खात्मे के रास्ते पर है मायावती की राजनीति

Estimated read time 1 min read

लोकसभा सामान्य निर्वाचन 2024 की प्रक्रिया प्रारंभ होने के एक वर्ष पूर्व ही हिंदुत्व की राजनीति के वैचारिक एव राजनीतिक विरोधियों ने राजनीतिक ध्रुवीकरण प्रारंभ कर दिया था। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय लोक दल, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके, आम आदमी पार्टी, शिवसेना जैसे कई दलों ने मिलकर बीजेपी को केंद्र की सत्ता से बाहर करने के लिए ‘इंडिया’ गठबंधन बनाया।

इस गठबंधन के बनने के कारण भाजपा विरोधी खेमे में आत्मविश्वास पैदा हुआ तथा भाजपा समर्थकों के मुख्य तर्क ‘मोदी नहीं तो कौन’ के विरुद्ध नैरेटिव विकसित करने का अवसर विपक्ष को मिला। अब तक दो चरणों के चुनाव संपन्न हो चुके हैं। गिरता मत प्रतिशत और नरेंद्र मोदी की बदहवासी से इस नैरेटिव को समर्थन मिला कि इस चुनाव में भाजपा की सरकार नहीं बन रही है।

लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में मायावती की भूमिका को लेकर राजनीतिक टिप्पणीकार बहुत ही कंफ्यूज थे। कइयों का मानना था, मायावती इंडिया गठबंधन का हिस्सा अवश्य बनेंगी, ऐसे निष्कर्ष पर पहुंचने का कारण स्पष्ट था। बाबा साहब अंबेडकर ने कहा था कि यदि हिंदू राज हकीकत बनता है तो इस देश के लिए विध्वंसकारी होगा।

मायावती, बसपा को बाबा साहब के विचारों पर चलने वाली पार्टी कहती हैं। पिछले दस वर्षों से यह देश भाजपा की विध्वंसकारी शासन के नीचे कराह रहा है, इन परिस्थितियों में बाबा साहब के विचारों पर चलने वाली मायावती को, भाजपा को सत्ता से हटाने के लिए अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए थी लेकिन मायावती ने ऐसा नहीं किया।

मायावती का भाजपा विरोधी राजनीतिक गठबंधन का हिस्सा न बनना राजनीतिक टिप्पणीकारों के लिए एक पहेली बना हुआ है जिसे सुलझाना मुश्किल हो गया है इसके कुछ ठोस कारण भी हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण कारण राजनीतिक टिप्पणीकारों के पास मायावती को समझने का कोई टूल का ना होना है। जिन तरीकों से भाजपा, कांग्रेस का अन्य राजनीतिक दलों या नेताओं को समझा जा सकता है, उनसे मायावती को समझना मुश्किल है।

इसीलिए मायावती के राजनीतिक व्यवहार पर भविष्यवाणी करना लगभग असंभव हो जाता है। फिर भी इस चुनाव में टिकट बंटवारे के पैटर्न को यदि समझ लिया जाए तो मायावती की राजनीति को समझना थोड़ा आसान हो सकता है। मायावती ने इस लोकसभा चुनाव में कुछ ऐसे दलित बहुजन चेहरों को टिकट दिया है जिससे यह संदेश जा रहा है कि मायावती दलित बहुजन आंदोलन को मजबूत करना चाहती हैं। इसमें से एक हैं प्रोफेसर इंदु चौधरी, (लालगंज, आजमगढ़) ।

प्रोफेसर इंदु चौधरी पिछले लगभग 10-15 वर्षों से बहुजन प्रचारक के तौर पर गांव की जनता के बीच कार्य कर रही हैं। वे अपने कार्यक्रमों में मायावती और बसपा की तारीफ करती रही हैं तथा बसपा को वोट देने की अपील भी करती रही हैं। इनके अलावा कई अन्य नाम भी चर्चा में हैं।

केवल इंदू चौधरी पर बात करके छोड़ दिया जाए तो मायावती की राजनीति की सच्ची तस्वीर नहीं उभरेगी  और यह स्थापित होगा कि मायावती दलित बहुजन नौजवानों को अवसर दे रही हैं। लेकिन दो और चेहरों का जिक्र कर दिया जाए तो यह भ्रम टूट जाएगा कि मायावती बाबा साहब और कांशीराम के मिशन को आगे बढ़ा रही हैं। इनमें सबसे चर्चित चेहरा चंद्रशेखर आजाद का है।

चंद्रशेखर आजाद दलित नौजवानों के सबसे प्रिय नेता हैं, दलित उत्पीड़न की घटनाओं से लेकर लगभग सभी राष्ट्रीय मुद्दों पर वे अपनी बेबाक राय रखते हैं तथा जमीन पर संघर्ष करते हैं लेकिन बसपा ने चंद्रशेखर आजाद को टिकट नहीं दिया उनके खिलाफ प्रत्याशी भी उतारा और मायावती के भतीजे आकाश आनंद ने चंद्रशेखर आजाद के खिलाफ अशोभनीय टिप्पणी भी की। चंद्रशेखर की बहुत सारी सीमाएं हैं लेकिन वे दलित नौजवानों में संघर्षशील नेता के रूप में सबसे अधिक लोकप्रिय हैं। यहां पर एक और नाम की चर्चा करना आवश्यक है, यह नाम है श्रवण कुमार निराला का।

श्रवण कुमार निराला मुख्यधारा की मीडिया में चर्चित नहीं हैं लेकिन पिछले दिनों गोरखपुर में सभी भूमिहीनों को एक एकड़ जमीन दिलाने की मांग को लेकर इन्होंने बहुत बड़ा आंदोलन किया था। इस आंदोलन के कारण श्रवण कुमार निराला को दो बार जेल जाना पड़ा। पहली बार इन्होंने 22 दिन जेल में बिताए। इनके साथ दलित एक्टिविस्ट एवं पूर्व आईपीएस एसआर दारापुरी, पत्रकार डॉ. सिद्धार्थ सहित 10 लोगों को गोरखपुर प्रशासन ने 307 जैसी गंभीर धारा लगाकर जेल में डाल दिया था अभी वे सभी लोग जमानत पर हैं। श्रवण कुमार निराला का मामला तो काफी दिलचस्प है। श्रवण कुमार निराला छात्र राजनीति से बसपा में आए। छात्र जीवन में निराला अंबेडकरवादी राजनीति करते थे, विश्वविद्यालय में दलित सहित सभी आरक्षित वर्गों के छात्रों का जीरो फीस पर एडमिशन कराने का आंदोलन श्रवण कुमार निराला ने किया और उसमें बड़ी सफलता मिली।

वर्षों तक परंपरागत पाठ्यक्रमों के साथ-साथ बीटेक, बीएड, एमएड जैसे लाखों की फीस वाले प्रोफेशनल कोर्सों में जीरो फीस पर एडमिशन हुआ लेकिन अजय सिंह बिष्ट की सरकार ने यह सुविधा समाप्त कर दी है। गोरखपुर विश्वविद्यालय में एडहाक प्रोफेसर की रिक्तियों में तथा पीएचडी हेतु प्रवेश में आरक्षण लागू करवाना श्रवण कुमार निराला की देन है। ऐसे बहुत सारे संघर्ष निराला ने छात्र राजनीति करते समय किया। बसपा में भी निराला ने कोऑर्डिनेटर जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। विधानसभा चुनाव 2017 में बसपा की करारी हार के बाद मायावती ने इन्हें विधानसभा बांसगांव से 2022 की विधानसभा चुनाव के लिए 2017 में ही प्रत्याशी घोषित कर दिया था, लेकिन 2019 में लोकसभा चुनाव के बाद इनका टिकट वापस ले लिया।

उस समय निराला ने बसपा छोड़ दिया तथा सभी भूमिहीनों को एक एकड़ जमीन दिलाने का आंदोलन प्रारंभ किया जिसके कारण इन्हें जेल जाना पड़ा, निराला पूर्वांचल में दलितों के उत्पीड़न पर सक्रिय संघर्ष करते हैं तथा पीड़ितों के साथ खड़े रहते हैं। इनको इस चुनाव में बांसगांव से टिकट देने के लिए मायावती ने आश्वासन दिया था लेकिन एक 76 वर्ष के रिटायर्ड आईआरएस अधिकारी, जो अभी बीजेपी में थे तथा सपा से टिकट मांग रहे थे, उसको टिकट दे दिया। 

प्रोफेसर इंदु चौधरी को मायावती ने टिकट दिया तथा चंद्रशेखर आजाद और श्रवण कुमार निराला को टिकट नहीं दिया। इसी पहेली को सुलझाने से मायावती की वर्तमान राजनीति की पहेली सुलझेगी। जिनको टिकट दिया गया अर्थात इंदु चौधरी, पूर्णकालिक पॉलिटिकल एक्टिविस्ट या राजनीतिक नेता नहीं हैं। इंदु चौधरी प्रोफ़ेसर हैं। इनकी राजनीतिक जमीन खोखली है।

