Friday, April 19, 2024

अतीक-अशरफ हत्याकांड के पीछे बीजेपी में छिड़ी उत्तराधिकार की लड़ाई तो नहीं

अहमदाबाद। अतीक-अशरफ हत्याकांड को दो सप्ताह से भी अधिक हो गए हैं, लेकिन यह मुद्दा मीडिया की नजरों से ओझल नहीं हो पा रहा है। इस मामले में मीडिया के पास खबरें कम और कयास अधिक हैं। पिछले तीन चार दिनों से गुजरात की खबरों में अतीक अहमद के गुजरात में किए गए निवेश की चर्चा चल रही है।

गुजरात पुलिस के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अतीक अहमद ने गुजरात में लगभग 1500 करोड़ का निवेश किया है। अतीक का निवेश रीयल एस्टेट, स्क्रैप और हीरा उद्योग में हुआ है। कितने करोड़ का निवेश हुआ है इसका सही आकलन तो जांच के बाद ही पता चलेगा।

इलाहाबाद के लोग बताते हैं, अतीक पैसों की तह लगाकर घर में नहीं रखता था, बल्कि काली कमाई को निवेश कर अपने साम्राज्य को बढ़ाता था। इसी आदत के चलते गुजरात में भी अतीक ने निवेश किया। उमेश पाल हत्याकांड में अतीक अहमद पर आरोप लगा कि उसने साबरमती जेल में रहते हुए हत्या का षड्यंत्र रचा। यही हत्या अतीक परिवार की तबाही का कारण बनी। लेकिन बहुत से लोग बीजेपी में छिड़ी उत्तराधिकार की लड़ाई और अतीक के आर्थिक साम्राज्य को परिवार की तबाही का कारण मानते हैं।

बीजेपी हाई कमान और योगी आदित्यनाथ के बीच चल रहा शीतयुद्ध किसी से छिपा नहीं है। कई बार हाई कमान योगी की जगह किसी दूसरे नेता को मुख्यमंत्री बनाने का प्रयत्न कर चुका है। लेकिन योगी की लोकप्रियता के आगे हाई कमान बेबस सा है। अतीक अहमद उत्तर प्रदेश का एक मुस्लिम माफिया था। फिर भी बीजेपी के शासन काल में मोहित जायसवाल का अपहरण करवाकर देवरिया जेल बुलवा लेता है। इसी घटना के बाद अतीक अहमद को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अहमदाबाद के साबरमती जेल में शिफ्ट कर दिया जाता है।

बीजेपी शासित प्रदेश की जेल में रहते हुए अतीक अहमद एक हत्याकांड का षड्यंत्र और हजारों करोड़ का निवेश कैसे कर लेता है। गुजरात की भाजपा सरकार पर सवाल खड़े किए जाने चाहिए थे। लेकिन मीडिया ने बीजेपी पर कोई सवाल नहीं खड़ा किया। कुछ सवाल ऐसे हैं जिनके जवाब मिल जाएं तो कुछ बातें साफ हो सकती हैं।

गुजरात में अतीक अहमद की मदद कौन कर रहा था?

अतीक अहमद जैसे माफिया पुलिस प्रशासन और सत्ता पक्ष की मदद के बिना इतने बड़े माफिया नहीं बन सकते हैं। जिस प्रकार से एक समय अतीक अहमद की उत्तर प्रदेश पुलिस विभाग और सरकार में तूती बोलती थी उसी प्रकार से गुजरात पुलिस और सत्ता पक्ष में भी अतीक अहमद ने घुसपैठ कर डाली थी।

अतीक अहमद को जब 2019 में गुजरात लाया गया था तो अहमद का बेटा उमर और शूटर मेराज भी अहमदाबाद आए थे। ताकि अतीक अहमद की प्रशासन में पकड़ बनाई जा सके। कुछ समय बाद ही उमर को मोहित जायसवाल अपहरण केस में आरोपी बना दिया गया था, तो उमर ‘अंडर ग्राउंड’ हो गया था।

लेकिन सूत्र बताते हैं कि उमर और मेराज ने गुजरात पुलिस महकमे के कई बड़े अधिकारियों से मिलकर अतीक अहमद को साबरमती जेल में सुविधाएं मुहैया करने की गुज़ारिश की थी। लेकिन अधिकारियों ने यह कहते हुए किसी मदद से इंकार कर दिया कि अतीक अहमद एक मुस्लिम सांसद रह चुके हैं और गुजरात में भाजपा का शासन है। जब तक गृह विभाग से पुलिस को नरमी रखने का इशारा नहीं मिल जाता पुलिस कुछ नहीं करेगी। उसके बाद उमर और मेराज ने गुजरात के कई बीजेपी नेताओं से मुलाकात की थी।

