एचईसी के कर्मचारी सब्जी बेचने और ई-रिक्शा चलाने को मजबूर, 20 महीनों से बकाया है वेतन

रांची। 1963 में रांची में शुरू हुई हेवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड यानी एचईसी में करीब 22,000 कर्मचारी और अधिकारी थे, जो अब सिमटकर मात्र 3,400 की संख्या में रह गए हैं। वहीं 1,623 मजदूर अस्थाई तौर पर केवल मौखिक रूप से रखे गए हैं। स्थिति आज यह हो गई है कि इन 3,400 कर्मचारियों और अधिकारियों को वेतन देने में भी कंपनी पूरी तरह सक्षम नहीं है। यहां तक कि एचईसी में पिछले ढाई सालों से स्थायी सीएमडी तक की नियुक्ति नहीं हुई है।

चंद्रयान-3 के बाद 2 सितंबर को जब देश के पहले सूर्य मिशन आदित्य एल-1 के स्पेस क्राफ्ट ने आकाश में उड़ान भरी तो एचईसी के कर्मी भी गर्व से फूले नहीं समाए थे। क्योंकि इस स्पेसक्राफ्ट के लिए होरिजोंटल स्लाइडिंग डोर, फोल्डिंग कम वर्टिकल रिपोजिशनल प्लेटफॉर्म, मोबाइल लॉन्चिंग पैड, टेन टी हैमर हेड टावर क्रेन का निर्माण इसी कारखाने में हुआ है।

कहना ना होगा कि इस अंतरिक्षीय उड़ान को लेकर तमाम वैज्ञानिक मिशनों में हिस्सेदार सार्वजनिक क्षेत्र की इस कंपनी एचईसी के कर्मचारियों और अधिकारियों की थाली में “रोटी” के लाले इसलिए पड़े हैं कि उनका पिछले 20 महीनों का वेतन बकाया है।

स्थिति यह है कि पैसे के अभाव में एचईसी कर्मी अपने घर को जैसे-तैसे चलाने को मजबूर हो गए हैं। घर चलाने के लिए इन्हें कर्ज लेना पड़ रहा है। कई लोगों को पैसे के अभाव में बच्चों की पढ़ाई रोकनी पड़ गई है। इसके अलावा बीमार पड़ने पर इलाज के लिए भी एचईसी के कर्मचारियों और उनके परिजनों को दर-दर भटकने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

कई कर्मचारी अब एचईसी में ड्यूटी करने के बाद बचे हुए समय में ई-रिक्शा चलाने को मजबूर हो गए हैं। इनका कहना है कि कंपनी से पैसे नहीं मिलने के कारण उनके सामने रिक्शा चलाने के सिवा और कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा है। वहीं कुछ कर्मचारी धुर्वा इलाके में लगने वाले मंगलवार और शुक्रवार को शालीमार बाजार जबकि रविवार और गुरुवार को सेक्टर 2 सब्जी हाट में सब्जी बेचने को मजबूर हैं।

पिछले दो-तीन वर्षों से एचईसी वर्किंग कैपिटल के गंभीर संकट से जूझ रहा है। यहां के कर्मी वेतन के लिए लगातार आंदोलित हैं, बावजूद इसके उन्होंने इसरो के चंद्रयान-3 और आदित्य एल-1 मिशन के लिए मिले वर्क ऑर्डर को पूरा करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी।

इन दोनों मिशन के लिए मोबाइल लॉन्चिंग पैड, टावर क्रेन, फोल्डिंग कम वर्टिकली रिपोजिशनेबल प्लेटफॉर्म, होरिजोंटल स्लाइडिंग डोर, 6-एक्सिस सीएनसी डबल कॉलम वर्टिकल टर्निंग और बोरिंग मशीन, 3-एक्सिस सीएनसी सिंगल कॉलम वर्टिकल टर्निंग एंड बोरिंग मशीन सहित जटिल उपकरणों की आपूर्ति तय समय के पहले की गई।

वहीं दूसरी तरफ एचईसी भारी उद्योग मंत्रालय से 1,000 करोड़ रुपए के वर्किंग कैपिटल उपलब्ध कराने के लिए कई बार गुहार लगा चुका है। लेकिन मंत्रालय ने पहले ही साफ कर दिया था कि केंद्र सरकार कारखाने को किसी तरह की मदद नहीं कर सकती है। अतः कंपनी प्रबंधन को खुद अपने पैरों पर खड़ा होना होगा।

