आईबी का भला अशोका विश्वविद्यालय में क्या काम? लेकिन मोदी सरकार चाहती है कि वो अर्थशास्त्र के प्रोफेसर से पूछताछ करे!

नई दिल्ली। अशोका विश्वविद्यालय से इस्तीफा दे चुके अर्थशास्त्र विभाग के सहायक प्रोफेसर सब्यसाची दास से इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधिकारी पूछताछ करना चाहते हैं। आईबी के अधिकारियों ने सोमवार और मंगलवार को विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग जाकर अपना मंतव्य प्रकट किया। दास ने 2019 के चुनाव में कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में संभावित चुनावी हेरफेर का आरोप लगाते हुए एक रिसर्च पेपर प्रकाशित किया था। रिसर्च पेपर पर भाजपा आईटी सेल के ऐतराज करने के बाद यह मामला सोशल मीडिया में छाया रहा। अंतत: सब्यसाची दास को विश्वविद्यालय की गवर्निंग बॉडी ने इस्तीफा देने के लिए बाध्य कर दिया।

विपक्षी दलों के नेताओं, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के बाद मोदी सरकार के निशाने पर अब एक निजी विश्वविद्यालय और उनके शिक्षक हैं। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। मोदी शासन में पहले भी देश के प्रतिष्ठित संस्थान जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्रसंघ, छात्रों, अध्यापकों और पाठ्यक्रम पर हर तरह का लांछन लगाया गया और बदनाम करने की साजिश रची गई।

दरअसल, मोदी सरकार में हर उस संस्था को बदनाम और ध्वस्त करने की कोशिश हो रही है जो मोदी सरकार के विचार से अलग विचार रखती है या असहमत होती है। मोदी सरकार विरोध और असहमति के स्वर को कुचल देना चाहती है।

द वायर की एक रिपोर्ट के मुताबिक इंटेलिजेंस ब्यूरो अशोका विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के वरिष्ठ शिक्षाविदों और विशेष रूप से सहायक प्रोफेसर सब्यसाची दास का साक्षात्कार लेना चाहता है। दास से पूछताछ करने के लिए आईबी के अधिकारी सोमवार को सोनीपत स्थित अशोका विश्वविद्यालय पहुंचे। दास विश्वविद्यालय से इस्तीफा देकर जा चुके हैं, लिहाजा वह परिसर में नहीं मिले। दास को परिसर में न पाकर आईबी एजेंटों ने तब संकेत दिया कि वे अर्थशास्त्र विभाग के अन्य शिक्षाविदों से पूछताछ करना चाहेंगे, लेकिन विभाग के प्रोफेसरों ने जब उनसे इसके लिए लिखित अनुरोध करने के लिए कहा तो वे पीछे हट गए।

द वायर की रिपोर्ट के मुताबिक शिक्षाविदों को चेतावनी दी गई थी कि आईबी के अफसर मंगलवार को दूसरी यात्रा के दौरान उनसे बात कर सकते हैं।

मोदी सरकार के इशारे पर आईबी की इस कार्रवाई पर कांग्रेस ने कहा कि हरियाणा स्थित निजी विश्वविद्यालय में आईबी टीम भेजकर सरकार “केवल भारत में लोकतंत्र की हत्या की बात को साबित कर रही है।”

अशोका विश्वविद्यालय के संचालन में आर्थिक सहयोग करने वाले व्यवसायियों ने द वायर को बताया कि “प्रधानमंत्री कार्यालय के साथ-साथ केंद्रीय शिक्षा मंत्री के यहां से नाराजगी भरे कॉल आए, जिसमें रिसर्च पेपर में विद्वान के उद्देश्यों पर सवाल उठाया गया था।”

दास के “दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में डेमोक्रेटिक बैकस्लाइडिंग-Democratic Backsliding in the World’s Largest Democracy” शीर्षक वाले शोध पत्र को लेकर सोशल मीडिया पर हंगामा मचा हुआ है।

सांख्यिकीय मॉडल पर तैयार किए गए पेपर में सुझाव दिया गया है कि भाजपा ने असामान्य संख्या में नजदीकी मुकाबले वाले निर्वाचन क्षेत्रों में जीत हासिल की, खासकर उन राज्यों में जहां वह उस समय सत्तारूढ़ पार्टी थी। दास ने कहा कि उनके निष्कर्ष चुनावी हेरफेर का संकेत दे सकते हैं।   

भाजपा ने इस बात से दृढ़ता से इनकार किया है कि कोई चुनावी हेरफेर या अन्य गलत काम हुआ था। भाजपा आईटी सेल से जुड़े लोग और कार्यकर्ता उनके निष्कर्षों पर भी सवाल उठा रहे हैं।

