रक्षा सौदों में सरकार की तारनहार रही है न्यायपालिका

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जिस तरह से उच्चतम न्यायालय ने राफेल सौदे में मोदी सरकार को क्लीन चिट दी और इसके पहले हुए बोफोर्स सौदे में कम से कम पांच अवसरों पर उच्चतम न्यायालय? दिल्ली हाईकोर्ट ने मामले को ख़ारिज कर दिया। इससे तो यही ध्वनि निकल रही है कि रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार पर न्यायपालिका का रुख नरम रहा है। चूँकि रक्षा सौदों में बहुत बड़े प्रभावशाली लोगों की संलिप्तता होती है और अंतर्राष्ट्रीय सम्बंध भी शामिल होते हैं, इसलिए होहल्ला चाहे जो हो अंततः पर्याप्त साक्ष्य के अभाव में अथवा अन्य तकनीकी कारणों से मामला तार्किक परिणति तक नहीं पहुँचते और दाखिल दफ्तर कर दिए जाते हैं।

गौरतलब है की फ्रांस की समाचार वेबसाइट मीडिया पार्ट ने एक बार फिर राफेल लड़ाकू विमान सौदे में भ्रष्टाचार की आशंकाओं के साथ सवाल उठाए हैं। फ्रेंच भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसी एएफए की जांच रिपोर्ट के हवाले से प्रकाशित खबर के मुताबिक, दैसो एविएशन ने कुछ बोगस नजर आने वाले भुगतान किए हैं। कंपनी के 2017 के खातों के ऑडिट में 5 लाख 8 हजार 925 यूरो (4.39 करोड़ रुपए) क्लाइंट गिफ्ट के नाम पर खर्च दर्शाए गए। मगर इतनी बड़ी धनराशि का कोई ठोस स्पष्टीकरण नहीं दिया गया। मॉडल बनाने वाली कंपनी का मार्च 2017 का एक बिल ही उपलब्ध कराया गया। एएफए की छानबीन में दैसो एविएशन ने बताया कि उसने राफेल विमान के 50 मॉडल एक भारतीय कंपनी से बनवाए। इन मॉडल के लिए 20 हजार यूरो (17 लाख रुपए) प्रति नग के हिसाब से भुगतान किया गया। हालांकि, यह मॉडल कहां और कैसे इस्तेमाल किए गए इसका कोई प्रमाण नहीं दिया गया। रिपोर्ट में बताया गया है कि मॉडल बनाने का काम कथित तौर पर भारत की कंपनी देफ्सिस सल्युसंस (Defsys Solutions) को दिया गया। यह कंपनी दैसो की भारत में सब-कॉन्ट्रैक्टर कंपनी है।

मीडिया पार्ट की रिपोर्ट आने के बाद उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण का यह दावा एक बार फिर चर्चा का विषय बन गया है जिसमें भूषण ने कहा था कि राफेल लड़ाकू विमान सौदा इतना बड़ा घोटाला है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। उन्होंने आरोप लगाया था कि आफसेट करार के जरिए अनिल अम्बानी के रिलायंस समूह को ‘दलाली (कमीशन)’ के रूप में 21,000 करोड़ रुपये मिले। उन्होंने इस सौदे से जुड़़ी कथित दलाली की 1980 के दशक के बोफोर्स तोप सौदे में दी गई दलाली से तुलना की। अंबानी ने इससे पहले आरोप से इनकार किया था। भूषण ने आरोप लगाया कि भाजपा नेतृत्व वाली सरकार ने केवल सौदे में अनिल अम्बानी की कंपनी को जगह देने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा से ‘समझौता’ किया, भारतीय वायु सेना को ‘बेबस’ छोड़ दिया। बोफोर्स 64 करोड़ रुपये का घोटाला था जिसमें चार प्रतिशत कमीशन दिया गया था। इस घोटाले में कमीशन कम से कम 30 प्रतिशत है। अनिल अम्बानी को दिए गए 21,000 करोड़ रुपये केवल कमीशन हैं, कुछ और नहीं।

14 दिसंबर 2018 को राफेल मामले में उच्चतम न्यायालय ने कोर्ट की अगुवाई में जांच की मांग वाली सभी याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा था कि हमें रक्षा सौदे में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिला। फैसला पढ़ते हुए तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा था कि कोर्ट का ये काम नहीं है कि वो निर्धारित की गई राफेल कीमत की तुलना करे। हमने मामले का अध्ययन किया, रक्षा अधिकारियों के साथ बातचीत की, हम निर्णय लेने की प्रक्रिया से संतुष्ट हैं। कोर्ट ने ये भी कहा कि हम इस फैसले की जांच नहीं कर सकते कि 126 राफेल की जगह 36 राफेल की डील क्यों की गई। हम सरकार से ये नहीं कह सकते कि आप 126 राफेल खरीदें।

कोर्ट ने कहा कि हम पहले और वर्तमान राफले सौदे के बीच की कीमतों की तुलना करने के लिए न्यायिक समीक्षा की शक्तियों का उपयोग नहीं कर सकते हैं।  पीठ ने कहा खरीद, कीमत और ऑफसेट साझेदार के मामले में हस्तक्षेप के लिए उसके पास कोई ठोस साक्ष्य नहीं है। 17 नवंबर 2019 को रिटायर होने से 3 दिन पहले 14 नवंबर को रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने राफेल मामले में दायर की गईं सभी पुनर्विचार याचिकाओं को ख़ारिज करते हुए कहा था कि हमें ऐसा नहीं लगता है कि इस मामले में कोई एफआईआर दर्ज होनी चाहिए या फिर किसी तरह की जांच की जानी चाहिए।

इस मामले में भी उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ता प्रशांत भूषण भी एक याचिकाकर्ता थे और बोफोर्स मामले में भी प्रशांत भूषण एक याचिकाकर्ता थे। प्रशांत भूषण ने वर्ष 2005 में फ्रंटलाइन को दिए गए साक्षात्कार में कहा था कि कम से कम पांच बार न्यायपालिका ने बोफोर्स मामले को खारिज कर दिया था। कभी दिल्ली उच्च न्यायालय ने तो कभी उच्चतम न्यायालय ने।   

बोफोर्स घोटाला, 1987

1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने। 1984 के लोकसभा चुनाव में राजीव की अगुवाई में कांग्रेस ने रिकॉर्ड 412 सीटें हासिल कीं। लेकिन 1989 के चुनाव में उनकी सरकार चली गई। इसका एक बड़ा कारण बोफोर्स घोटाला था। भारत सरकार ने सेना के लिए 155 एमएम फील्ड हवित्जर तोप खरीदने के लिए टेंडर निकाला। सरकार ने तय किया था कि इस डील में कोई बिचौलिया नहीं होगा। तीन देशों फ्रांस, ऑस्ट्रिया और स्वीडन ने इस सौदे में दिलचस्पी दिखाई। स्वीडन और ऑस्ट्रिया ने आपस में तय किया कि तोप स्वीडन सप्लाई करेगा और गोला-बारूद ऑस्ट्रिया का होगा। ऐसे में स्वीडन की कंपनी बोफोर्स एबी को ये डील मिल गई।

करीब 1500 करोड़ के इस सौदे में भारत को 410 हवित्जर बेची गईं। लेकिन मई, 1986 में स्वीडन के एक रेडियो पर खबर आई कि बोफोर्स ने इस सौदे को हासिल करने के लिए करीब 64 करोड़ रुपए की रिश्वत दी है। और इस कथित रिश्वत देने में राजीव गांधी,अमिताभ बच्चन ,विन चड्ढा,हिंदुजा भाईयों और क्वात्रोकी का नाम आया। 1989 के चुनाव में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई। क्वात्रोकी भारत से भागकर विदेश चले गए। राजीव गांधी पर क्वात्रोकी की मदद के भी आरोप लगे। इस मामले की सीबीआई जांच शुरू हुई। 1991 में राजीव की हत्या के बाद उनका नाम आरोपियों की सूची से हटा दिया गया। हालांकि जांच जारी रही और 31 मई, 2005 को दिल्ली हाइकोर्ट ने राजीव गांधी के खिलाफ लगे सारे आरोपों को गलत करार दिया।

सीबीआई ने इंटरपोल से लेकर कई संस्थाओं से क्वात्रोकी को हिरासत में लेने की कोशिश की लेकिन सफल न हो सकी। 12 जुलाई, 2013 को क्वात्रोकी की मौत हो गई। 64 करोड़ रुपये के कथित रिश्वत के इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में राजीव गांधी पर कोई आरोप साबित नहीं हो पाया।

ताबूतों की खरीद में घोटाला

इसी तरह कारगिल युद्ध के दौरान हथियारों और ताबूतों की खरीद में घोटाले के आरोपों से तत्कालीन एनडीए सरकार को बरी कर दिया गया है। करीब सोलह साल बाद इस मामले में सीबीआई ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की जिसके बाद उच्चतम न्यायालय ने किसी को भी दोषी न मानते हुए इस मामले को बंद करने के निर्देश दे दिए। कारगिल युद्ध के दौरान मिसाइल, हथियारों और शहीद जवानों के लिए ताबूतों की खरीद-फरोख्त में व्यापक घोटाले की बात सामने आई थी, जिसके चलते तत्कालीन एनडीए सरकार की काफी किरकिरी भी हुई थी।

टैंकरोधी राइफ़ल सौदा घोटाला

एनडीए सरकार के दौरान 2003 में दक्षिण अफ़्रीकी कंपनी डेनेल के साथ 20 करोड़ रुपये का सौदा हुआ था जिसके तहत उसे टैंकरोधी राइफ़ल की आपूर्ति करनी थी। भारतीय नियमों के अनुसार रक्षा सौदों में कोई मध्यस्थ या दलाल नहीं होना चाहिए। हालांकि बाद में दक्षिण अफ़्रीका के अख़बार ‘केप आर्गूस’ में दावा किया गया कि इस सौदे में ब्रिटिश आइल स्थित एक एजेंट को 13 फ़ीसदी कमीशन दिया गया। इस दौरान जॉर्ज फ़र्नाडिंस भारत के रक्षा मंत्री थे। साल 2005 में तत्कालीन रक्षा मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कंपनी की ओर से 300 राइफ़लों की आपूर्ति के बाद लगभग उतनी ही राइफ़ल की आपूर्ति पर रोक लगा दी। साथ ही इस मामले की जाँच सीबीआई से कराने का फ़ैसला लिया गया। साल 2005 में यूपीए सरकार ने दक्षिण अफ्रीका की इस कंपनी को ब्लैकलिस्ट कर दिया। हालांकि 13 साल बाद भारत सरकार ने कंपनी पर से ये पाबंदी हटा ली क्योंकि सीबीआई जाँच में कंपनी की तरफ़ से किसी अनियमितता की पुष्टि नहीं हो पाई और सीबीआई ने इस मामले में साल 2014 में क्लोज़र रिपोर्ट फ़ाइल कर दी थी।

पनडुब्बी घोटाला

मनमोहन सिंह की अगुवाई वाले यूपीए सरकार के समय स्कॉर्पीन पनडुब्बी मामले में रिश्वत के आरोप लगे थे। उस समय एनडीए नेताओं ने इसे यूपीए सरकार का सबसे बड़ा घोटाला बताते हुए कहा था कि फ़्रांस के साथ 187.98 अरब रुपयों के इस सौदे में चार प्रतिशत कमीशन दिया गया था। विपक्ष का आरोप था कि इस मामले में पूर्व कांग्रेस सांसद के बेटे अभिषेक वर्मा ने मध्यस्थ की भूमिका निभाई थी जिन्हें इस सौदे में कथित तौर पर 500 से 700 करोड़ रुपयों की दलाली दी गई। साल 2015 में केंद्र सरकार ने एक जनहित याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट के सवालों का जवाब देते हुए बताया कि स्कॉर्पीन पनडुब्बी सौदे में कोई रिश्वत नहीं दी गई थी। इससे पहले भी साल 2008 में सीबीआई ने दिल्ली हाई कोर्ट को यही बात कही थी कि इस मामले में रिश्वत देने का कोई सबूत नहीं मिला है।

टाट्रा ट्रकों की ख़रीद का मामला

पूर्व सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह ने साल 2012 में आरोप लगाया था कि 600 टाट्रा ट्रकों की ख़रीद को मंज़ूरी देने के लिए उन्हें 14 करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश की गई थी। वीके सिंह की शिकायत के बाद सीबीआई ने इस मामले की जांच की और साल 2014 में क्लोजर रिपोर्ट फाइल कर दी। सीबीआई ने क्लोजर रिपोर्ट में कहा कि जांच को आगे बढ़ाने के लिए कोई सबूत नहीं है। इस क्लोज़र रिपोर्ट पर सुनवाई करते हुए स्पेशल कोर्ट ने सीबीआई के कामकाज के तरीके पर सवाल उठाए थे। साल 2012 में रक्षा मंत्रालय ने टाट्रा ट्रकों पर प्रतिबंध लगा दिया जो सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट के बाद 2014-15 में हटा लिया गया था।

अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर डील स्कैम, 2007 की जाँच अभी चल रही है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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