Friday, March 29, 2024
प्रदीप सिंह
प्रदीप सिंहhttps://www.janchowk.com
दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

मणिपुर हिंसा: गैर आदिवासियों को ST का दर्जा और वन कानूनों से बेदखली का डर

नई दिल्ली। देश का पूर्वोत्तर भाग एक बार फिर अशांत है। बुधवार को मणिपुर में जन-जातियों के आमने-सामने आ जाने से हिंसा भड़क उठी। चारों तरफ आगजनी, तोड़-फोड़ और पथराव ने राज्य के शांति व्यवस्था के लिए गंभीर संकट खड़ा कर दिया है। मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह सरकार ने पुलिस को उपद्रवियों को देखते ही गोली मारने का आदेश दिया गया है। राज्य में धारा 144 लागू कर दिया गया है। मणिपुर में मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार है। मुख्यमंत्री स्वयं मैतेई समुदाय से आते हैं।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने मणिपुर हिंसा को लेकर भाजपा पर तीखा हमला बोला। उन्होंने आरोप लगाया कि इस तरह की स्थिति ‘नफरत और बांटने की राजनीति’ की वजह से पैदा हुई है। कांग्रेस अध्यक्ष ने पूर्वोत्तर के राज्य से शांति और संयम बरतने अपील की। खड़गे ने ट्वीट कर कहा, ‘मणिपुर जल रहा है। भाजपा ने समुदायों के बीच दरार पैदा कर दी है और एक सुंदर राज्य की शांति को नष्ट कर दिया है। बीजेपी की नफरत, बांटने और सत्ता के लालच की राजनीति इस अव्यवस्था के लिए जिम्मेदार है। मैं सभी पक्ष के लोगों से संयम बरतने और शांति की अपील करता हूं।’

कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि देश की विडंबना है कि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री कर्नाटक के चुनाव प्रचार में व्यस्त हैं और दूसरी तरफ मणिपुर जल रहा है। पीएम मोदी और गृहमंत्री जी, क्या आपमें यह नैतिकता नहीं बची कि अपना सारा ध्यान मणिपुर पर दें?

सेना के हवाले राज्य की कानून-व्यवस्था

राज्य में शांति-व्यवस्था को काबू में रखने के लिए पुलिस को खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। केंद्रीय गृह मंत्रालय मामले को सीधे देख रहा है। राज्य के चप्पे-चप्पे पर सेना और असम राइफ़ल्स के जवानों को तैनात किया गया गया है और मणिपुर छावनी में तब्दील हो गया है। चुराचांदपुर और फेरज़ावल जिले में मोबाइल इंटरनेट सेवाओं को पांच दिनों के लिए निलंबित कर दिया गया है। राज्य में आरएएफ (RAF), सीआरपीएफ (CRPF) और बीएसएफ (BSF) की 55 टुकड़ियों की तैनाती की गई है। प्रदेश के अधिकांश ज़िलों में कर्फ़्यू लगा दिया गया है। राज्य में सेना के 6000 जवानों की तैनाती की गई है और 14 टुकड़ियों को स्टैंडबाय पर रखा है। अब तक 9 हजार लोगों को सुरक्षित जगहों पर ले जाया जा चुका है।

सोशल मीडिया पर शेयर तस्वीरों और वीडियो को देख कर मणिपुर हिंसा की गंभीरता को समझा जा सकता है। तस्वीरों और वीडियो में कई जगह घरों को आग में जलता हुआ देखा जा सकता है। एक वीडियो में कुछ लोग चुराचांदपुर में हथियारों की एक दुकान तोड़कर बंदूक़ें लूट रहे थे। रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने बयान जारी किया है कि मोरेह और कांगपोकपी में स्थिति नियंत्रण में है। इंफाल और चुराचांदपुर में सामान्य स्थिति बहाल करने की कोशिश की जा रही है।

मणिपुर में क्यों फैली हिंसा?

मणिपुर में हिंसा भड़कने का कारण मणिपुर हाई कोर्ट का एक फैसला है। मणिपुर हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एमवी मुरलीधरन ने हाल ही में एक आदेश दिया था। इस आदेश में हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को मैतेई को भी अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग पर विचार करने को कहा था।

मैतेई ट्राइब यूनियन की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए मणिपुर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को 19 अप्रैल को 10 साल पुरानी केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय की सिफ़ारिश प्रस्तुत करने के लिए कहा था। इस सिफ़ारिश में मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने के लिए कहा गया है।

कोर्ट ने मई 2013 में जनजाति मंत्रालय के एक पत्र का हवाला दिया था। इस पत्र में मणिपुर की सरकार से सामाजिक और आर्थिक सर्वे के साथ जातीय रिपोर्ट के लिए कहा गया था।

शिड्यूल ट्राइब डिमांड कमिटी ऑफ़ मणिपुर यानी एसटीडीसीएम 2012 से ही मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने की मांग कर रहा था। याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट में बताया कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ, उससे पहले मैतेई को यहां जनजाति का दर्जा मिला हुआ था। मैतेई समुदाय की दलील है कि उनको जनजाति का दर्जा मिलना पूर्वजों की ज़मीन, परंपरा, संस्कृति और भाषा की रक्षा के लिए ज़रूरी है।

मणिपुर हिंसा की तस्वीरें

कोर्ट के इसी फैसले के खिलाफ ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (ATSUM) ने ‘आदिवासी एकता मार्च’ निकाला था। इसी एकता मार्च के दौरान हिंसा भड़क गई। राज्य में अशांति फैलने का ताजा कारण यही है।

हिंसा और अशांति का कारण मणिपुर की सामाजिक-भौगोलिक परिस्थिति

मणिपुर के वर्तमान संकट को समझने के लिए हमें वहां की सामाजिक और आर्थिक कारकों  के साथ-साथ भौगोलिक परिस्थितियों को जानने की जरूरत है। दरअसल, मणिपुर की भौगोलिक संरचना में ही कई तरह की समस्याएं निहित हैं। मोटे तौर पर मणिपुर घाटी और पहाड़ी में विभक्त है। यहां तीन प्रमुख जनजातियां निवास करती हैं। घाटी में मैतेई जनजाति और बिष्णुप्रिया मणिपुरी रहती है तो नागा और कूकी-चिन जनजातियां पहा‍ड़ियों पर रहती हैं। प्रत्येक जनजाति वर्ग की खास संस्कृति और रीति रिवाज हैं।पहाड़ी और घाटी के लोगों के बीच लंबे समय से प्रतिद्वंद्विता है। मैतेई समुदाय एसटी दर्जे की मांग करता रहा है। मैतेई समुदाय का कहना है कि एसटी सूची से बाहर रहने के परिणामस्वरूप, “समुदाय को आज तक बिना किसी संवैधानिक सुरक्षा उपायों के रहना पड़ा रहा है। मैतेई समुदाय धीरे-धीरे अपनी पुश्तैनी जमीन से हाशिए पर चले गए हैं। वहीं मैतेई समुदाय के मांग का नागा औऱ कूकी-चिन जनजातियां इसका विरोध करती हैं।

मणिपुर की कुल आबादी 35 लाख के करीब है। लेकिन राज्य के सामाजिक-राजनीतिक जीवन में प्रभावशाली भूमिका रखने वाले मैतेई समुदाय का कुल आबादी में 64 प्रतिशत हिस्सा है। लेकिन मणिपुर के केवल 10 प्रतिशत भूभाग पर ही ग़ैर-जनजाति मैतेई समुदाय का कब्जा है। वहीं मणिपुर के कुल 60 विधायकों में 40 विधायक मैतेई समुदाय से हैं। मैतेई समुदाय का बड़ा हिस्सा हिन्दू है और बाक़ी मुस्लिम धर्म अपना चुके हैं।

जबकि 90 प्रतिशत पहाड़ी क्षेत्र में प्रदेश की 35 फ़ीसदी मान्यता प्राप्त जनजातियां रहती हैं। इन जनजातियों से केवल 20 विधायक ही विधानसभा पहुंचते हैं। जिन 33 समुदायों को जनजाति का दर्जा मिला है, वे नगा और कुकी जनजाति के रूप में जाने जाते हैं। ये दोनों जनजातियां मुख्य रूप से ईसाई हैं। नगा औऱ कुकी जनजाति को डर है कि मैतेई को आदिवासी दर्जा मिलने के बाद उनके रोजगार के अवसरों में कटौती होगी। पहले से ही राजनीतिक और आर्थिक रूप से आगे बढ़े हुए मैतेई समुदाय के लोग उन्हें हर जगह से बेदखल करना शुरू कर देंगे।

आदिवासी समूह इस आदेश का विरोध क्यों कर रहे हैं?