इनका जमीन पर कोई कार्य नहीं है। ये किसी भी उत्पीड़न के विरुद्ध आवाज उठाती नहीं देखी गई हैं। वहीं दूसरी तरफ चंद्रशेखर आजाद एवं श्रवण कुमार निराला पूर्ण कालिक राजनीतिक कार्यकर्ता हैं। उनके अपने समर्थक हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में चंद्रशेखर गोरखपुर से 8000 से अधिक वोट पाए थे तथा निराला की पत्नी बीडीसी सदस्य रह चुकी हैं तथा पिछले विधानसभा चुनाव में निराला बांसगांव में लगभग 2000 वोट पाए थे। स्पष्ट है कि मायावती ने ऐसे नौजवानों को टिकट दिया है जिनका अपना कोई जनाधार आधार नहीं है जो जमीनी मुद्दों पर संघर्ष नहीं करते हैं लेकिन जो नौजवान संघर्ष करते हैं, जेल जाते हैं, उनको बसपा ने टिकट नहीं दिया।

आखिर मायावती जनाधार वाले राजनीतिक कार्यकर्ता को अवसर क्यों नहीं देती हैं। इसी प्रश्न के उत्तर में मायावती की ताकत का राज छुपा हुआ है। मायावती अपने मतदाताओं से सीधे जुड़ी हुई हैं। यही उनकी ताकत का राज है उनका मतदाता केवल उनके नाम पर वोट देता है, प्रत्याशी कोई भी हो। मायावती की यही वह ताकत है जिसे बनाए रखने के लिए उन्होंने बहुत सारे कद्दावर नेताओं को बसपा से बाहर का रास्ता दिखा दिया तथा अभी भी किसी जनाधार वाले नेता को बसपा में पनपने नहीं देती हैं। इसलिए आज बसपा नेताविहीन पार्टी बन गई है। जहां बाबासाहब अंबेडकर दलित बहुजनों में जमीनी नेता पैदा करना चाहते थे।

मान्यवर कांशीराम ने दलित बहुजनों के बीच से हजारों नेता पैदा कर दिया, वहीं अब मायावती का मुख्य मिशन दलित बहुजन समाज को नेताविहीन बनाना है। मेरे इस स्थापना की पुष्टि बसपा से निकल जाने वाले नेताओं की लंबी सूची के विश्लेषण से की जा सकती है। तेलंगाना प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर आरएस प्रवीण कुमार (आईपीएस) ने अभी हाल ही में पार्टी छोड़ी है। 2003 में मध्य प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष फूल सिंह बरैया को पार्टी से निकाल दिया गया था।

उत्तर प्रदेश में तो सूची बड़ी लंबी है। अभी भी जो नेता बसपा में हैं, उनकी हैसियत मायावती की हलवाहे से अधिक नहीं है कि वे जब चाहें जिसको चाहें उनको बाहर का रास्ता दिखा सकती हैं,  वे चाहे बसपा के पदाधिकारी हों या बसपा के कोऑर्डिनेटर हों। क्योंकि इन नेताओं के रहने या ना रहने से मायावती के मतदाताओं पर कोई असर नहीं पड़ता है, यही मायावती की वास्तविक ताकत है जिसका दुरुपयोग मायावती बड़ी ही चालाकी से कर रही हैं।

इन सब चर्चाओं के साथ बसपा के नेशनल कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद की चर्चा कर लेना भी आवश्यक है। आकाश आनंद मायावती के भतीजे हैं। मायावती ने इनको एमबीए करने के लिए लंदन भेजा था। वहां पढ़ाई करके लौटने के बाद इन्होंने कुछ बिजनेस भी किया था। 2017 से बसपा के लिए कार्य कर रहे हैं। बाबा साहब का सपना था कि दलित नौजवान विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए जाएं। उन्होंने अपने सीमित प्रभाव से 16 दलित नौजवानों को विदेश पढ़ने के लिए सरकारी खर्चे पर भेजा था।