विवाद बढ़ता देख अशोका विश्वविद्यालय की गवर्निंग बॉडी ने रिसर्च पेपर को समीक्षा के लिए एक कमेटी के पास भेज दिया और इस पूरे मामले से खुद को अलग कर लिया। इन सबके बीच अर्थशास्त्र विभाग ने कहा है, “इसने अकादमिक कार्य के किसी भी स्वीकृत मानदंड का उल्लंघन नहीं किया है।”

रिसर्च पेपर प्रस्तुत करने वाले सब्यसाची दास ने विश्वविद्यालय के रवैए को देखते हुए इस्तीफा दे दिया। बाद में अर्थशास्त्र विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर पुलाप्रे बालाकृष्णन ने भी दास के समर्थन में इस्तीफा दे दिया था। बालाकृष्णन ने कहा है कि उनका इस्तीफा वापस लेने का कोई इरादा नहीं है, हालांकि कहा जा रहा है कि विश्वविद्यालय दास की बहाली के लिए बातचीत कर रहा है।  

बालाकृष्णन, जो सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज के निदेशक और भारतीय प्रबंधन संस्थान, कोझिकोड में प्रोफेसर के रूप में काम कर चुके हैं, ने कहा कि उनका रुख “पेपर की खूबियों पर आधारित नहीं था, बल्कि इस तथ्य पर आधारित था कि अकादमिक स्वतंत्रता का उल्लंघन हुआ था।”

बालाकृष्णन ने कहा कि “एक मानक (अकादमिक) प्रक्रिया है कि वह (दास) अपने पेपर को सहकर्मी समीक्षा के लिए भेजेंगे। यदि यह सहकर्मी समीक्षा के बाद प्रकाशित हो जाता है, तो यह ठीक है।”

बालाकृष्णन ने कहा, “लेकिन विश्वविद्यालय द्वारा सहकर्मी समीक्षा चरण से पहले हस्तक्षेप करना और एक समिति की मांग करना अकादमिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है।” उन्होंने कहा, “यह पूरी तरह से अकादमिक क्षेत्र में या भारत में ऐतिहासिक रूप से विश्व स्तर पर मानदंडों के अनुरूप नहीं है।”

बालाकृष्णन ने कहा कि “यह एक अव्यवहार्य शैक्षणिक मॉडल भी है। अब आप सामाजिक विज्ञान अनुसंधान कैसे कर सकते हैं यदि आप हमेशा अपने कंधे के ऊपर देखते रहते हैं?”

बालाकृष्णन ने ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज में एक अर्थशास्त्री के रूप में प्रशिक्षण लिया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि अकादमिक स्वतंत्रता के संबंध में उन्हें व्यक्तिगत रूप से विश्वविद्यालय में कभी कोई समस्या नहीं हुई। “मैं विश्वविद्यालय को संदेह का लाभ देने को तैयार हूं और कहता हूं कि यह निर्णय की त्रुटि है, न कि कमीशन का जानबूझकर किया गया कार्य। लेकिन यह निर्णय की गंभीर त्रुटि है।”

माना जाता है कि सब्यसाची दास से इस्तीफा वापस लेने के लिए विश्वविद्यालय बातचीत कर रहा था। बताया जा रहा था कि विवाद का एक बड़ा हिस्सा हल हो गया था और केवल कुछ विवरण बाकी थे। 28 अगस्त को नया सत्र शुरू होने पर शिक्षण निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार शुरू होने की उम्मीद है।

लेकिन पिछले सप्ताह में राजनीतिक विभाग और समाजशास्त्र और मानवविज्ञान विभागों द्वारा बयान जारी करने से संकट बढ़ गया है कि दास को बहाल किया जाना चाहिए और विश्वविद्यालय से माफी मांगनी चाहिए। कई विभागों के शिक्षकों के साथ एक और बैठक में यह भी मांग की गई कि विश्वविद्यालय दास के खिलाफ अपनी सभी कार्रवाइयों को वापस ले ले।

देश भर के 91 संस्थानों के लगभग 320 अर्थशास्त्रियों ने पिछले सप्ताह एक बयान जारी कर विश्वविद्यालय से दास को “बिना शर्त तुरंत बहाल करने” की मांग की थी।

कर्मचारियों की ओर से विश्वविद्यालय को लिखे एक पत्र में चेतावनी दी गई है कि जब तक बुनियादी शैक्षणिक स्वतंत्रता से संबंधित प्रश्नों का समाधान नहीं किया जाता, तब तक संकाय सदस्य “महत्वपूर्ण जांच की भावना और सत्य की निडर खोज जो हमारी कक्षाओं की विशेषता है” में अपने शिक्षण को आगे बढ़ाने में असमर्थ होंगे।

