पुलिस वर्दी में मैतेई सशस्त्र दस्ते ने की तीन कुकियों की हत्या, राज्य प्रायोजित हिंसा की गिरफ्त में मणिपुर

Estimated read time 1 min read

नई दिल्ली। मंगलवार की सुबह मणिपुर के कांगपोकपी जिले में पहले से ही घात लगाकर बैठे सशस्त्र लोगों ने कुकी समुदाय के तीन लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी। हत्यारे मणिपुर पुलिस की वर्दी में आए थे। यह कोई और नहीं कह रहा है बल्कि मणिपुर में जातीय हिंसा को रोकने के लिए तैनात सुरक्षा बलों ने कहा कि हमलावर मणिपुर पुलिस की वर्दी में थे। हमलावरों ने आदिवासी कुकी-ज़ो समुदायों द्वारा बसाई गई पहाड़ियों में घुसने का प्रयास किया था।

कुकियों की नवीनतम हत्याओं से संकेत मिलता है कि मणिपुर में हिंसा ऐसे दौर में पहुंच गयी है जो देश की सुरक्षा को संकट पैदा कर रहा है मणिपुर हिंसा का सबसे दुखद पक्ष यह है कि राज्य सरकार मैतेई समुदाय के साथ सीना तान कर खड़ी है। कुकियों को सबक सिखाने के लिए एन. बीरेन सिंह की सरकार हर तरह से मैतेई समुदाय के साथ है। और मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के कुकृत्य का समर्थन केंद्र की मोदी सरकार से मिल रहा है। मणिपुर एक ऐसा राज्य बन गया है जहां कि सरकार खुद गैर-कानूनी काम करते हुए मैतेई समुदाय का न केवल समर्थन कर रही बल्कि हिंसा के लिए साजो-सामान भी मुहैया कर रही है। ऐसे में अब मणिपुर सरकार से कानून, संविधान और मानवाधिकार की रक्षा करते हुए शांति बहाली की आशा करना बेमानी हो गया है।

राज्य में हिंसा की शुरुआत 3 मई को हुई थी। तब से बीरेन सिंह सरकार हिंसा को रोकने में असफल है। दरअसल, राज्य सरकार के एजेंडे में शांति है ही नहीं, उसके मुख्य एजेंडे में कुकियों को सबक सिखाना है। हिंसा को तो सेना और सुरक्षा बल चंद दिनों में समाप्त कर देते। लेकिन इसके लिए केंद्र सरकार तैयार नहीं है। राज्य में तैनात सेना औऱ सुरक्षा बल के जवान अपने को असहाय महसूस कर रहे हैं। मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के इशारे पर मैतेई सेना और सुरक्षाबल को बदनाम करने के लिए समय-समय पर प्रदर्शन करते रहते हैं और मांग करते हैं कि राज्य से सुरक्षा बलों और असम राइफल्स को हटा लिया जाए।

मंगलवार को तीन कुकियों की हत्या के बाद राज्य में तैनात केंद्रीय सुरक्षा बलों में भी असंतोष है। एक सूत्र ने कहा कि हिंसा जिस तरीके से की गई वह राज्य के कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठाते हैं। पहला, हमला करने वाले नौ लोगों ने मणिपुर पुलिस की वर्दी पहन रखी थी।

दूसरा, उन्होंने तीन आदिवासी लोगों पर स्वचालित आग्नेयास्त्रों से गोलियां बरसाईं, जब वे एक कच्ची सड़क पर जिप्सी में यात्रा कर रहे थे। एक सुरक्षा अधिकारी ने इसे गंभीर चिंता का विषय बताते हुए कहा, हमले की प्रकृति और जिस गति से इसे अंजाम दिया गया, उससे पता चलता है कि हत्यारों को स्वचालित हथियारों का उपयोग करने का प्रशिक्षण दिया गया था।

तीसरा, मैतेई के गढ़ इंफाल को दरकिनार करते हुए जिला मुख्यालय कांगपोकपी तक सुरक्षित पहुंच के लिए ग्रामीणों द्वारा हाल ही में कच्ची सड़क बनाई गई थी। चौथा, एक सूत्र ने कहा कि यह हमला मुझे “युद्ध जैसी रणनीति” की याद दिलाता है।

यानि राज्य में युद्ध जैसे हालात हैं। दो समुदायों की लड़ाई में एक तरफ राज्य खड़ी है और दूसरी तरफ कुकी आदिवासी। मैतेई लगातार प्रचार कर रहे हैं कि हम यहां के मूल निवासी हैं और कुकी समुदाय बाहर से आया है। जबकि सचाई है कि दोनों समुदाय मणिपुर के ही बाशिंदे हैं।

