कहते हैं कि राजनीति और युद्ध में सब कुछ जायज होता है। लेकिन इतना भी जायज नहीं, जितना नाजायज भारतीय जनता पार्टी कर रही है। यह वही भाजपा है, जिसके नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में कहा था कि सत्ता बचाने के लिए यदि सांसदों की खरीद-फरोख्त करनी पड़े तो ऐसी सत्ता को मैं लात मारता हूं। मात्र एक वोट से उनकी सरकार गिर गई थी।
आज भी वही भाजपा है, लेकिन नेता बदल गए हैं। उनके सिद्धांत बदल गए हैं। यह कहें कि कोई सिद्धांत है ही नहीं, कोई विचाराधारा नहीं है तो कुछ गलत नहीं होगा। सत्ता के लिए वे लोकतंत्र का चीर-हरण बार-बार कर रहे हैं, हालांकि वे हर बार खुद ही नंगे भी हो जा रहे हैं, फिर भी लोक का लाज नहीं है।
ताजा मामला मुम्बई में विनोद तावड़े का है। महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में वोट के लिए कथित रूप से रुपये बांटने का आरोप उन पर लगा है। चुनाव आयोग के निर्देश पर एफआईआर दर्ज हुई। अजित पवार खुद खुलासा कर चुके हैं कि सरकार बनाने-गिराने की मीटिंग में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के साथ उद्योगपति गौतम अडानी भी मौजूद थे।
इसके पहले किन-किन राज्यों में विधायकों की खरीद-फरोख्त कर बीजेपी ने सरकार बनाई और बिगाड़ी, बताने की जरूरत नहीं है। लेकिन हालिया चुनावों में जिस कदर महाराष्ट्र और झारखंड में भाजपा का प्रचार अभियान चला, उससे साफ हो गया कि यह पार्टी ‘एक हाथ की ककड़ी, नौ हाथ का बीज’ बनाने में माहिर है। एक झूठ को यदि कई बार बोला जाए, कई लोग एक साथ बोलें तो यह सच प्रतीत होने लगता है। आज की भारतीय जनता पार्टी इसी रास्ते पर आगे बढ़ रही है।
झारखंड में बांग्लादेशियों और रोहिंग्या मुसलमानों की घुसपैठ का मुद्दा खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने उठाकर चुनाव में ध्रुवीकरण की हर संभव कोशिश की। जबकि ऐसी कोई बात है ही नहीं। यदि मोदी-शाह प. बंगाल के मुसलमानों को बांग्लादेशी मानते हैं तो उनको वही प्रभु श्रीराम सद्बुद्धि दें, जिनका नाम लेकर भाजपा राजनीति कर रही थी। मोदी-शाह अपने मकसद में कितना कामयाब हुए, यह तो मतगणना के बाद ही पता चलेगा। हालांकि उनके कैंपेन के चुनाव आयोग ने भी गलत माना और एक प्रचार विज्ञापन को झारखंड भाजपा के सोशल मीडिया हैंडल से हटाने का आदेश तक दे दिया।
महाराष्ट्र में भी भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने हिंदुत्व को धार दिया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वहां जाकर बंटेंगे तो कटेंगे का नारा दिया। इस नारे का विरोध एनडीए के ही अजित पवार व कुछ अन्य नेताओं ने कर दिया। फिर प्रधानमंत्री ने नारा दिया-एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे। मोदी और योगी के नारों में शब्द भले अलग-अलग हों, लेकिन मतलब दोनों का एक ही निकाला जा रहा है।
उत्तर प्रदेश की नौ सीटों के लिए उपचुनाव में भी यही स्थिति है। जहां-जहां विपक्ष शुरू से ही मजबूत स्थिति में दिखा, वहां-वहां अधिकारियों पर चुनाव में भाजपा के पक्ष में काम करने के आरोप लगे। इनमें मिर्जापुर जिले की मझवां विधानसभा और अंबेडकरनगर की कटेहरी सीट प्रमुख है। मिर्जापुर के मझवां में तो यहां तक आरोप लगा कि स्ट्रांग रूम के बगल के कमरे में 36 ईवीएम रखी हैं। जिनमें पहले से भाजपा के पक्ष में मत फीड किए गए हैं।
