Friday, April 19, 2024

ग्राउंड रिपोर्टः कूड़े के ढेर से रोटी का जुगाड़, वर्षों से झुग्गियों में कट रही जिंदगी

देवरिया। सर्द मौसम में हाड़ कंपाती ठंड में सुबह के छह बज रहे थे। मैली-कुचली साड़ी में एक अधेड़ महिला मोहल्ले की सड़कों के किनारे बिखरे कचरे में कुछ ढूंढ़ते नजर आती है। कुछ पल में ही यह समझ आ जाता है कि वह कचरों में से प्लास्टिक, बोतल, लोहा समेत कबाड़ के समान चुन रही है। एक डंडे के सहारे कचरों को फैलाकर अपने काम के सामान को अपने पीठ पर रखे बोरे में डालते हुए बढ़ती चली जा रही थी।

यह वाकया है उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद मुख्यालय के भुजौली मोहल्ले का। प्रतिकूल मौसम में रोटी की जुगाड़ में निकली महिला के इस कार्य को देख जनचौक के संवाददाता ने आगे बढ़कर जब उस महिला से उसका परिचय पूछते हुए उसके दिनचर्या को जानना चाहा, तो जवाब सुनकर हैरान रह गया। इस महिला ने अपना नाम विद्यावती बताया, जो बिहार के सुपौल जिले के किशनपुर की रहनेवाली है। विद्यावती ने कहा कि, “सामान्य दिनों में सुबह चार बजे घर से निकलती हूं व दिन के आठ से नौ बजे तक घर लौट पाती हूं।”

कूड़ा उठाने वाला
कूड़ा उठाने वाला

कहने का मतलब कि इतने समय में कबाड़ से बोरा भर जाता है। इसके बाद इसका पति कुबेर घर से बोरा लेकर इसी काम से निकलता है, जो दोपहर बाद बोरा भर जाने पर अपने घर को आता है। ऐसे ही न जाने कितने परिवार हर दिन रोटी के जुगाड़ में कूड़ों के ढेर में अपना वक्त गुजारते हैं।

विद्यावती के मुताबिक एक दिन में चार सौ से पांच सौ तक की कमाई हो जाती है। ऐसी ही आमदनी उसके पति की भी होती है। विद्यावती इस काम में अपने बच्चों को नहीं लगाना चाहती है। वह कहती है, बच्चों को ऐसा पढ़ाना चाहती हूं कि वे आगे चलकर अपने पैरों पर खड़े होकर बेहतर जिंदगी जीयें। इस काम में अपनी जरूरत की अच्छी आमदनी हो जाती है, पर गंदगी में रहने के चलते मेरे जैसे लोगों के परिवारों को आम आदमी अपने करीब आने नहीं देना चाहते।

विद्यावती समेत ऐसे पचास से अधिक परिवार देवरिया रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर एक से करीब पश्चिम दिशा की ओर झुग्गियों में रहते हैं जहां गंदगी के बीच दमघोंटू जिंदगी जीना इनकी नियति सी बन गई है। खास बात यह है कि इनका यह कोई स्थाई ठिकाना नहीं है। कभी भी रेलवे का बुलडोजर इनके घरों को रौंद सकता है। लिहाजा इनका आश्रय स्थल समय समय पर बदलता रहता है।

बिहार के बाढ़ ने बना दी खानाबदोश जिंदगी

यूपी के देवरिया के रेलवे स्टेशन के करीब का इलाका हो या गोरखपुर के राजधाट का। इसके अलावा कुशीनगर, बस्ती, महराजगंज समेत पूर्वांचल के विभिन्न जिलों के शहरी इलाकों में झुग्गियों में रहनेवाले ऐसे परिवारों की बड़ी संख्या है। जहां ये एक साथ रहते हैं। हालांकि इनके ठिकाने भी बदलते रहते हैं। रेलवे या अन्य सार्वजनिक जमीनों पर झोपड़ी डालकर रहनेवाले ऐसे परिवारों का मूल कार्य कबाड़ चुनना है। इन परिवारों में से अधिकांश बिहार के कोशी क्षेत्र के हैं। जहां प्रत्येक वर्ष आनेवाले बाढ़ में तबाही झेलना इनकी मजबूरी है। इनके घर समेत खेत तक नदी में समा चुके हैं। ये हालात ही इन्हें खनाबदोश बना दिया है।