शुरू के कुछ दिन अतीक अहमद को जेल में कठोर दिन गुजारने पड़े थे लेकिन जल्द ही बीजेपी सरकार की तरफ से हरी झंडी मिल गई। उसके बाद साबरमती जेल में अतीक अहमद का दरबार लगने लगा। जो लोग अतीक से जेल में मिलने जाते थे उन्हें अतीक की तरफ से मेहमान नवाजी में कटलेट और चाय भी परोसा जाता था। अतीक अहमद के मददगारों में पुलिस मुखबिर अल्ताफ खान उर्फ बासी, माफिया नज़ीर वोहरा, कालू गर्दन, मक्खी का नाम गुजरात की मीडिया चला रही है।

मीडिया तो कुछ आईपीएस अधिकारी और वरिष्ठ नेताओं को भी अतीक का मददगार बता रही है। लेकिन आईपीएस अधिकारियों और बीजेपी नेताओं के नाम उजागर नहीं हुए हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अतीक अहमद पर भाजपा के दूसरे नंबर के सबसे बड़े नेता का हाथ था। एआईएमआईएम पार्टी में रह चुके कई नेता इस बात की तस्दीक करते हैं कि अतीक अहमद से एआईएमआईएम गुजरात यूनिट के अध्यक्ष साबिर काबलीवाला जेल में मिलने जाया करते थे। बीजेपी हाई कमान और अतीक अहमद के बीच की कड़ी साबिर काबलीवाला थे।

असदुद्दीन ओवैसी भी जेल में अतीक अहमद से मिलना चाहते थे, जिसके लिए काबलीवाला ने प्रशासन से अनुमति भी हासिल कर ली थी। लेकिन कांग्रेस विधायक गयासुद्दीन शेख ने शाह और एमआईएम की मिलीभगत का आरोप लगाते हुए प्रशासन के निर्णय का भारी विरोध किया था। जिसके बाद प्रशासन ने जेल मैनुअल के हवाले से अनुमति निरस्त कर दी थी।

ओवैसी की पार्टी में क्यों शामिल हुआ था अतीक अहमद का परिवार?

अतीक अहमद का परिवार सितंबर 2021 में ओवैसी की पार्टी में शामिल हुआ था। यह निर्णय अतीक अहमद ने साबरमती जेल से ही लिया था। अतीक अहमद का प्रभाव इलाहाबाद, कौशांबी, कानपुर, श्रावस्ती की मुस्लिम बहुल सीटों पर था। अतीक परिवार चुनाव में बीजेपी को फायदा पहुंचा सकता था। एमआईएम के प्रदेश प्रमुख साबिर काबलीवाला की मध्यस्तता से अतीक अहमद ने साबरमती जेल से ही परिवार को ओवैसी की पार्टी में जुड़ने के लिए तैयार कर लिया था। बीजेपी के दूसरे नंबर के बड़े नेता चाहते थे कि अतीक परिवार एमआईएम से जुड़े।

अतीक परिवार ने 2023 विधानसभा चुनाव आते ही क्यों छोड़ दिया एआईएमआईएम का साथ?

उत्तर प्रदेश बड़ा राज्य है। लोकसभा की 80 सीटें यूपी में ही हैं। नरेंद्र मोदी पार्टी का चेहरा हैं। अमित शाह, मोदी के बाद सबसे बड़े नेता हैं। लेकिन लोकप्रियता में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बीजेपी के चाणक्य से आगे हैं। बीजेपी की विचारधारा में यकीन रखने वाले लोग योगी को मोदी का विकल्प मानते हैं। गुजरात बीजेपी के सूत्र बताते हैं कि योगी और शाह में मोदी के बाद एक नंबर बनने की लड़ाई है जो आने वाले दिनों में खुलकर दिख सकती है।

योगी को ‘कट टू साइज’ रखने के लिए दिल्ली से अतीक अहमद को चुनाव न लड़ने का आदेश मिला था। ताकि यूपी में बीजेपी को असाधारण बहुमत न मिले और बीजेपी हाई कमान को योगी की जगह किसी और नेता को स्थापित करने का मौका मिल सके। 

अतीक-अशरफ की हत्या का कारण क्या हो सकता है?

2017 में उत्तर प्रदेश में बीजेपी सत्ता में आती है और योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनते हैं। अतीक अहमद तब भी सत्ता के नज़दीक बने रहते हैं। योगी शासनकाल में ही मोहित जायसवाल का अपहरण कर देवरिया जेल ले जाया जाता है। जहां अतीक अहमद जायसवाल की पिटाई करते हैं और 40 करोड़ की कंपनी को अतीक अहमद अपने परिवार के नाम लिखवा लेते हैं। योगी शासन की यह घटना बीजेपी पर सवाल खड़े करती है।

