नई दिल्ली। भारत और चीन सीमा विवाद को लेकर एक आपसी समझौते पर पहुंच गये हैं। और दोनों ने जमीन पर डिसइनगेजमेंट की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। लेकिन अभी कुछ चीजों को लेकर मामला साफ नहीं हुआ है। हालांकि कहा जा रहा है कि देपसांग और डेमचोक को लेकर एक सहमति बन गयी है और दोनों जगहों पर दोनों पक्षों की सेनाएं 20 अप्रैल, 2020 के पहले की पोजीशन में चली जाएंगी।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा समय में दोनों पक्ष अपने-अपने इलाके में बनाए गए अस्थाई ढांचों को हटाने में लगे हुए हैं। जो पिछले साढ़े चार सालों के दौरान बने हैं। इन ढांचों में शेड और वो टेंट हैं जिनमें सामानों और गाड़ियों को रखा जाता था।
जैसा कि ऊपर कहा गया मौजूदा सहमति देपसांग और डेमचोक इलाके में पेट्रोलिंग अधिकार को बहाल करने पर बनी है। बताया जाता है कि चीनी पीएलए ने डेपसांग इलाके में भारतीय सेना की पहुंच को पेट्रोलिंग प्वाइंट 10 से 13 तक काट दिया था। जबकि डेमचोक इलाके में चीनी सेना चार्डिंग नुल्लाह तक पहुंच गयी थी।
कहा जा रहा है कि यह इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि एक साल पहले चीनी पक्ष देपसांग पठार और डेमचोक पर बात करने लिए ही तैयार नहीं था। इंडियन एक्सप्रेस की मानें तो गलवान वैली, हॉटस्प्रिंग्स और गोगरा तथा गैंगांग त्सो के उत्तर और दक्षिण के किनार पर पर बात चल रही थी।
लेकिन सेना के एक सूत्र ने एक्सप्रेस से कहा कि मौजूदा समझौता केवल डेपसांग और डेमचोक को लेकर है। दोनों तरफ की सेनाएं अप्रैल 2020 के पहले की स्थिति में चली जाएंगी। इसके साथ ही दोनों इलाकों में पेट्रोलिंग शुरू हो जाएगी।
लेकिन सेना की तरफ से आया यही बयान तमाम तरह के सवाल भी खड़े कर रहा है। अगर डेपसांग और डेमचोक पर ही समझौता हुआ है तो बाकी के विवादों का क्या होगा? ऊपर जो चार क्षेत्र गलवान वैली, हॉट स्प्रिंग्स और गोगरा तथा पैंगांग त्सो झील के इलाके का क्या होगा? इसका कोई जवाब अभी तक न तो भारत सरकार की तरफ से आया है और न ही चीन ने इस पर कोई प्रतिक्रिया जाहिर की है। मसलन फिंगर प्वाइंट इलाके में प्वाइंट 8 तक भारतीय सेनाएं पेट्रोलिंग कर लेती थीं लेकिन अब वह प्वाइंट दो से आगे नहीं जा पाती है। और इसी को अब बफर जोन बना दिया गया है। जिससे प्वाइंट एक के आगे किसी का जा पाना मुश्किल होता है।
और इसी तरह के कुछ सवाल देश की मुख्य विपक्षी पार्टी ने भी सरकार से पूछा है लेकिन सरकार की तरफ से उसका कोई जवाब नहीं आया है। जबकि एक लोकतंत्र होने के नाते सरकार की यह जिम्मेदारी होती है कि वह विपक्षी पार्टी के सवालों का जवाब दे। वह किसी व्यक्ति या पार्टी नहीं बल्कि जनता की तरफ से पूछा गया सवाल है। और पूरा अवाम उसकी जानकारी चाहता है।
इन सवालों में कांग्रेस के प्रवक्ता जयराम रमेश की ओर से पूछा गया था कि क्या भारतीय सैनिक डेपसांग में हमारी दावे वाली लाइन से लेकर बॉटलनेक जंक्शन से आगे के पांच पेट्रोलिंग प्वाइंट्स तक पेट्रोलिंग करने में सक्षम होंगे जैसा कि वे पहले करने में सक्षम थे।
इसके अलावा दूसरा सवाल उन्होंने पूछा कि क्या हमारे सैनिक डेपसांग में उन तीन पेट्रोलिंग प्वाइंट्स तक जा पाएंगे जो चार साल से अधिक समय से हमारे दायरे से बाहर हैं? क्या हमारे सैनिक पैंगांग त्सो में फिंगर 3 तक ही सीमित रहेंगे जबकि पहले वे फिंगर 8 तक जा सकते थे?