पांच महीने पहले जब मणिपुर में हिंसा की शुरुआत हुई थी तब लगता था कि सरकार जल्द से जल्द हिंसा पर काबू कर राज्य में अमन-चैन का माहैल स्थापित करेगी। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया लोगों के मन आशंका घर करने लगी। लेकिन किसी को भी यह अंदाजा नहीं था कि राज्य अपने ही नागरिकों के खिलाफ षडयंत्र करने में लगी है। विगत पांच महीने में बीरेन सिंह की सरकार ने मैतेइयों को हथियारबंद कर प्रशिक्षण दिया, और अब उन्हें पुलिस की वर्दी में कुकियों के नरसंहार के लिए प्रेरित कर रही है।

सुरक्षा बलों के सूत्रों का कहना है कि मंगलवार को तीन कुकियों की हत्या करने आए 9 लोगों के हथियारबंद दस्ते ने मणिपुर पुलिस की वर्दी पहन रखी थी। यह हत्या पहाड़ियों के कम से कम 3 किमी अंदर की गईं। इससे लगता है कि मैतेई चरमपंथी बफर जोन को पार करके कुकियों पर हमले की तैयारी कर चुके हैं।

सूत्रों का कहना है कि “गोलीबारी एक मिनट से भी कम समय तक चली और तीनों की मौके पर ही मौत हो गई…यह प्रशिक्षित मैतेई मिलिशिया की भागीदारी की पुष्टि करता है, शक्तिशाली शख्सियतों के संरक्षण में मैतेई समुदाय को लामबंद किया गया है।”

दरअसल, कांगपोकपी जिले के पोनलेन कुकी गांव के निवासी 32 वर्षीय नगामिनलुन किपगेन जो तेज बुखार से पीड़ित थे और उन्हें दो अन्य, 37 वर्षीय सातनेओ तुबोई और 30 वर्षीय नगामिनलुन ल्हौवुम इलाज के लिए जिला मुख्यालय ले गए थे। आते वक्त मैतेई हथियारबंद दस्ते ने तीनों की गोली मारकर हत्या कर दी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मणिपुर में 3 मई से अब तक मरने वालों की संख्या 180 को पार कर गई है।

केंद्रीय सुरक्षाबलों के एक सूत्र ने कहा कि “हथियारबंद लोग पुलिस की मिलीभगत के बिना कुकी-ज़ो आबादी वाले गांव तक नहीं पहुंच सकते थे क्योंकि उन्हें पहले एक बफर ज़ोन को पार करना था, जिसके कुछ हिस्से केंद्रीय बलों और मणिपुर पुलिस द्वारा संरक्षित था, और फिर एक नागा गांव (इरेंग) को पार करना था। ऑपरेशन को अंजाम देने के बाद वे उसी रास्ते से इंफाल घाटी लौट गए। ”

“घटना के बाद, इरेंग गांव के कई लोगों ने इलाके का दौरा करने वाली असम राइफल्स और पुलिस टीमों को बताया कि उन्होंने पुलिस की वर्दी में हथियारबंद लोगों को यह दावा करते हुए भागते देखा कि उन्होंने तीन कुकियों को मार डाला है… इसके बाद समूह मैतेई-प्रभुत्व वाले क्षेत्र कडांगबैंड की ओर भाग गए।”

मंगलवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपे गए एक ज्ञापन में मणिपुर की नौ कुकी-ज़ो जनजातियों का प्रतिनिधित्व करने वाली ज़ोमी काउंसिल संचालन समिति ने मंगलवार सुबह की घटना का हवाला दिया और सशस्त्र मैतेई मिलिशिया की पहचान करने के लिए सभी मणिपुर पुलिस कमांडो और कर्मियों के भौतिक सत्यापन की मांग की।

ज़ोमी काउंसिल ने पहले ही मांग की है कि कुकी-प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में मैतेई मिलिशिया के घुसने की संभावना को कम करने के लिए बफर ज़ोन में केवल केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को तैनात किया जाए। अपने ज्ञापन में, परिषद ने आदिवासी समुदायों द्वारा बसाए गए पहाड़ी क्षेत्रों के लिए एक अलग प्रशासनिक व्यवस्था की अपनी मांग दोहराई है।

(प्रदीप सिंह जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।)

प्रदीप सिंह https://www.janchowk.com

दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

You May Also Like

More From Author

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments