Saturday, April 27, 2024

विपक्षी एकता की संभावना पर छाए संदेह के बादल छंटने लगे

राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी एकता को लेकर छाए संदेह और अनिश्चितता के बादल छंटने लगे हैं। इस बात के संकेत एक मार्च को चेन्नई में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम यानी डीएमके प्रमुख और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के 70वें जन्मदिन पर आयोजित जलसे में मिले हैं। इस जलसे में कांग्रेस सहित कई विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने शिरकत की। इस मौके पर वैसे तो सभी नेताओं ने विपक्षी एकता की जरूरत पर जोर दिया, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कही। उन्होंने कहा कि कांग्रेस का ऐसा कोई दावा नहीं है कि विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व वही करेगी। खड़़गे ने यह भी कहा कि कांग्रेस के लिए यह सवाल भी गौण है कि प्रधानमंत्री कौन बनेगा।

चूंकि अभी तक विपक्षी एकता को लेकर सबसे बड़ी बाधा नेतृत्व के मसले पर थी और यह माना जा रहा था कि कांग्रेस विपक्षी गठबंधन में नेतृत्वकारी भूमिका निभाना चाहती है। उसकी ओर से कई नेता इस आशय के बयान देते आ रहे थे। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ ने कहा था कि 2024 में कांग्रेस की सरकार बनेगी और राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनेंगे। पिछले दिनों पार्टी के मीडिया प्रभारी जयराम रमेश ने भी कहा था कि कांग्रेस ही गठबंधन का नेतृत्व करेगी। उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत के समय भी इस आशय का बयान दिया था। इसके अलावा भी कांग्रेस के कई छोटे-बड़े नेता इस आशय के बयान देते रहते हैं।

बहरहाल कमलनाथ, जयराम रमेश या किसी अन्य कांग्रेस नेता से ज्यादा महत्वपूर्ण बयान कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे का है। गौरतलब है कि नगालैंड में चुनाव प्रचार के दौरान भी खड़गे ने विपक्षी एकता की बात कही थी और चेन्नई में उन्होंने साफ कर दिया कि कांग्रेस विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व करने की जिद नहीं कर रही है। यह बहुत बड़ी बात है।

स्टालिन के जन्मदिन के मौके पर आयोजित जलसे की दूसरी अहम बात यह रही कि समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों के साथ मंच साझा किया। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के रिश्ते पिछले कुछ सालों से तनाव भरे चल रहे हैं। साल 2017 का विधानसभा चुनाव साथ लड़ने के बाद से दोनों पार्टियां अलग-अलग हैं। समाजवादी पार्टी 2019 का लोकसभा चुनाव बहुजन समाज पार्टी के साथ मिल कर लड़ा था और कांग्रेस को अलग रखा था।

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव चेन्नई में विपक्षी जमावड़े में शामिल हुए इसका विपक्षी एकता के लिए बड़ा महत्व है। उनके इस जमावड़े में शामिल होने से तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिशों को गहरा झटका लगा है। बताया जा रहा है कि अखिलेश अब तीसरे मोर्चे की बजाय दूसरे मोर्चे में शामिल होने पर राजी हो गए हैं। दूसरा मोर्चा यानी वह विपक्षी गठबंधन, जिसमें कांग्रेस हो। तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिशों को तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नए रूख से भी तगड़ा झटका लगा है। ममता बनर्जी ने ऐलान कर दिया है कि 2024 का लोकसभा चुनाव उनकी पार्टी अकेले लड़ेगी।

अब तक माना जा रहा था कि तृणमूल कांग्रेस, भारत राष्ट्र समिति, आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी तीसरा मोर्चा बनाने के पक्ष में हैं। लेकिन अब ऐसा नहीं लग रहा है, क्योंकि तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिश करने वाली पार्टियों को स्टालिन के जन्मदिन के आयोजन में नहीं बुलाया गया था। तमाम सद्भाव के बावजूद के चंद्रशेखर राव, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल को न्योता नहीं दिया गया था, जबकि अखिलेश को न्योता दिया गया और वे शामिल भी हुए।

चेन्नई के आयोजन में तीसरे मोर्चे की बात करने वालों की आलोचना भी हुई। कांग्रेस की बात दोहराते हुए स्टालिन ने कहा कि तीसरा मोर्चा बना तो उससे भाजपा को फायदा होगा। यह के चंद्रशेखर राव, ममता बनर्जी और केजरीवाल तीनों को साझा विपक्ष की ओर से मैसेज था। स्टालिन के जन्मदिन के कार्यक्रम से कांग्रेस को साथ लेकर बनने वाले विपक्षी गठबंधन का खाका स्पष्ट हो गया है। कांग्रेस के अलावा उसकी सहयोगी डीएमके, राष्ट्रीय जनता दल और एनसीपी इसमें शामिल हैं।

वामपंथी पार्टियां और फारूख अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस भी इसमें है और एक तरह से अखिलेश यादव ने भी इसमें शामिल होने का संकेत दे दिया है, इसलिए उसके सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल साथ ही बिहार में गठबंधन सरकार चला रहे नीतीश कुमार के जनता दल (यू) को भी इसमें शामिल होने में कोई दिक्कत नहीं होगी। अगर इन सभी क्षेत्रीय पार्टियों के नेता प्रयास करे और खड़गे की बात को सामने रख कर केसीआर, ममता और केजरीवाल से बात करे तो विपक्ष का बड़ा गठबंधन भी बन सकता है।

चेन्नई के जमावड़े में एक बात यह भी उभर कर आई कि अगर स्टालिन विपक्षी एकता का प्रयास करते हैं तो वे सफल हो सकते हैं। उनके कार्यक्रम में शामिल विपक्षी नेताओं ने उनकी जम कर तारीफ की और उन्हें आगे बढ़ कर नेतृत्व करने का न्योता दिया। फारूक अब्दुल्ला ने तो उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए उपयुक्त बताते हुए उनसे राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय होने का अनुरोध किया। अखिलेश यादव ने भी स्टालिन की तारीफ की और उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर भूमिका निभाने लायक माना।

कह सकते हैं कि उनका 70वां जन्मदिन था और सारे नेता उसमें जुटे थे, इसलिए सबने उनकी तारीफ की। लेकिन तारीफ करना एक बात है और विपक्षी नेताओं के जमावड़े में राष्ट्रीय भूमिका निभाने का न्योता देना अलग बात है। स्टालिन के प्रति विपक्षी नेताओं का जैसा सद्भाव दिखा है उससे लग रहा है कि वे विपक्ष को एकजुट कर सकते हैं।

ऐसा इसलिए होगा क्योंकि उनकी कोई राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा नहीं है। वे अभी तमिलनाडु की राजनीति में ही रहना चाहते हैं। दूसरे, जिन पार्टियों को उन्होंने अपने जन्मदिन के कार्यक्रम में नहीं बुलाया उनके साथ भी उनके रिश्ते बहुत अच्छे हैं वे पिछले दिनों चंद्रशेखर राव के कार्यक्रम में शामिल भी हुए थे और 14 अप्रैल को होने वाले कार्यक्रम में भी शामिल होंगे। इसलिए अगर वे पहल करते हैं तो जैसे अखिलेश यादव को उन्होंने तैयार किया है उसी तरह बाकी नेताओं को भी कर सकते हैं।

(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं और दिल्ली में रहते हैं।)

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