Friday, April 26, 2024

राजधानी में इमरजेंसी! केंद्र ने दिया पुलिस को अकूत अधिकार

नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली में अपने किस्म की इमरजेंसी लग गयी है। लेफ्टिनेंट गवर्नर अनिल बैजल ने दिल्ली के पुलिस कमिश्नर को यह अधिकार दे दिया है कि वो अगले तीन महीनों यानी 19 जनवरी से 18 अप्रैल के बीच किसी को भी एनएसए के तहत गिरफ्तार कर सकते हैं। आपको बता दें कि एनएसए वह प्रावधान है जिसके तहत गिरफ्तारी होने पर एक साल तक जमानत का कोई प्रावधान नहीं है। गर्वनर ने यह आदेश 13 जनवरी को जारी किया है।

इसके तहत किसी शख्स को बगैर किसी आरोप के 12 महीने तक हिरासत में रखा जा सकता है। इसके साथ ही उस शख्स को गिरफ्तारी के 10 दिनों तक उसको गिरफ्तारी के पीछे के कारणों की कोई सूचना भी दिए जाने की जरूरत नहीं है।

हिरासत में लिया गया शख्स केवल हाईकोर्ट के एडवाइजरी बोर्ड के सामने अपील कर सकता है लेकिन ट्रायल के दौरान उसे किसी एडवोकेट की सहायता लेने की इजाजत नहीं होगी।

और अगर शासन को लगता है कि कोई पुरुष या महिला राष्ट्रीय सुरक्षा तथा कानून और व्यवस्था के लिए खतरा है तब उसे महीनों हिरासत में रखने के लिए प्रशासन स्वतंत्र है। संबंधित राज्य सरकार को केवल इस बात की सूचना दे दी जाएगी कि फलां शख्स एनएसए के तहत हिरासत में है।

गवर्नर का आदेश उस समय आया है जब पूरी राजधानी सीएए और एनआरसी जैसे सरकार के प्रावधानों के खिलाफ उबाल पर है। और जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।

और एक ऐसे समय में जबकि दिल्ली के लोग लोकतंत्र के सर्वोच्च पर्व चुनाव में हिस्सेदारी कर रहे हैं।

हालांकि दिल्ली पुलिस का कहना है कि यह एक रूटीन आर्डर है और हर तिमाही पर जारी कर दिया जाता है।

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि “इसमें नया कुछ भी नहीं है। इस तरह के आदेश हर तीन महीने पर दिए जाते हैं जो पुलिस कमिश्नर को किसी भी शख्स को एनएसए के तहत किसी को हिरासत में लेने का अधिकार देते हैं।”

एक दूसरे अफसर ने “दि प्रिंट” को बताया कि “इस कानून के तहत पुलिस चीफ और जिला मजिस्ट्रेट को यह अधिकार होता है। यह हमेशा उनके पास होता है लेकिन अपवाद स्वरूप ही उनका इस्तेमाल किया जाता है।”

14 जनवरी को इसी तरह का एक आदेश आंध्रप्रदेश में भी जारी किया गया है।

राष्ट्रीय सुरक्षा कानून की आलोचना क्यों होती है और यह सामान्य हिरासत से कैसे अलग है:

सामान्य परिस्थितियों में जब एक शख्स को गिरफ्तार किया जाता है तो उसे कुछ निश्चित बुनियादी अधिकार हासिल होते हैं। इसमें उसे किस लिए गिरफ्तार किया गया है उसका कारण बताना जरूरी है। सीआरपीसी की धारा 50 में यह प्रावधान है कि हिरासत में लिए गए शख्स को यह सूचना दी जानी चाहिए कि उसे किस कारण से हिरासत में लिया गया है। इसके अलावा उसको जमानत हासिल करने का भी अधिकार है।

इसके साथ ही सेक्शन 56 और 76 के तहत प्रावधान है कि गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर उसे कोर्ट के सामने पेश किया जाना चाहिए। इसके साथ ही संविधान का आर्टिकल 22(1) कहता है कि एक गिरफ्तार शख्स को अपने वकील से संपर्क करने और उससे कानूनी मदद लेने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।

लेकिन एनएसए में इस तरह का कोई भी अधिकार उपलब्ध नहीं होगा।

एक शख्स को बगैर कोई कारण बताए अंधेरे में 5 दिनों तक हिरासत में रखा जा सकता है। और अपवाद स्वरूप स्थितियों में यह मियाद 10 दिन तक बढ़ायी जा सकती है।

गिरफ्तार शख्स एडवोकेट या फिर किसी इस तरह की कानूनी सहायता पाने का हकदार नहीं होगा। साथ ही एनएसए मामलों की सुनवाई के लिए सरकार अलग से एडवाइजरी बोर्ड गठित करेगी।

दिलचस्प बात यह है कि नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) जो राष्ट्रीय स्तर पर अपराधों के डेटा इकट्ठा करने का काम करता है उसको एनएसए के तहत दर्ज मामलों को गिनने का अधिकार नहीं है। इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर इसके तहत होने वाली कार्रवाइयों का कोई डेटा नहीं है।

जनवरी 2019 में यूपी की बीजेपी सरकार ने गोबध के आरोप में बुलंदशहर में तीन शख्स को एनएसए के तहत गिरफ्तार किया था।

एक दूसरी घटना में मणिपुर के पत्रकार किशोर चंद्र वांगखेम को फेसबुक पर आपत्तिजनक पोस्ट लिखने के चलते 12 महीनों के लिए एनएसए के तहत गिरफ्तार किया गया था।

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