अंकिता भंडारी के नाम पर कॉलेज, लेकिन स्पेशल सर्विस चाहने वाले VIP का नाम नहीं बताएगी सरकार

देहरादून। उत्तराखंड के बहुचर्चित अंकिता भंडारी हत्याकांड का एक वर्ष हो गया है। 18 सितंबर 2022 को ऋषिकेश के पास एक रिजॉर्ट में काम करने वाली अंकिता की हत्या कर दी गई थी। शुरुआती दौर में अंकिता का पता नहीं चला था। बाद में अंकिता का एक दोस्त सामने आया। उसने अंकिता के साथ हुई अपनी चैट सार्वजनिक की और कहा कि रिजॉर्ट का मालिक उस पर एक वीआईपी को स्पेशल सर्विस देने का दबाव बना रहा था। अंकिता के साफ तौर पर मना करने पर उसकी हत्या कर दी गई।

यह बात सार्वजनिक होने के बाद रिजॉर्ट के मालिक भारतीय जनता पार्टी के नेता विनोद आर्य के बेटे पुलकित आर्य और उसके दो साथियों सौरभ भास्कर और अंकित गुप्ता के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर तो लिया गया, लेकिन इस बीच कई खेल भी हुए। मामला सामने आने के बाद रिजॉर्ट के कुछ हिस्से पर रातोंरात बुलडोजर चलाया गया। सत्तापक्ष ने इसे त्वरित न्याय के रूप में प्रचारित किया, लेकिन बाद में चला कि रिजॉर्ट के केवल उस कमरे को तोड़ा गया, जिसमें अंकिता रहती थी।

इस मामले में स्थानीय भाजपा विधायक रेनू बिष्ट और एक अन्य महिला आरती गौड़ का नाम भी सामने आया। कुछ समय बाद इस रिजॉर्ट के एक हिस्से में आग भी लग गई। आरोप लगाया गया कि यह सब साक्ष्य मिटाने के इरादे से किया गया।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हाल ही में अंकिता के गांव में स्थित नर्सिंग कॉलेज का नाम अंकिता के नाम पर रखने की घोषणा की है। उनकी इस घोषणा की चौतरफा आलोचना हो रही है। कहा जा रहा है कि अंकिता के नाम पर कॉलेज का नाम रखने से बेहतर होता कि सरकार उस वीआईपी का नाम बता देती, जिसे स्पेशल सर्विस देने के लिए मना करने पर अंकिता की हत्या की गई।

यह भी पूछा जा रहा है कि क्या सरकार यह कहना चाहती है कि जब भी उनकी पार्टी का कोई नेता लड़कियों की इस तरह जघन्य हत्या करेगा तो सरकार अपने नेता को बचाएगी और दिखावे के लिए किसी शिक्षण संस्था के नाम के आगे लड़की का नाम जोड़ देगी?

अंकिता भंडारी पौड़ी गढ़वाल जिले के डोभ-श्रीकोट की रहने वाली थी। बेहद निर्धन परिवार की अंकिता ने 12वीं की पढ़ाई के बाद देहरादून से होटल प्रबंधन में 6 महीने का डिप्लोमा किया। अपने एक दोस्त की मदद से 28 अगस्त 2022 को ऋषिकेश से कुछ दूर पौड़ी जिले के गंगा भोगपुर में उसे वनन्तरा नाम के एक रिजॉर्ट में रिसेप्शनिस्ट की नौकरी मिल गई। यह रिजॉर्ट बीजेपी नेता विनोद आर्य के बेटे पुलकित आर्य का है, जो फिलहाल जेल में है।

अंकिता भंडारी (फाइल फोटो)

अंकिता को इस रिजॉर्ट में आये सिर्फ 18 दिन ही हुए थे, जब वह 18 सितंबर की शाम को अचानक गायब हो गई। उसका फोन संपर्क बंद हो गया। गांव में रह रहे अंकिता के पिता उसके गायब होने की शिकायत करने पौड़ी, मुनि की रेती और ऋषिकेश थाने में भटकते रहे, लेकिन पुलिस उन्हें क्षेत्राधिकार का मामला बताकर टालती रही। इस बीच रिजॉर्ट प्रबंधकों की ओर से राजस्व पुलिस यमकेश्वर में उसकी गुमशुदगी दर्ज की गई।

मामला पेचीदा होने के बाद केस लक्ष्मणझूला पुलिस को सौंप दिया गया। अंकिता का शव 24 सितंबर को चीला नहर के बैराज से बरामद किया गया। एम्स में शव का पोस्टमार्टम किया गया। इस बीच पूरे राज्य में इस मामले को लेकर लोग सड़कों पर आ चुके थे। अंकिता के माता-पिता और इस मामले में सामने आये लोगों ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर असंतोष जताया, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हुई। शव को श्रीनगर स्थित सरकारी अस्पताल की मोर्चरी में भेज दिया गया।