उन्होंने पूछा कि क्या हमारी पेट्रोलिंग टीम को गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र में उन तीन पेट्रोलिंग प्वाइंट्स तक जाने की छूट है, जहां वे पहले जा सकते थे?
रमेश ने कहा कि क्या भारतीय चरवाहों को एक बार फिर चुशुल में हेलमेट टॉप, मुक्या रे, रेजांग ला, रिनचेन ला, टेबल टॉप और गुरुंग हिल में पारंपरिक चारागाहों तक जाने का अधिकार दिया जाएगा?
और आखिरी सवाल उन्होंने जो पूछा उसके मुताबिक क्या वे बफर जोन जो हमारी सरकार ने चीनियों को सौंप दिए थे जिसमें रेजांग ला में युद्ध नायक और मरणोपरांत परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह का स्मारक स्थल भी शामिल था, अब अतीत की बात हो गए हैं?
इस बीच, चीन के साथ इस सीमा समझौते ने लोगों को चकित कर दिया है। लोगों को यह समझ में ही नहीं आ रहा है कि आखिर ऐसा हुआ कैसे? इसके पीछे दीर्घकालिक और तात्कालिक क्या वजहें हैं? इसका उत्तर अभी तक हासिल नहीं किया जा सका है। पीएम मोदी की जिस तरह की सरकार है चाहे वह हो या फिर बीजेपी का पुराना नेतृत्व रिश्तों के मामले में हमेशा अमेरिका को सबसे ऊपर रखता रहा है। इसके पीछे एक प्रमुख वजह वैचारिकी थी जो पूंजीवादी होने के नाते उनके सबसे ज्यादा करीब है।
समाजवादी होने के नाते चीन का दर्जा हमेशा दोयम रहा है। तात्कालिक एक वजह अमेरिका के साथ पन्नू मामले में हुई भारत सरकार की फजीहत हो सकती है जिसमें अमेरिकी किसी भी हालत में पीछे हटता नहीं दिख रहा है। और उसके घेरे में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल तक आ चुके हैं। कनाडा के निज्जर मामले में भी अमेरिका कनाडा के ही साथ है। ऐसे में इस पहल के जरिये मोदी सरकार अपने तरीके से अमेरिका पर एक तरह का दबाव बनाने की कोशिश कर रही हो तो उससे इंकार नहीं किया जा सकता है।

इसके साथ ही एक दूसरा स्वाभाविक कारण चीन के साथ बिगड़े रिश्तों में यह आरोप लगना कि उसने भारत के एक बड़े हिस्से को अपने कब्जे में ले लिया है। हालांकि भारत सरकार उसे कभी कबूल नहीं की। बावजूद इसके इस तरह के समझौते के जरिये देश की जनता को यह संदेश देने की कोशिश ज़रूर की जा रही है जिसमें यह बात शामिल है कि अगर कुछ पिछले दिनों बिगड़ा था उन सबको मोदी सरकार ने ठीक कर दिया। भले ही इस समझौते के बाद भी जमीन का एक बड़ा हिस्सा चीन के कब्जे में हो।
लेकिन इस बीच एक व्यवसायिक कारण भी सामने आया है। जो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। बताया जा रहा है कि उद्योगपति गौतम अडानी ने संघाई आधारित एक कंपनी बनायी है जिसका नाम है अडानी एनर्जी रिसोर्सेज (संघाई) कंपनी (एईआरसीएल)। यह कंपनी सप्लाई चेन सोल्यूशंस एंड प्रोजेक्ट मैनेजमेंट का काम करेगी। अब अगर एक सरकार जो चीन से हर तरह के रिश्ते खत्म करने की वकालत कर रही थी अचानक उसके चहेते उद्योगपति का नया वेंचर उसके यहां स्थापित हो रहा हो तो इसके निहितार्थ बेहद गहरे हैं। और इस चीज को समझना बहुत जरूरी है। उसमें इस मौजूदा समझौते को भी इसी के एक हिस्से के तौर पर देखा जा रहा है।
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