माओवादियों से वार्ता के लिए तमाम संगठनों ने की सरकार से अपील

(माओवादियों के खिलाफ सुरक्षा बलों का अभियान ‘ऑपरेशन कगार’ अभी जारी है। इस बीच ढेर सारे माओवादी सुरक्षा बलों की गोली से मार दिए गए। हालांकि माओवादी अपनी तरफ से युद्धविराम की घोषणा कर चुके हैं और सरकार के साथ वार्ता के लिए भी तैयार हैं लेकिन सरकार उनकी अपील को लगातार नजरंदाज कर रही है। जिसके चलते छत्तीसगढ़ के एक इलाके में लगातार गैर न्यायिक हत्याएं हो रही हैं। इस मसले पर माओवादियों से बातचीत करने के लिए तमाम संगठनों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों ने सरकार से अपील की है। पेश है उनकी अपील-संपादक)

हम, उत्तर प्रदेश के लोकतांत्रिक और प्रगतिशील जन संगठन और नागरिक केंद्र सरकार से मांग करते हैं कि वह तत्काल आदिवासियों के खिलाफ़ छेड़े गए युद्ध पर विराम लगाए और सीपीआई (माओवादी) के साथ शांतिवार्ता के लिए स्वस्थ और व्यावहारिक वातावरण बनाए।

हम छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश महाराष्ट्र के आदिवासी क्षेत्रों में हो रहे रक्तपात से बेहद चिंतित हैं। गृह मंत्री अमित शाह द्वारा माओवादियों को खत्म करने के लिए 31 मार्च 2026 की समय सीमा के साथ, इन क्षेत्रों में बड़ी संख्या में सैनिकों को तैनात किया जा रहा है, खासकर बस्तर संभाग मूल रूप से एक खुली जेल बना दिया गया है।

वर्तमान में, बस्तर संभाग दुनिया का सबसे अधिक सैन्यीकृत क्षेत्र है, जहाँ 2019 के बाद 60,000 सशस्त्र कर्मियों को तैनात किया गया है  और 280 से अधिक सैन्य कैंपों को स्थापित किया गया है। वहां हालात ये हैं कि हर नौ आदिवासियों के लिए एक सैन्यकर्मी मौजूद है। चिंताजनक बात यह है कि यह एक सर्वविदित तथ्य है कि बढ़ते सैन्यीकरण और मानवाधिकार उल्लंघन के बीच एक अविभाज्य संबंध है।

स्थिति यह है कि माओवादियों से निपटने के नाम पर सरकार खनिज संपन्न इलाकों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों को नीलाम कर रही है। मार्च 2025 में ही छत्तीसगढ़ सरकार ने दंतेवाड़ा जिले के बैलाडीला इलाके की तीन लौह अयस्क खदानों समेत 44 खनन ब्लॉकों की ई-नीलामी की थी। इन तीन लौह अयस्क खनन ब्लॉकों की ई-नीलामी में 58 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय निगमों ने हिस्सा लिया था, जिनमें सबसे ज्यादा बोली लगाने वालों में आर्सेलर मित्तल और रूंगटा स्टील्स शामिल थे। 

ये सारे संसाधन “विकास” के नाम पर कॉरपोरेट्स को सौंप दिए गए हैं। छत्तीसगढ़ की असली तस्वीर पेश की जा रही तस्वीर से काफी अलग है। छत्तीसगढ़ में भारत के एक तिहाई लौह और टिन अयस्क भंडार हैं और इसका सालाना खनिज उत्पादन करीब 30,000 करोड़ रुपये का है। फिर भी मानव विकास सूचकांक में यह 28 राज्यों में 26वें स्थान पर है और यहां गरीबी दर राष्ट्रीय औसत से दोगुनी है। यह इस बात का सबूत है कि इस “विकास” से आदिवासियों या इस देश के दूसरे लोगों को किसी भी तरह का फायदा नहीं हो रहा है। 