2019 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश से अतीक अहमद को साबरमती जेल गुजरात ट्रांसफर कर दिया जाता है। अतीक अहमद का अपहरण जैसी घटना को अंजाम देना योगी शासन में इतना आसान था। प्रदेश के सभी जिलों में अतीक का ठाठ था। जिस कारण सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश से गुजरात भेज दिया। तो ऐसी कौन सी परिस्थितियां हुईं कि योगी ने अतीक अहमद परिवार को मिट्टी में मिलाने की कसम खा ली। गुजरात के राजनैतिक पंडित अतीक अशरफ हत्याकांड के पीछे दो कारण मानते हैं।

पहला कारण 

अहमदाबाद से अतीक अहमद बीजेपी हाई कमान और एआईएमआईएम के नजदीक आ जाते हैं। बीजेपी के हाई कमान से नज़दीकी योगी आदित्यनाथ को खलने लगती है। क्योंकि योगी मोदी के बाद अपने आपको विकल्प मानते हैं। दूसरी तरफ अमित शाह अपने आप को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उत्तराधिकारी मानते हैं। योगी और शाह के बीच उत्तराधिकार पाने की लड़ाई में अतीक परिवार को मिट्टी में मिला दिया गया। अतीक अहमद गुजरात में उस लॉबी के साथ जुड़ गए थे जो अमित शाह का समर्थन करती है।

दूसरा कारण

अतीक अहमद के पास हजारों करोड़ का साम्राज्य था। गुजरात की जेल में ट्रांसफर होने के बाद उत्तर प्रदेश में अतीक परिवार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निशाने पर था। प्रदेश में योगी का प्रशासन अतीक की बेनामी संपत्तियों को ढूंढ-ढूंढ कर जब्त कर रहा था। अतीक अहमद यूपी से ऐसी संपत्तियों को बेचकर गुजरात में निवेश कर रहे थे। बताया जा रहा है कि अतीक अहमद ने लगभग 1500 करोड़ का निवेश रीयल स्टेट, स्क्रैप और हीरा उद्योग में किया है।

इस काम में अतीक की मदद माफिया और पुलिस के मुखबिर कर रहे थे। हजारों करोड़ के कारोबार को भी अतीक अशरफ हत्याकांड की वजह माना जा रहा है। गुजरात पुलिस भी अतीक के निवेश की जांच कर रही है। उमेश पाल जो राजू पाल हत्याकांड में गवाह थे, लेकिन उमेश पाल बार बार स्टेटमेंट बदल रहा था। जिस कारण सीबीआई ने उमेश पाल को गवाह की लिस्ट से हटा दिया था। उमेश पाल को राजू पाल हत्या में गवाह होने की वजह से कत्तई नहीं मारा गया। अतीक अहमद गिरोह इतना बड़ा हत्याकांड सरकार और प्रशासन के सहयोग के बिना नहीं कर सकता है।

संभवतः किसी बीजेपी के नेता और प्रशासन ने ऐसा करने के लिए उकसाया हो या हत्याकांड के बाद बचा लेने का वादा किया हो। तभी कोई माफिया इतने बड़े हत्याकांड को अंजाम दे सकता है।

क्या अतीक अहमद को बचाया जा सकता था?

अधिक संभावनाएं इस बात की हैं कि अतीक अहमद और अशरफ की हत्या राजनैतिक लाभ और बीजेपी की अंदरूनी लड़ाई का परिणाम है। इस हत्याकांड का लाभ सीधे बीजेपी और एआईएमआईएम को मिला है। गुजरात एआईएमआईएम के अध्यक्ष साबिर काबलीवाला के संबंध मोदी और शाह से बहुत अच्छे हैं। इतने अच्छे कि काबलीवाला के बेटे की शादी में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद उपस्थिति दर्ज कराई थी। अतीक अहमद की हत्या होने वाली है, इसका अंदाज़ा सभी को हो गया था।

काबलीवाला चाहते तो मोदी या शाह से संपर्क कर अतीक अहमद को बचा सकते थे। लेकिन ओवैसी और भाजपा अतीक की मौत को तमाशाई बनकर देखते रहे। इस हत्याकांड का सबसे अधिक राजनैतिक लाभ योगी आदित्यनाथ और ओवैसी को हुआ है। हिंदुओं को लगता है पहले की सरकारें मुस्लिम माफियाओं के साथ थीं। मुस्लिमों को लगता है इस हत्याकांड पर मात्र ओवैसी ही आवाज उठा रहे हैं। लेकिन सच्चाई विपरीत है दोनों अपने राजनैतिक लाभ पर जश्न मना रहे हैं।

अतीक अहमद का परिवार ‘तितर-बितर’ हो गया और अब अतीक अहमद के करोड़ों के निवेश का लाभ करीबियों को मिलेगा। शाइस्ता का क्या होगा कोई नहीं जानता। उमर और अली कब तक जेल में रहेंगे कोई नहीं जानता। 

(अहमदाबाद से कलीम सिद्दीकी की रिपोर्ट।)

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