नई दिल्ली। दिल्ली में हुई कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में पार्टी ने कई महत्वपूर्ण प्रस्ताव पास किए। उसने अपने एक फैसले में सत्ता में आने के बाद जातीय जनगणना को पूरे देश में करवाने का संकल्प जाहिर किया। इसके साथ ही उसने शिक्षण संस्थाओं में एससी-एसटी और ओबीसी कोटे को 50 फीसदी से ज्यादा करने का वादा किया। इतना ही नहीं बिहार के जातिवार सर्वे का स्वागत करते हुए पार्टी ने रोहिणी कमीशन की संस्तुतियों को लागू करने की बात कही। इसके अलावा एक दूसरे प्रस्ताव में पार्टी ने लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण को सुनिश्चित करना और उसमें ओबीसी महिलाओं के कोटे की गारंटी करने का प्रस्ताव पास किया।
जाति जनगणना के प्रस्ताव में कहा गया है कि सीडब्ल्यूसी “सामान्य रूप से होने वाली दशकीय जनगणना-जो कि 2021 में ही होनी चाहिए थी-के तहत राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना करवाने की भी गारंटी देती है”।
महिला आरक्षण मामले में वर्किंग कमेटी का कहना था कि लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण को जल्द से जल्द लागू किया जाएगा। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के साथ ही साथ OBC समुदायों की महिलाओं के लिए भी इसमें पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाएगा। मोदी सरकार द्वारा लगाई गई जनगणना और परिसीमन की अनावश्यक बाधाओं को तुरंत हटाएंगे।
इस मौके पर पार्टी ने बिहार की जनगणना का स्वागत किया और कहा कि पार्टी बिहार सरकार द्वारा राज्य में कराए गए जाति आधारित सर्वे के नतीजे जारी करने का स्वागत करती है। सर्वे में सामने आए आंकड़ों में प्रतिनिधित्व और जनसंख्या में हिस्सेदारी के बीच जो असमानता दिख रही है, वो सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने की तत्काल आवश्यकता को सामने लाती है। CWC OBC के भीतर उप-वर्गीकरण के जस्टिस रोहिणी आयोग के उद्देश्य का भी स्वागत करती है, लेकिन साथ ही साथ यह रेखांकित करती है कि विभिन्न समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर विस्तृत डेटा के बिना यह अधूरा होगा। यह डेटा वर्ष 2011 की सामाजिक, आर्थिक और जाति जनगणना से प्राप्त किया जा सकता है, जिसके आंकड़े अभी तक जारी नहीं किए गए है। इस डेटा को प्राप्त करने का दूसरा तरीका अद्यतन जाति जनगणना है। साथ ही इसके सिलसिले को और आगे बढ़ाते हुए सीडब्ल्यूसी ने कहा कि जनसंख्या के अनुरूप हिस्सेदारी के लिए कानून के माध्यम से OBC, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण के लिए 50% की सीमा को हटाएगी।
एक अन्य महत्वपूर्ण प्रस्ताव में पार्टी ने न्यूज़क्लिक से जुड़े पत्रकारों के घरों पर छापे की कड़े शब्दों में निंदा की है। प्रस्ताव में कहा गया है कि “CWC दर्जनों पत्रकारों और लेखकों के घर मोदी सरकार द्वारा की गई छापेमारी और उनके ख़िलाफ़ आतंकवाद विरोधी कानूनों के इस्तेमाल की घोर निंदा करती है। सरकार द्वारा फैलाए गए षड्यंत्र के सिद्धांत तो वास्तव में उसकी ही अविस्मरणीय हिप्पोक्रेसी को सामने लाते हैं। चाहे वह चीनी कंपनियों से पीएम केयर्स फंड में दान स्वीकार करने का मामला हो या चीन की सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों से निवेश स्वीकार करना हो, चाहे चीन से बढ़ते आयात को नियंत्रित करने में उसकी असमर्थता हो या सबसे शर्मनाक – प्रधानमंत्री द्वारा 19 जून, 2020 को चीन को दी गई क्लीन चिट हो, जब उन्होंने हमारी सीमा में सभी चीनी अतिक्रमणों से इंकार कर दिया था। ये सारे तथ्य चीन के मामले में मोदी सरकार के पाखंड को दिखाते हैं”।