केंद्र सरकार लगातार इस बात पर जोर दे रही है कि माओवादी क्षेत्र के विकास में बाधा हैं और इस विकास को सुगम बनाने के लिए माओवादियों को जड़ से उखाड़ फेंकना होगा। इसलिए सरकार द्वारा कई राज्य प्रायोजित ऑपरेशन शुरू किए गए हैं, जैसे सलवा जुडूम (2005), जिसमें 55,000 से अधिक आदिवासी विस्थापित हुए, ऑपरेशन ग्रीन हंट (2009), ऑपरेशन समाधान-प्रहार (2017), और अब ऑपरेशन कगार (2024)। 

ये सभी ऑपरेशन आदिवासियों को उनकी अपनी ज़मीन से विस्थापित करते हुए नव-उदारवादी लूट को बढ़ावा दे रहे हैं। इन सभी वर्षों में, छत्तीसगढ़ में सीआरपीएफ, कोबरा, एनएसजी, बीएसएफ, आईटीबीपी, डीआरजी, बस्तर फाइटर्स और तेलंगाना से ग्रेहाउंड जैसे कई बल तैनात किए गए हैं। इस तैनाती से आदिवासियों और उनके संसाधनों के शोषण में तेज़ी ही आई है। इतना ही नहीं, केंद्र सरकार इजरायल जैसे नरसंहारी राज्य के ड्रोन, हवाई बमबारी के लिए हेरॉन मार्क-2 ड्रोन और बस्तर में निगरानी के लिए पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल कर रही है। 

छत्तीसगढ़ के आदिवासी भयानक डर के साए में जी रहे हैं। छत्तीसगढ़ में साल 2021 से 2024 के बीच हवाई बमबारी द्वारा नागरिकों को निशाना बनाने की चार घटनाएं हुई हैं, जहां 2024 में मोर्टार शेल के ट्रिगर होने से दो बच्चों की मौत हो गई। नागरिक क्षेत्रों में खुफिया जानकारी जुटाने के लिए ड्रोन और सैटेलाइटों की भी तैनाती की गई है।

ऑपरेशन कगार, जो अब केंद्र सरकार और माओवादियों के बीच शांति वार्ता लाने के प्रयासों के बाद व्यापक रूप से बहस में है, एक छह महीने की बच्ची मंगली की हत्या के साथ शुरू हुई, जिसकी मां जनवरी 2024 में पेड़ों की कटाई के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध में शामिल हुई थी। इस घटना के बाद विरोध प्रदर्शन हुए, जिनका जवाब सैन्य कर्मियों द्वारा गोलियों से दिया गया।

सैन्यीकरण मध्य भारत के लिए कहर साबित हुआ है और मानवाधिकारों के उल्लंघन की खबरें बड़े पैमाने पर आ रही हैं। सिर्फ़ 2023 से अब तक छत्तीसगढ़ में 140 से ज़्यादा आदिवासी महिलाओं की हत्या की गई है, उन्हें प्रताड़ित किया गया है और उन्हें माओवादी करार दिया गया है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने छत्तीसगढ़ में सुरक्षाकर्मियों द्वारा नाबालिगों सहित कई आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार के मामलों की रिपोर्ट की है। 

इसके अलावा, माओवादियों से मिलते-जुलते नाम वाले आदिवासियों को गिरफ़्तारी वारंट या अदालती सुनवाई के बिना अवैध रूप से जेल में डाल दिया जा रहा है। उनकी जल-जंगल-ज़मीन, जिस पर उनकी संस्कृति और आजीविका निर्भर करती है उसे भी नष्ट किया जा रहा है। खनन उद्योगों द्वारा उनकी नदियों को प्रदूषित किया जा रहा है और सुरक्षा कैंपों और खनन कंपनियों के लिए जगह बनाने के लिए उनके जंगलों को काटा जा रहा है।