सहरसा जिले के बनवा इटरही थाना के सरबेला निवासी पंकज मल्लाह कहते हैं कि बाढ़ में सब कुछ गंवाने के बाद पलायन करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता है। सरकार पुनर्वास की बात तो करती है, पर जमीनी पहल के बजाए यहां कागजों पर अधिक होता है। घर परिवार में शादी जैसे आयोजनों पर ही गांव से नाता रहता है, शेष दिन रोटी के तलाश में परदेश में वक्त गुजारना मजबूरी है।

अक्षर ज्ञान तक अधिकांश बच्चों की पढ़ाई

मलिन बस्तियों में रहनेवाले इन लोगों के परिवार के बच्चे स्कूलों में भी अपने को अलग- थलग समझते हैं। रेलवे स्टेशन से सटे अबूबकर नगर व अलीनगर स्थित सरकारी स्कूल में ये अधिकांश बच्चे पढ़ते हैं। शहरी क्षेत्र के इन स्कूलों में सामान्य परिवारों के बच्चों के बजाए गरीबों के ही अधिकांश बच्चे यहां पढ़ने आते हैं। इनमें भी मलिन बस्तियों के बच्चों के साथ अन्य बच्चे खेलना नहीं चाहते। पंकज की बेटी चंदा से दो का पहाड़ा पूछने पर वह बता नहीं पाती है। ऐसी ही स्थिति अन्य बच्चों में भी दिखती है। बातचीत के क्रम में झुग्गी की महिलाओं ने कहा कि बच्चों का सरकारी स्कूल में नामांकन है। जहां दोपहर के भोजन की गांरटी हो जाती है। सुपौल जिले के किशनपुर के रमेश की पत्नी शुभावती कहती हैं कि पढ़ाई की स्थिति यह है कि बच्चे किसी तरह पढ़ना व लिखना जान जाते हैं। विद्यालय के अन्य बच्चों के साथ हमारे बच्चों का बैठ कर पढ़ना उनके अभिभावक भी पसंद नहीं करते हैं। प्राइवेट स्कूलों की बड़ी फीस देने की स्थिति हमारी नहीं है।

झुग्गी वालों को पक्का मकान बना सपना

आम लोगों के लिए जो कचरे का सामान है, वह सामान ही झुग्गी में रहने वालों इन परिवारों के लिए आय का जरिया है। कबाड़ चुनकर रोटी का इंतजाम करने वाले इन परिवारों को सरकार से पक्का मकान मिलने की एक उम्मीद जगी थी। मायावती के मुख्यमंत्रीकाल में देवरिया जिला मुख्यालय के पुलिस लाइन, मेहड़ा पुरवा के अलावा लार व मझौलीराज में ही कांशीराम आवास योजना के तहत पक्का मकान बने हैं। लेकिन अधिकांश लोगों की शिकायत है कि यहां पात्र परिवारों को अवास मिलने के बजाए मनमाने तरीके से अपात्रों को आवंटित कर दिया गया।

लिहाजा अधिकांश जरूरतमंद परिवार अभी भी इंतजार में हैं। देवरिया सदर रेलवे स्टेशन के पश्चिम कबाड़ बस्ती के रूप में पहचान बनी इन झुग्गी झोपड़ी वालों को भी निराशा ही अब तक मिली है। हालांकि अभी भी कई परिवारों को आवास का इंतजार है। प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना का लाभ इन्हें खुद का जमीन न होने के चलते मिल नहीं पाता है। दूसरी तरफ मायावती के कार्यकाल समाप्त होने के साथ ही कांशीराम आवास योजना की भी फाइल बंद हो गई।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पांच वर्ष पूर्व कहना था कि, ‘हमारा ये सपना है कि जब हम भारत की आजादी की 75वीं सालगिरह मना रहे होंगे, सभी झुग्गियों को पक्के आवासों में तबदील कर दिया जाये।’’ उनका यह वादा इन गरीबों को मुंह चिढ़ा रहा है।