विश्वविद्यालय प्रशासन पर शिक्षकों का भारी दबाव

अशोका विश्वविद्यालय के संचालकों पर शिक्षकों का भारी दबाव है। दो-दो प्रतिष्ठित शिक्षकों के इस्तीफा देने के बाद छात्रों में असमंजस की स्थिति है। निजी विश्वविद्यालय में छात्र शिक्षकों के नाम पर ही आते हैं। ऐसे में दास की बहाली की मांग जोर पकड़ रही है। लेकिन अशोका विश्वविद्यालय के संचालक डर रहे हैं कि सब्यसाची दास की वापसी से सरकार विश्वविद्यालय की यूजीसी मान्यता रद्द करवा सकती है या विदेशी मुद्रा (विनियमन) अधिनियम के तहत भारत के बाहर से धन प्राप्त करने का अधिकार वापस ले सकती है।

अशोका विश्वविद्यालय की स्थापना का उद्देश्य

अशोका विश्वविद्यालय की स्थापना 2014 में हरियाणा के सोनीपत में किया गया था। इसकी स्थापना अमेरिकी उदार कला विश्वविद्यालयों के भारतीय संस्करण के रूप में किया गया था। विश्वविद्यालय की स्थापना का उद्देश्य कला यानि सामाजिक विज्ञान के विषयों में अमेरिकी विश्वविद्यालय में शिक्षितों की तरह उदार ग्रेजुएट तैयार करना है। जिनमें अपने विषय की गहराई से अध्ययन के साथ ही आलोचनात्मक दृष्टिकोण विकसित हो सके।

विश्वविद्यालय परिसर में स्थित भवन देश के किसी भी सरकारी और निजी विश्वविद्यालय के भवनों को तो छोड़ दीजिए, पांच सितारा होटल को टक्कर देता है। अशोका विश्वविद्यालय में भारत के 28 राज्यों और 287 से अधिक शहरों और 21 अन्य देशों से आए 2800 से अधिक छात्र अंतरराष्ट्रीय स्तर के विषय विशेषज्ञों के नेतृत्व में स्नातक और स्नातकोत्तर कार्यक्रमों के विश्व स्तरीय शिक्षा प्राप्त करते हैं।

अशोका विश्वविद्यालय का नाम सम्राट अशोक (लगभग 304-232 ईसा पूर्व) के नाम पर रखा गया है जो भारत के उच्चतम मूल्यों और आदर्शों का प्रतिनिधित्व करते हैं। सम्राट अशोक का धम्म उदार विचार और शिक्षा के इर्द-गिर्द घूमता था। व्यक्तिगत रूप से आत्म-परिवर्तन से गुजरने के बाद, सम्राट अशोक ने अपने विचारों को पूरे एशिया में दूर-दूर तक फैलाया।

सम्राट अशोक के सीखने और परिवर्तन के जीवन से प्रेरणा लेते हुए, अशोका विश्वविद्यालय की नींव एक समग्र शिक्षा प्रदान करने के लिए की गई। विश्वविद्यालय अपने छात्रों को गहराई और आलोचनात्मक रूप से सोचने, अनुशासनात्मक सीमाओं के पार सीखने, खुद को रचनात्मक रूप से व्यक्त करने के और समावेशी शिक्षा पर जोर देता है।   

अशोका विश्वविद्यालय के संस्थापक और दानकर्ता

अशोका विश्वविद्यालय की स्थापना अंतरराष्ट्रीय स्तर के ख्यातिप्राप्त विद्वानों, पेशेवरों और उद्यमियों ने की है। संस्थापकों में एसे पेशेवर शामिल हैं जिन्होंने आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्थानों में शिक्षा प्राप्त करके अपना एक सफल उद्योग स्थापित करने में सफलता हासिल की। अब जब विश्वविद्यालय में भारी उथल-पुथल मचा है तब विश्वविद्यालय के विस्तार की योजना पर काम चल रहा है। अभी हाल ही में आईटी सेवा कंपनी ‘आईगेट’ के संस्थापक, अशोक त्रिवेदी ने बायोसाइंसेज विभाग स्थापित करने के लिए पहले ही 100 करोड़ रुपये का दान दिया है।  

आईआईएम अहमदाबाद से शिक्षा प्राप्त करने वाले नौकरी डॉट कॉम के संजीव भीखचंदानी, रेयर इंटरप्राइजेज के राकेश झुनझुनवाला, डीमार्ट और ब्राइटस्टार के आरके दमानी, स्क्वायर फाउंडेशन के आशीष धवन, वीर चोपड़ा एवं रवि चोपड़ा, आशीष गुप्ता, गोपाल जैन, बीकेटी ग्रुप, अनु आगा, आरबीएल बैंक, आईडीएफसी बैंक जैसे सैकड़ों संस्थान और उद्योगपति शामिल हैं।

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