Friday, March 29, 2024

केंद्र ने संसद में कहा-पेगासस स्पायवेयर निर्माता एनएसओ को प्रतिबंधित करने का कोई प्रस्ताव नहीं

केंद्र सरकार ने शुक्रवार को कहा कि एनएसओ नाम के किसी ग्रुप को प्रतिबंधित करने का उसके पास कोई प्रस्ताव नहीं है और न ही उसे इस बात की जानकारी है कि अमेरिका ने उसे काली सूची में डाला है या नहीं।इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना व प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में यह जानकारी दी।यह पूछे जाने पर कि क्या भारत में एनएसओ ग्रुप पर प्रतिबंध लगा दिया है, चंद्रशेखर ने कहा, ‘जी, नहीं।एनएसओ ग्रुप नाम के किसी ग्रुप को प्रतिबंधित करने का कोई प्रस्ताव नहीं है। इस बीच सरकार द्वारा इजरायल स्थित कंपनी एनएसओ ग्रुप के पेगासस स्पायवेयर के जरिये नागरिकों की निगरानी करने के आरोपों की जांच के लिए सुप्रीम द्वारा गठित तीन सदस्यीय समिति ने याचिकाकर्ताओं से कहा है कि ‘तकनीकी जांच’ के लिए वे अपना फोन जमा कराएं।

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना व प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री समाजवादी पार्टी के दो राज्यसभा सांसदों- विशंभर प्रसाद निषाद और सुखराम सिंह यादव के इस सवाल का जवाब दे रहे थे कि क्या आईटी मंत्रालय ने भारत में एनएसओ समूह पर प्रतिबंध लगा दिया है।

उनसे जब यह पूछा गया कि क्या अमेरिका ने पेगासस स्पायवेयर प्रदान करने के लिए एनएसओ ग्रुप और कैंडिरू को काली सूची में डाल दिया है, जिसका उपयोग पत्रकारों, दूतावास के कार्यकर्ताओं को दुर्भावनापूर्ण रूप से निशाना बनाए जाने के लिए किया गया है, तो केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘मंत्रालय में इस तरह की कोई सूचना उपलब्ध नहीं है’।

गौरतलब है कि अमेरिकी सरकार द्वारा एनएसओ ग्रुप को ब्लैकलिस्ट करने के कुछ हफ्तों बाद तकनीकी कंपनी एप्पल ने उत्तरी कैलिफोर्निया अदालत में इज़रायल के एनएसओ ग्रुप के खिलाफ मुकदमा दायर कराया था। एप्पल ने एक बयान में कहा था कि एनएसओ ग्रुप ने अपने पेगासस स्पायवेयर के जरिये एप्पल यूज़र्स की डिवाइसों को निशाना बनाया है।

अब पेगासस स्पायवेयर के जरिये युगांडा स्थित या युगांडा से संबंधित मामले देख रहे अमेरिकी विदेश विभाग के अधिकारियों के आईफोन में सेंधमारी करने का मामला सामने आया है। इस घटना को एनएसओ के माध्यम से अमेरिकी अधिकारियों पर की गई सबसे बड़ी हैकिंग बताया जा रहा है।

अंतरराष्ट्रीय मीडिया कंसोर्टियम, जिसमें द वायर  भी शामिल था, ने पेगासस प्रोजेक्ट के तहत यह खुलासा किया था कि इजरायल की एनएसओ ग्रुप कंपनी के पेगासस स्पायवेयर के जरिये नेता, पत्रकार, कार्यकर्ता, सुप्रीम कोर्ट के अधिकारियों के फोन कथित तौर पर हैक कर उनकी निगरानी की गई या फिर वे संभावित निशाने पर थे।

केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए यह बताने से इनकार कर दिया कि क्या उसने पेगासस को खरीदा है।विवाद बढ़ने के बाद यह मामला उच्चतम न्यायालय में गया और उसने इस मामले की जांच के लिए एक तीन सदस्यीय स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति गठित की थी। अदालत ने कहा था कि सरकार द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा की दुहाई देने मात्र से न्यायालय ‘मूक दर्शक’ बना नहीं रह सकता। उसने केंद्र का स्वयं विशेषज्ञ समिति गठित करने का अनुरोध यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि ऐसा करना पूर्वाग्रह के खिलाफ स्थापित न्यायिक सिद्धांत का उल्लंघन होगा। सुप्रीट कोर्ट ने जस्टिस रवींद्रन समिति को मुख्य रूप से सात बिंदुओं पर जांच करने का आदेश दिया है।

पेगासस प्रोजेक्ट के तहत द वायर ने अपने कई रिपोर्ट्स में बताया है कि किस तरह एमनेस्टी इंटरनेशनल के डिजिटल फॉरेंसिक जांच में इस बात की पुष्टि हुई थी कि इजरायल स्थित एनएसओ ग्रुप के पेगासस स्पायवेयर के जरिये कई फोन को निशाना बनाया गया था और उनकी हैकिंग हुई थी।द वायर ने ऐसे 161 नामों (जिसमें पत्रकार, मंत्री, नेता, कार्यकर्ता, वकील इत्यादि शामिल हैं) का खुलासा किया था, जिनकी पेगासस के जरिये हैकिंग किए जाने की संभावना है।

