झारखंड विधानसभा चुनाव: जहरीली गैस और आग के बीच रहने को मजबूर झरिया के लोग

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धनबाद। ‘देखिए हम कैसे रहते हैं। घर की एक दीवार पूरी तरह टूट गई। आए दिन विस्फोट होता रहता और आग लगती रहती है तो घर में दरारें पड़ जाती हैं। इसे बार-बार कितना बनाए? बस रात को सोते वक्त यह सोचते हैं कि किस्मत अच्छी होगी तो सुबह जाग जाएंगे नहीं तो भगवान को प्यारे। यह कहना है अशोक पासवान का, जो धनबाद जिले के झरिया ब्लॉक के बास्ताकोल क्षेत्र में रहते हैं।

इस क्षेत्र में दो कहावतें चलती हैं। ‘धनबाद में जितना कोयले का धुआं उड़ता है उतना ही पैसा है’। दूसरा ‘पूरे देश का शेयर मार्केट झरिया से ही निर्धारित होता है’।

टूटे घरों में रहने को मजबूर

लेकिन सवाल यह है कि इन लोगों के बीच में गरीबों को जिंदगी कैसी है। कोयले से चलने वाले इस शहर में सभी जाति धर्म के लोग रहते हैं। कोई यहां का मूलनिवासी तो कोई दशकों पहले यहां कोयला खदानों में नौकरी की तलाश में आया और यहीं बस गया।

घरों में पड़ी दरारें

वर्तमान में बीसीसीएल (भारत कोकिंग कोल लिमिटेड) की 11 भूमिगत, 16 ओपनकास्ट और नौ मिश्रित खदानें हैं। जिसमें झरिया में 23 भूमिगत और नौ ओपनकास्ट (खुली खदानें) हैं। जहां कोकिंग कोल पाया जाता है। जिसकी खनन गतिविधियां 1894 में शुरू हुई थी, जो आजतक चली आ रही है। जो कोलयिरी इलाके में रहने वाले लोगों के लिए वरदान और अभिशाप दोनों ही है। अगर लोग कोयला नहीं बेचते तो जान बचा लेते हैं। अगर जान बचाते हैं, तो बेरोजगार हो जाते हैं।

यहां के लोगों को लिए विस्थापन और रोजगार दोनों ही बड़ी समस्या है। जिसमें लोग जीने को मजबूर हैं। जनचौक की टीम ने अपने चुनावी दौरे में झरिया के बास्ताकोला इलाके का दौरा किया। जहां कई लोगों के घरों के नीचे लगी आग और खदान में होते ब्लास्ट के कारण घरों में दरारें पड़ गई है।

बार-बार घर कैसे बनाएं

बास्ताकोला के दूर से ही धुआं दिखाई देता है। यहां के लोगों के लिए यह बहुत ही सामान्य बात है। वह रोज इस तरह की चीजों से दो चार हो रहे हैं।

अशोक पासवान हमें यही मिलते हैं। जो मुझे इस जगह के बारे में बताते हैं। वह कहते हैं मैं यहां एक गौशाला में सिक्योरिटी गार्ड का काम करता हूं। मैं 1973 से यहां रह रहा हूं। मेरे पिताजी बीसीसीएल के कर्मचारी थे। अब सभी भाई अपना-अपना कमा खा रहे हैं। लेकिन सभी यहीं रहते हैं।

पत्थरों में लगी आग

वह अपने घर को दिखाते हुए बताते हैं ‘कुछ दिन पहले ही यह पूरी दीवार टूट गई। अब इसे बनाने के लिए पैसे नहीं है। दीवारों में हर जगह दरारें पड़ गई है। मिट्टी से ही इसे हर बार बनाते हैं। इसे पक्का बनाने का भी कोई फायदा नहीं है क्योंकि यह हर तीसरे दिन यह टूट जाती है”।

बगल में खड़ी अशोक पासवान की बेटी कहती हैं ‘चारों तरफ तो आग लगी है। पत्थर से बने इन पहाड़ों से जहरीली गैस निकलती हैं। इससे हमारी तबीयत भी खराब होती है। लेकिन अब यहां रहने की आदत हो गई है। इसके अलावा हमारे पास कोई ठिकाना नहीं है। यहां से कई बाहर चले जाएंगे तो कमाएंगे क्या’?

