मणिपुर:सर्वदलीय बैठक में भी नहीं निकला कोई समाधान, कुकी समुदाय का विरोध हुआ तेज

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मणिपुर में हिंसा की घटनाएं करीब दो महीने से जारी हैं। अभी तक सैकड़ों लोग हताहत हो चुके हैं। मारे जाने वाले लोगों में कुकी और मैतेई समुदाय के लोग हैं, हालांकि नागा समुदाय के लोगों की भी अच्छी खासी तादाद मणिपुर में है, लेकिन फिलहाल उन्हें इस हिंसा में नहीं घसीटा गया है।

कुकी समुदाय को इसका सबसे अधिक खामियाजा भुगतना पड़ा है। राज्य में भाजपा की सरकार है, और मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह जो खुद मैतेई समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, के बयानों और एक्शन से कुकी समुदाय का अब मणिपुर प्रशासन और राज्य पुलिस से विश्वास पूरी तरह से उठ गया है।

यही कारण है कि कई हफ्तों बाद जब भारतीय सेना के मुखिया और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मणिपुर का दौरा कर शांति-व्यवस्था बहाल करने की कोशिश की, तो वह बेनतीजा निकली। अमित शाह की प्रशासनिक कुशलता पर अब राष्ट्रीय स्तर पर सवाल उठने लगे थे।

उधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मणिपुर हिंसा पर चुप्पी बरकरार है। देश ही नहीं बल्कि अमेरिकी यात्रा के दौरान भी न्यूयार्क में उत्तर-पूर्व के लोग सड़कों पर तख्तियां लेकर ‘सेव मणिपुर’ अच्छी खासी संख्या में जमा हुए थे। दुनिया के समाचार पत्रों में मणिपुर की चर्चा है।

अमेरिका में प्रदर्शन

मणिपुर में इंटरनेट आज भी बंद है। हजारों की संख्या में मणिपुर के लोग विस्थापितों का जीवन बिता रहे हैं। अधिकांश लोग पड़ोसी राज्य मिजोरम, असम और नागालैंड में रह रहे हैं। हिंसा और घृणा का स्तर इस हद तक बढ़ गया है कि सैकड़ों चर्च, गिरिजाघर, स्कूल ही नहीं बल्कि विधायकों, सांसदों और मंत्रियों तक के घरों को आग के हवाले किया जा चुका है।

स्थिति इतनी बदतर हो चुकी है कि कुकी समुदाय अब अपने लिए अलग राज्य की मांग पर अड़ गया है। यदि यह संभव नहीं है तो वे अपने लिए स्वायत्त प्रशासन की मांग से पीछे हटने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं हैं। इसके पीछे भाजपा की राज्य सरकार द्वारा चुनिंदा तरीके से पिछले कुछ वर्षों से कुकी समुदाय के खिलाफ अभियान चलाना रहा है।

एन बीरेन सिंह की सरकार ने सबसे पहले यह प्रचारित किया कि मणिपुर में बड़ी संख्या में विदेशी लोग घुसपैठ कर रहे हैं। ये लोग कुकी जनजाति से सम्बद्ध हैं और चोरी-छुपे बड़ी संख्या में इनकी बसाहट राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में हो रही है। ऐसा ही रहा तो जल्द ही 54% मैतेई हिंदू समुदाय के लोग अल्पसंख्यक की स्थिति में पहुंच सकते हैं।

इसके साथ ही दूसरा इल्जाम यह लगाया गया कि ये लोग मादक पदार्थों की अवैध खेती कर रहे हैं। बाहर से हथियार भी तस्करी कर लाये जा रहे हैं। मोदी सरकार ने कुकी-मैतेई विवाद को सुलझाने के लिए एक त्रिपक्षीय समिति का भी निर्माण किया था, जिससे एन बीरेन सिंह ने पिछले वर्ष किनारा कर लिया था, हालांकि केंद्र सरकार इसमें एक पक्षकार बनी हुई थी। लेकिन यह स्पष्ट संकेत था कि अब वार्ता का कोई नतीजा नहीं निकलने वाला।