ये केवल देवरिया के किसी एक झुग्गी बस्ती की कहानी नहीं है, देश-विदेश में हजारों ऐसी झुग्गी बस्तियां शहर का रूप ले चुकी हैं। दुनिया की करीब 25 प्रतिशत शहरी आबादी मलिन बस्तियों में रहती है। मुंबई में धारावी भारत की सबसे बड़ी और एशिया की दूसरी सबसे बड़ी तथा दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी झुग्गी-झोपड़ी बस्ती है।

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के 69वें दौर में पाया गया कि देश में 33,510 झुग्गी-झोपड़ी बस्तियां थीं जिनमें से 13,761 को अधिसूचित किया गया था और 19,749 गैर अधिसूचित थीं। मलिन बस्तियां हमारे देश में शहरी गरीबी की अभिव्यक्ति हैं। 2001 से 2011 तक झुग्गी आबादी में 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 70 प्रतिशत झुग्गी आबादी 6 राज्यों में रहती है, जिसमें महाराष्ट्र देश की कुल झुग्गी आबादी का 18 प्रतिशत योगदान देता है। मलिन बस्तियों में शहरी बस्तियों के अन्य हिस्सों में सुविधाओं की बहुत कमी है। 2001 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार, कुल झुग्गी आबादी का 41.6 प्रतिशत दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में रहता है। योजना आयोग के एक अध्ययन के अनुसार, लगभग 75 प्रतिशत स्लम परिवारों को गरीबी उन्मूलन के लिए बनाए गए किसी भी सरकारी कार्यक्रम से कोई लाभ नहीं मिला है।

(देवरिया से जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

शिवसेना और एनसीपी को तोड़ने के बावजूद महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ने वाली हैं

महाराष्ट्र की राजनीति में हालिया उथल-पुथल ने सामाजिक और राजनीतिक संकट को जन्म दिया है। भाजपा ने अपने रणनीतिक आक्रामकता से सहयोगी दलों को सीमित किया और 2014 से महाराष्ट्र में प्रभुत्व स्थापित किया। लोकसभा व राज्य चुनावों में सफलता के बावजूद, रणनीतिक चातुर्य के चलते राज्य में राजनीतिक विभाजन बढ़ा है, जिससे पार्टियों की आंतरिक उलझनें और सामाजिक अस्थिरता अधिक गहरी हो गई है।

केरल में ईवीएम के मॉक ड्रिल के दौरान बीजेपी को अतिरिक्त वोट की मछली चुनाव आयोग के गले में फंसी 

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय चुनाव आयोग को केरल के कासरगोड में मॉक ड्रिल दौरान ईवीएम में खराबी के चलते भाजपा को गलत तरीके से मिले वोटों की जांच के निर्देश दिए हैं। मामले को प्रशांत भूषण ने उठाया, जिसपर कोर्ट ने विस्तार से सुनवाई की और भविष्य में ईवीएम के साथ किसी भी छेड़छाड़ को रोकने हेतु कदमों की जानकारी मांगी।

Related Articles

शिवसेना और एनसीपी को तोड़ने के बावजूद महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ने वाली हैं

महाराष्ट्र की राजनीति में हालिया उथल-पुथल ने सामाजिक और राजनीतिक संकट को जन्म दिया है। भाजपा ने अपने रणनीतिक आक्रामकता से सहयोगी दलों को सीमित किया और 2014 से महाराष्ट्र में प्रभुत्व स्थापित किया। लोकसभा व राज्य चुनावों में सफलता के बावजूद, रणनीतिक चातुर्य के चलते राज्य में राजनीतिक विभाजन बढ़ा है, जिससे पार्टियों की आंतरिक उलझनें और सामाजिक अस्थिरता अधिक गहरी हो गई है।

केरल में ईवीएम के मॉक ड्रिल के दौरान बीजेपी को अतिरिक्त वोट की मछली चुनाव आयोग के गले में फंसी 

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय चुनाव आयोग को केरल के कासरगोड में मॉक ड्रिल दौरान ईवीएम में खराबी के चलते भाजपा को गलत तरीके से मिले वोटों की जांच के निर्देश दिए हैं। मामले को प्रशांत भूषण ने उठाया, जिसपर कोर्ट ने विस्तार से सुनवाई की और भविष्य में ईवीएम के साथ किसी भी छेड़छाड़ को रोकने हेतु कदमों की जानकारी मांगी।