Sunday, April 28, 2024

नीरजा चौधरी की पुस्तक ‘हाऊ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड’: इंदिरा, राजीव, राव, वाजपेयी और सोनिया के बारे में कई बड़े खुलासे

द इंडियन एक्सप्रेस में एक कालम्निस्ट और कन्ट्रीब्यूटिंग एडिटर नीरजा चौधरी की आगामी पुस्तक ‘हाऊ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड’ में कुछ दुर्लभ और अनकहे विवरण सामने आए हैं। पुस्तक में आरएसएस नेताओं के साथ राजीव गांधी की गुप्त बैठकों से लेकर शाह बानो विधेयक पर सोनिया गांधी की आपत्तियों तक का विवरण है। विदेश मंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी का भारत द्वारा परमाणु परीक्षण करने के विरोध का भी उल्लेख है। अयोध्या में जहां कभी बाबरी मस्जिद थी, वहां पीवी नरसिम्हा राव द्वारा मंदिर बनाए जाने की इच्छा के बारे में इस किताब में बताया गया है।

अगले सप्ताह यह किताब ‘अलेफ’ प्रकाशन से प्रकाशित होगी। यह किताब दशकों की गहन रिपोर्टिंग का नतीजा है। नीरजा चौधरी, द इंडियन एक्सप्रेस की राजनीतिक संपादक रह चुकी हैं। इस पुस्तक में पूर्व प्रधानमंत्रियों के कुछ सबसे भरोसेमंद सहयोगियों के संदर्भ दिए गए हैं और उन संदर्भों और परिप्रेक्ष्य के साथ यह पुस्तक प्रस्तुत की गई है। किताब में प्रस्तुत विवरण छह प्रधानमंत्रियों इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, वीपी सिंह, नरसिम्हा राव, अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह के उन बुनियादी फैसलों पर रोशनी डालती है, जिन फैसलों ने समकालीन भारत को आकार दिया। यह किताब यह भी बताती है कि कैसे इन प्रधानमंत्रियों के व्यक्तित्व को उनकी राजनीति ने ढक लिया।

संजय गांधी की दुर्घटना में मौत, इंदिरा का चामुंडा देवी दर्शन

22 जून, 1980 को इंदिरा गांधी को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में चामुंडा देवी मंदिर जाना था। लेकिन आखिरी समय में उनका वहां जाने का कार्यक्रम रद्द हो गया। मोहन मीकिन समूह के कपिल मोहन के भतीजे और इंदिरा गांधी भरोसेमंद (अनौपचारिक) सहयोगियों में एक अनिल बाली ने इस यात्रा की व्यवस्था की थी। अनिल बाली की इंदिरा गांधी तक सीधी पहुंच थी। इस यात्रा की तैयारी के लिए “मुख्यमंत्री राम लाल (हिमाचल प्रदेश) सहित प्रदेश की पूरी सरकार डेरा डाले हुए थी।

इंदिरा गांधी ने यात्रा रद्द कर दिया। जब यह बात पुजारी ने सुना कि वह नहीं आ रही हैं, तो उसने तीखी प्रतिक्रिया प्रकट की। नीरजा चौधरी की इस किताब के अनुसार पुजारी ने कहा कि, “आप इंदिरा से कहिए, यह चामुंडा देवी हैं। यदि कोई साधारण प्राणी यहां नहीं आ पाता है, तो उसे क्षमा कर देंगी। लेकिन यदि शासक अपमान करेगा, तो देवी माफ नहीं करेंगी। देवी का अपमान नहीं कर सकते (शासक देवी का अपमान नहीं कर सकता)।”

अगले ही दिन संजय गांधी की एक विमान दुर्घटना में मौत हो गई। अनिल बाली दिल्ली पहुंचे। जब वह रात 2.30 बजे दिल्ली पहुंचे तो, इंदिरा गांधी संजय गांधी के शव के पास बैठी थीं। इस किताब में बताया गया है कि श्रीमती गांधी ने बाली से पूछा, “क्या मेरे चामुंडा न जाने से इसका (संजय की मौत) का कोई लेना-देना है?” उसी साल 13 दिसंबर को इंदिरा चामुंडा गईं। “मैं एक कट्टर हिंदू हूं” बोलकर उन्होंने मंत्र पढ़ा।