इस साल अगस्त में केंद्र ने राज्यसभा में एक प्रश्न को अस्वीकार करने के लिए कहा था। केंद्र की मोदी सरकार से पूछा गया था कि क्या उसने इजरायल की साइबर सुरक्षा फर्म के साथ अनुबंध किया है या नहीं? इसके जवाब में केंद्र ने कहा था कि पेगासस स्पायवेयर का मुद्दा विचाराधीन है, क्योंकि इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कई जनहित याचिकाएं दायर की गई हैं। 

इस बीच समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, इज़रायली कंपनी एनएसओ के पेगासस स्पायवेयर के ज़रिये युगांडा स्थित या युगांडा से संबंधित मामले देख रहे अमेरिकी विदेश विभाग के अधिकारियों के आईफोन में सेंधमारी की गई है। इस घटना को एनएसओ के माध्यम से अमेरिकी अधिकारियों पर की गई सबसे बड़ी हैकिंग बताया जा रहा है।इजरायल की एनएसओ ग्रुप कंपनी द्वारा तैयार स्पायवेयर पेगासस का इस्तेमाल कर अमेरिकी विदेश विभाग के कम से कम नौ कर्मचारियों के आईफोन हैक करने का मामला सामने आया है।इस मामले से वाकिफ चार लोगों ने यह जानकारी दी।यह हैकिंग पिछले कई महीनों में हुई और इसके तहत युगांडा स्थित अमेरिकी अधिकारियों या युगांडा से संबंधित मामले देख रहे अधिकारियों के आईफोन में सेंधमारी की गई।

उधर, सरकार द्वारा इजरायल स्थित कंपनी एनएसओ ग्रुप के पेगासस स्पायवेयर के जरिये नागरिकों की निगरानी करने के आरोपों की जांच के लिए सुप्रीम द्वारा गठित तीन सदस्यीय समिति ने याचिकाकर्ताओं से कहा है कि ‘तकनीकी जांच’ के लिए वे अपना फोन जमा कराएं।समिति ने इस संबंध में याचिकाकर्ताओं को ईमेल भेजा है। इसमें कहा गया है कि जिस डिवाइस में कथित रूप से पेगासस स्पायवेयर डाला गया था, उसे नई दिल्ली में जमा कराया जाएगा। हालांकि इसमें ये नहीं बताया गया है कि आखिर इसे किस ‘विशेष स्थान’ पर जमा करना है।

इस समिति की अगुवाई सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस आरवी रवींद्रन कर रहे हैं।इसमें जस्टिस रवींद्रन के अलावा साल 1976 बैच के पूर्व आईपीएस अधिकारी आलोक जोशी और अंतरराष्ट्रीय मानकीकरण संगठन/ अंतरराष्ट्रीय इलेक्ट्रो-तकनीकी आयोग की संयुक्त तकनीकी समिति में उप-समिति के अध्यक्ष संदीप ओबेरॉय शामिल हैं।

 पेगासस की जाँच के लिए पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा गठित जाँच आयोग ने राहुल गांधी, अभिषेक बनर्जी, प्रशांत किशोर और पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव एच.के. द्विवेदी सहित  31 लोगों को  आयोग के समक्ष पेश होने का नोटिस जारी किया गया है।अब तक तीन लोगों ने आयोग के समक्ष वर्चुअली अपनी गवाही दी है।आयोग ने उन लोगों को भी गवाही की अनुमति दी है, जो साक्ष्य के तौर पर अपने कथित ‘इनफेक्टेड’ उपकरणों को जमा कराते हैं ।

26 जुलाई को पश्चिम बंगाल कथित पेगासस जासूसी मामले की जांच का आदेश देने वाला पहला राज्य बन गया था। इस मुद्दे पर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को लगातार घेरने वाली मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज जस्टिस मदन बी. लोकुर और कलकत्ता हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त चीफ जस्टिस ज्योतिर्मय भट्टाचार्य की अगुआई में एक आयोग के गठन की घोषणा की थी।

आयोग को इन आरोपों की जांच का जिम्मा सौंपा गया है कि इजरायल के स्पाइवेयर का इस्तेमाल कर भारत में तमाम प्रमुख लोगों की जासूसी की गई थी। 3 अगस्त को पश्चिम बंगाल के प्रमुख अखबारों में एक सार्वजनिक सूचना छपी जिसमें सभी नागरिकों से 30 दिनों के भीतर पेगासस से संबंधित कोई भी जानकारी उपलब्ध कराने का अनुरोध किया गया था।30 नवंबर 2021 तक आयोग ने स्पाइवेयर के कथित पीड़ितों को कुल 42 नोटिस भेजे थे।इसमें 31 अलग-अलग लोगों को आयोग के समक्ष पेश होने के लिए भेजे गए नोटिस के अलावा 11 रिमाइंडर भी शामिल हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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