भारतीय जीवन बीमा निगम यानी एलआईसी क्या डूब रही है। देश के सबसे बड़े संस्थागत निवेशकों में शामिल भारतीय जीवन बीमा निगम रिजर्व बैंक के बाद सरकार के लिए सबसे अधिक मुनाफा कमाने वाली कंपनी भी है। लेकिन मौजूदा सरकार में निगम का इस्तेमाल दुधारू गाय की तरह होना शुरू हुआ है जिसका नतीजा दो रोज पहले आयी एक खबर है। इसके मुताबिक बीते ढाई महीने में ही निगम को शेयर बाजार में निवेश के लिहाज से सत्तावन हजार करोड़ रुपये की चपत लग चुकी है। निगम ने जिन कंपनियों में निवेश किया है उनमें से इक्यासी फीसदी के बाजार मूल्य में गिरावट आयी है। निगम ने सबसे अधिक निवेश आईटीसी में कर रखा है। इसके बाद एसबीआई, ओएनजीसी, एलएण्डटी, कोल इण्डिया, एनटीपीसी, इण्डियन आयल और रिलायंस इण्डस्ट्रीज में निवेश है।
बिजनेस स्टैण्डर्ड के मुताबिक जून तिमाही के अंत तक शेयर बाजार में लिस्टेड कंपनियों में निगम का निवेश मूल्य पांच सौ तैंतालिस लाख करोड़ रुपये था। अब यह घटकर महज चार सौ छियासी लाख करोड़ रुपये रह गया है। मतलब महज ढाई महीने में निगम के शेयर बाजार में सत्तावन हजार करोड़ रुपये की यह चपत है। रिजर्व बैंक के आंकड़ों को देखें तो मार्च, दो हजार उन्नीस तक निगम ने कुल छब्बीस सौ साठ लाख करोड़ का निवेश किया है जिसमें सरकारी क्षेत्रीय कंपनियों में बाईस सौ साठ लाख करोड़ और निजी क्षेत्र में चार लाख करोड़ रुपये हैं। कह सकते हैं कि सरकारी क्षेत्रीय हालत तो लगातार खराब है अब निजी क्षेत्र भी पिटा जा रहा है।
निगम से ऐसी कई कंपनियों में निवेश कराया गया है जो दिवालिया होने का कगार पर हैं। ऐसी कई कंपनियों की याचिका राष्ट्रीय कंपनी कानून ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) ने दिवालियापन की प्रक्रिया (आईबीसी) के तहत स्वीकार कर लिया है। इस सूची में आलोक इण्डस्ट्रीज, एबीजी शिपयार्ड, अम्टेक आटो, मंधाना इण्डस्ट्रीज, जेपी इन्फ्राटेक, ज्योति स्ट्रक्चर्स, रेनबो पेपर्स और आर्किड फार्मा जैसे नाम शामिल हैं। सबसे बड़ा नुकसान आईएलएण्डएफएस में झेलना पड़ रहा है। इस कंपनी में निगम की पच्चीस दशमलव तीन चार फीसदी हिस्सेदारी है। आईएलएण्डएफएस समूह पर कुल इक्यान्वे हजार करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज है। समूह को धन की भारी कमी से जूझना पड़ रहा है। यह कंपनी बीते अगस्त के बाद से ही लगभग डिफाल्टर की स्थिति में है।
पिछले साल सरकार के दबाव में आईडीबीआई ने इक्यावन फीसदी हिस्सेदारी खरीदने के लिए बारह हजार छह सौ करोड़ रुपये का भुगतान करना पड़ा। यह बैंक देश के बीमार सरकारी बैंकों में सर्वाधिक एनपीए अनुपात वाला बैंक माना जाता है। निगम में देश की अधिकांश जनता की जमा पूंजी है। अपनी बचत से रुपये निकालकर लोग निगम की पालिसी में लगाते हैं जिसके सहारे उनका और उनके परिवार का भविष्य सुरक्षित रहता है। मोदी राज में बहुत पहले से ही पैसे की लूट शुरू हो गयी थी लेकिन अब पानी सर तक आ चुका है।
मोदी के नेतृत्व में दूसरा कार्यकाल शुरू तो बड़े जोश-खरोश के साथ हुआ लेकिन बड़ी-बड़ी कंपनियों के मुश्किल दिन भी साथ ही शुरू हो गये। बीएसएनएल, एचएएल और एयर इण्डिया आर्थिक समस्याओं में पड़ गया अब इस सूची में एक और नाम भारतीय जीवन बीमा निगम का भी शामिल हो गया है।
दरअसल, पिछले ढाई महीने से निगम को शेयर बाजार में हुए निवेश से मौजूदा वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही में सत्तावन हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। निगम ने जिन कंपनियों में निवेश किया उनमें से इक्यासी फीसदी के बाजार मूल्य में गिरावट आ गयी। निगम को सरकार के विनिवेश एजेण्डा को पूरा करने के लिए सरकारी कंपनियों के मुक्तिदाता की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। बिजनेस स्टैण्डर्ड की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले एक दशक में सार्वजनिक कंपनियों में निगम का निवेश चार गुना हो गया है। इसके बाद भी मोदी सरकार अगर दावा करती है कि अर्थव्यवस्था में सब कुशल मंगल है तो इस पर विचार किये जाने की जरूरत है।
पिछले दिनों देश के रिजर्व बैंक में मोदी सरकार को चौबीस दशमलव आठ अरब डालर यानी लगभग एक सौ छिहत्तर लाख करोड़ रुपये लाभांश और सरप्लस पूंजी को तौर पर देने का फैसला किया है। अब ऐसे हाल में अगर निगम को ही अकेले सत्तावन हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है तो इसकी भरपायी कौन करेगा? कहीं-न-कहीं सरकार को ही इसकी भरपायी करनी होगी और आखिरी धक्का आम आदमी को सहना पड़ेगा।