जब वह पूर्णाहुति करने और गर्भगृह में माथा टेकने (सिर झुकाना) गईं, या जब वह काली की पूजा के लिए मुद्राएं कर रही थीं, तो उन्होंने सारे अनुष्ठानों का पूरा-पूरा पालन करते हुए यह सब कुछ किया। वह रो पड़ीं। वह बस रोती रहीं और रोती रहीं।“ जैसे ही उन्होंने पूजा की, पंडित के हाथ कांपने लगे। इंदिरा ने यह सुनिश्चित किया कि चामुंडा में संजय के नाम पर एक घाट बनाया जाए। यह किताब बताती है कि अनिल बाली के मुताबिक ‘इसकी (घाट) लागत 80 लाख रुपये थी। जिस खर्च का वहन कांग्रेस नेता सुखराम ने किया। जो बाद में केंद्रीय मंत्री बने।’

इंदिरा ने राजीव को आरएसएस तक पहुंचने के लिए प्रेरित किया

आपातकाल के दौरान या उसके तत्काल बाद आरएसएस ने इंदिरा से संपर्क करने की कोशिश की थी। लेकिन उन्होंने आरएसएस नेताओं से मिलने से इनकार कर दिया। लेकिन किताब के अनुसार 1982 में जब उन्होंने अपने कार्यकाल का आधा समय पूरा कर लिया, उन्होंने राजीव को आरएसएस प्रमुख बालासाहेब देवरस के भाई भाऊराव देवरस से मिलने और उनके साथ बातचीत शुरू करने के लिए कहा। ये मुलाकातें कपिल मोहन तय करते थे। भाऊराव तब आरएसएस की राजनीतिक शाखा की देखभाल कर रहे थे।

पुस्तक के अनुसार “राजीव गांधी ने भाऊराव देवरस से 1982-84 के बीच तीन बार मुलाकातें की। उस समय इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं। उसके बाद राजीव गांधी ने एक बार और 1991 की शुरुआत में भाऊराव से मुलाकात की। जब वह सत्ता से बाहर थे। राजीव गांधी की भाऊराव देवरस के साथ पहली बैठक सितंबर, 1982 में कपिल मोहन के 46, पूसा रोड स्थित आवास पर हुई थी। भाऊराव से कपिल मोहन की दोस्ती कई साल पुरानी थी। दूसरी बैठक भी पूसा रोड पर हुई। तीसरी फ्रेंड्स कॉलोनी में अनिल बाली के आवास पर हुई और चौथी बैठक 10 जनपथ पर हुई।”

अनिल बाली के अनुसार, इन बैठकों को आयोजित करने वाले केंद्रीय व्यक्ति इंदिरा के राजनीतिक सचिव एम.एल. फोतेदार थे। किताब बताती है कि “अगर 1985-87 के बीच (इंदिरा गांधी की मृत्यु और राजीव के पीएम बनने तक) राजीव गांधी पर जिस व्यक्ति ने हिंदूवादी प्रभाव डाला वह फोतेदार जी थे। फोतेदार ने एक बातचीत के दौरान खुलासा किया, “राजीव से कहो डायनिंग टेबल पर आरएसएस से बात-चीत के संदर्भ में चर्चा न करें। यह बात इंदिरा गांधी ने कही थी। वे जानती थीं कि सोनिया गांधी पूरी तरह आरएसएस के खिलाफ हैं।”

