रिपब्लिक टीवी के एडिटर-इन-चीफ अर्णब गोस्वामी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग को लेकर कर्नाटक और बॉम्बे के उच्च न्यायालयों के समक्ष याचिकाएँ दायर की गई हैं, जबकि शुक्रवार 24 अप्रैल को उच्चतम न्यायालय ने उन्हें तीन हफ्ते तक गिरफ्तारी से सुरक्षा प्रदान की है।कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष दायर याचिका में रिपब्लिक टीवी के प्रसारण को रोकने के लिए एक दिशा निर्देश के लिए प्रार्थना किया गया है और गोस्वामी द्वारा संचालित प्राइम टाइम के शो के प्रसारण पर रोक लगाने की माँग की गयी है।
गौरतलब है कि कोरोना संकट से निपटने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने जब प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर सभी प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया को कोरोना से जागरूक करने के अलावा सभी तरह के विज्ञापनों पर रोक लगाने का सुझाव दिया था, तभी यह दीवार पर लिखी इबारत की तरह स्पष्ट हो गया था कि कांग्रेस आने वाले दिनों में चाहे प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक का अनर्गल प्रलाप बर्दास्त नहीं करेगी।
मुंबई में कोरोना महामारी में जमात पर लगातार ख़बर चलाने पर व्यथित मुस्लिम समाज के शोएब मुल्ला ने नामी न्यूज़ चैनलों के एंकरों और सम्पादकों पर एफआईआर दर्ज कराया है, जिसमें एबीपी न्यूज़ चैनल के संपादक अविक सरकार, एंकर रुबिका लियाकत, रोमन ईसार खान, इंडिया टीवी के रजत शर्मा और ज़ी न्यूज़ के सुधीर चौधरी पर फर्जी खबर दिखाकर धार्मिक उन्माद फैलाने का आरोप लगाया गया है।
इन सभी पर पुलिस ने आईपीसी की धारा 295ए और 153ए के तहत अपराध पंजीकृत किया है। इसके बाद रिपब्लिक टीवी ने पालघर कांड को लेकर खबर चलाई तो देशभर में 100 से अधिक एफआईआर दर्ज़ हो गये और अर्णब गोस्वामी को उच्चतम न्यायालय की शरण में जाना पड़ा।
कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष मोहम्मद आरिफ द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि तबलीगी जमात की घटना के समाचार आने के बाद रिपब्लिक टीवी और विभिन्न अन्य चैनलों ने भारत के पूरे मुस्लिम समुदाय को कोविड-19 के फैलाव के लिए जिम्मेदार ठहराया है। इससे पूरे मुस्लिम समुदाय के लिए सामाजिक बहिष्कार की आशंका उत्पन्न हो गयी है। याचिका में यह भी कहा गया है कि केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटा कर मीडिया को कोविड-19 की अपुष्ट सूचना प्रकाशित करने से रोकने का आग्रह किया था, जिस पर उच्चतम न्यायालय ने मीडिया को महामारी के कवरेज में जिम्मेदार होने का निर्देश दिया था।
याचिका में यह भी कहा गया है कि अर्णब गोस्वामी ने न केवल लोगों के बीच सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश की है, बल्कि लाइव टीवी पर अपमानजनक, मानहानि, नाम लेकर शर्मनाक हरकत भी किया है। याचिका में अर्णब गोस्वामी के विभिन्न उद्धरणों का हवाला दिया गया है, जिनमें से एक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ था।
रिपब्लिक टीवी के संपादक अर्णब गोस्वामी ने अपने चर्चित शो ‘पूछता है भारत’ में पालघर लिंचिग मामले को उठाया था। इस दौरान उन्होंने लगातार कई भड़काऊ सवाल पूछे। उन्होंने पहले पूछा कि अगर संतों की जगह कोई मौलवी या पादरी मारा जाता तो क्या इटली वाली सोनिया गांधी चुप रहती? इसी के साथ अर्णब ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर अमर्यादित टिप्पणी करते हुए कहा कि सोनिया गांधी पालघर की घटना की रिपोर्ट इटली देगी और कहेगी कि उनकी सरकार ने वहां संतों को मरवा दिया।