शव के श्रीनगर लाये जाने की सूचना मिलते ही 25 सितंबर को सुबह ही हजारों की संख्या में लोग अस्पताल के बाहर इकट्ठा हो गये और बदरीनाथ हाईवे जाम कर दिया। दिनभर लोग श्रीनगर में सड़क पर जमे रहे। शाम को सड़क पर बैठे लोगों को पता चला कि अंकिता के माता-पिता शव का अंतिम संस्कार करने के लिए तैयार हो गये हैं। और देर शाम शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया। बाद में पता चला कि अंकिता की मां तब तक लगभग बेहोशी की हालत में अस्पताल में भर्ती थीं। वह बेटी के शव तक को नहीं देख पाईं। आरोप लगाया गया कि पिता और भाई पर राजनीतिक दबाब डालकर अंतिम संस्कार करवाया गया।

अंकिता की हत्या के बाद क्या कुछ हुआ, इसका खुलासा देशभर की महिलाओं की एक फैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट में विस्तार से दिया गया है। इस रिपोर्ट में उठाये गये सवालों पर आने से पहले यह जानना भी जरूरी है कि इस एक वर्ष के दौरान अंकिता के माता-पिता हाईकोर्ट से लेकर कोटद्वार की स्थानीय कोर्ट तक के कई चक्कर लगा चुके हैं। हाईकोर्ट में उन्होंने मामले की सीबीआई जांच की मांग की थी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया।

राज्य सरकार ने दावा किया कि इस मामले की जांच के लिए गठित की गई एसआईटी निष्पक्ष जांच करने में पूरी तरह से सक्षम है। हालांकि ऐसा अब तक हो नहीं पाया है। इस दौरान सबसे चौंकाने वाला आरोप इस मामले में नियुक्त किये गये सरकारी वकील जितेन्द्र रावत पर लगा। आरोप है कि वे आरोपी पक्ष यानी भाजपा से निष्कासित कर दिये गये नेता विनोद आर्य के साथ सांठ-गांठ कर रहे थे। लगातार मांग के बाद सरकारी वकील जितेन्द्र रावत को इस मामले से हटाया गया।

कई सवालों का जवाब एक वर्ष बाद भी नहीं मिला है। फैक्ट फाइंडिंग टीम के अलावा इस हत्याकांड के खिलाफ लगातार आंदोलन कर रहे लोग ये सवाल उठाते रहे हैं। सबसे बड़ा और सबसे पहला सवाल यह कि वह वीआईपी कौन है, जिसे स्पेशल सर्विस देने के लिए अंकिता पर दबाव बनाया जा रहा था। 

अंकिता की हत्या के बाद राज्यभर में किये गये थे प्रदर्शन।

फैक्ट फाइंडिंग टीम की सदस्य रहीं आयसा श्रीनगर की शिवानी पांडे कहती हैं, एक साल बाद भी हमें इस बात का जवाब नहीं मिला है कि वह वीआईपी कौन था। न हमें यह जवाब मिला है कि सबूतों को खत्म करने के लिए उस रिजॉर्ट को तोड़ने की अनुमति किसने दी थी। इस सवाल का भी सरकार ने जवाब नहीं दिया है कि कार्यस्थल पर यौन अपराधों को रोकने के लिए बनाये गये नियमों को उत्तराखंड में पर्यटन के नाम पर बड़ी संख्या में बनाये जा रहे रिजॉर्ट पर क्यों लागू नहीं किया जा रहा है।

अंकिता की हत्या के बाद उत्तराखंड महिला मंच की पहल पर देशभर के अनेक महिला संगठनों की प्रतिनिधियों की फैक्ट फाइंडिंग टीम ने पूरे मामले में तथ्यों की जांच की थी। इस टीम में उत्तराखंड महिला मंच के अलावा पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज, ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वीमंस एसोसिएशन, नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वीमंस, जागोरी ग्रामीण हिमाचल, किसान अधिकार मंच, भारत ज्ञान विज्ञान समिति, कर्नाटक विलकिस बानों के साथ आदि संगठनों के साथ कई स्वतंत्र जनपक्षधर महिलाओं को शामिल किया गया था।

