गरीब, पिछड़े, ग्रामीण अभ्यर्थियों को सिविल सेवा से बाहर रखने का कुचक्र, पीएम की चौखट तक पहुंचा मामला

यूपीएससी सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा में इस बार कुछ ऐसा हुआ है जिससे यह आशंका उत्पन्न हो रही है कि ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले छात्रों को सिविल सेवा में जाने से रोकने का कुचक्र रचा जा रहा है। अगर यह कुचक्र सफल हो गया तो आगे गरीब, पिछड़े और ग्रामीण मध्यवर्ग के अभ्यर्थियों के लिए यूपीएससी सिविल सेवा एक सपना बनकर रह जाएगी। ऐसा लग रहा है जैसे यूपीएससी चाहता है कि शहरी मध्यवर्ग के केवल तकनीकी पृष्ठभूमि वाले छात्र ही परीक्षा पास कर सकें। ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को सिविल सेवा की प्रारंभिक परीक्षा में ही बहर का रास्ता दिखने का कुचक्र किया गया है।

सांसदों ने उठाए सवाल

स्थिति की गंभीरता को केवल इस तथ्य से समझा जा सकता है कि जहां प्रतियोगी कोर्ट में पहुंच गये हैं वहीं सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा 2023 पर कई सांसदों ने भी सवाल उठाए हैं। इन सांसदों ने अपना विरोध जताने के लिए यूपीएससी को चिट्ठी लिखी है और प्रीलिम्स में सिविल सर्विसेज एप्टीट्यूड टेस्ट (CSAT) के पेपर पर सवाल खड़े किए गए हैं।

सांसदों मे आरोप लगाया है कि CSAT पेपर-2 में पैटर्न से बाहर के सवाल पूछे गए थे। इसकी जानकारी प्रतियोगी छात्रों ने की थी, जिनकी शिकायत पर सांसदों ने UPSC को चिट्ठी लिखी। सांसदों की ओर से आरोप लगाया जा रहा है कि 100 में से 47 सवाल पैटर्न से बाहर के थे। सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा 28 मई 2023 को हुई थी।

सांसदों ने मांग की है कि अनियमितता की वजह से परीक्षा के पासिंग मार्क्स घटाए जाएं। यूपीएससी से पासिंग मार्क्स 33% की जगह घटाकर 23% करने की मांग की गई है, वहीं, छात्रों की इन शिकायतों को लेकर असम की बारपेटा लोकसभा सीट से सांसद अब्दुल खालिक ने इन सभी शिकायतों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी लिखी है। इसमें ये भी कहा है कि पेपर में रीडिंग कॉम्प्रिहेंशन पैसेज को हिंदी में ट्रांसलेट करने पर पैराग्राफ के मायने स्पष्ट नहीं था, जिससे हिंदी मीडियम के छात्रों को नुकसान पहुंचा है।

छात्रों के सवाल

इसके अलावा, परीक्षा में बदलाव और अनियमितता की शिकायतों को लेकर कई छात्रों ने सवाल उठाया है। परीक्षा देने वाले कई छात्रों का कहना है कि नए पैटर्न से चयन प्रक्रिया की निष्पक्षता पर चिंताएं बढ़ गई हैं। शिकायत है कि प्रीलिम्स में सिविल सर्विसेज एप्टीट्यूड टेस्ट (CSAT) में सिलेबस से बाहर के सवाल पूछे गए। खासतौर पर मैथ्स के। जनरल स्टडीज में बड़ी तादाद में ऐसे सवाल थे जो छात्रों के ज्ञान के अलावा उन्हें किस्मत के भरोसे छोड़ते हैं। इसे लेकर एक याचिका भी दिल्ली हाईकोर्ट में दी गई है।

यूपीएससी सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा का दूसरा पेपर, जिसे सिविल सर्विसेज एप्टीट्यूड टेस्ट (CSAT) कहा जाता है, इतना कठिन निकला कि, तकनीकी छात्र भी गणित के सभी प्रश्न हल नहीं कर सके। प्रतियोगियों का आरोप है कि CSAT परीक्षा कभी इतनी कठिन नहीं रही। ऐसा लगभग लगता है जैसे यूपीएससी चाहता है कि केवल तकनीकी पृष्ठभूमि वाले छात्र ही परीक्षा पास कर सकें। यदि वर्तमान गणित के प्रश्नों को हल करने में एक मिनट के बजाय पांच मिनट लगते, तो कोई गैर-तकनीकी पृष्ठभूमि वाला छात्र उन्हें हल करने में सक्षम नहीं होता। कई यूपीएससी उम्मीदवारों ने दावा किया है कि क्वालीफाइंग पेपर सीएसएटी अपनी बनावट में विषम था और गणित के प्रश्नों की ओर बहुत अधिक झुका हुआ था।