इस पर उसे इटली से शाबाशी मिलेगी। अर्णब यहीं नहीं रुके बल्कि इसके बाद उन्होंने शो में मौजूद पैनेलिस्ट्स को भी सोनिया गांधी के खिलाफ भड़काने की कोशिश की। अर्णब गोस्वामी ने उनसे पूछा कि अब हिन्दू इस तरह की चीजों को प्यार करेगा? अब क्या होगा हिन्दू ख़त्म? जिस पर पैनलिस्ट ने कहा कि अब हिन्दू ख़ामोश नहीं रहेगा। हिन्दू अब अपनी आवाज़ उठाएंगे।
याचिका में कहा गया है कि उपरोक्त उद्धरण से साफ़ है कि अर्णब गोस्वामी ने उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देशों का पूरी तरह से उल्लंघन किया है और इसलिए आपराधिक कार्रवाई के लिए दोषी हैं। इसके अलावा, याचिका में यह भी कहा गया है है कि गोस्वामी ने यह दावा करके फर्जी खबर प्रसारित की कि हाल ही में महाराष्ट्र के पालघर जिले में तीन लोगों की हत्या मुस्लिम या ईसाई भीड़ ने की थी। इसे जोड़ते हुए यह रेखांकित किया गया कि गोस्वामी द्वारा दिए गए बयान एक दंडनीय अपराध और संवैधानिक मूल्यों पर हमला है, जिसमें संपूर्ण समुदाय के जीवन का अधिकार भी शामिल है। इन आधारों पर याचिका में कर्नाटक उच्च न्यायालय से रिपब्लिक टीवी के प्रसारण को रोकने का आग्रह किया गया है।
बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष दायर याचिका में अर्णब गोस्वामी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देने की मांग की गयी है और अर्णब गोस्वामी और रिपब्लिक टीवी के सभी प्रसारण पर अंतरिम प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है। प्रतिबन्ध की मांग इस आधार पर की गयी है कि रिपब्लिक टीवी ने फर्जी खबरें चलाकर प्रचारित किया कि पालघर में साधुओं की हत्या मुस्लिम या ईसाई भीड़ ने किया था।
याचिकाकर्ता सूरज सिंह ठाकुर और भाई जगताप ने यह भी कहा कि कथित लिंचिंग पीड़ितों के धर्म के कारण की गयी थी, जबकि यह पहले से ही अच्छी तरह से सर्वविदित है कि भीड़ में पीड़ितों के समान धर्म के सदस्य शामिल था, जिन्होंने लिंचिंग की। याचिका में कहा गया है कि अर्णब गोस्वामी के बयानों जैसे “इटली वाया सोनिया गांधी / एंटोनिया मेनो … ख़ुश है कि सन्तों को सड़कों पर मारा गया” (इटली की सोनिया गाँधी को खुशी है कि हिन्दू संतों का सड़कों पर कत्ल कर दिया गया) का उद्देश्य राजनीतिक उत्पीड़न था।
तदनुसार, याचिका में कहा गया है कि अर्णब गोस्वामी ने नफरत फैलाने वाले वक्तव्यों का प्रसारण किया है और इस प्रकार इस घटना का सांप्रदायीकरण और राजनीतिकरण करके विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा दिया है।इसके अलावा अर्णब गोस्वामी और रिपब्लिक टीवी ने अभिव्यक्ति और प्रेस की स्वतंत्रता का अनैतिक और अपमानजनक चीरहरण किया है।
गौरतलब है कि इससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विरुद्ध अमर्यादित टिप्पणियाँ करने के खिलाफ देशभर में दायर एफआईआर के संबंध में उच्चतम न्यायालय ने 24 अप्रैल को रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्णब गोस्वामी को गिरफ्तारी से तीन हफ्ते की सुरक्षा दे दी है। ऐसा करते समय उच्चतम न्यायालय ने नागपुर में दायर प्राथमिक एक को छोड़कर अगले आदेश तक अन्य सभी प्राथमिकी में कार्यवाही नहीं करने का निर्देश दिया है।
(जेपी सिंह पत्रकार होेने के साथ क़ानूनी मामलों के जानकार भी हैं।)
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