कुकी-मैतेई तनाव का हालांकि एक लंबा इतिहास है, लेकिन मणिपुर हाईकोर्ट के एक निर्देश ने इस आग में घी डालने का काम किया था। मणिपुर की भौगौलिक स्थिति कुछ इस प्रकार से है कि इसका 90% हिस्सा पहाड़ियों और जंगलों से घिरा है। शेष 10% हिस्सा इंफाल वैली के हिस्से में आता है, जहां पर मैतेई हिंदू आबादी रहती है। अब चूंकि 54% आबादी को 10% क्षेत्रफल में रहना पड़ता है और उन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा हासिल नहीं है, इसलिए वे मैतेई और नागा समुदाय की तरह पर्वतीय क्षेत्र में भूमि नहीं खरीद सकते।

हालांकि मैतेई समुदाय को पिछड़े समुदाय के तौर पर मान्यता प्राप्त है, और राज्य में उपलब्ध शिक्षा, नौकरी और यहां तक कि विधानसभा में उनका ही बहुमत है, लेकिन सीमित भूमि और एक राज्य में रहते हुए भी समान अधिकार न होने के कारण बहुसंख्यक आबादी की भावना लगातार जोर मार रही थी, जिसे राज्य सरकार भी चुनावी फायदे के लिए लगातार हवा दिए जा रही थी।

एन बीरेन सिंह के ऊपर आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने मैतेई समुदाय के युवाओं के दो सांस्कृतिक संगठन को अपना राजनीतिक वरदहस्त दिया हुआ है। अरम्बाई तेंगों एवं मैतेई लिपुन नामक दो सांस्कृतिक संगठन के बारे में कुकी समुदाय का आरोप है कि ये असल में उग्रवादी संगठन हैं, और मणिपुर पुलिस के साथ मिलकर ये आज भी बड़ी संख्या में कुकी समुदाय के गांवों में आगजनी और हिंसक वारदातों को अंजाम दे रहे हैं।

राज्य में घाटी और पर्वतीय क्षेत्र का संपर्क लगभग पूरी तरह से खत्म हो चुका है। सेना तक अब यह मान चुकी है कि मणिपुर में यदि शांति बहाली की कोई कोशिश कारगर हो सकती है तो इसके लिए मैतेई और कुकी आबादी को अलग-अलग ही रखा जाए। लेकिन इस विभाजन ने कई ऐसी समस्याएं खड़ी कर दी हैं, जिनका समाधान आसान नहीं है। पर्वतीय क्षेत्रों में रह रहे लोगों को अपने खाने-पीने, दवाई और इलाज सहित उच्च-शिक्षा के लिए इंफाल घाटी के सिवाय कोई उपाय नहीं है।

चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं। भारी संख्या में पुलिस एवं सशस्त्र बलों की मौजूदगी के बावजूद दोनों समुदाय के लोग अपने-अपने इलाकों में निर्द्वंद होकर हथियारों के साथ घूम रहे हैं। एन बीरेन सिंह से आज के दिन न सिर्फ कुकी समुदाय खफा है, बल्कि विरोध के स्वर अब खुद उनके समुदाय से भी सुनाई पड़ने लगे हैं। लेकिन केंद्र की भाजपा सरकार के लिए अपनी ही सरकार को बर्खास्त करना बिल्कुल गवारा नहीं है। जो सरकार एक यौन शोषण के आरोपी सांसद को बचाने के लिए देश की महिलाओं की नाराजगी मोल लेने में नहीं घबराती, भला एक राज्य की सत्ता को कैसे खुद अपने हाथों खत्म कर दे? उसकी यह दुविधा आगामी 2024 लोकसभा चुनावों के मद्देनजर और भी घनीभूत हो गई है।

कुकी समुदाय के लोगों का मौन जुलूस

23 जून को 15 विपक्षी पार्टियों के पटना में एकजुट होकर भाजपा के खिलाफ चुनावी शंखनाद ने गृहमंत्री की विवशता को बढ़ा दिया। मुख्य विपक्षी पार्टी काफी अर्से से मणिपुर में शांति प्रयासों के लिए संयुक्त पार्टियों के प्रतिनिधिमंडल को मणिपुर भेजे जाने की मांग केंद्र सरकार से कर रही थी। लेकिन तब ऐसा करना कहीं न कहीं केंद्र सरकार की सर्वशक्तिमान छवि से समझौता करना होता। अतीत में कश्मीर समस्या पर वह ऐसी किसी भी मांग को ठुकरा चुकी है। विपक्षी पार्टियों को कश्मीर ले जाने के बजाय मोदी सरकार दो-दो बार यूरोपीय संघ के चुनिंदा दक्षिणपंथी सांसदों को कश्मीर दौरा करा चुकी है। लेकिन मणिपुर तो कश्मीर नहीं है।