“प्रधानमंत्री बनने के बाद राजीव भाऊराव से नहीं मिले। लेकिन वे उनके संपर्क में रहे। जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल का आधा समय पूरा कर रहे थे। उस समय आरएसएस ने उनसे दूरदर्शन पर रामानंद सागर द्वारा निर्मित रामायण धारावाहिक के प्रसारण की सुविधा के लिए अनुरोध किया था। दूरदर्शन पर उसके प्रसारण में बाधाएं आ रही थीं। कांग्रेस नेता एचएल भगत से राजीव गांधी ने जब इसकी चर्चा की तो वे चिंतित हो गए। उन्होंने राजीव से कहा कि ऐसा करने से भानुमती का पिटारा खुल जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि “ऐसा करने से भाजपा-विहिप-आरएसएस के नेतृत्व वाले रामजन्मभूमि आंदोलन के पक्ष में माहौल तैयार होगा।” राजीव ने भगत की आशंकाओं पर ध्यान नहीं दिया। भगत बाद में सूचना और प्रसारण मंत्री बने।

सोनिया का शाहबानो प्रकरण पर पर राजीव से सवाल, राजीव के मित्र अरुण नेहरु ने बोफोर्स मामला ‘लीक’ किया

यह पुस्तक पर्दे के पीछे की उन कई अज्ञात घटनाओं का खुलासा करती है, जिसके चलते राजीव गांधी सरकार को शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को रद्द करन के लिए एक विधेयक लाने का निर्णय लेना पड़ा। लेकिन इस किताब में इससे जुड़े कई अन्य किस्से भी सामने आते हैं। पुस्तक बताती है कि दिवंगत एनसीपी नेता डीपी त्रिपाठी उस समय राजीव के कोटरी के सदस्य थे। किताब डीपी त्रिपाठी के हवाले से कहती है कि सोनिया ने राजीव गांधी से कहा था कि, “राजीव, अगर आप मुझे इस मुस्लिम महिला विधेयक के बारे में नहीं समझा सकते, तो आप देश को कैसे मनाएंगे?” सोनिया गांधी ने राजीव गांधी से कहा, ‘आपको सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ खड़ा होना चाहिए।’ त्रिपाठी ने कहा कि ”यह बात सोनिया ने मेरी मौजूदगी में कहा था।” त्रिपाठी ने कहा कि ”यह बात सोनिया ने मेरी मौजूदगी में कहा था।”

वह बोफोर्स घोटाला ही था जिसके कारण अंततः राजीव को बर्बादी का सामना करना पड़ा। उनके चचेरे भाई अरुण नेहरू का उन पर जो प्रभाव था, वह सर्वविदित है और अच्छी तरह से उल्लिखित है। दोनों अलग हो गए। अरुण नेहरू ने राजीव से अपना रिश्ता टूटने के लिए सोनिया को जिम्मेदार ठहराया। अक्टूबर 1986 में राजीव ने कैबिनेट फेरबदल में अरुण को मंत्री पद से हटा दिया। शपथ ग्रहण के बाद, बेचैन राजीव ने फोतेदार को रेस कोर्स रोड पर अपने साथ चलने के लिए कहा।

किताब के अनुसार फोतेदार ने कहा कि, ‘राजीव जी तनाव में थे।’ जैसे ही कार रेसकोर्स रोड पर पहुंचे, उन्होंने पोर्टिको में सोनिया गांधी और गांधी परिवार के वफादार कैप्टन सतीश शर्मा को इंतजार करते देखा। सोनिया के चेहरे पर एक बड़ी मुस्कान थी। फोतेदार ने बाद में कहा, ‘मुझे तब समझ में आया कि अरुण नेहरू को क्यों हटाया गया था।’

पुस्तक में इस बात का उल्लेख किया गया है कि “अरुण नेहरू…मौके की तलाश कर रहे थे। उन्होंने तभी हमला किया जब, वे इसके लिए पूरी तरह तैयार हो गए। वह एक साल बाद 1987 में आया। स्वीडिश रेडियो ने बोफोर्स के एक पूर्व कर्मचारी की गवाही के आधार पर एक कार्यक्रम चलाया था कि बोफोर्स ने भारतीय राजनेताओं को रिश्वत दी थी। एच. आर. भारद्वाज ने मुझे (लेखक) बताया, ‘वह अरुण नेहरू ही थे जिन्होंने बोफोर्स की कहानी स्वीडिश रेडियो पर लीक की थी।’ ‘हम यह जानते थे।”