यह कि ये राज्य प्रायोजित ऑपरेशन कॉरपोरेट के साथ किए जा रहे मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (MOU) से जुड़े हुए हैं। उदाहरण के लिए, सलवा जुडूम की शुरूआत छत्तीसगढ़ सरकार और टाटा समूह के बीच हुए समझौतों के साथ हुई और अब ऑपरेशन कगार, (जिसका उद्देश्य 31 मार्च 2026 तक माओवादियों को खत्म करना है) वास्तव में उस क्षेत्र से आदिवासियों को खत्म करने का एजेंडा है ताकि अडानी, वेदांता, टाटा, एस्सार और कई अन्य कॉरपोरेट के खनन के लिए रास्ता बनाया जा सके। यही कारण है कि सरकार ने आदिवासियों और उनके प्रतिरोध को खत्म करने के लिए अपने हमलों को तेज कर दिया है। 

स्थिति इतनी चिंताजनक है कि छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार आदिवासी प्रतिरोध के किसी भी रूप को मंजूरी नहीं देती है, भले ही वह संवैधानिक ढांचे के भीतर हो। इसने आदिवासी कार्यकर्ताओं जैसे सुनीता पोट्टम, सुरजू टेकाम और मूलवासी बचाओ मंच के अध्यक्ष रघु मिडयामी को गिरफ्तार करके लोकतांत्रिक आवाजों को चुप करा दिया है, जिन्होंने कॉर्पोरेट लूट से अपनी जमीनों की रक्षा करने के लिए शांतिपूर्ण आंदोलन का तरीका अपनाया और छत्तीसगढ़ में सीआरपीएफ कैंपों की स्थापना का विरोध किया।

साल 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ‘एक गणतंत्र को अपने बच्चों को नहीं मारना चाहिए’, चाहे वे आदिवासी हों या माओवादी।’ बस्तर क्षेत्र में सुरक्षा कैंपों की संख्या बढ़ाकर, माओवादियों पर इनाम राशि तय करके और सुरक्षाकर्मियों को माओवादियों को गिरफ्तार करने और अदालत के सामने पेश करने के बजाय उन्हें मारने के लिए प्रोत्साहित करके केंद्र सरकार की कार्रवाई पूरी तरह से इस फैसले के खिलाफ जाती है।

इन सब के बावजूद यह बहुत स्वागत योग्य है कि माओवादी भारतीय राज्य के साथ शांति वार्ता में शामिल होने के लिए तैयार हैं और उन्होंने इसकी मांग करते हुए पांच प्रेस विज्ञप्तियाँ जारी की हैं। इससे पहले 2004 और 2010 में माओवादियों और सरकारों के बीच शांति वार्ता हुई थी, लेकिन केंद्र सरकारों ने बार-बार धोखा दिया है। 3 अप्रैल 2025 को सीपीआई (माओवादी) की केंद्रीय समिति ने एक प्रेस बयान जारी कर कहा कि अगर उनके खिलाफ चल रहे ऑपरेशन तुरंत बंद कर दिए जाएं तो वे केंद्र सरकार के साथ शांति वार्ता करने और युद्ध विराम की घोषणा करने के लिए तैयार हैं।

लेकिन केंद्र सरकार ने उदासीनता दिखाते हुए 21 अप्रैल को ‘ऑपरेशन संकल्प’ नामक एक और अभियान शुरू किया, जिसमें छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा के कर्रेगुट्टा पहाड़ियों को घेर लिया गया और 25,000 से अधिक सैन्यकर्मियों को तैनात किया गया। यह बहुत शर्मनाक है कि केंद्र सरकार सीपीआई माओवादी के महासचिव केशव राव उर्फ बसवराज समेत अन्य माओवादियों को मार कर उसका जश्न मना रही है जबकि माओवादियों के तरफ से शांति वार्ता के लिए एकतरफा सीजफायर की घोषणा की जा चुकी है।

छत्तीसगढ़ की एक प्रसिद्ध कार्यकर्ता सोनी सोरी के अनुसार, इस ऑपरेशन के परिणामस्वरूप कई निहत्थे नागरिकों की हत्या हुई और उनके शवों के साथ इतना अपमानजनक व्यवहार किया गया कि जब उन्हें उनके परिवारों को लौटाया गया तो उनमें कीड़े पड़ गए थे, जो कि जेनेवा कन्वेंशन और इंटरनेशनल कमेटी ऑफ द रेड क्रॉस (ICRC) का स्पष्ट उल्लंघन है।