अशोक हमें आसपास के बाकी घरों में भी लेकर जाते हैं। कोलू पासवान इनके घर के पीछे ही रहते हैं। वह हमें उनके घर के पास लेकर जाते हैं। जो पूरी तरह से मिट्टी में मिल गया है।

कोलू बताते हैं ‘यह पूरा घर शाम को छह बजे हमारी आंखों के सामने ही टूट गया। हमारी किस्मत अच्छी थी। जो शाम को यह हादसा हुआ अगर रात को होता तो पता नहीं क्या हो जाता है। किसी की भी जान जा सकती थी। अब पूरा परिवार वहां किराए में रहता है। मैं और मेरी पत्नी यहां ही गुमटी में रहते हैं क्योंकि वह जगह छोटी है। पूरा परिवार नहीं रह सकता है’।

कोलू पासवान का टूटा घर

मैं और मेरी पत्नी बकरियों की  देखभाल करते हैं और यही रहते हैं। बकरियों को भी देखना जरुरी है। यह हमारी कमाई का भी साधन है। धनबाद की कोयला खद्दानों में एक अनुमान के अनुसार साल 1916 से आग लगी हुई है। जिसके साथ यहां के लोग रहने को मजबूर हैं।

रात में आग साफ दिखाई देती है

वह हमें मलबे की तरफ लेकर जाते हैं। यहां बड़े-बड़े पत्थरों के कई जगहों में आग लगी हुई है। जो दिन तो नहीं लेकिन रात को साफ दिखाई देती है।

अशोक बताते हैं लोग दिनभर कोयला बिनते हैं और फिर बेचकर गुजारा करते हैं। वह हमें एक बड़ा से गड्ढा का दिखाते हुए कहते हैं यहां पहले घर हुआ करते थे। देखते हुए ही देखते जमीन नीचे धंस गई। कुछ लोगों ने थोड़ा आगे घर बना लिए और कुछ यहां से 100 मीटर की दूरी पर चले गए।

यहां पूरी जमीन के नीचे आग लगी हुई है। जिससे जमीन धंसती है। वह मुझसे कहते हैं यहां आपको पैरों में ज्यादा गर्मी महसूस हो रही होगी? मैंने भी यही महसूस किया।

दिन में आग साफ नहीं दिखाई देती हैं बस महसूस होती है। लेकिन रात में लपटें साफ दिखाई देती हैं। यही से आगे कुछ लोग कोयला ला रहे थे। यही हमें राजकुमार मिलें। वह एक टूटी सी बाइक में कोयला को एक बड़ा टुकड़ा पहाड़ से नीचे की तरफ लेकर आ रहे थे।

घर के साथ रोजगार की जरुरत

वह बहुत ही गुस्से में कहते हैं ‘हमारा घर टूटा गया तो क्या करें, कहां जाए? थोड़ा आगे घर बनाएंगे वहां भी आज नहीं तो कल आग लग जाएगी, घर टूट जाएगा। मैंने उनसे पूछा के यहां के लोगों को पुनर्वास योजना के तहत बेलघरिया में बसाया जा रहा है। इसी बात पर वह और गुस्से में कहते हैं। वहां जो लोग गए हैं क्या वह लोग खुश है? न वहां रोजगार न ही पानी की कोई सुविधा।

टूटा घर दिखाते हुए राजकुमार

जिनके पास गाड़ी है वह यहां काम पा जाएंगे। जिसके पास नहीं है वह तो बेरोजगार हो गया है। हमें घर के साथ रोजगार भी तो चाहिए। अगर हम लोग कहीं बाहर भी चलें जाएंगे तो उतना नहीं कमा पाएंगे कि परिवार को चला सकें। लोग बाहर से झरिया कमाने आते हैं हम लोग यहां से बाहर जाएं?

हम लोग ऐसी ही जिंदगी जीने को मजबूर हैं। पांच साल बाद वोट होता है और हम लोग सिर्फ वोट देते हैं। इससे ज्यादा और कुछ नहीं। चुनावी माहौल में सभी पार्टियों के झंडे तो लगे हैं लेकिन कोई सुविधा नहीं मिली है। मेरे कैमरे के देखते हुए एक बच्ची बोली ‘हमें घर चाहिए’ नेताओं के भाषण से क्या होगा। आएं दिन घर की दीवारें टूट जाती हैं मिट्टी से इसे बनाते हैं। लेकिन कोई नेता हमारी नहीं सुनता है। कुछ लोग यहां से चले गए हैं मेरी कुछ सहेलियां भी यहां से चली गई हैं। मैं अब उनसे नहीं मिल पाती हूं।

(पूनम मसीह की रिपोर्ट)

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