सपा के मझवां विधानसभा चुनाव प्रभारी चंदौली सांसद वीरेंद्र सिंह ने जिला निर्वाचन अधिकारी से मांग की थी कि उनकी शंका को दूर किया जाए। शायद मतगणना बाद तक भी सिंह की इस शंका का समाधान हो सके। जिला प्रशासन की ओर से न कोई सफाई दी गई और न ही उस कमरे को खोलकर दिखाया गया, जिसमें ईवीएम रखी जाने का आरोप लगाया गया। होना यह चाहिए था कि जिला निर्वाचन अधिकारी अपने किसी प्रतिनिधि को भेजकर सपा सांसद को वह कमरा दिखा देते।
कटेहरी में सपा सांसद लालजी वर्मा ने तो जिला प्रशासन और पुलिस पर भाजपा के पक्ष में काम करने का आरोप लगाते हुए अपना गनर तक वापस करने की पेशकश कर दी। इसके लिए उन्होंने पुलिस अधीक्षक को बाकायदा पत्र भी लिखा है। कहा है कि लाल पर्ची देकर मतदाताओं को डराने-धमकाने का काम किया जा रहा है।
कुल मिलाकर भारतीय जनता पार्टी का प्रचार तंत्र इतना मजबूत है कि विपक्ष की आवाज ही नक्कारखाने में तूती साबित हो रही है। 1940 में किए गए एक अध्ययन का निष्कर्ष था कि “कोई अफवाह जितनी ज़्यादा बार कही जाए, वह उतनी ही संभव लगने लगती है।” इसका मतलब है कि कोई अफवाह सिर्फ प्रसार के दम पर लोगों के विचारों और अभिमतों को प्रभावित कर सकती है। इसके बाद 1977 में एक और अध्ययन ने इसी बात को थोड़ा अलग ढंग से प्रस्तुत किया था।
यूएस के कुछ शोधकर्ताओं ने कॉलेज के विद्यार्थियों से किसी वक्तव्य की प्रामाणिकता को लेकर पूछताछ की। उन्हें बताया गया था कि वह वक्तव्य सही भी हो सकता है और गलत भी। शोधकर्ताओं ने पाया कि यदि उसी वक्तव्य को कुछ दिनों बाद फिर से दोहराया जाए तो इस बात की संभावना बढ़ती है कि विद्यार्थी उस पर यकीन करने लगेंगे।
वर्ष 2015 में वान्डरविल्ट विश्वविद्यालय (टेनेसी) की लिज़ा फेज़ियो ने एक अध्ययन में देखा कि चाहे विद्यार्थी जानते हों कि कोई कथन गलत है, मगर यदि उसे दोहराया जाए, तो काफी संभावना बनती है कि वे उस पर विश्वास कर लेंगे। फेज़ियो का कहना है कि झूठी खबरें लोगों को तब भी प्रभावित कर सकती हैं जब वे जानते हैं कि वह झूठी है। वही खबर या वही सुर्खियां बार-बार पढ़ने पर लगने लगता है कि शायद वह सच है। लोग प्राय: जांच करने की कोशिश भी नहीं करते।
हाल में किए गए एक अध्ययन में यूएस के हाई स्कूल छात्रों को एक तस्वीर दिखाई थी। इसमें बताया गया था कि दुर्घटना के बाद फुकुशिमा दाइची परमाणु बिजली घर के आसपास पौधों पर विकृत फूल उग रहे हैं। जब यह पूछा गया कि क्या वह तस्वीर बिजली घर के आसपास की स्थिति का प्रमाण माना जा सकता है, तो मात्र 20 प्रतिशत छात्रों ने ही इस पर शंका ज़ाहिर की जबकि 40 प्रतिशत ने तो माना कि यह स्पष्ट प्रमाण है। तस्वीर के साथ यह नहीं बताया गया था इसे प्रस्तुत किसने किया है।
भारतीय जनता पार्टी इसी तरह का नैरेटिव गढ़ना चाहती है। सोशल मीडिया के जमाने में लोग गूगल सर्च इंजन पर भरोसा करते हैं। लोगों के इसी भरोसे के बूते भाजपा पूरे भारत को भगवा रंगना चाहती है। इसके लिए छल, छद्म, झूठ, भय सबका सहारा ले रही है। कोई नैतिक कहे या अनैतिक, उसे सत्ता चाहिए। सत्ता के लिए उसके लिए सब जायज है। यही स्वस्थ लोकतंत्र के लिए खतरा है। चीरहरण है।
(राजेश पटेल स्वतंत्र पत्रकार तथा वेब पोर्टल सच्ची बातें डॉट कॉम के प्रधान संपादक हैं)

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