Saturday, April 27, 2024

ग्राउंड रिपोर्ट: मुर्मू को माओवादी बनाने पर आमादा थी झारखंड की पुलिस

‘‘मुझे जब सिविल ड्रेस में मौजूद 2 पुलिस वाले ने पकड़ लिया और एक ने अपना रिवाल्वर मेरे कमर में सटाकर मुझे बोलेरो में खींचकर बैठा लिया, तो मैं काफी डर गया था। मुझे लगा कि अब ये लोग मेरा थर्ड डिग्री टॉर्चर करेंगे और क्या पता कि एनकाउंटर ही कर दें।’‘- यह कहना है झारखंड के 21 वर्षीय युवा आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता बालदेव मुर्मू का।

बालदेव मुर्मू 54 घंटे हजारीबाग पुलिस की अवैध हिरासत व डर के साये में बिताकर 31 जनवरी की रात को अपने घर पहुंचे थे। एक फरवरी की सुबह इस पंक्ति के लेखक जब हजारीबाग जिला मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर दूर विष्णुगढ़ थानान्तर्गत नरकी खुर्द गांव के रोहनियां टोला पहुंचे, तो पूरे गांव में डर का साया मौजूद था। देखते ही देखते लगभग 4 दर्जन संथाल आदिवासी बालदेव मुर्मू के घर के आंगन में जमा हो गये, जिनमें गांव के मांझी हड़ाम (परम्परागत ग्राम प्रधान) समेत महिला, बच्चे, युवा व वृ़द्ध शामिल थे।

बालदेव मुर्मू आदिवासी-मूलवासी विकास मंच के कार्यकर्ता हैं और उनका संगठन झारखंड के जनसंगठनों के हालिया गठित छतरी संगठन ‘झारखंड जन संघर्ष मोर्चा’ का घटक संगठन है। बालदेव मुर्मू को 29 जनवरी को दिन के 11 बजे उनके गांव से विष्णुगढ़ थाना की पुलिस ने बिना किसी वारंट के हिरासत में लिया था।

बालदेव मुर्मू का घर।

बालदेव मुर्मू बताते हैं ‘‘मैं अपने गांव में ही पीछे तरफ पड़ोसी 12 वर्षीय राकेश मरांडी के साथ दिन के 11 बजे बैर खा रहा था। तभी एक बोलेरो गांव की दूसरी तरफ से वहां पर आया और उससे दो आदमी नीचे उतरे। उन्होंने मुझे बुलाकर मेरा नाम पूछा। मैंने अपना नाम बता दिया। तो उनमें से एक ने कहा कि आपका प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास स्वीकृत हुआ है इसलिए मेरे साथ निरीक्षण कराने के लिए चलिये।

मैंने कहा कि मुझे मुखिया से बात कराइये तभी हम चलेंगे। मैंने नरकी पंचायत की मुखिया बेबी देवी के पति कुलदीप रविदास को फोन लगाया और बोला कि ये लोग प्रधानमंत्री आवास योजना का निरीक्षण करने आए हैं। इतना बोला ही था कि एक ने मोबाइल छीन लिया और कमर में रिवाल्वर सटाते हुए बोला कि हम लोग पुलिस हैं और बोलेरो में खींचकर बैठा लिया व मेरे कमर में एक मफलर बांध दिया। यह सब देखकर गांव का लड़का भाग कर घर चला गया और सबको इस बाबत जानकारी दी।’’

बालदेव मुर्मू।

वे आगे बताते हैं, ‘‘बोलेरो वहां से लगभग 25 किलोमीटर दूर सीधा विष्णुगढ़ थाना के कैम्पस में रुकी और मुझे हवालात में बंद कर दिया गया। एक घंटे बाद हाजत से निकालकर थाना प्रभारी की अनुपस्थिति में थाना का प्रभार संभाल रहे दारोगा प्रशांत मिश्रा मुझसे पूछताछ करने लगे। तब तक उन लोगों ने मेरे मोबाइल को अच्छी तरह से चेक कर लिया था। दारोगा ने मुझसे पूछा कि 25-26 जनवरी को कहां था, मैंने उन्हें गिरिडीह जिला के नौकनियां गांव में होने की बात बतायी, तो उन्होंने कहा कि नहीं, तुमने ही 25 जनवरी की रात खरकी में काला झंडा फहराया है और मोबाइल का टावर उड़ाया है। उन्होंने मुझे कहा कि तुम तो माओवादी नेता दुर्योधन महतो के लिए काम करते हो।

वह बार-बार यही कहते रहे, मेरे मना करने पर उन्होंने मुझे दो-चार डंडा भी मारा, फिर मुझसे मेरे चचरे भाई व आदिवासी-मूलवासी विकास मंच के सचिव विजय मुर्मू के बारे में पूछने लगे। जबकि वे एक सप्ताह पहले ही हैदराबाद टावर में काम करने गये है। वे विजय मुर्मू को माओवादी बताने लगे, जबकि वे हमेशा गांव में रहकर ही दैनिक मजदूरी का काम करते थे। फिर मुझसे आदिवासी-मूलवासी विकास मंच के अध्यक्ष अर्जुन मुर्मू व मेरी चाची सुमित्रा मुर्मू, जो कि मेहनतकश महिला संघर्ष समिति, झारखंड क्रांतिकारी मजदूर यूनियन व झारखंड जन संघर्ष मोर्चा की नेत्री हैं, उनके बारे में पूछने लगे। लगभग एक घंटे की पूछताछ में वे मुझसे काला झंडा फहराने व टावर उड़ाने में शामिल होने की बात बोलवाना चाहते थे, लेकिन मैंने हमेशा कहा कि मैं इसमें शामिल नहीं था। बाद में मुझे फिर लॉकअप में बंद कर दिया गया। दिन भर कुछ भी खाने को नहीं दिया, रात के 8 बजे सिर्फ 3 लिट्टी व चोखा दिया गया।’’

मांझी हड़ाम बाबूलाल मांझी

मालूम हो कि भाकपा( माओवादी) के पोलित ब्यूरो सदस्य प्रशांत बोस उर्फ किसान दा व केंद्रीय कमेटी सदस्य शीला मरांडी को जेल में यातना देने, उचित इलाज ना कराने, दोनों को राजनीतिक बंदी का दर्जा देने आदि का आरोप लगाते हुए भाकपा (माओवादी) ने 21 से 27 जनवरी तक ‘प्रतिरोध सप्ताह’ का ऐलान किया था, जिसमें 26 जनवरी को ‘काला दिवस’ व 27 जनवरी को बिहार-झारखंड बंद का आह्वान था। इसी प्रतिरोध के तहत ही 25-26 जनवरी की दरमियान रात को बालदेव मुर्मू के गांव से लगभग 9-10 किलोमीटर दूर खटकी गांव के स्कूल में भाकपा (माओवादी) द्वारा काला झंडा फहराया गया था व जीयो टावर के ऑफिस को भी उड़ाया गया था।

बालदेव मुर्मू बताते हैं कि 29 जनवरी की एक घंटे की पूछताछ के बाद 30 जनवरी को दिनभर कोई पूछताछ नहीं की गयी। दिन में घर से मम्मी खाना लायीं, वही खाये। रात्रि 8 बजे खाना खिलाने के बाद दो टीम ने अलग-अलग पूछताछ किया, जिसमें पारिवारिक परिचय व माओवादी घटना में मेरी संलिप्तता स्वीकारने का मुझ पर दबाव बनाया गया। मैं हर बार इंकार करता रहा। फिर लगभग 11 बजे रात में मेरे हाथ में पहली बार हथकड़ी लगायी गयी और मुझे बोलेरो में बैठाकर वहां से लगभग 50 किलोमीटर दूर हजारीबाग शायद डीएसपी कार्यालय लाया गया।

