदेश में पिछले 3 दिनों की उथल पुथल के बाद नयी सरकार अस्तित्व में आ गयी। आजादी के बाद से देश में सत्ता के शीर्ष व वर्चस्व पर रहने वाली कांग्रेस पार्टी वर्तमान में अपने जनाधार को बचाने व पुन:स्थापित करने के लिये संघर्षरत है। प्रदेश की परिस्थितियों को आने वाले विधानसभा के चुनावों के परिप्रेक्ष्य में देखते हुये प्रदेश में चुनाव से केवल 4 महीने पहले मुख्यमंत्री को बदल कर पार्टी ने एक जोखिम भरा निर्णय लिया है। समाज के वंचित वर्ग से आये नेता को प्रदेश की कमान सौंप कर अपनी परंपरागत राजनीति से विपरीत एक शुरुआत की कोशिश की है जिससे विरोधी राजनीतिक दलों की जातिगत राजनीतिक चुनौतियों व समीकरणों को धाराशायी किया जा सके। कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व पर विगत में बने अविश्वास व अक्षमताओं की धारणा को भी इस निर्णय ने लगभग साफ कर दिया है।
आम जनता के सरोकार को भूल कर सत्ता सुख तक सीमित हो जाने की प्रवृत्ति व क्षत्रपवादिता की संस्कृति जो पार्टी को काफी समय से खाये जा रही थी, को तोड़ने की क्या भूमिका बनती है ये आने वाले समय में साफ होगा। लेकिन कांग्रेस ने अपने फैसले से एक ओर जहां पुराने दिग्गज नेताओं को स्पष्ट संकेत दे दिये हैं वहीं दूसरी ओर अपनी भविष्य की राजनीति की एक लकीर भी खींच दी है जिसका असर अन्य प्रदेशों की राजनीति के साथ-साथ विपक्षी दलों की राजनीति पर पड़ना निश्चित है।
2017 में पंजाब विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को जो जीत मिली थी उसका श्रेय कैप्टन अमरिन्दर को मिला था। लेकिन वास्तविकता में पंजाब की जनता में अकाली दल की नीतियों के प्रति एक गहरा आक्रोश था। पंजाब में अकाली दल द्वारा पंथक भवानाओं के निरादर, किसानों की समस्याओं की अनदेखी, नशे के बढ़ते प्रकोप, अलग-अलग तरह के माफियाओं के संरक्षण से त्रस्त जनता ने कैप्टन अमरिन्दर पर विश्वास जता कर जिन समाधानों के लिये सरकार को चुना था उनका कोई हल निकालने के लिये मुख्यमंत्री अमरिन्दर ने कोई गंभीर प्रयास ही नहीं किये। बल्कि आम जनता के साथ साथ अपने विधायकों से भी एक दूरी बना ली।
कैप्टन अमरिन्दर की कार्यशैली से प्रदेश में हर क्षेत्र में उभरते असंतोष की गूंज से केंद्रीय नेतृत्व भी असंतुष्ट था। पंजाब में नयी बनी सरकार के मुख्यमंत्री चरणजीत चन्नी ने जिस तरह अपनी प्राथमिकताओं को पहले ही दिन रेखांकित किया है वह कैप्टन अमरिन्दर सिंह की कार्यशैली के विपरीत प्रदेश की जनता के प्रति जवाबदेही पर केन्द्रित है। हालांकि समय की कमी और सरकारी तंत्र की उदासीनता की बड़ी चुनौती विकराल रूप में सामने खड़ी है। पार्टी में धड़ेबंदी की रस्साकशी से अलग सब को साथ ले कर चलने की मंशा को सूत्रधार बनाना भी स्पष्ट किया है।
पारदर्शी सरकार दी जायेगी, किसी को भी अनावश्यक तंग नहीं किया जायेगा, संविधान सम्मत कार्य होंगे। पुलिस की कार्यशैली को सुधारने को लेकर साफ किया कि कोई थानेदार, मुंशी,किसी को तंग नहीं करेगा, बिना वजह किसी को थाने नहीं बुलायेगा।
तहसीलों में सही तरीके से काम होगा। मुख्यमंत्री ने कड़े शब्दों में चेतावनी देते हुये कहा कि या तो मैं रहूँगा या वो रहेंगे। सरकारी तंत्र को दुरुस्त करने को लेकर कर्मचारियों से लेकर अधिकारियों तक को जनसुनवाई को सुनिश्चित करने व समस्याओं के निदान के लिये सप्ताह में दो दिन आवश्यक रुप से कार्यालय में उपलब्ध रहने को कहा।
हर गरीब की पहुंच मुझ तक और अधिकारियों तक हो ये सुनिश्चित किया जायेगा। ऐसी व्यवस्था की जायेगी कि सब की समस्यायों का हल हो। बिजली के रेट्स में सुधार करके उपभोक्ताओं को राहत दी जायेगी। सबसे महत्वपूर्ण गुरु साहेबान की बेअदबी मामले में पूरा न्याय किया जायेगा।
पंजाब की कृषि अधारित अर्थव्यवस्था को मुख्य कारक मानते हुये किसान अन्दोलन को खुला समर्थन और कृषि कानूनों को वापस करवाने के प्रयास को अपनी प्रतिबद्धता कहा।
इन सब बातों से मुख्यमंत्री चरणजीत चन्नी ने अपनी ज़िमेदारियों को स्पष्ट करते हुये नये तरह के नेतृत्व की परिभाषा गढ़ने की कोशिश की।
कांग्रेस के इस फैसले से पार्टी में बहुप्रतिक्षित एक नया संचार भी हुआ है।राजनीतिक विषेशज्ञ कांग्रेस के आकस्मिक फैसले का अचरज से आकलन कर रहे हैं।
(जगदीप सिंह सिंधु वरिष्ठ पत्रकार हैं और हरियाणा एवं पंजाब की राजनीति पर गहरी पकड़ रखते हैं।)
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