छात्रों ने कैट में दायर की याचिका

8 जून को, 4,000 से अधिक पीड़ित छात्रों के एक समूह ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की जो सार्वजनिक सेवाओं में नियुक्त व्यक्तियों की भर्ती और सेवा की शर्तों के संबंध में विवादों और शिकायतों के न्याय निर्णयन के लिए स्थापित एक प्रणाली है। उनकी मांग थी कि इस साल पेपर के लिए कट ऑफ 33 प्रतिशत से घटाकर 23 प्रतिशत किया जाए।

छात्रों ने दावा किया कि 80 प्रश्नों में से, पेपर में 25-30 से अधिक प्रश्न अंकों और गणितीय अनुप्रयोग-आधारित समस्या समाधान पर बहुत अधिक निर्भर थे। CSAT पेपर- जिसमें तर्क और तर्क, पढ़ने की समझ, बुनियादी संख्यात्मकता आदि जैसे कई विषयों के बीच प्रश्न विभाजित होते हैं- में ‘अंक’ शब्द का 33 बार और ‘अंक’ शब्द का 14 बार उल्लेख किया गया था। परीक्षा में पूछे गए प्रश्न कक्षा 10 के गणित के अनिवार्य कठिनाई स्तर की पाठ्यक्रम सामग्री से परे संभाव्यता, क्रमपरिवर्तन और संयोजन और संख्या प्रणाली के विषयों पर थे।

केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) ने शुक्रवार को यूपीएससी प्रीलिम्स 2023 परीक्षा के परिणाम पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, लेकिन सीएसएटी के लिए कट ऑफ को 33% से घटाकर 23% करने की मांग वाली याचिका पर संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को नोटिस जारी किया। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि प्रश्नों का कठिनाई स्तर आईआईटी-जेईई, कैट के समान था। मामला अब 6 जुलाई 2023 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है।

याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि यदि वह कट-ऑफ अंकों में छूट नहीं दे सकता है तो ट्रिब्यूनल को आयोग को सिविल सेवा परीक्षा (सीएसई) 2023 की प्रारंभिक परीक्षा के पेपर II (सीएसएटी) के लिए फिर से परीक्षा आयोजित करने का निर्देश देना चाहिए। कैट ने तर्क दिया है कि यूपीएससी पाठ्यक्रम के अनुसार, सीएसएटी को उम्मीदवारों की सामान्य योग्यता का परीक्षण करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, और उनसे दसवीं कक्षा के स्तर पर समझ, तार्किक तर्क आदि से संबंधित बुनियादी प्रश्नों को हल करने की क्षमता रखने की उम्मीद की जाती है।

याचिका में दावा किया गया है कि उपलब्ध पाठ्यक्रम के विपरीत जाकर, यूपीएससी एक ऐसा पेपर लेकर आया है, जिसे केवल गणित (दसवीं कक्षा स्तर) का बुनियादी ज्ञान रखने वाला कोई भी व्यक्ति पास नहीं कर सकता है क्योंकि प्रश्नों का कठिनाई स्तर कैट आईआईटी जेईई परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों के समान थे।

याचिका के अनुसार, यूपीएससी द्वारा आयोजित पेपर II (सीएसएटी) न केवल पाठ्यक्रम से बाहर था, बल्कि यह साधारण पृष्ठभूमि के उम्मीदवारों के लिए भी भेदभावपूर्ण है, जो विशेष कोचिंग नहीं ले सकते या ग्रामीण क्षेत्रों से या कला स्ट्रीम से हैं। आवेदकों ने यह भी कहा है कि इस साल एक विषय से कम से कम 10 प्रश्न पूछे गए थे, जो ग्यारहवीं कक्षा एनसीईआरटी गणित पाठ्यक्रम का एक हिस्सा है, और प्रश्न आईआईटी-जेईई या कैट से पिछले वर्षों की परीक्षाओं से भी लिए गए थे।