यहां भी पहले लॉकअप में बंद कर दिया गया। फिर थोड़ी देर में मुझे एक कमरे में ले जाया गया। जहां 5 अधिकारी थे, जिसमें रांची से आयी हुई स्पेशल टीम भी थी। वे लोग भी मुझे माओवादी बनाने पर तुल गये, मैं यहां भी मजबूती से इंकार करता रहा। तभी एक अधिकारी ने कहा कि खाना लगाओ, सब साथ मिलकर खाते हैं। एक प्लेट में सेब, अंगूर, काजू आदि लाया गया और मुझे भी खाने बोला, मैंने भी डर से खा लिया। तभी एक अधिकारी ने झारखंड जन संघर्ष मोर्चा से जुड़े कई व्यक्तियों की तस्वीर मुझे दिखायी, तो मैंने सबका नाम उनको बता दिया।

बालदेव की माँ मंझली देवी।

फिर और भी कई लोगों की तस्वीर उन्होंने दिखायी, जिन्हें मैं नहीं पहचानता था, इसलिए इंकार कर दिया। एक पुलिस अधिकारी मुझे बोलने लगे ‘तुम ढोलकट्टा क्यों जाते हो?’ मैंने कहा कि मेरी बहन की शादी वहीं हुई है, इसलिए जाता हूं, तो वे बोलने लगे कि तब तो तेरा बहनोई जरूर तुझे माओवादी से मिलाया होगा। तभी एक व्यक्ति संथाली में मुझे बोलने लगा कि तुम कबूल कर लो कि तुम माओवादी से जुड़े हो, तब तुझे कुछ नहीं करेंगे और छोड़ देंगे। तभी डीएसपी (जिसके बैच पर उरांव लिखा हुआ था, मैं पढ़ पाया) ने कहा कि सच-सच सब कबूल कर लो, नहीं तो पूरा जिंदगी बर्बाद कर देंगे। तभी एक अधिकारी फेसबुक पोस्ट पढ़कर सुनाने लगा और बोलने लगा कि तुम तो बहुत बड़ा नेता बन गया, सभी तेरे बारे में लिख रहे हैं।

वे मुझसे झारखंड जन संघर्ष मोर्चा के फंडिंग के बारे में पूछ रहे थे, मैंने स्पष्ट कहा कि हम लोग गांव-गांव में चंदा करते हैं, जिसकी रसीद भी है। जब मैं उनकी धमकियों से नहीं डरा, तो उन्होंने मुझे फिर लॉकअप में बंद कर दिया। 31 जनवरी की सुबह फिर दो टीम ने पूछताछ किया और मेरी तस्वीर भी ली। सादा कागज पर सभी दस अंगुलियों का निशान भी लिया। फिर नाश्ता दिया और 11 बजे फिर लॉकअप में बंद कर दिया।

थके होने के कारण मुझे नींद आ गयी और मैं सो गया। 4 बजे शाम में मुझे एक पुलिस ने जगाया और फिर मुझे हथकड़ी लगा दिया गया और दारोगा प्रशांत मिश्रा ने बोलेरो में बैठा लिया। रास्ते में उन्होंने मुझसे कहा कि तुम अब अच्छे से रहना और फिर मेरा हथकड़ी खोलकर सीट के नीचे छिपा दिया। लगभग 5 बजे शाम में मुझे व मुखिया पति कुलदीप रविदास को एक कागज पर हस्ताक्षर करवाकर छोड़ दिया, उस कागज पर क्या लिखा था, पूरा तो नहीं पढ़ पाया, लेकिन इतना पढ़ पाया कि मुझे सकुशल इनके हवाले किया जा रहा है। जब मैंने अपने मोबाइल व ग्लैमर बाईक का कागज उनसे मांगा, तो बोले कि 2-3 दिन में पहुंचा देंगे।’’