इस टीम ने अंकिता भंडारी के परिवार के साथ बातचीत करने के अलावा घटनास्थल का दौरा किया था, हालांकि टीम को रिजॉर्ट में जाने से वहां भारी संख्या में मौजूद पुलिस ने रोक दिया था। टीम ने आसपास रहने वाले ग्रामीणों से बातचीत करने के अलावा श्रीनगर, ऋषिकेश, देहरादून और अन्य जगहों पर इस मामले को लेकर आंदोलन करने वाले लोगों के समूहों से बातचीत की थी।

इसके अलावा टीम के सदस्य पौड़ी से लेकर देहरादून तक उन तमाम पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों से भी मिले थे, जो किसी न किसी रूप में अंकिता हत्या के मामले से जुड़े रहे हैं। टीम ने राज्य के मुख्य सचिव, डीजीपी और महिला आयोग की अध्यक्ष से भी मुलाकात की थी। इसके अलावा मृत्यु से पूर्व अंकिता भंडारी और उसके मित्र पुष्प दीप के बीच ऑनलाइन चैटिंग के आधार पर भी इस घटना का विश्लेषण किया था।

फैक्ट फाइंडिंग टीम ने फरवरी 2023 में 80 पेज की रिपोर्ट जारी की थी। यह रिपोर्ट दिल्ली और देहरादून में जारी की गई। रिपोर्ट में पूरे घटनाक्रम के साथ जिन लोगों के साथ टीम के सदस्यों ने बातचीत की, उसका पूरा विवरण दिया गया है। साथ अंकिता की हत्या को लेकर कई सवाल भी इस रिपोर्ट में उठाये गये हैं और कई सुझाव भी दिये गये हैं। लेकिन राज्य सरकार ने न तो अब तक किसी सवाल का जवाब दिया और न ही किसी सुझाव पर अमल किया।

डोभ श्रीकोट के नर्सिंग कॉलेज का नाम अंकिता के नाम पर रखने की एक घोषणा जरूर की गई, लेकिन यह घोषणा नाराज लोगों की शांत करने का प्रयास भर प्रतीत हो रही है।

अंकिता की हत्या के बाद प्रदर्शन।

फैक्ट फाइंडिंग टीम के सवाल

रिजॉर्ट के कर्मचारियों के बयानों के अनुसार हत्या से एक दिन पहले पुलकित एक घंटे तक अंकिता के कमरे में दरवाजा बंद करके रहा था। टीम ने सवाल उठाया है कि वह इस दौरान कमरे में क्या कर रहा था। यह भी सवाल उठाया गया है कि अपराध स्थल को जांच के उद्देश्य से सील क्यों नहीं किया गया? आरोप है कि मामला सामने आने के बाद भाजपा विधायक रेनू बिष्ट ने रिजॉर्ट पर बुलडोजर चलवाया था। 

टीम ने सवाल उठाया कि रेनू बिष्ट को यह अनुमति किसने दी और उसे कैसे पता चला कि अंकिता किस कमरे में रहती थी, क्योंकि वही कमरा तोड़ा गया। टीम ने रेनू बिष्ट की गिरफ्तारी न होने पर भी सवाल उठाया है। फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में सवाल उठाया गया है कि 5 फुट लंबी अंकिता कनाउ पुल के ऊंचे बैरिकेट से बैराज में कैसे गिरी? आरोपी उसे वीरभद्र इलाके में क्यों लेकर गये थे? अंकिता का शरीर 5 दिन तक बैराज में पड़ा रहा, लेकिन मछलियों ने नहीं खाया, ऐसे कैसे संभव हो सकता है?

कुछ और ज्वलंत सवाल भी इस रिपोर्ट में हैं, जिनका जवाब मिलना चाहिए था, लेकिन नहीं मिला। मसलन, मां के देखे बिना अंकिता के शव का अंतिम संस्कार क्यों किया गया? स्पेशल सर्विस चाहने वाले वीआईपी का नाम क्यों नहीं बताया जा रहा है? जिन तीन दिनों तक अंकिता गायब रही, उस दौरान मानव तस्करी प्रकोष्ठ ने क्या कदम उठाया? रेनू बिष्ट और आरती गौड़ का इस प्रकरण से क्या संबंध है? क्यों उन्होंने रिजॉर्ट के एक हिस्से पर बुल्डोजर चलवाया? अंकिता के शव के पोस्ट मार्टम के दौरान कोई महिला डॉक्टर क्यों नहीं थी?

रिपोर्ट में उत्तराखंड में महिला अपराधों के आंकड़ों के साथ पूछा गया है कि सरकार महिलाओं की सुरक्षा के लिए क्या कदम उठा रही है? लेकिन सरकार मौन है।

(त्रिलोचन भट्ट स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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