याचिका में तर्क दिया गया कि जब एक क्वालीफाइंग पेपर को इतना कठिन बना दिया जाता है तो इसमें उम्मीदवारों को इस आधार पर बाहर कर दिया जाता है कि इसका परीक्षा के उद्देश्य से कोई संबंध नहीं है, क्योंकि इस परीक्षा में ऐसे प्रश्न शामिल हैं जो पाठ्यक्रम से बाहर हैं और ऐसे प्रश्न हैं जो दसवीं कक्षा के स्तर के नहीं हैं। इसकी जांच एक विशेषज्ञ समिति द्वारा की जा सकती है और फिर समिति की सिफारिशों के आधार पर इन सवालों के संबंध में आगे की कार्रवाई की जाएगी।

याचिका में कहा गया है कि यूपीएससी द्वारा आयोजित पेपर II (सीएसएटी) न केवल पाठ्यक्रम से बाहर है, बल्कि यह विभिन्न श्रेणियों के उम्मीदवारों के लिए भी भेदभावपूर्ण है, यानी, विनम्र पृष्ठभूमि के उम्मीदवार जो विशेष कोचिंग नहीं ले सकते, ग्रामीण पृष्ठभूमि के उम्मीदवार, कला / मानविकी के उम्मीदवार और यहां तक कि उन शहरी उम्मीदवारों के लिए भी जिन्होंने उच्च स्तरीय गणित का अध्ययन नहीं किया है।

दिल्ली हाईकोर्ट ने कैट से शीघ्र निर्णय लेने को कहा

इस बीच दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) से यूपीएससी द्वारा आयोजित सिविल सेवा एप्टीट्यूड टेस्ट (सीएसएटी) के भाग 2 में उत्तीर्ण होने के लिए कट ऑफ अंक 33 प्रतिशत से घटाकर 23 प्रतिशत करने की मांग वाली याचिका पर शीघ्र निर्णय लेने को कहा है।

जस्टिस सी हरि शंकर और जस्टिस मनोज जैन की अवकाश पीठ ने कोई भी अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया और उम्मीदवारों के एक समूह द्वारा कैट के 9 जून के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका का निपटारा कर दिया, जिसमें उन्हें किसी भी अंतरिम राहत से इनकार कर दिया गया था। पीठ ने कहा कि कैट से अनुरोध है कि वह ओए (मूल आवेदन) पर यथाशीघ्र फैसला करे। कहने की जरूरत नहीं है, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुसार। याचिका का निपटारा किया जाता है।

अंतरिम राहत की मांग करते हुए, याचिकाकर्ताओं ने कहा कि मामला तत्काल प्रकृति का है और परिणाम पर रोक लगाना सार्वजनिक हित में होगा क्योंकि लाखों अन्य उम्मीदवार भी प्रभावित होंगे।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील साकेत जैन ने कहा कि 9 जून को कैट ने कट ऑफ अंक कम करने की मांग वाली याचिका पर नोटिस जारी किया था, लेकिन कोई अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया था और मामले को 6 जुलाई को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है। इसके बाद अभ्यर्थियों ने ट्रिब्यूनल के आदेश को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और कहा कि मामला 6 जुलाई तक निरर्थक हो जाएगा। याचिका में प्रार्थना की गई कि यूपीएससी को 12 जून को घोषित प्रारंभिक परीक्षा परिणामों पर आगे कोई कार्रवाई करने से रोका जाए।

उच्च न्यायालय ने कहा कि पूरी परीक्षा और भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगाने की प्रार्थना स्वीकार नहीं की जा सकती। पीठ ने कहा कि ट्रिब्यूनल ने आपके मामले को खारिज नहीं किया है। इसने आपके ओए पर नोटिस जारी किया है। मामला अब 6 जुलाई को सूचीबद्ध है। कोई भी अदालत पूरे सीएसई 2023 पर रोक लगाने का आदेश पारित नहीं करेगी। यह एक पूर्व-प्रार्थना प्रार्थना है जो नहीं हो सकती मंजूर किया जाए। सुप्रीम कोर्ट के ढेरों फैसले हैं ।

पीठ ने कहा कि कैट ने उनकी याचिका खारिज नहीं की है और अदालत की कोई भी प्रतिकूल टिप्पणी ट्रिब्यूनल में याचिकाकर्ताओं के मामले को प्रभावित करेगी। इसमें कहा गया कि ऐसे फैसले हैं जो कहते हैं कि अदालतों को प्रश्नपत्रों को नहीं देखना चाहिए।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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