विजय मुर्मू की पत्नी फूलमुनी देवी

आदिवासी-मूलवासी विकास मंच के अध्यक्ष अर्जुन मुर्मू जो कि डीवीसी बोकारो थर्मल में ठेका मजदूर हैं, बताते है कि “29 जनवरी को मैं ड्यूटी पर था, तभी मुझे गांव के एक व्यक्ति ने फोन पर सारी बात बतायी। मैं तुरंत वहां से निकला और अपने कई सदस्यों को फोन किया। हम सभी लगभग 2 बजे थाना पहुंचे। थाना में मैंने दारोगा प्रशांत मिश्रा से पूछा कि बालदेव का जुर्म क्या है, इन्हें जल्दी छोड़ दीजिए। तो वह गुस्सा गया और बोलने लगा कि सबको रगड़ देंगे। काफी हील-हुज्जत के बाद बताया कि एसपी के आदेश पर पकड़े हैं, वे रात में आकर पूछताछ करेंगे। आप लोग कल 10 बजे आइये।

हम लोग वापस आ गये। 30 जनवरी को 10 बजे हम लोग 40-50 व्यक्ति, जिसमें नरकी पंचायत की मुखिया बेबी देवी, उनके पति कुलदीप रविदास, वार्ड सदस्या देवंती देवी, उनके पति मोती रविदास, लोकतांत्रिक जनता दल के नेता दशरथ राय के साथ-साथ महिला-पुरूष, बच्चे व वृद्ध शामिल थे, थाना पहुंचे। दारोगा ने बताया कि एसपी रात में नहीं आए हैं, अब रात में आएंगे। यह सुनकर मुझे गुस्सा आ गया और मैंने बोला कि आपको 24 घंटा से अधिक हवालात में रखने का अधिकार नहीं है। इस पर वह दारोगा गुस्सा गया और बोलने लगा कि जब तक मेरी मर्जी होगी तब तक रखेंगे। ज्यादा बोलोगे, तो आज छापामारी में जो केन बम मिला है, उसी केस में इसे डाल देंगे। हम लोग 30 जनवरी की शाम तक वहीं रूके रहे और सभी स्थानीय मीडिया (हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, प्रभात खबर, दैनिक भास्कर) के पत्रकारों को बुलाकर पूरी घटना बतायी।

हमसे सारी घटना सुनकर सारे पत्रकार थाना के अंदर चले गये, बाद में मुझे एक पत्रकार ने बताया कि दारोगा बोल रहा है कि इस थाने में उनके ऊपर कोई मामला है ही नहीं, शायद दूसरे जिला का मामला है। दारोगा के कहने पर शाम होने पर हम लोग घर आ गये। फिर हम लोग जब 31 जनवरी को थाना गये, तो हवालात खाली पाया। तब जाकर बालदेव की मां मंझली देवी ने अपने वकील के माध्यम से रांची उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को एक ई-मेल किया और अपने बेटे की जिंदगी को बचाने की गुहार लगायी। फिर 5 बजे शाम में मुझे फोन आया कि थाना आइये, बालदेव को छोड़ दिया है”।

अर्जुन मुर्मू कहते हैं कि इस पूरे प्रकरण में हम लोग काफी कुछ सीखे। तीन दिन तक मेरा कार्यकर्ता अवैध हिरासत में रहा लेकिन स्थानीय मीडिया ने एक पंक्ति भी नहीं छापा, जबकि हम लोग प्रतिदिन उनको अपडेट देते थे। साथ ही एक आदिवासी को कैसे पुलिस बिना वारंट के उठा लेती है, घर में छापा मारती है, ये सब भी देखा।

