नॉर्थ ईस्ट डायरी: पूर्वोत्तर में भी मीडिया को पालतू बनाने की बीजेपी की कोशिश

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देश के दूसरे हिस्सों की तरह पूर्वोत्तर राज्यों में भी भाजपा मीडिया को पालतू बनाने के लिए साम-दाम-दंड-भेद का खुलकर इस्तेमाल कर रही है। वह सरकारी तंत्र की खामियों को उजागर करने वालों के साथ शत्रुवत व्यवहार कर रही है। अखबारों को घुटनों के बल रेंगने के लिए मजबूर किया जा रहा है और जो रेंगने के लिए तैयार नहीं हो रहे उनके विज्ञापन पर रोक लगाई जा रही है। सोशल मीडिया पर आलोचना लिखने वालों को राजद्रोह जैसा संगीन आरोप लगाकर मुकदमे में फंसाया जा रहा है। कोरोना के नाम पर भाजपा को एक ऐसा मुखौटा मिल गया है जिसके सहारे वह अपने दमन को भी जनहित के लिए आवश्यक घोषित कर रही है। ताजा मामला त्रिपुरा का है जहां मुख्यमंत्री ने खुलेआम मीडिया को धमकी दे डाली है।  

त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब की मीडिया विरोधी टिप्पणियों के एक दिन बाद राज्य के पत्रकारों ने सीएम को अपनी टिप्पणी वापस लेने के लिए तीन दिन का समय दिया है। मीडिया के अधिकतर संगठन त्रिपुरा असेंबली ऑफ जर्नलिस्ट्स के बैनर तले अगरतला में एक साथ आए और उन्होंने कहा कि वे “मुख्यमंत्री की ओर से इन लोकतांत्रिक और असंवैधानिक टिप्पणियों की निंदा करते हैं।”

दक्षिण त्रिपुरा के सबरूम में त्रिपुरा के पहले विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) के उद्घाटन समारोह में देब ने कहा था, “कुछ समाचार पत्र लोगों को भ्रमित करने की कोशिश कर रहे हैं, सभी अति उत्साहित हो रहे हैं। इतिहास उन्हें माफ नहीं करेगा, मैं उन्हें माफ नहीं करूंगा। इतिहास उन्हें माफ नहीं करेगा, त्रिपुरा के लोग उन्हें माफ नहीं करेंगे और मैं उन्हें माफ नहीं करूंगा। मैं जो कुछ भी कहता हूं वही करता हूं, इतिहास इसका गवाह है।”

पत्रकारों के संगठन के अध्यक्ष सुबल कुमार डे ने बयान में कहा कि पत्रकारों को देब की टिप्पणियों के बाद से त्रिपुरा के विभिन्न हिस्सों में धमकियों और हमलों का सामना करना पड़ रहा है और देब के भाषण के बाद 24 घंटों में ही दो पत्रकारों पर शारीरिक हमला किया गया। “हम इन घटनाओं को लेकर गंभीर रूप से चिंतित हैं। हमने त्रिपुरा के गवर्नर आरके बैस, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया, इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स, कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव, एडिटर्स गिल्ड आदि से सीएम की धमकियों और असहिष्णुता के खिलाफ शिकायत करने का फैसला किया है।”

मुख्यमंत्री कार्यालय ने पहले मीडिया पर खतरे के आरोपों से इनकार किया और दावा किया कि देब की टिप्पणियों को संदर्भ से बाहर रख कर पेश किया गया था और उनके भाषण और मंशा को विकृत कर दिया गया था।

इस बीच एक स्थानीय दैनिक के साथ जुड़े एक पत्रकार पाराशर बिस्वास, जिन्होंने सोशल मीडिया पर देब को चुनौती दी और मीडिया को धमकी देने के खिलाफ चेतावनी दी, उन्होंने दावा किया कि उनके निवास पर मध्यरात्रि के बाद 6-7 लोगों ने हेलमेट और मास्क पहनकर उन पर हमला किया था। एक स्थानीय अस्पताल में इलाज के बाद बिस्वास ने सात अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ अंबासा पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी दर्ज की। धलाई जिले के एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि इस मामले की जांच चल रही है लेकिन अभी तक किसी को गिरफ्तार या हिरासत में नहीं लिया गया है।

पाराशर बिस्वास।

भीड़ की हिंसा के शिकार व्यक्ति को मुआवजा देने का आदेश 

उग्र हिन्दुत्व की राजनीति करने वाले संघ परिवार की तरफ से पूर्वोत्तर में भी कुछ वर्षों से बीफ के नाम पर तनाव पैदा करने और हिंसा फैलाने की कोशिश होती रही है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने असम सरकार को एक व्यक्ति को एक लाख रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया है, जिसे बिश्वनाथ जिले में अपनी चाय की दुकान पर बीफ़ बेचने के आरोप में भीड़ द्वारा पीटा गया था।

आयोग ने इस तथ्य को भी गंभीरता से लिया कि न तो मुख्य सचिव ने कारण बताओ नोटिस का जवाब दिया और न ही पुलिस महानिदेशक ने मामले में दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की रिपोर्ट सौंपी।

शौकत अली (48) को पिछले साल 7 अप्रैल को बिश्वनाथ चाराली के मधुपुर साप्ताहिक बाजार में अपनी चाय की दुकान में बीफ बेचने के आरोप में भीड़ ने पीटा और कुछ पुलिसकर्मियों के सामने पका हुआ सुअर का मांस खाने के लिए मजबूर किया। बाजार के एक ठेकेदार को भी अली को दुकान चलाने की अनुमति देने के लिए कथित रूप से पीटा गया।

असम में बीफ का सेवन कानूनी रूप से वैध है और असम मवेशी संरक्षण अधिनियम, 1950 केवल क्षेत्र के एक पशु चिकित्सा अधिकारी द्वारा उचित प्रमाण पत्र के साथ 14 वर्ष से ऊपर की आयु की मवेशियों के वध की अनुमति देता है। 

नेता प्रतिपक्ष देवव्रत सैकिया की शिकायत पर 9 सितंबर को इस मामले पर विचार करते हुए आयोग ने पुलिस प्रमुख को एनएचआरसी के पत्र के अनुसार चार सप्ताह के भीतर रिपोर्ट न भेजने पर डीजीपी को उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू करने की चेतावनी दी।

(दिनकर कुमार पूर्वोत्तर के वरिष्ठ पत्रकार और सेंटिनल दैनिक के पूर्व संपादक हैं।)

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