उन्होंने लिखा कि “अगर किसी आदिवासी माँ के दो बेटे हैं, तो सरकार उनमें से एक को सिपाही बना देती है और उसे बंदूक थमा देती है। दूसरा आदिवासी भाई अपनी ज़मीन की रक्षा करता है। अगर सरकार की तरफ़ से लड़ने वाला कोई आदिवासी मारा जाता है, तो उसे तिरंगे झंडे में लपेटकर दाह संस्कार किया जाता है, लेकिन अपनी ज़मीन की रक्षा करते हुए मारे गए आदिवासी के शव को कीड़ों की चादर से ढक दिया जाता है।’

हम नागरिक, छत्तीसगढ़ की भयावह स्थितियों से बहुत चिंतित हैं। एक राष्ट्र के रूप में, हम अपने ही साथी नागरिकों का रक्तपात देख रहे हैं। केंद्र सरकार को यह स्वीकार करना चाहिए कि माओवाद कोई कानून-व्यवस्था का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह क्षेत्र की बिगड़ती सामाजिक-आर्थिक स्थिति का परिणाम है। हम भारत की केंद्र सरकार से आग्रह करते हैं कि वह सीपीआई (माओवादी) के साथ शांति वार्ता करे और इसके लिए अनुकूल माहौल बनाए, ताकि मध्य भारत में शांति कायम हो सके और आदिवासियों का रक्तपात बंद हो सके।

SIGNED:

ORGANIZATIONS: 

Akhil Bhartiya Krantikari Kisan Sabha , UP

All India Students Association (AISA),UP

Kusum Verma – All India Progressive Women’s Association (AIPWA)

Chandan Saroj – All India Students Federation (AISF)

Aakansha Azad – BhagatSingh Students Morcha (BSM)

Kanti Mishra – Bhartiya Mahila Federation,UP

Abhishek Rawat – BHIM Army

Rahul Kumar Gautam – Bhim Army Students Federation (BASF)

Manish Sharma – Communist Front

Biru – DISHA Chhatra Sangathan

Anupam Kumar – Inquilabi Chhatra Morcha,Allahabad (ICM)

Rajesh Azad – Janmukti Morcha

Nanhe Lal – Jati Unmulan Manch

Arun Khote – Justice News

Saurabh Kumar – Kaarigar Ekta

Sahil Azad -Krantikari Gig Mazdoor Manch

Alok Ranchi -Mahasabha

National Alliance of People’s Movements (NAPM), UP

Shashikant Singh -Pahal, BHU

Nirala -Prajapati Shoshit Samaj Sangharsh Samiti(PS4)

Anoop Shramik – Purvaanchal Bahujan Morcha

Chittajit Mitra – Revolutionary Alliance for Queer Solidarity (RAQS)

Shashikant Aligarh -Revolutionary People’s Centre

Amit – Revolutionary Workers’ Party of India

Roop Rekha – Saajhi Duniya

Dr Anand Kumar, faculty member at Kashi Vidyapeeth, Samaajwadi Jan Parishad

Chaturanan Ojha -Samaan Shiksha Andolan , UP

Arvind Anjum- Sarva Seva Sangh

Sunny Singh -Shaheed Bhagat Singh Kranti Morcha

Sandeep Pandey – Socialist Party Of India

Fr Anand -Souhard Peace Centre

INDIVIDUALS:

Amita Sheereen , Political Activist

Avinash, Student, Banaras Hindu University

Daya Shankar Rai, Activist

Doggala Raju Kumar

Ganga Sagar Nishad, PHD Scholar, Lucknow University

Komal, Activist

Mo Yunus

Mohammad Imran

Raghavendra Vishwakarma, PHD scholar.

Rajesh Bharadwaj, 

Rishikesh, Student, BHU

Ritesh Kumar, student, BHU

S.P Rai, former trade union activist

Sachin Kumar, student, BHU

Shweta, student

Sudhanshu, student, BHU

V K Singh, former trade union activist.

Vikas Kumar

Vinay, political activist

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