आदिवासी-मूलवासी विकास मंच के अध्यक्ष अर्जुन मुर्मू।

मालूम हो कि बालदेव मुर्मू को हिरासत में लेने के एक घंटे बाद ही पुलिस ने बालदेव के घर पर छापा मारा और उनके घर से आदिवासी-मूलवासी विकास मंच का रजिस्टर, बैनर, बालदेव का आधार कार्ड, वोटर कार्ड, ई-श्रम कार्ड, एसबीआई का एटीएम कार्ड आदि घर से ले गये। फिर 30 जनवरी को जब पूरा गांव थाने पर था, तब पुलिस ने विजय मुर्मू के घर पर छापा मारा और घर का ताला तोड़कर उनके घर से रजिस्टर, आदिवासी-मूलवासी विकास मंच का पर्चा, बिना सिम का एक छोटा मोबाइल व कुछ किताब, जिसमें इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘दस्तक नये समय की’ व पत्रकार रूपेश कुमार सिंह की जेल डायरी ‘कैदखाने का आईना’ भी शामिल है, जब्त कर लिया और घर में रखे गये चावल, बक्से में रखे कपड़े आदि को छींट दिया। विजय मुर्मू की पत्नी फूलमुनी देवी को भी थाने में रखकर पूछताछ किया गया। इस रिपोर्ट को लिखे जाने तक पुलिस ने ना तो बालदेव मुर्मू का सामान लौटाया है और ना ही फूलमुनी देवी का।

इस पूरे घटनाक्रम पर जब प्रशासन का पक्ष जानने की कोशिश की गयी, तो उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया।

आदिवासी-मूलवासी अधिकार मंच के अध्यक्ष अर्जुन मुर्मू कहते हैं कि इस पुलिसिया जुल्म के खिलाफ जल्द ही एक बड़ा प्रतिरोध सभा करेंगे और वकील से सलाह लेकर पुलिस पर कानूनी कार्रवाई भी करेंगे।

बालदेव की रिहाई को लेकिर सक्रिय रहे झारखंड जन संघर्ष मोर्चा व झारखंड क्रांतिकारी मजदूर यूनियन के नेता रज्जाक अंसारी कहते हैं कि 3 दिनों तक पुलिस द्वारा लगातार एक युवा आदिवासी को जिस तरह से माओवादी बनाने का षड्यंत्र रचा गया, यह काफी भयावह है। आदिवासी-मूलवासी के हित की बात करने वाली सरकार सबसे अधिक जुल्म आदिवासियों-मूलवासियों पर ही कर रही है।

झारखंड जन संघर्ष मोर्चा के संयोजक बच्चा सिंह कहते हैं कि अगर सोशल मीडिया पर अभियान ना चलाया जाता, अगर थाने पर प्रतिदिन लोग नहीं जाते और अगर उच्च न्यायालय में ई-मेल नहीं किया जाता, तो पक्का था कि झारखंड पुलिस बालदेव मुर्मू को दुर्दांत माओवादी घोषित कर देती।

वे कहते हैं कि जिस तरह से हालिया गठित झारखंड जन संघर्ष मोर्चा को झारखंड सरकार टारगेट कर रही है, यह काफी दुखद और भयावह है। झारखंड जन संघर्ष मोर्चा की सारी गतिविधि और कार्यक्रम दिन के उजाले की तरह साफ है, यह संगठन केंद्र व राज्य सरकार की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ आंदोलन करने के लिए ही बनाया गया है। बात स्पष्ट है कि विगत भाजपाई रघुवर दास सरकार व वर्तमान हेमंत सोरेन की सरकार में कोई अंतर नहीं है। आदिवासी-मूलवासी विरोधी इस सरकार के खिलाफ भी एक व्यापक आंदोलन पूरे झारखंड में खड़ा किया जाएगा।

बालदेव मुर्मू के गांव के मांझी हड़ाम बाबूलाल मांझी कहते हैं कि हमारे गांव के युवाओं को माओवादी कहकर इसलिए फंसाया जा रहा है ताकि ये लोग जल-जंगल-जमीन को बचाने की लड़ाई को बंद कर दें और सरकार हमारे जल-जंगल-जमीन को आसानी से पूंजीपतियों को सौंप सके। हमारे गांव के सारे युवा आदिवासी-मूलवासी विकास मंच से जुड़कर जल-जंगल-जमीन को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं।

54 घंटे पुलिस की अवैध हिरासत में रहने के बाद भी आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता बालदेव मुर्मू जरा भी नहीं डरे हैं और मजबूती से कहते हैं कि जब तक जिंदा रहेंगे, जल-जंगल-जमीन को बचाने की लड़ाई लड़ते रहेंगे।

(ग्राउंड जीरो से स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह की रिपोर्ट।)

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