Sunday, April 28, 2024

बीसीसीआई की रणनीति बनी भारतीय टीम की हार की वजह?

नई दिल्ली। जब आप सबकुछ अपने मन-मुताबिक तैयार करके रखते हैं, तो कई बार चीजें वैसी नहीं होतीं, जैसा कि आपने सोच रखा था। इसके लिए विरोधी पक्ष ने यदि पूरे मनोयोग से खुद को तैयार कर रखा हो, और हर परिस्थिति में अपना बेस्ट देने का मन बना लिया हो तो सारा किया-कराया भी तमाम हो जाता है। 

कल भारत-ऑस्ट्रेलिया विश्व कप फाइनल में भी यही देखने को मिला। यह बात अब सामने खुलकर आ रही है कि बीसीसीआई ने घरेलू टीम की जीत के लिए जिस पिच को चुना, वह वही पिच थी जिसमें पिछले माह भारत पाकिस्तान को हरा चुका था। यह बात ब्रेट ली सहित पूर्व ऑस्ट्रेलियाई कप्तान रिकी पोंटिंग ने अपने बयान में कही है। 

फॉक्स स्पोर्ट्स की रिपोर्ट में ऑस्ट्रेलिया के तेज गेंदबाज ब्रेट ली के हवाले से बताया गया है कि विश्व कप फाइनल के लिए धीमी पिच की तैयारी ने ही संभवतः भारत की सबसे बड़ी ताकत उसके हाथ से छीन ली। अहमदाबाद के मोटेरा में नरेंद्र मोदी क्रिकेट स्टेडियम, जिसका नामकरण पहले वल्लभभाई पटेल क्रिकेट स्टेडियम के तौर पर नरेंद्र मोदी के ही कर-कमलों से किया गया था, उसे बाद में खुद उनके नाम से करना भी एक अलग पहेली है।

1.25 लाख दर्शकों की क्षमता वाला यह स्टेडियम दुनिया का अब सबसे बड़ा क्रिकेट ग्राउंड बन चुका है, हालांकि पारंपरिक तौर पर कोलकाता के ईडन गार्डन और मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम को सारी दुनिया में शोहरत हासिल है। लेकिन कहीं न कहीं क्रिकेट डिप्लोमेसी का इस्तेमाल भारतीय राजनीति में करने के लिहाज से गुजरात और नरेंद्र मोदी स्टेडियम शायद वर्तमान भारतीय नीति-निर्माताओं को काफी जंच रहा था।

फॉक्स स्पोर्ट्स के अनुसार ऑस्ट्रेलियाई कप्तान पैट कमिंस को कथित तौर पर खिताबी भिडंत से एक दिन पहले विश्व कप फाइनल की पिच को लेकर चिंता सता रही थी, क्योंकि यह वही पिच थी, जिसे पिछले माह पाकिस्तान पर भारत की सात विकेट की जीत में इस्तेमाल किया गया था। रविवार को जब उन्होंने टॉस जीता तो उन्होंने पहले गेंदबाजी करने का फैसला लेकर क्रिकेट जगत आश्चर्यचकित कर दिया था। लेकिन ऑस्ट्रेलिया के पूर्व दिग्गज इस फैसले के बारे में पहले ही गहन चर्चा कर चुके थे, और पहले फील्डिंग का फैसला पूरी तरह से टीम के पक्ष में गया। 

इस पिच को भारतीय गेंदबाजी के अनुकूल बनाया गया था, क्योंकि हाल तक भारतीय उपमहाद्वीप में धीमी पिचों पर विदेशी टीमों को खेलने में परेशानी होती थी, और भारतीय स्पिनर्स इसमें अपना कमाल दिखा सकते थे। लेकिन भारतीय टीम का हालिया ट्रैक रिकॉर्ड इसके बिल्कुल विपरीत था। भारत ने अपने 10 मैच में बाद के सभी मैच अपने विश्वस्तरीय तेज गेंदबाजी की बदौलत जीते थे, लेकिन अपनी जीत को सुरक्षित बनाने के चक्कर में वे अपने तेज गेंदबाजों पर भरोसा नहीं कर पाए। 

ऑस्ट्रेलिया के लिए यह कदम एक मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ, क्योंकि पहली पारी में विकेट बहुत धीमा खेल रहा था, लेकिन दूसरी पारी में ओस गिरने के कारण गेंद बल्ले पर अच्छी तरह से स्किड हो रही थी। ट्रैविस हेड (137) और मार्नस लाबुशेन (58*) ने दूसरी पारी में विकेट की गति तेज होने का फायदा उठाते हुए 192 रन की साझेदारी कर भारत की झोली से जीत अपने नाम कर ली।

इस बारे में ली का मानना है कि भारत अपनी ही एक ट्रिक से चूक गया, जबकि उसे अपने विश्व स्तरीय तेज गेंदबाजों को फायदा पहुंचाने के लिए तेज और बाउंसी विकेट तैयार करनी चाहिए थी। मोहम्मद शमी ने मात्र सात मैचों में 24 विकेट लेकर इस श्रृंखला में सर्वाधिक विकेट अपने नाम किये हैं, जबकि पहले 4 मैचों में तो उन्हें खिलाने के बारे में विचार भी नहीं किया गया था। दूसरी तरफ जसप्रीत बुमराह भी 11 मैचों में 20 विकेट लेकर तेज और उछाल पिच पर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए पूरी तरह से तैयार थे।

भारतीय फैंस भी भारत के बेहद कम रन स्कोरबोर्ड पर होने के बावजूद आश्वस्त थे कि शमी और बुमराह के रहते अभी भी 50% जीत का चांस बना हुआ है, लेकिन उनका यह आकलन सिर्फ इसलिए धरा का धरा रह गया क्योंकि ओस गिरने और कम उछाल वाली पिच पर तेज गेंदबाजी और स्पिन दोनों ही फेल होने थे। इसलिए भारतीय खिलाड़ियों को दोष देने से अधिक उन रणनीतिकारों के बारे में उन्हें गहराई से विचार करना चाहिए, जो किसी भी कीमत पर भारत के पक्ष में परिणाम को लाने की चाह रखकर बीसीसीआई और भारतीय राजनीति दोनों को ही भारी लेकिन अनुचित लाभ पहुंचाने की फ़िराक में अपने ही खिलाड़ियों के साथ अन्याय कर बैठे हैं।  

ली ने अपने बयान में साफ कहा है कि, “यदि आप आंकड़ों पर नजर डालें, तो मेरे हिसाब से भारत को जीतना चाहिए था। कागज पर भारतीय टीम ऑस्ट्रेलियन से काफी आगे दिखाई देती है। भारत निश्चित रूप से टूर्नामेंट जीतने के लिए 100% पसंदीदा टीम थी, लेकिन उसके आड़े कभी हार न मानने की पुरानी ऑस्ट्रेलियाई मानसिकता आ गई, और बड़े टूर्नामेंटों में यह बहुत काम आता है। ऐसे बहुत से लोग थे जिन्होंने ऑस्ट्रेलियाई टीम के शुरूआती प्रदर्शन को देखते हुए उन्हें ख़ारिज कर दिया था, लेकिन उन्होंने कल रात एक बार फिर साबित कर दिया कि टीम के बीच यदि दृढ़ता, समर्पण और आत्म-विश्वास हो तो टीम वास्तव में कुछ भी कर सकती है।”

ऑस्ट्रेलिया के सफलतम कप्तानों में से एक रिकी पोंटिंग ने तो साफ़ कहा है कि भारत द्वारा अपनी पिचों के साथ की गई हेराफेरी के बावजूद ऑस्ट्रेलिया के पक्ष में शानदार नतीजा निकला है। याहू स्पोर्ट्स में सैम गुडविन ने अपनी रिपोर्ट में रिकी पोंटिंग का बयान उद्धृत किया है, जो कि इस प्रकार है-  

“ऐसा लग रहा था कि भारत में पिच को मेजबान देश की जीत के लिए पूरी तरह से तैयार किया गया था, और आईसीसी शेड्यूल और मैच के लिए उपयोग की जाने वाली पिचों के मामले में बीसीसीआई के सामने झुक गया था। बीसीसीआई भारत की जीत को सुनिश्चित करने के लिए अंतिम समय में पिच बदलने के लिए आईसीसी को राजी कराने में कामयाब रहा था। इसी के बाद फाइनल में पुरानी पिच का उपयोग करने का भी उन्हें रास्ता मिल गया। यह वही पिच थी जिस पर भारत ने पहले टूर्नामेंट में पाकिस्तान को हराया था, और यह बेहद ऊबड़-खाबड़ और घिसी-पिटी दिख रही थी।”

भारत ने विश्व कप जीत का गौरव हासिल करने के लिए हरसंभव प्रयास किया लेकिन ऑस्ट्रेलिया के ताकतवर खिलाड़ियों के सामने उसे घुटने टेकने पड़े। यह किसी राज्याभिषेक के रूप में मनाया जाता, जिसमें प्रधानमंत्री अपने देश के नायकों को ट्रॉफी सौंपते। लेकिन इसके बजाय, भारत लड़खड़ा गया और ऑस्ट्रेलिया ने विश्व कप की सबसे बड़ी जीत हासिल की। ऑस्ट्रेलिया ने 92,000 की भीड़ को सकते में डालते हुए भारत को मात देकर अपना छठा विश्व कप जीत लिया और नरेंद्र मोदी के लिए एक अमूल्य फोटो-अपार्चुनिटी को बर्बाद कर दिया, जिनको आधे खाली पड़े स्टेडियम में पैट कमिंस को ट्रॉफी प्रदान करनी पड़ी।