मायावती ने अपने कार्यकाल में किसी दलित नौजवान को विदेश पढ़ने के लिए भेजा या नहीं यह तो पता नहीं है लेकिन अपने भतीजे को भेज कर मायावती ने बाबा साहब का सपना अवश्य पूरा किया जो अच्छी बात है। आकाश आनंद को मायावती 2017 से बसपा को चलाने के लिए ट्रेनिंग दे रही हैं। ऐसा मायावती भी कहती हैं और स्वयं आकाश आनंद भी कहते हैं, लेकिन मेरी समझ से मायावती आकाश आनंद के साथ बहुत बड़ा अन्याय कर रही हैं। मायावती आनंद को बसपा का सीईओ बनाना चाहती हैं, जैसे किसी कंपनी का सीईओ होता है। सीईओ कंपनी के लिए अपनी सारी ऊर्जा, सारा ज्ञान लगाता रहता है लेकिन कंपनी का मालिक उस सीईओ को एक झटके में कंपनी से बाहर कर देता है। वही स्थिति आकाश आनंद की है वे बसपा में बाहरी व्यक्ति के तौर पर कार्य कर रहे हैं।

मायावती जब चाहेंगी तब उनको बसपा से दूध की मक्खी की तरह बाहर कर देंगी, तब आकाश आनंद ना घर के रह जाएंगे ना घाट के। मायावती ट्रेनिंग के नाम पर उनको मूर्ख बना रही हैं। आकाश आनंद की न तो कोई जवाबदेही है न ही कोई जिम्मेदारी।बिना जवाबदेही और जिम्मेदारी के आकाश आनंद को केवल भाषण देने का कार्य दिया गया है। मायावती ,आकाश आनंद को नेता नहीं अपनी कठपुतली बनाना चाहती है। और कठपुतली कभी नेता नहीं हो सकता है। मेरी इस स्थापना की पुष्टि इस बात से भी होती है कि एक रैली में दिए गए भाषण के आधार पर एफआईआर दर्ज होने के बाद आनंद की आगामी रैलियां रद्द कर दी गईं तथा उनको चुप करा दिया गया। अभी आनंद चुनाव के समय में भी घर बैठे है।

आनंद भी चुपचाप घर बैठ गए, एक कठपुतली की तरह। आकाश आनंद को मायावती इसी तरह प्रशिक्षित कर रही हैं। ऐसी ट्रेनिंग किसी नेता की नहीं हुई है। किसी भी राजनीतिक दल में इस तरह की ट्रेनिंग नहीं दी जाती है। राहुल गांधी जैसे ही 25 वर्ष के हुए, एमपी का चुनाव लड़े और एमपी बने, अखिलेश यादव एमपी बने, तेजस्वी यादव चुनाव लड़ते हैं। खुद मायावती भी प्रारंभ से चुनाव लड़ती हैं। यह कैसी ट्रेनिंग है कि नेता चुनाव ही नहीं लड़ेगा जबकि जितने नेताओं के बेटे बेटियां हैं, सब चुनाव लड़ते हैं। बिना चुनाव लड़े कैसी ट्रेनिंग। मायावती आकाश आनंद के साथ भी छल कर रही हैं।

अब मूल प्रश्न पर आते हैं। मायावती भाजपा को केंद्र की सत्ता से हटाने के लिए विपक्षी गठबंधन इंडिया का हिस्सा क्यों नहीं बनीं, इसका सीधा उत्तर है कि मायावती को दलितों के हितों से तथा बाबा साहब अंबेडकर एवं कांशीराम के मिशन से इस समय कुछ भी लेना-देना नहीं है। इनकी उम्र 70 वर्ष की हो चुकी है। भाजपा विरोधी किसी गठबंधन में शामिल होने का अर्थ होता है सीधे जेल जाना। मायावती जेल जाने से डरती हैं।

मायावती में संघर्ष की हिम्मत नहीं बची है, अपने लिए इनके पास कोई सपना भी नहीं है। चार बार मुख्यमंत्री बन चुकी हैं, प्रधानमंत्री बनने की संभावना है नहीं, तो फिर क्यों संघर्ष करें। इसलिए वह सुरक्षित राजनीति कर रही हैं। भाजपा को कोई कष्ट ना हो इसलिए उन्होंने ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दिया है, जिससे भाजपा के उम्मीदवार आसानी से जीत जाएं। भविष्य में आकाश आनंद के नेतृत्व में जिस बसपा की कल्पना बहन जी कर रही हैं, वह दलितों के किसी काम की नहीं होगी। कुल मिलाकर भारतीय राजनीति में मायावती और बसपा की प्रासंगिकता समाप्त हो चुकी है। यह परिस्थिति दलितों के लिए हिंदूराज से ज्यादा विध्वंसक है।

(डॉ. अलख निरंजन लेखक और टिप्पणीकार हैं।)

You May Also Like

More From Author

4.5 2 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Bhisham prasad
Bhisham prasad
Guest
13 days ago

आदरणीय डॉक्टर साहबअपने नेता के पक्ष में बहुत अच्छा लेख लिखा है इसके लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद