संसद में दिए अमित शाह के बयानों को पुलिस के दर्ज एफआईआर बताते हैं झूठा

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गृहमंत्री अमित शाह दिल्ली पुलिस की तारीफ़ करते रहे। वो इसलिए भी कि आलोचना करते तो जवाबदेही के सवाल उन तक पहुँचते। दंगों के दौरान लोगों ने पुलिस को 13000 से अधिक फ़ोन कॉल्स किए। गृहमंत्री पुलिस की लॉग बुक से बता सकते हैं कि उन 13000 कॉल के बाद कितनी जगहों पर पुलिस पहुँचा? कितने कॉल ऐसे थे जो एक ही जगह से बार-बार किए गए और पुलिस नहीं पहुँची? अमित शाह ने कहा कि दंगा प्रभावित क्षेत्रों में पुलिस और अर्ध सैनिक बलों की अस्सी कंपनियाँ तैनात थीं। शुरू में इनकी संख्या दो दर्जन से अधिक थी। जब इतनी पुलिस थी तो फिर वो भीड़ से जान बचा कर छिप क्यों रही थी ? पुलिस क्यों भाग रही थी?

आप इंडियन एक्सप्रेस की यह रिपोर्ट पढ़िए। महेंद्र सिंह मनराल और कुनैन शरीफ़ की है। इस रिपोर्ट में दंगों के दौरान पुलिस ने अपनी तरफ़ से जो प्राथमिकी दर्ज कराई है उसका विश्लेषण किया गया है। यह रिपोर्ट बताती है कि दंगा प्रभावित क्षेत्रों में पुलिस नहीं थी। पुलिस ने खुद अपनी FIR में कहा है कि वे दो या तीन की संख्या में थे और भीड़ ज़्यादा थी। पुलिस बल भेजने की माँग की गई थी। कई FIR में पुलिस ने ऐसा लिखा है। पता चलता है कि पर्याप्त पुलिस बल तैनात करने में सरकार असफल रही।

पुलिस ने अपनी कई प्राथमिकी में लिखा है कि दोनों तरफ़ से भीड़ पत्थर बाजी कर रही थी। क्या दोनों तरफ़ से लोग बाहर से आए थे? अगर पर्याप्त पुलिस बल की तैनाती होती तो इलाक़े में इतनी अराजकता फैलने का सवाल ही नहीं था। अमित शाह को यही पूछना था कि अस्सी कंपनियों की तैनाती के बावजूद हिंसा कैसे व्यापक हो गई? अफ़सर क्या फ़ैसले ले रहे थे? गृह मंत्री अमित शाह से कुछ और सवाल हैं।

जब वे तीन दिनों तक बैठकें कर रहे थे, स्थिति सँभाल रहे थे तब उन्हें दिल्ली पुलिस के कमिश्नर पटनायक से प्रभार लेकर एसएन श्रीवास्तव को क्यों देना पड़ा? दिल्ली पुलिस जब अच्छा काम कर रही थी तब एसएन श्रीवास्तव को क़ानून व्यवस्था का प्रभारी क्यों बनाया? वो भी तब जब गृहमंत्री के अनुसार दिल्ली पुलिस अच्छा काम कर रही थी और दंगे 36 घंटे के भीतर नियंत्रण में आए थे ।

गृहमंत्री दिल्ली पुलिस की वाहवाही भी करते रहे और यह भी कहते रहे कि पुलिस का मनोबल बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से मौक़े पर जाने की विनती की थी। क्या अच्छा काम करते हुए दिल्ली पुलिस का मनोबल गिर गया था? अगर ऐसा था तो मनोबल पुलिस कमिश्नर के जाने से नहीं बढ़ता ? क्या गृहमंत्री के जाने से मनोबल नहीं बढ़ता?

(रवीश कुमार एनडीटीवी के मैनेजिंग एडिटर हैं।)

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