रायटर्स लिखता है- “वैश्विक क्रिकेट के व्यावसायिक पक्ष के लगभग हर पैमाने पर भारत का दबदबा है, लेकिन जब दोनों टीम खेल के सबसे बड़े मंच पर आपस में भिड़ीं, तो ऑस्ट्रेलिया ने दिखा दिया कि व्यावसायिक प्रभाव बहुत कम महत्व रखता है। तेज़ गेंदबाज़ों के लिए बेहद कम मददगार पिच और नीली शर्ट्स पहने प्रशंसकों से खचाखच भरे स्टेडियम में मेजबान टीम के पास अजेय चैंपियन बनने के लिए रविवार के विश्व कप फाइनल से बेहतर व्यवस्था नहीं हो सकती थी। लेकिन ट्रैविस हेड के शतक और तेज गेंदबाजों की शानदार तिकड़ी के नेतृत्व में ऑस्ट्रेलिया ने छह विकेट से शानदार जीत हासिल कर छठी बार विश्व कप पर कब्जा कर लिया है।”

द टेलीग्राफ अखबार की मैच की अंतिम टिप्पणी

ओह आतिशबाज़ी

यह सब देखने में थोड़ा भ्रमित करने वाला लग रहा है। उन्होंने पैट कमिंस को ट्रॉफी सौंप दी है, लेकिन उसे अभी टीम के स्टेज पर आने और उसके साथ जश्न मनाने के लिए इंतजार करना होगा। खाली स्टेडियम, एसी/डीसी चालू है। मुझे लगता है कि यह कहना उचित होगा कि यह वह परिणाम नहीं है जैसा मेजबान चाहता था।।फिर भी। आज के दिन जो सर्वश्रेष्ठ था, वह जीता, जबकि टूर्नामेंट की सर्वश्रेष्ठ टीम दूसरे स्थान पर रही। फॉलो करने के लिए धन्यवाद और शुभरात्रि।”

भारत में भी टिप्पणियों और टीकाएं लिखी जा रही हैं। करोड़ों दर्शकों की आंखें कल के इस खिताबी भिडंत पर लगी हुई थीं। इससे पूर्व भारत दो बार विश्व विजेता बना है, लेकिन कभी भी अपने सारे लीग मैचों में उसे इस प्रकार की आश्वस्त करने वाली जीत नसीब नहीं हुई थी। पूरे टूर्नामेंट में सर्वाधिक रन बनाने के मामले में भारत के विराट कोहली और सबसे अधिक विकेट हासिल करने वाले खिलाड़ी के तौर पर मोहम्मद शमी के साथ कई भारतीय बल्लेबाजों और गेंदबाजों ने रिकॉर्ड प्रदर्शन किया, लेकिन फाइनल में आकर मिली एकमात्र हार ने बीसीसीआई, सत्तारूढ़ पार्टी ही नहीं करोड़ों-अरबों के सट्टा-बाजार में भी लाखों आम लोगों के रुपये स्वाहा किये होंगे। 

इस हार की समीक्षा तो करनी ही चाहिए, लेकिन इस बात की भी गहराई से पड़ताल की जानी चाहिए कि जो खेल आम भारतीय के लिए भावनाओं से जुड़ा हुआ है, उसमें पैसे, विज्ञापन, सत्ता हथियाने के साथ-साथ अब विश्व के अन्य देशों को प्रभाव में लेने तक की शिकायतें आ रही हैं, जो असल में 140 करोड़ लोगों की भावनाओं का ही दोहन करने और अपने नैरेटिव को सेट करने और उन्हें ही बर्बाद करने के काम आ रही है।

खेल को खेल ही रहने दिया जाए और खिलाड़ियों को रेसकोर्स के घोड़ों की तरह खरीद-बिक्री करने वाले क्लबों के लिए खेलने की मजबूरी से बाहर निकालकर ही वास्तव में देश के लिए खेला जा सकता है। कॉर्पोरेट हितों की बलिवेदी पर भारतीय क्रिकेटरों को नीलाम करने के योजनाकार ललित मोदी के इस ड्रीम प्रोजेक्ट आईपीएल के बाद तो क्रिकेट आज ऐसे कीचड़ में धंस चुका है कि अफगानिस्तान को छोड़ दें तो दक्षिण एशिआई देशों ने तो क्रिकेट खेलना लगभग भुला सा दिया है।

ऑस्ट्रेलिया की टीम पहले भी अपवाद रही है, और उसके साथ खिताबी भिडंत में उसकी जीत के बाद भी उनके दिग्गज खिलाड़ियों ने बीसीसीआई की मनोदशा पर खुलकर अपनी भड़ास निकालकर बता दिया है कि विश्व में क्रिकेट को सबसे बड़ा खतरा खुद उन लोगों से है, जिनके कंधे पर इसे आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी है।  

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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