बाबरी विध्वंस के बाद राव की अयोध्या मंदिर की इच्छा

यह पुस्तक उन घटनाओं के सिलसिले को विस्तार से दर्शाती है जिनके कारण 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ। किताब में विध्वंस के कुछ दिनों बाद पत्रकार निखिल चक्रवर्ती की राव से हुई मुलाकात का जिक्र है। दोनों दोस्त थे। चक्रवर्ती ने राव को चिढ़ाते हुए कहा, ”मैंने सुना है कि आप 6 दिसंबर को बारह बजे के बाद पूजा कर रहे थे।”

“क्रोधित राव ने चक्रवर्ती पर पलटवार किया, ‘दादा, आप सोचते हैं कि मैं राजनीति नहीं जानता। मेरा जन्म राजनीति में हुआ है और मैं आज तक केवल राजनीति ही कर रहा हूं। जो हुआ वो ठीक हुआ (जो हुआ, अच्छे के लिए हुआ।) मैंने इसलिए होने दिया कि भारतीय जनता पार्टी की मंदिर की राजनीति हमेशा के लिए ख़त्म हो जाए।”

पुस्तक में अयोध्या सेल के प्रमुख रहे नरेश चंद्र के साथ काम कर चुके सीआईएसएफ के पूर्व डीआईजी और आईपीएस अधिकारी किशोर कुणाल के हवाले से कहा गया है कि राव एक मंदिर बनाना चाहते थे। जहां राम लला की मूर्तियां रखी जाएं। ‘ऐसी बात है,’ पुलिस अधिकारी किशोर कुणाल ने मुझसे कहा, ‘नरसिम्हा राव जी जहां राम लला जहां विराजमान हैं, वहीं मंदिर बनाना चाहते थे (सच्चाई यह है कि नरसिम्हा राव खुद उस मंदिर का निर्माण करना चाहते थे जहां मूर्तियां रखी गई थीं)।’ उन्होंने अपने मीडिया सलाहकार, पी. वी. आर. के. प्रसाद को एक ट्रस्ट बनाने का निर्देश दिया जो एक मंदिर का निर्माण कर सके, जहां कभी मस्जिद थी।”

‘विध्वंस ( 6 दिसंबर, 1992) के बाद रविवार को, प्रसाद राव से मिलने गए थे। उन्होंने पीएम को अकेले और चिंतनशील मूड में देखा। उन्होंने प्रसाद से चिंतित होकर पूछा, ‘हम बीजेपी से लड़ सकते हैं, लेकिन भगवान राम से कैसे लड़ सकते हैं?’ ‘उन्होंने आगे कहा, ‘जब हम कहते हैं कि कांग्रेस एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि हम नास्तिक हैं। ‘अयोध्या में मंदिर निर्माण के बहाने भगवान राम पर एकाधिकार जमाकर लोगों की आंखों में धूल झोंकना कहां तक उचित है?’

1979 में वाजपेयी ने परमाणु परीक्षण का विरोध किया

मई 1998 में, भारत ने पोखरन में सफलतापूर्वक परमाणु परीक्षण किया, जो अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल का एक गौरव था। लेकिन 1979 में, जब वे मोरारजी देसाई कैबिनेट में विदेश मंत्री थे, तब वाजपेयी ने परीक्षण का विरोध किया था। अप्रैल, 1979 में देसाई ने अपने शीर्ष चार मंत्रियों रक्षा मंत्री जगजीवन राम, वित्त मंत्री चरण सिंह, गृह मंत्री एच एम पटेल और वाजपेयी के साथ बैठक की। देसाई ने उन्हें बताया कि पाकिस्तान परमाणु हथियार हासिल करने की कगार पर है और वह उनसे चर्चा करना चाहते हैं कि सरकार को उसके परमाणु कार्यक्रम के बारे में क्या करना चाहिए।

