भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव में तीन प्रयोग किए थे, जो सूरत प्रयोग, इंदौर प्रयोग और खजुराहो प्रयोग के नाम से जाने जाते हैं और भविष्य में भी जाने जाएंगे। इन तीनों प्रयोगों में भाजपा ने अलग-अलग तरह से अपनी मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टियों के उम्मीदवारों को चुनाव मैदान से हटा कर अपने उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित कराई थी।
ऐसा ही एक प्रयोग उसने झारखंड विधानसभा के चुनाव में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ भी करने का प्रयास किया। हालांकि उसे कामयाबी नहीं मिली लेकिन इससे एक बार फिर जाहिर हुआ कि भाजपा को चुनाव में घटिया से भी घटिया हथकंडा आजमाने से परहेज नहीं है और उसके हर हथकंडे को चुनाव आयोग का भी परोक्ष समर्थन हासिल है।
लोकसभा चुनाव में गुजरात की सूरत सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार नीलेश कुंभानी थे। उन्होंने नामांकन पत्र के चार सेट दाखिल किए थे और सभी में अपने रिश्तेदारों या करीबी मित्रों को अपना प्रस्तावक बनाया था।
लेकिन नामांकन पत्रों की जांच के समय नीलेश कुंभानी के सभी प्रस्तावकों ने चुनाव अधिकारी के सामने हलफनामा देकर कहा कि कुंभानी के नामांकन पर प्रस्तावक के तौर पर अंकित हस्ताक्षर उनके नहीं हैं।
इसके बाद कुंभानी का नामांकन हो गया। मैदान में भाजपा उम्मीदवार के अलावा आठ उम्मीदवार रह गए थे। भाजपा नेताओं ने उन आठ उम्मीदवारों को भी एक होटल में ले जाकर उनसे नाम वापसी के पत्र पर हस्ताक्षर करा लिए।
इस तरह भाजपा उम्मीदवार मुकेश दलाल निर्विरोध चुनाव जीत गए। जिला निर्वाचन अधिकारी ने उन्हें तुरत-फुरत निर्वाचन प्रमाण पत्र भी दे दिया। भारत के इतिहास मे पहली बार कोई लोकसभा सांसद निर्विरोध जीता।
दूसरा प्रयोग मध्य प्रदेश की इंदौर सीट पर किया गया था, जहां कांग्रेस के उम्मीदवार अक्षय बम ने नामांकन वापसी के आखिरी दिन अपना नाम वापस ले लिया और भाजपा में शामिल होने की घोषणा कर दी। इस पूरी कार्यवाही को राज्य सरकार के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के निर्देशन में इंदौर के ही भाजपा विधायक रमेश मेंदोला ने अंजाम दिलाया।
हालांकि कोशिश तो बाकी उम्मीदवारों के नाम वापस कराने की भी हुई थी, कुछ को लालच दिया गया था तो कुछ को धमकाया गया था लेकिन दो-तीन निर्दलीय उम्मीदवारों को ही मैदान से हटाने में कामयाबी मिली, जबकि 13 निर्दलीय उम्मीदवार सत्ता और प्रशासन की गुंडागर्दी के आगे घुटने टेके बगैर मैदान डटे रहे। लेकिन भाजपा उम्मीदवार की जीत तो पहले ही तय हो गई थी।
मध्य प्रदेश की ही खजुराहो सीट पर जो प्रयोग हुआ था, वह सूरत और इंदौर से थोड़ा हट कर था। खजुराहो सीट इंडिया गठबंधन में समाजवादी पार्टी के खाते में आई थी और उसका मुकाबला भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा से होना था।
निर्वाचन अधिकारी ने एक सामान्य सी तकनीकी खामी के आधार पर समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार मीरा यादव का नामांकन खारिज कर दिया। चूंकि भाजपा उम्मीदवार के खिलाफ और कोई प्रभावी उम्मीदवार मैदान में नहीं था, इसलिए उनकी जीत सुनिश्चित हो गई।
इन्हीं तीन प्रयोगों से मिलता-जुलता एक प्रयोग भाजपा ने झारखंड में करने का प्रयास किया, जो उसकी तमाम कोशिशों के बावजूद कामयाब नहीं हो सका। झारखंड की बरहेट सीट से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने नामांकन किया है। उनके प्रस्तावक मंडल मुर्मू बने हैं, जो महान स्वतंत्रता सेनानी सिद्धो मुर्मू और कान्हो मुर्मू के वंशज हैं।
हेमंत सोरेन की टीम को 26 अक्टूबर को खबर मिली कि मंडल मुर्मू भाजपा नेताओं के संपर्क में हैं। इससे झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के नेता सक्रिय हुए और उन्होंने मंडल मुर्मू की खोज शुरू की।
यह आरोप लगाया गया कि मुख्यमंत्री के प्रस्तावक को अगवा कर लिया गया है। इस आधार पर जेएमएम कार्यकर्ताओं के साथ-साथ पुलिस भी मंडल मुर्मू की खोज में जुट गई।
अगले दिन यानी 27 अक्टूबर को खोज टीम को मंडल मुर्मू का पता चला। पुलिस और जेएमएम कार्यकर्ताओं ने उनकी गाड़ी रोकी तो पता चला कि वे भाजपा के दो नेताओं के साथ कहीं जा रहे थे। किसी तरह से जेएमएम के कार्यकर्ता उन्हें अपने साथ ले जाने में सफल रहे।
लेकिन दिलचस्प यह है कि मंडल मुर्मू ने इस बात से इनकार कर दिया कि उन्हें अगवा किया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि वे हेमंत सोरेन के प्रस्तावक हैं, इसका यह मतलब नहीं है कि वे भाजपा नेताओं से नहीं मिल सकते हैं या भाजपा के नेता उनसे नहीं मिल सकते हैं।
परदे के पीछे का खेल खुलने में ज्यादा समय नहीं लगा और यह साफ हो गया है कि भाजपा ने कुछ प्रयास किया था। गोड्डा से भाजपा के सांसद निशिकांत दुबे ने मंडल मुर्मू के साथ एक तस्वीर भी सोशल मीडिया मे डाली थी। खैर, जैसे-तैसे हेमंत सोरेन ने अपना प्रस्तावक बचाया।
लेकिन ऐसा लग रहा है कि यह बात चुनाव आयोग को नागवार गुजरी है। अब यह बात पूरी तरह से उजागर हो चुकी है कि चुनाव आयोग एक संवैधानिक निकाय के रूप में नहीं बल्कि भाजपा के सहयोगी दल के रूप में काम कर रहा है।
सूत्रों के हवाले से ऐसी खबर आई है कि मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने झारखंड के चुनाव अधिकारी और अन्य अधिकारियों के साथ एक मीटिंग में इस बात पर नाराजगी जताई कि कैसे पुलिस ने एक सामान्य नागरिक की गाड़ी रोकी और अगर किसी शंका में गाड़ी रोकी गई तो उसकी वीडियोग्राफी क्यों नहीं कराई गई और जब गाड़ी में अवैध पैसा या शराब आदि नहीं बरामद हुआ तो गाड़ी क्यों नहीं छोड़ दी गई?
कुछ अधिकारी भी इस मामले में दोनों पक्षों के निशाने पर है। जिस समय हेमंत सोरेन के प्रस्तावक को तोड़ने का प्रयास किया जा रहा था उस समय तक भाजपा ने बरहेठ सीट से प्रत्याशी घोषित नहीं किया था। यह खेल बिगड़ने के बाद गमालियल हेम्ब्रम को टिकट दिया गया।
लेकिन भाजपा तो मानो मंडल मुर्मू को तुरुप का इक्का ही मान बैठी थी, लिहाजा उसके नेताओं ने अपने प्रयास नहीं छोडे। उन्होंने आखिरकार मंडल मुर्मू को अपनी पार्टी में शामिल करा लिया। एक हफ्ते पहले तक संथालपरगना के एक छोटे से इलाके के अलावा झारखंड की राजनीति में मंडल मुर्मू को कोई नहीं जानता था।
उनकी एकमात्र पहचान यह है कि वे महान स्वतंत्रता सेनानी सिद्धो मुर्मू के खानदान से आते हैं। लेकिन यह कोई परिचय नहीं होता है। फिर भी भाजपा मंडल मुर्मू को ट्रॉफी की तरह पेश कर रही है, तो जाहिर है कि वह झारखंड के चुनाव को अपने लिए करो या मरो की लडाई जैसा मान रही है।
असल मे मंडल मुर्मू इसलिए अहम हो गए हैं, क्योंकि बरहेठ विधानसभा सीट पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नामांकन में वे प्रस्तावक थे। भाजपा ने पहले प्रयास किया कि नामांकन पत्रों की जांच से पहले मंडल मुर्मू को तोड़ लिया जाए और उनसे हलफनामा दिलवा कर हेमंत सोरेन का नामांकन रद्द कराया जाए।
लेकिन इस खेल में कामयाबी नहीं मिली। उससे पहले भाजपा ने मंडल मुर्मू को बरहेठ सीट पर हेमंत सोरेन के खिलाफ उम्मीदवार बनाने का भी प्रस्ताव दिया था लेकिन वे तैयार नहीं हुए। अब भाजपा ने उन्हें पार्टी में शामिल कर लिया और उम्मीद कर रही है कि वे चुनाव में हेमंत को नुकसान पहुचाएंगे।
हालांकि इसकी कोई संभावना नहीं दिख रही है। इससे सिर्फ भाजपा की बेचैनी जाहिर होती है। असल में संथाल परगना में 18 सीटें हैं, जिनमें से पिछली बार जेएमएम-कांग्रेस गठबंधन ने 13 जीती थीं और भाजपा को सिर्फ चार सीट मिली थीं। वहां अपनी सीटों की संख्या बढ़ाने के लिए भाजपा हर दांव आजमा रही है।
(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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