मैतेई समुदाय के लिए एसटी दर्जे की मांग का लंबे समय से राज्य के आदिवासी समूहों द्वारा विरोध किया जाता रहा है। विरोध के कारणों में से एक जनसंख्या और राजनीतिक प्रतिनिधित्व दोनों में मैतेई का प्रभुत्व है, क्योंकि राज्य के 60 में से 40 विधानसभा क्षेत्र घाटी में हैं।

मणिपुर के समाज और राजनीति को जानने-समझने वालों का कहना है कि मणिपुर के एसटी समुदाय भारत के संविधान द्वारा एसटी को दी गई नौकरी के अवसरों और अन्य सकारात्मक लाभों में अन्य समुदायों के शामिल होने से होने वाले नुकसान के डर से मैतेई समुदाय को आदिवासी का दर्जा देने का विरोध कर रहे हैं। मांग के खिलाफ अन्य तर्क यह दिया गया है कि मैतेई लोगों की मणिपुरी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया है, और मैतेई समुदाय के वर्ग- जो मुख्य रूप से हिंदू हैं- को पहले से ही अनुसूचित जाति (एससी) या अन्य पिछड़ा वर्ग के तहत वर्गीकृत किया गया है।

क्या हिंसा का यही एकमात्र कारण है?

मणिपुर में मैतेई और नगा-कुकी जनजातियों में ऐतिहासिक रूप से तनाव की स्थिति रहती है। जो समय-समय पर चिंगारी का रूप अख्तियार करती रहती है। वास्तव में, कई कारणों से राज्य की पहाड़ी जनजातियों में अशांति फैल रही है। जनजातियों के हिंसक होने का एक कारण और है, वह है वन कानून।

चुराचांदपुर में स्थिति सामान्य हो रही है, आईटीएलएफ ने कहा कि फोरम सरकार के खिलाफ तब तक असहयोग जारी रखेगा, जब तक कि वह 1966 के सरकारी आदेश को रद्द नहीं कर देता, जिसमें आदिवासी क्षेत्रों को संरक्षित/आरक्षित वन घोषित किया गया था।

मणिपुर के चुराचांदपुर जिले में स्थित स्वदेशी जनजातीय नेता फोरम (आईटीएलएफ) ने पिछले हफ्ते सरकारी भूमि सर्वेक्षण के विरोध में जिले में 8 घंटे के पूर्ण बंद का आह्वान किया था। मंच ने जिले में आयोजित किसी भी सरकारी कार्यक्रम में असहयोग की भी घोषणा की थी। उसी रात, कुछ लोगों ने तुईबोंग क्षेत्र में स्थित वन परिक्षेत्र कार्यालय में आग लगा दी, जिससे लाखों रुपये की संपत्ति नष्ट हो गई।

कुकी समूह क्या कह रहे हैं?

कुकी जनजाति, राज्य द्वारा किए गए भूमि सर्वेक्षण से नाखुश हैं। सर्वेक्षण चुराचांदपुर-खौपुम संरक्षित वन क्षेत्र के लिए किया गया था। यह लगभग 490 वर्ग किमी के क्षेत्र को कवर करता है और तीन जिलों, अर्थात् चुराचंदपुर, बिष्णुपुर और नोनी में फैला हुआ है।

ITLF ने अब कहा है कि वे सरकार के खिलाफ तब तक असहयोग जारी रखेंगे जब तक कि वह 1966 के सरकारी आदेश को रद्द नहीं कर देता है जो आदिवासी क्षेत्रों को संरक्षित/आरक्षित वन घोषित करता है। जनजातीय मंच ने सरकार पर लोगों की सहमति के बिना सर्वेक्षण करने का आरोप लगाया और प्रक्रिया में कई खामियों का हवाला दिया। उन्होंने केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग की।

ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (एटीएसयूएम) ने कहा कि चुराचांदपुर में हिंसक विरोध एक सहज घटना नहीं थी, बल्कि वर्तमान सरकार की “प्रतिकूल और प्रतिगामी” नीतियों के खिलाफ बढ़ते असंतोष का प्रकोप था। एटीएसयूएम ने कहा कि वन और भूमि सर्वेक्षण का उद्देश्य सर्वेक्षण क्षेत्रों में रहने वाले ग्रामीणों को बेदखल करना है और यह आदिवासी पहाड़ी लोगों के लिए “सीधा अपमान” है। कुकी छात्र समूहों के शीर्ष निकाय, कुकी छात्र संगठन (केएसओ) ने आदिवासियों के प्रति सरकार के रवैये को “सौतेली मां” और जनजातीय अधिकारों को कमतर करने वाला बताया।

(प्रदीप सिंह जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।)

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