नई दिल्ली/पटना। बिहार की नीतीश सरकार ने बहुत सालों से प्रतीक्षारत जाति जनगणना के आंकड़ों को घोषित कर दिया है। आंकड़ों के मुताबिक सूबे की कुल जनसंख्या में ओबीसी और ईबीसी की संख्या 63 फीसदी है।
डेवलपमेंट कमिश्नर विवेक सिंह की ओर से जारी आकड़ों के मुताबिक राज्य की कुल जनसंख्या 13.07 करोड़ है। जिसमें ईबीसी जिसकी आबादी का प्रतिशत 36 फीसदी है, सबसे बड़ी जनसंख्या वाला सामाजिक तबका है। और इसकी संख्या 47080514 है। उसके बाद 27.13 फीसदी के साथ ओबीसी दूसरे नंबर पर आता है। और इसकी संख्या 35463936 है।
टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक अनुसूचित जाति की आबादी का प्रतिशत 19.7 है जबकि सूबे में महज 1.7 फीसदी अनुसूचित जनजाति के लोग रहते हैं। जबकि सामान्य वर्ग की आबादी का प्रतिशत 15.5 है।
किसी एक खास जाति के प्रतिशत के हिसाब से बात की जाए तो यादवों की आबादी सबसे ज्यादा है। आंकड़ों के मुताबिक सूबे में 14.27 फीसदी यादव हैं।
गौरतलब है कि पिछले साल ही यह सर्वे शुरू किया गया था और उस समय पीएम मोदी ने जाति के आधार पर जनगणना कराने से इंकार कर दिया था।
जातियों के हिसाब से अगर नजर डाली जाए तो कुर्मी जाति का प्रतिशत 2.87 है। कुशवाहा जाति 4.21, राजपूत 3.41, ब्राह्मण 3.65, कायस्थ .6011, तेली 2.81, भूमिहार 2.86, धानुक 2.13, सुनार .68, कुम्हार 1.04, मुसहर 3.08, बढ़ई 1.45, नाई 1.59 फीसदी हैं। जबकि मुसलमानों की आबादी का प्रतिशत 17.7 है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि “जाति आधारित गणना के लिए सर्वसम्मति से विधानमंडल में प्रस्ताव पारित किया गया था। बिहार विधानसभा के सभी 9 दलों की सहमति से निर्णय लिया गया था कि राज्य सरकार अपने संसाधनों से जाति आधारित गणना कराएगी एवं दिनांक 02-06-2022 को मंत्रिपरिषद से इसकी स्वीकृति दी गई थी। इसके आधार पर राज्य सरकार ने अपने संसाधनों से जाति आधारित गणना कराई है। जाति आधारित गणना से न सिर्फ जातियों के बारे में पता चला है बल्कि सभी की आर्थिक स्थिति की जानकारी भी मिली है। इसी के आधार पर सभी वर्गों के विकास एवं उत्थान के लिए अग्रेतर कार्रवाई की जाएगी। बिहार में कराई गई जाति आधारित गणना को लेकर शीघ्र ही बिहार विधानसभा के उन्हीं 9 दलों की बैठक बुलाई जाएगी तथा जाति आधारित गणना के परिणामों से उन्हें अवगत कराया जाएगा”।
बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा, “हमारी शुरू से मांग रही है कि जाति आधारित जनगणना हो…आज जाति आधारित सर्वेक्षण का वैज्ञानिक डेटा जारी किया गया है…सरकार बनने के बाद कम समय में हमने जानकारी इकट्ठा की और आज ऐतिहासिक दिन पर ऐतिहासिक काम हमने किया है…हम वैज्ञानिक आंकड़ों के आधार पर कल्याणकारी योजनाएं लाने का प्रयास करेंगे।”
आरजेडी मुखिया लालू यादव ने कहा कि “विचार पर अड़िग थे, है और रहेंगे। वंचितों को अपने हक-अधिकार के लिए दशकों और युगों तक बहुत संघर्ष व त्याग करना पड़ता है तब जाकर कुछ अधिकार प्राप्त होता है”।
उन्होंने आगे कहा कि “आज गांधी जयंती पर हम सभी इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बने हैं। भाजपा की तमाम साजिशों, कानूनी अड़चनों और तमाम साजिशों के बावजूद आज बिहार सरकार ने जाति आधारित सर्वे जारी कर दिया। ये आंकड़े वंचितों, उपेक्षितों और गरीबों के समुचित विकास और प्रगति के लिए समग्र योजना बनाने और आबादी के अनुपात में वंचित समूहों को प्रतिनिधित्व देने में देश के लिए एक उदाहरण स्थापित करेंगे”।
इस पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कांंग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि मैं हमेशा से इसका समर्थन करता रहा हूं। अगर हम यहां सत्ता में आते हैं तो हम मध्य प्रदेश में भी जाति आधारित जनगणना करेंगे।
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कहा कि “बिहार की जातिगत जनगणना से पता चला है कि वहां OBC + SC + ST 84% हैं। केंद्र सरकार के 90 सचिवों में सिर्फ़ 3 OBC हैं, जो भारत का मात्र 5% बजट संभालते हैं! इसलिए, भारत के जातिगत आंकड़े जानना ज़रूरी है। जितनी आबादी, उतना हक़ – ये हमारा प्रण है”।
भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि बिहार में जाति आधारित सर्वे का रिलीज किया जाना स्वागतयोग्य कदम है, इससे न केवल विभिन्न जातियों की सही-सही संख्या का पता चला है बल्कि उनकी आर्थिक स्थितियों की भी जानकारी प्राप्त हुई है। 1931 के बाद किसी राज्य ने पहली बार जाति आधारित गणना करवाया गया है। बिहार ने जो कदम उठाया है हमें उम्मीद है कि देश के दूसरे राज्य भी इस पर सकारात्मक तरीके से आगे बढ़ेंगे।
ये आंकड़े सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित, उपेक्षित तबकों और गरीबों के समुचित विकास हेतु समग्र नीतियां बनाने और उनकी आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व प्रदान करने में सहायक सिद्ध होंगे। हमारी उम्मीद है कि बिहार सरकार इस मामले में त्वरित कदम बढ़ाएगी।
उन्होंने यह भी कहा कि बिहार विधान मंडल में सर्वसम्मति से जाति गणना कराने का फैसला लिया गया था। लेकिन इसे रोकने के लिए भाजपा ने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तरीके से एड़ी-चोटी का परिश्रम किया, बार-बार कानूनी अड़चनें खड़ी की गईं लेकिन उसकी साजिश कामयाब नहीं हो पाई और आज सर्वे की रिपोर्ट हम सबके सामने है। हमारी मांग है कि केंद्र सरकार इसी तरह की गणना अविलंब करवाए, ताकि देश के स्तर पर उत्पीड़ित समुदाय की सामाजिक व आर्थिक स्थितियों का सही-सही पता लगाया जा सके।
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