संयुक्त खुफिया एजेंसी के अध्यक्ष के. सुब्रह्मण्यम द्वारा देसाई को सौंपी गई एक गुप्त रिपोर्ट ने देसाई को चिंतित कर दिया था। सुब्रमण्यम ने कहा था कि पाकिस्तान ‘बम से महज एक कदम दूर है’। सीसीपीए की बैठक में मंत्रियों के अलावा केवल दो अधिकारी, परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष होमी सेठना और कैबिनेट सचिव निर्मल मुखर्जी मौजूद थे। जबकि शीर्ष मंत्रियों ने संकल्प लिया कि भारत को अपने परमाणु प्रयासों को आगे बढ़ाना चाहिए, यह निर्णय सर्वसम्मत से नहीं था। पुस्तक के अनुसार “सुब्रह्मण्यम ने बाद में मुझसे पुष्टि की कि मोरारजी और वाजपेयी आगे बढ़ने के विरोध में थे। एच. एम. पटेल, जगजीवन राम और चरण सिंह इसके पक्ष में थे।”

पुस्तक में यह भी लिखा है कि “सीसीपीए की बैठक के एक दिन बाद, सुब्रह्मण्यम ने वाजपेयी का सामना किया। उन्होंने वाजपेयी से पूछा, ‘आप इसका विरोध कैसे कर सकते हैं?’ ‘आप हमेशा से इसके पक्ष में रहे हैं।’ वाजपेयी ने रक्षात्मक रूप से उत्तर दिया ‘नहीं, नहीं, अब सबसे महत्वपूर्ण बात पाकिस्तान को बम बनाने से रोकना है। और हमें उन्हें उकसाना नहीं चाहिए।’

पीएम पर राहुल ने सोनिया के लिए खींची लाइन

किताब में 17 मई, 2004 को दोपहर में 10 जनपथ पर हुई एक बैठक के बारे में विवरण दिया गया है। के. नटवर सिंह के अनुसार, जब वह पहुंचे तो कमरे में सोनिया, प्रियंका गांधी और मनमोहन सिंह मौजूद थे। “वह (सोनिया) वहां सोफ़े पर बैठी थीं… मनमोहन सिंह और प्रियंका (वहां भी थे)…सोनिया गांधी परेशान दिख रही थीं…तभी राहुल अंदर आए और हम सबके सामने कहा, ‘मैं आपको प्रधानमंत्री नहीं बनने दूंगा।’ मेरे पिता की हत्या कर दी गई, मेरी दादी की हत्या कर दी गई। छह माह में तुम्हें मार दिया जायेगा।’

“राहुल ने धमकी दी कि अगर सोनिया ने उनकी बात नहीं मानी तो वह अतिवादी कदम उठाएंगे। नटवर सिंह ने याद करते हुए कहा, ‘यह कोई सामान्य धमकी नहीं थी,’ राहुल एक मजबूत इरादों वाले व्यक्ति हैं। उन्होंने सोनिया को निर्णय लेने के लिए 24 घंटे का समय दिया।” जब राहुल ने कहा कि वह अपनी मां को प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लिए हर संभव कदम उठाने को तैयार हैं, तो सोनिया की आंखों में आंसू आ गए।

पुस्तक में कहा गया है कि सीपीपी नेता चुने जाने के बाद सोनिया और वाजपेयी ने आपस में बात की थी। वाजपेयी ने उन्हें बधाई दी और कहा, ‘मैं भरपूर आशिर्वाद देता हूं।।’ उसके बाद उन्होंने कहा, ‘यह पुरस्कार मत लो। आप देश को विभाजित कर देंगी और सिविल सेवाओं की वफादारी पर धब्बा लगेगा।”

(‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से साभार। दिनांक: 30 जुलाई, 2023)

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