मजबूर होकर गृहमंत्री ने मणिपुर में शांति बहाली के लिए सभी पार्टियों को 24 जून की बैठक में आने का निमंत्रण दिया। मणिपुर में दोनों समुदाय को अब सिर्फ पीएम मोदी के आश्वासन का इंतजार है। उन्हें समझ नहीं आ रहा कि जो प्रधानमंत्री बेहद मामूली चीजों के उद्घाटन के लिए झट आ जाता है, वह इतनी बड़ी त्रासदी के इतने दिनों बाद भी एक शब्द क्यों नहीं बोल रहा है? पीएम मोदी की गैरहाजिरी में अमित शाह की ओर से विपक्षी पार्टियों को मणिपुर समस्या पर मंथन के लिए आमंत्रित करने को कांग्रेस ने ठुकरा दिया। बहरहाल 24 जून को यह बैठक हुई।

बैठक में गृहमंत्री अमित शाह के अलावा भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, भाजपा के मणिपुर प्रभारी डा. संबित पात्रा, मणिपुर के पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस नेता ओकराम इबोबी सिंह, टीएमसी से डेरेक ओ ब्रायन, मेघालय के सीएम एवं एनपीपी नेता कोनराड संगमा, शिवसेना (उद्धव गुट) से प्रियंका चतुर्वेदी, अन्नाद्रमुक नेता एम थंबी दुरई, द्रमुक नेता तिरुचि शिवा, बीजू जनता दल से पिनाकी मिश्रा, आप नेता संजय सिंह, सपा से रामगोपाल यादव व राजद नेता मनोज झा शामिल हुए। बैठक में केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी, नित्यानंद राय, अजय कुमार मिश्रा टेनी, केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला सहित खुफिया ब्यूरो के निदेशक तपन डेका शामिल थे।

अधिकांश दलों ने पीएम मोदी की उपस्थिति में सर्वदलीय बैठक की मांग रखी। तृणमूल ने कांग्रेस पार्टी के स्टैंड को ही रखते हुए मणिपुर में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजे जाने की मांग की। समाजवादी पार्टी ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किये जाने की मांग की। गृहमंत्री ने सभी दलों को भरोसा दिलाया है कि जल्द ही मणिपुर में स्थिति पर पूर्ण नियंत्रण पा लिया जायेगा।

उन्होंने दावा किया कि हमारी सरकार की पहली प्राथमिकता है कि अब से एक व्यक्ति को अब राज्य में अपनी जान न गंवानी पड़े। बैठक में एक प्रेजेंटेशन भी दिया गया, जिसमें बताया गया कि राज्य में पर्याप्त सुरक्षा बल को तैनात किया गया है। करीब 36,000 जवान और 20 मेडिकल टीम को राज्य में तैनात किया गया है।

वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने सर्वदलीय बैठक को एक दिखावा मात्र करार दिया है। उनका दावा है कि बैठक में तीन बार मणिपुर के मुख्यमंत्री रह चुके इबोबी सिंह को अपनी बात तक नहीं रखने दिया गया।

मणिपुर में आज क्या हालत हैं?

3 मई के बाद अब गृहमंत्री देश को आश्वस्त कर रहे हैं कि आगे से हिंसा की घटना नहीं होगी और किसी को जान नहीं गंवानी पड़ेगी। लेकिन वास्तव में आज भी मणिपुर धू-धू कर जल रहा है।

शनिवार की बैठक से पूर्व देर रात शुक्रवार को मणिपुर में इंफाल स्थित राज्य सरकार में उपभोक्ता एवं खाद्य मामलों के मंत्री एल सुसिंद्रो के गोदाम को उग्र भीड़ ने आग के हवाले कर दिया था। वो अच्छा हुआ कि सुरक्षाबलों ने आधी रात तक आंसू गैस के गोले छोड़े, वरना भीड़ उनके घर को जलाने पर आतुर थी।

उधर जब गृहमंत्री विपक्षी दलों के साथ दिल्ली में मणिपुर के हालात पर काबू पाने का दावा कर रहे थे, भारतीय सेना की ‘स्पीयर्स कॉर्प इंफाल ईस्ट डिस्ट्रिक्ट’ में इथम गांव में 12 अतिवादियों को हिरासत में ले चुकी थी। अपने ट्वीट में भारतीय सेना ने विस्तार से बताया है कि किस प्रकार एक इंटेलिजेंस इनपुट के आधार पर इंफाल ईस्ट में अन्द्रो से 6 किमी की दूरी पर बसे इथम गांव में उसे अतिवादियों के होने की जानकारी मिली थी। इस ऑपरेशन में सेना ने 12 KYYL (कंगलेई यावोल कन्ना लुप) नामक अतिवादी कैडरों को भारी हथियारों और भंडार के साथ हिरासत में ले लिया था। इसके बारे में वेबसाइट से जानकारी मिलती है कि यह मैतेई का अतिवादी समूह है, जिसका निर्माण 1994 में किया गया था।

12 अतिवादियों को स्थानीय नेताओं के हवाले कर दिया गयाृ।

भारतीय सेना के ट्वीट में आगे लिखा है “इसमें से एक व्यक्ति स्वयंभू लेफ्टिनेंट कर्नल मोइरंगथेम ताम्बा उर्फ़ उत्तम (2005 में 6 डोगरा अम्बुश मामले का मास्टरमाइंड) की पहचान कर ली गई थी। लेकिन तभी अचानक से 1200 से लेकर 1500 लोगों की भीड़, जिसका नेतृत्व महिलाएं और स्थानीय नेता कर रहे थे, ने उस जगह को घेर लिया। सुरक्षा बलों द्वारा कानून के तहत ऑपरेशन जारी रखने की बार-बार अपील के बावजूद उग्र भीड़ नहीं मानी।

स्थिति की संवेदनशीलता को देखते हुए आधुनिकतम हथियारों का इस्तेमाल बड़ी संख्या में निर्दोष नागरिकों और विशेषकर महिलाओं की मौत का कारण बन सकता है, सभी 12 अतिवादियों को स्थानीय नेताओं के हवाले कर दिया गया और उनसे जब्त किये गये हथियार भी सौंप दिए। मणिपुर में जारी अशांति के बीच भारतीय सेना के कमांडो के द्वारा इस प्रकार का समझदारी भरा फैसला सेना के मानवीय पहलू को दर्शाता है। इसके साथ ही भारतीय सेना मणिपुर की आम जनता से अपील करती है कि वे सुरक्षा बलों को कानून और शांति बहाली के प्रयासों में मदद करें।”

यह खबर आज देश के कई अंग्रेजी के समाचार-पत्रों में प्रमुखता से छपी भी है, लेकिन हिंदी भाषी अखबारों में तो सिर्फ गृहमंत्री के दावे ही नजर आ रहे हैं।

वहीं दूसरी तरफ चूराचानपुर में कुकी अतिवादियों के शहर में पारंपरिक वेशभूषा और हथियारों के साथ हाथ में बंदूक लेकर बाजार में मार्च करने की तस्वीरों को साझा कर मैतेई समुदाय के युवा पूछ रहे हैं, क्या कुकी ऐसा नग्न प्रदर्शन कर भारतीय सरकार को चुनौती नहीं दे रहे हैं?

कुकी समुदाय का प्रदर्शन

मणिपुर के हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि अब एन बीरेन सिंह की सरकार को यदि अपदस्थ नहीं किया गया तो यह केंद्र में बेहद अशक्त सरकार का अहसास शेष भारत को करा सकती है। आईटी सेल के जरिये मोदी की लौह छवि को मणिपुर की कड़वी हकीकत छिन्न-भिन्न करके रख देती है।

2019 के आम चुनाव में ऑपरेशन बालाकोट के चित्रों से प्रभावित होकर मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा भाजपा के पक्ष में झुक गया था, जिसके चलते 300+ सरकार बनाने में भाजपा सफल हो गई थी। लेकिन अब दुश्मन देश की तो बात ही छोड़ दें, 28 लाख की छोटी सी आबादी को कैसे शांत रखा जाये, सरकार को कुछ सूझ नहीं रहा है।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।) 

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