एचईसी के एक इंजीनियर गौरव सिंह कहते हैं-एचईसी के तमाम कर्मियों को गर्व है कि चंद्रमा के सभी अभियानों के बाद सूर्य के लिए देश के इस मिशन में हम भी भागीदार हैं। सरकार से हमारा आग्रह है कि देश के नवनिर्माण में भागीदार रही इस संस्था को बदहाली के दौर से उबारे।

वहीं एचईसी की एक मजदूर यूनियन हटिया प्रोजेक्ट वर्कर्स यूनियन के महामंत्री राणा संग्राम सिंह कहते हैं कि मदर ऑफ ऑल इंडस्ट्रीज के रूप में विख्यात रहे एचईसी का यह हाल कुप्रबंधन के चलते हुआ है। इसके मौजूदा प्रभारी सीएमडी नलिन सिंघल कभी एचईसी की ओर झांकते तक नहीं। तीन डायरेक्टर्स हैं, वह भी सप्ताह में एक से दो दिन उपलब्ध होते हैं। वे कहते हैं कि कॉन्ट्रैक्ट कर्मियों के साथ सौतेला व्यवहार हो रहा है। एक तो उनका महीनों का वेतन बकाया है और दूसरी तरफ उन्हें काम से हटाने की साजिश की जा रही है। केंद्र सरकार को तत्काल इस गौरवशाली संस्थान को बचाने की पहल करना चाहिए था, लेकिन लगता है केंद्र सरकार को इससे कोई मतलब नहीं है।

हटिया मजदूर यूनियन (सी.आई.टी.यू.) के भवन सिंह कहते हैं कि- “एचईसी झारखंड का गौरव है, इसकी स्थिति बहुत दयनीय है और एचईसी की समस्या का कुछ हल निकालना चाहिए” का विधवा विलाप करने वाले झारखंड के भाजपा सांसदों पर कतई विश्वास नहीं किया जा सकता, दरअसल हमें और राज्य/देश की मीडिया को समझना होगा कि एचईसी की इस समस्या का कारण भाजपा नीत केंद्र की सरकार है।

भवन सिंह बताते हैं कि मार्च 2017 में जिस दौरान एचईसी मुनाफा कमा रहा था, उस वक्त भारी उद्योग और सार्वजनिक उद्यम के केंद्रीय राज्य मंत्री बाबुल सुप्रियो ने लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में बताया था कि, उनके विभाग ने एचईसी के लिए आधुनिकीकरण सह पुनरूद्धार का प्लान तैयार किया है। इस प्लान के मुताबिक एचईसी के उपकरणों का आधुनिकीकरण होना था। नीति आयोग, वित्त मंत्रालय, भारी उद्योग मंत्रालय और झारखंड सरकार के साथ भी इस विषय में विमर्श भी हुआ था।

इसी बीच एक विशेषज्ञों की समिति, जो डॉक्टर वी के सारस्वत, सदस्य, नीति आयोग के नेतृत्व में 2016 में गठित हुई थी और जिसका काम आधुनिकीकरण का तकनीकी पक्ष तय करके बताना था। उन्होंने 2017 की शुरुआत में अपनी रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट के पहले फेज की अनुसंशाओं को केंद्रीय कैबिनेट द्वारा मार्च 2017 में शामिल किया गया। स्टैंडिंग कमिटी रिपोर्ट (292), जो पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमिटी ऑन इंडस्ट्री द्वारा संसद में 2018 में पेश हुआ, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा था कि 2005 से 2008 के बीच में एचईसी को जो पुनरूद्धार पैकेज दिया गया था, उसके कारण एचईसी ने 2012-13 तक लगातार मुनाफा कमाया था, जबकि यह पैकेज एचईसी के आधुनिकीकरण में इस्तेमाल न हो कर मुख्यतः कर चुकाने और वित्तीय रिस्ट्रक्चरिंग प्लान में हुआ।

उस रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया कि एचईसी की तात्कालिक वित्तीय स्थिति केंद्रीय भारी उद्योग विभाग की दूरदर्शिता की कमी के कारण थी, जिसमें अधुनिकीकरण की जगह कर चुकाने में उपरोक्त पैकेज खर्च किया गया।

भवन सिंह बताते हैं कि उसी रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट था कि केंद्रीय भारी उद्योग विभाग, जो एचईसी का एडमिनिस्ट्रेटिव हेड था, एचईसी की बदहाली की जिम्मेदारी से खुद को मुक्त नहीं कर सकता है।

स्टैंडिंग कमेटी के रिपोर्ट में सारस्वत कमेटी की अनुसंशाओं, जिनमें आधुनिकीकरण प्रमुख था, को पूरी प्राथमिकता देने की भी अनुशंसा थी। लेकिन उस पर बाद में कोई निर्णय नहीं लिया गया। दिसंबर 2020 में अपने 302वें रिपोर्ट में भारी उद्योग से संबंधित पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमेटी ने भारी उद्योग विभाग को सारस्वत कमेटी के रिपोर्ट को लागू करने में ढुलमुल रवैये की आलोचना की और एचईसी का पुनरुद्धार करने में नकारात्मक भूमिका पर अपनी नाराजगी स्पष्ट रूप से जाहिर की। साथ ही प्राथमिकता पर एचईसी के पुनरूद्धार कार्यक्रम को पूरा करने की हिदायत दी।

मार्च 2023 में 321वें पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमिटी रिपोर्ट में भारी उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत एचईसी को लॉस मेकिंग सार्वजनिक क्षेत्र उद्योग घोषित कर दिया गया। कमेटी ने एचईसी पुनरुद्धार की अनुशंसा भी की। जरूरत पड़ने पर उसके लिए अलग से, जरूरत के अनुसार, फंड देने का आवाह्न भी किया।

वी के सारस्वत कमेटी की अनुशंसाओं, विभिन्न पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमेटी की अनुशंसाओं, मजदूर और ऑफिसर्स के अनेक प्रतिवेदनों को ताक पर रखकर भाजपा नीत केंद्र सरकार आज एचईसी के नाम पर मगरमच्छ के आंसू बहा रही है।

121 अधिकारियों द्वारा मानवाधिकार आयोग को कई महीनों से सैलरी नहीं मिलने के कारण त्राहिमाम संदेश भेजा गया, लेकिन उधर से कोई जवाब नहीं आया है। पेमेंट आफ वेजेस एक्ट के अनुसार भी हर महीने 10 तारीख को वेतन मिलना अनिवार्य है, लेकिन खुद केंद्रीय सरकार ही इसका खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन कर रही है और उसके सांसद मगरमच्छ के आंसू बहा रहे हैं।

कोयला उद्योग, स्टील उद्योग, रेल, भेल, रक्षा, अंतरिक्ष, न्यूक्लियर जैसे संवेदनशील उद्योगों को उपकरण आपूर्ति करने वाली देश निर्माता मातृ उद्योग एचईसी की उपयोगिता आज भाजपा नीत केंद्र सरकार के लिए समाप्त हो गई है और वह इसे येन केन प्रकारेण बंद करने पर आमादा है और बंद करके इसे अपने मित्र परिवार (कॉरपोरेट) को औने पौने दाम में सौंपने की तैयारी में है। यह खेल अब सबको समझ में आ चुका है और एचएससी के साथ रांची, झारखंड और देश की जनता अब इनके झांसे में नहीं आने वाली है।

एचईसी एक “पूंजीगत सामान उत्पादक उद्योग” है कोई “फूड प्रोसेसिंग कंपनी” नहीं है, इसीलिए इसमें सतत सरकारी निवेश की जरूरत है। पिछले 5 सालों से स्थाई सीएमडी नहीं नियुक्त करके, बैंक गारंटी वापस ले कर और मजदूरों का 20 महीने से वेतन न देकर भाजपा नीत केंद्र सरकार ने एचईसी को बंद करने की अपनी मंशा साफ कर दी है।

इसी आलोक में बीते 14 सितंबर को इण्डिया गठबंधन और एचईसी संयुक्त मजदूर मोर्चा के तत्त्वावधान में एचईसी कर्मी, वहां के दुकानदार, सिविल सोसाइटी के लोग और इंडिया गठबंधन के सभी घटक दलों द्वारा एक विशाल रैली निकाल कर राजभवन के समक्ष आक्रोषपूर्ण प्रदर्शन किया गया। गठबंधन के घटक दलों में इंडियन नेशनल कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, सीपीएम, आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के सभी आला नेताओं, विधायक और सांसद शामिल थे। इस अवसर पर सभी ने संकल्प लिया कि वे एचईसी को बंद नहीं होने देंगे।

प्रदर्शन के बाद की गई सभा में कहा गया कि हेवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन के हजारों मजदूर एचईसी को बचाने के लिए 21 सितंबर 2023 को दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करेंगे।

(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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