Wednesday, April 17, 2024
प्रदीप सिंह
प्रदीप सिंहhttps://www.janchowk.com
दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

कर्नाटक चुनाव: लिंगायत मुख्यमंत्री के वायदे के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की जुगत में भाजपा

नई दिल्ली। कर्नाटक विधानसभा के लिए चुनावी अभियान अब पूरे शबाब पर है। राज्य में 224 सदस्यीय विधानसभा के 10 मई को होने वाले चुनाव के पहले ही भाजपा पस्त नजर आ रही है। रोज-ब-रोज के घटनाक्रम से सत्तारूढ़ दल की बेचैनी बढ़ती जा रही है। विद्रोही नेताओं ने भाजपा का सिरदर्द और बढ़ा दिया है। मुस्लिम–दलित आरक्षण में छेड़-छाड़ और बुर्का-हलाल जैसे मुद्दे भाजपा के लिए फायदेमंद साबित नहीं हुए। वहीं राज्य में सत्ता विरोधी लहर भी है। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है, कांग्रेस की चुनावी सभाओं में भारी भीड़ उमड़ रही है वहीं भाजपा का प्रचार अभियान फीका पड़ने लगा है। भाजपा अब चुनावी बाजी को अपने पक्ष में करने नहीं बल्कि लिंगायत मुख्यमंत्री की मांग कर कांग्रेस को उलझाने की कोशिश कर रही है। दरअसल, इस समय कर्नाटक में लिंगायत, दलित, मुसलमान और वोक्कालिगा जैसे तमाम समुदाय के लोग सत्तारूढ़ दल से नाराज हैं।

चुनावी मैदान में मुख्यत: तीन पार्टियां- भाजपा, कांग्रेस और जेडीएस हैं। भाजपा सत्तारूढ़ दल है, तो कांग्रेस और जेडीएस विपक्ष में है। 2018 विधानसभा चुनाव में किसी दल को बहुमत नहीं मिला था। राज्य में जेडीएस औऱ कांग्रेस ने मिलकर सरकार बनाई और 23 मई, 2018 को जेडीएस नेता कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने। लेकिन 14 महीने बाद भाजपा ने जेडीएस और कांग्रेस के विधायकों को तोड़कर बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री बना दिया। दो वर्षों तक येदियुरप्पा राज्य के मुख्यमंत्री रहे।

पार्टी के अंदर उभरते असंतोष और येदियुरप्पा पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते जुलाई 2021 में एक बार सत्ता परिवर्तन हुआ। और भाजपा नेता बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया गया। बोम्मई के सीएम बनने के बाद भी येदियुरप्पा खेमा सक्रिय रहा। दरअसल, येदियुरप्पा अपने बेटे को अपनी राजनीतिक विरासत सौंपना चाहते थे। इसके राह में जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण सावदी जैसे लिंगायत नेता बाधा बन रहे थे। येदियुरप्पा ने चुनाव के पहले उनको निपटाने का प्रबंध कर दिया। लेकिन येदियुरप्पा की यही चाल भाजपा पर भारी पड़ने जा रही है।

भाजपा ने कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस के बागी विधायकों के बल पर 2019 में सत्ता पर कब्जा तो जमा लिया था। लेकिन अब उसे दूसरे दल को विधायकों को तोड़ने की कीमत चुकानी पड़ रही है। भाजपा के कई दिग्गज टिकट न मिलने की वजह से पार्टी छोड़ कर कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं। वहीं दल-बदलू विधायकों को टिकट देने से स्थानीय कार्यकर्ताओं में भारी नाराजगी दिखाई दे रही है।

कर्नाटक में हालत यह है कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व भी बागियों को समझाने में नाकाम है। केंद्र में मंत्री पद या किसी राज्यपाल पद का ऑफर भी वरिष्ठ नेताओं को पार्टी छोड़ने से नहीं रोक सका। चुनाव के पहले ही भाजपा का सिराजा बिखर चुका है। जाति-धर्म, आरक्षण में खेल करने और डबल इंजन की सरकार के फेल होने के बाद अब भाजपा ने ‘लिंगायत मुख्यमंत्री’ का दांव चला है।

भाजपा के दो वरिष्ठ नेता और लिंगायत समुदाय के संबंध रखने वाले पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व उप-मुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी के कांग्रेस में शामिल होने के बाद भाजपा बैकफुट पर है। भाजपा नेतृत्व को यह अंदाजा नहीं था कि दो पीढ़ियों से संघ-भाजपा की पृष्ठभूमि वाले जगदीश शेट्टार कांग्रेस का दामन थाम सकते हैं। शेट्टार और सावदी के कांग्रेस में शामिल होने बाद से ही कांग्रेस आक्रामक अभियान चला रही है कि भाजपा ने वरिष्ठ लिंगायत नेताओं को अपमानित किया। कांग्रेस भाजपा पर लिंगायत विरोधी होने का आरोप लगा रही है।

कांग्रेस के इस अभियान के जवाब में भाजपा ने ‘लिंगायत मुख्यमंत्री’ का अभियान शुरू किया है। भाजपा का कहना है कि कांग्रेस यदि लिंगायतों की इतना हितैषी है तो चुनाव जीतने पर लिंगायत मुख्यमंत्री बनाने का वादा करे। भाजपा ने एक हद तक पार्टी नेतृत्व के समक्ष यह बात पहुंचा दी है कि उसे लिंगायत मुख्यमंत्री बनाने का वादा करना चाहिए।

सत्तारूढ़ दल के इस अभियान के बावजूद कांग्रेस उस पर लिंगायतों के साथ “अन्याय” करने और “लिंगायत विरोधी” होने का आरोप लगाया है। लिंगायत नेताओं जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण सावदी के कांग्रेस में शामिल होने के बाद से ही सत्ताधारी पार्टी डैमेज कंट्रोल मोड पर है। भाजपा के लिंगायत नेताओं ने बुधवार शाम को कर्नाटक भाजपा के कद्दावर नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा के आवास पर मुलाकात की। जहां पार्टी के चुनाव जीतने की स्थिति में अगला मुख्यमंत्री लिंगायत समुदाय से होने की बात कर कांग्रेस के नैरेटिव का मुकाबला करने का सुझाव दिया।

लिंगायतों पर हुंकार क्यों?

राजनीतिक रूप से प्रभावशाली लिंगायत समुदाय राज्य की आबादी का लगभग 17 प्रतिशत है, जो ज्यादातर राज्य के उत्तरी हिस्सों में है। लिंगायत दो दशकों से अधिक समय से भाजपा के समर्थक हैं, राज्य की 224 विधानसभा सीटों में से 100 सीटों के नतीजों को वह प्रभावित करते हैं।

लिंगायत कौन हैं?

माना जाता है कि लिंगायत धर्म 12वीं शताब्दी के समाज सुधारक और कन्नड़ कवि बासवन्ना की शिक्षाओं से विकसित हुआ है। बसवा ‘भक्ति’ आंदोलन से प्रेरित थे। जिन्होंने लिंग,जाति और धार्मिक पूर्वाग्रह से मुक्त होने और धार्मिक कर्मकांडों का विरोध किया था। पिछड़ी जातियों के कई लोगों ने कठोर हिंदू जाति व्यवस्था से बचने के लिए लिंगायत होना चुना।

लेकिन समय के साथ उनके अनुयायियों में काफी बदलाव आया है। लिंगायत संप्रदाय में भी जाति-व्यवस्था ने जड़ जमा ली। आज लिंगायत संप्रदाय के भीतर 99 उप-संप्रदाय हैं। प्रमुख उप-संप्रदायों में पंचमसाली, गनिगा, जंगमा, बनजीगा, रेड्डी लिंगायत, सदर, नोनाबा और गौड़-लिंगायत शामिल हैं। इस विषय के जानकारों का कहना है कि ये सभी उप-संप्रदाय जन्म, विवाह और मृत्यु के समय एक ही तरह की रस्में निभाते हैं। लिंगायतों में मरे हुए व्यक्ति को बैठने की स्थिति में दफनाया जाता है। समुदाय के सदस्य अपने इष्ट लिंग को अपने गले में चांदी की एक छोटी सी डिब्बी में लटका कर रखते हैं। इन उप-संप्रदायों में भिन्नता उनके पारंपरिक व्यवसायों में है।

मुसलमान-दलित आरक्षण विवाद

30 मार्च को, भाजपा के नेतृत्व वाली कर्नाटक सरकार ने मुस्लिमों के लिए 4 प्रतिशत पिछड़े वर्गों के कोटे को रद्द करने के कैबिनेट के फैसले को अधिसूचित किया था-जिन्हें 100 से अधिक वर्षों से कर्नाटक में पिछड़े वर्ग के रूप में मान्यता दी गई है। मुस्लिम ओबीसी कोटे को फिर से आवंटित किया गया है। मुसलमानों के आरक्षण के साथ ही दलितों के आरक्षण में बोम्मई सरकार ने छेड़छाड़ की, जिससे दलित भी भाजपा से नाराज है। वहीं कर्नाटक में लिंगायतों के एक उप-समूह पंचमसाली, जो 2ए आरक्षण श्रेणी में शामिल होना चाहते थे, और वोक्कालिगा, जो अपने 4% कोटा को बढ़ाकर 12% करना चाहते थे, ने आरक्षण की जोरदार मांग की थी।

शेट्टार का इस्तीफा और एक अलग खेल

भाजपा नेतृत्व यह सपने में भी नहीं सोच रहा था कि शेट्टार पार्टी से विद्रोह कर सकते हैं। जगदीश शेट्टार का भाजपा से बाहर निकलना एक झटके के रूप में सामने आया क्योंकि इस शक्तिशाली लिंगायत राजनीतिक नेता को ‘ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा गया, जिसने कभी पार्टी के खिलाफ विद्रोह नहीं किया’ और हमेशा पार्टी लाइन का पालन किया। कहा जा रहा है कि शेट्टार लगभग 25 सीटों को प्रभावित करेंगे। कांग्रेस ने इस घटना को लिंगायतों के सम्मान से जोड़ दिया है। अब भाजपा के सामने बड़ा सवाल है कि इस मुद्दे को वह कैसे हल करे।

लिंगायत मुख्यमंत्री का सवाल कितना कारगर?

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई कहते हैं कि येदियुरप्पा के आवास पर वरिष्ठ नेताओं ने “कुछ मुद्दों” पर कांग्रेस द्वारा फैलाई जा रही “गलत सूचना” का दृढ़ता से मुकाबला करने का निर्णय लिया है। कर्नाटक भाजपा नेताओं ने कर्नाटक चुनाव प्रभारी एवं केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को लिंगायत मुख्यमंत्री घोषित करने का सुझाव दिया। धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि वह राज्य के नेताओं की भावनाओं को आलाकमान तक पहुंचा देंगे। लेकिन इस तथ्य से यह साबित नहीं होता कि भाजपा ने कर्नाटक में लिंगायत मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया है।

(प्रदीप सिंह की रिपोर्ट।)

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