इसमें आगे कहा गया है कि यह मोदी सरकार द्वारा कानून के दुरुपयोग और सवाल पूछने वालों के ख़िलाफ़ केंद्रीय एजेंसियों को छोड़ देने का और भी ज़्यादा भयावह रूप है। देश भर में विपक्षी दलों के नेताओं को जिस तरह परेशान किया जा रहा है, वो तो पहले से ही सबके सामने है। ज़ोर ज़बरदस्ती के साथ की गई इस तरह की कार्रवाई स्वतंत्र प्रेस को नुक़सान पहुंचाती है एवं सरकार को जवाबदेह ठहराने के लिए नागरिकों, पत्रकारों और राजनेताओं के मौलिक अधिकारों में बाधा डालती है। साथ ही दुनिया भर में एक लोकतंत्र के रूप में भारत की साख को नीचे गिराती है। सीडब्ल्यूसी ने कहा कि प्रधानमंत्री और भाजपा ने पोलिटिकल डिस्कोर्स का स्तर इतना नीचे गिरा दिया है कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के ख़िलाफ़ हिंसा के लिए उकसाने और भड़काने के उद्देश्य से ऑफिशियल पोस्टर बनाए जा रहे हैं। कुछ ऐसा ही अभियान नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी और स्वतंत्रता आंदोलन के वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं के ख़िलाफ़ चलाया था।
CWC को इस बात का स्पष्ट अंदेशा है कि मोदी सरकार पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों एवं 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले ऐसे हमले और ज़्यादा करेगी, लेकिन देश अब इन हथकंडों से डरने वाला नहीं है। मणिपुर के मसले पर भी उसने विचार किया। और पार्टी के प्रस्ताव में कहा गया है कि CWC मणिपुर में जारी मानवीय त्रासदी और वहां की संवैधानिक सरकार के पूरी तरह से विफल होने पर गहरी पीड़ा व्यक्त करती है। पांच महीने से अधिक समय के बाद भी प्रधानमंत्री ने मणिपुर और वहां के लोगों को उनके हाल पर छोड़ रखा है। वह अपनी ज़िम्मेदारियों से भाग रहे हैं। सशस्त्र भीड़ की धमकियों और सतर्कता के बढ़ते मामलों के साथ राज्य में हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं। केंद्र सरकार समुदायों के बीच विभाजन को ख़त्म में पूरी तरह से नाकाम रही है। मणिपुर में संवैधानिक तंत्र ध्वस्त हो चुका है।
CWC इस खौफ़नाक संकट को हल करने के लिए सबसे पहले कदम के रूप में मुख्यमंत्री को तत्काल हटाने और राष्ट्रपति शासन लगाने की अपनी पिछली मांगों को दोहराती है। फिलिस्तीन मसले पर पार्टी ने अपना विचार रखा है। सीडब्ल्यूसी के प्रस्ताव में कहा गया है कि CWC मिडिल ईस्ट में छिड़े युद्ध और हज़ार से अधिक लोगों के मारे जाने पर गहरा दुःख और पीड़ा व्यक्त करती है। CWC फिलिस्तीनी लोगों के ज़मीन, स्वशासन और आत्म-सम्मान एवं गरिमा के साथ जीवन के अधिकारों के लिए अपने दीर्घकालिक समर्थन को दोहराती है। CWC तुरंत युद्धविराम और वर्तमान संघर्ष को जन्म देने वाले अपरिहार्य मुद्दों सहित सभी लंबित मुद्दों पर बातचीत शुरू करने का आह्वान करती है।
हाल में हुई सिक्किम त्रासदी के मसले पर पार्टी ने कहा कि CWC सिक्किम और दार्जिलिंग, कलिम्पोंग एवं कुर्सियांग हिल्स के लोगों के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करती है, जहां आए भयंकर सैलाब के कारण भारी नुक़सान हुआ है। सेना के जवान समेत कई लोगों की मृत्यु बेहद दुखद है। जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसी आपदाओं की पुनरावृत्ति से बचने के लिए CWC पारिस्थितिक रूप से बेहद नाज़ुक हिमालयी क्षेत्रों में विश्वसनीय और संपूर्ण पर्यावरणीय प्रभाव आकलन के महत्व पर ज़ोर देती है। CWC केंद्र सरकार से सिक्किम और उत्तरी बंगाल के पहाड़ी क्षेत्रों को सभी ज़रूरी सहायता प्रदान करने की अपील करती है। साथ ही पक्षपातपूर्ण राजनीति से ऊपर उठकर हिमाचल प्रदेश में पिछले महीने आई त्रासदी को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की अपनी मांग को दोहराती है।
(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)
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