इंडिया (INDIA) की लज्जाजनक परिभाषा गढ़ मोदी ने किया देश को शर्मशार

पिछले नौ सालों से प्रधानमंत्री पद पर विराजमान श्री नरेंद्र मोदी के ताज़ा उवाच ने कार्यपालिका के शीर्षस्थ पद की ही नहीं, भारत यानी इंडिया की परम्परागत गरिमा, समृद्ध विरासत और एक सदी चले स्वतंत्रता संग्राम की ऐतिहासिक उपलब्धियों को एक ही झटके में ध्वस्त करने की असफल कोशिश है। नरेंद्र मोदी ने कल अपने सांसदों को सम्बोधित करते हुए इंडिया की लज्जाजनक परिभाषा गढ़ी। उन्होंने इंडिया शब्द को पूर्व औपनिवेशिक शासक ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’, ‘इंडियन नेशनल कांग्रेस’, ‘इंडियन मुजाहिद्दीन’, ‘इंडियन पीपुल्स फ्रंट’ जैसे नामों से नत्थी कर दिया। उनकी यह कोशिश नागरिकों को शर्मसार करनेवाली है।

पिछले सप्ताह ही मोदी जी ने संसद भवन के बाहर कहा था कि मणिपुर की घटनाएं देश को ‘ शर्मसार’ करने वाली हैं। लेकिन, इंडिया के संबंध में मोदी जी की नायाब खोजें उन्हें ही शर्मसार करने वाली दिखाई दे रही हैं। मोदी जी के इंडिया शब्द को ईस्ट इंडिया कंपनी, आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन, इंडियन पीपुल्स फ्रंट आदि के साथ जोड़ने से उनकी छिछोरी बुद्धिमता, सौन्दर्य बोधहीनता और मर्यादाहीनता ही उजागर हुई है। यदि परदे के पीछे उनका कोई ‘स्पीच राइटर’ या ‘पटकथा लेखक’ है तो उसकी बौद्धिकता पर भी ‘तरस’ खाने को जी करता है। प्रधानमंत्री की सार्वजनिक भाषा कैसी होनी चाहिए, क्या नहीं बोलना चाहिए, इसकी बारीक समझदारी मोदी जी के साथ-साथ पटकथा लेखक को भी रहनी चाहिए।

क्या नरेंद्र मोदी इस यथार्थ को सुविधापूर्वक भूल गए कि इंडिया 26 दलों का गठबंधन नहीं है, बल्कि करोड़ों लोगों का सनातन – निवास है और आज़ 140 करोड़ इंडियंस यानी भारतियों का जीवंत लोकतांत्रिक राष्ट्र है जो कि वैश्विक राष्ट्र-समुदाय (संयुक्त राष्ट्र) में  गरिमापूर्ण  भू-राजनैतिक आर्थिक देश का स्थान रखता है। इसे आपके द्वारा पूर्व विदेशी शासकों, आतंकी संगठनों, राजनीतिक दल के संकीर्ण संज्ञाओं में क़ैद कर देना कितनी बड़ी घिनौनी हरक़त है।

एक सचेत नागरिक के नाते मेरी दृष्टि में भारतीयों का अपमान भी है। क्या आपके पूर्वाग्रह ग्रस्त उवाच से इंडिया की ‘विराट पहचान’ विलुप्त हो जाएगी? मिसाल के तौर पर, आप अपने विदेशी दौरों में ‘इंडियन प्राइम मिनिस्टर’ के रूप में जाने जाते हैं। आप ‘इंडियन आर्मी’, ‘इंडियन एयर फोर्स’, ‘इंडियन नेवी’ जैसी गौरवशाली संस्थाओं को किसके साथ जोड़ेंगे? इतना ही नहीं, ISRO, IIT, IAS, IPS, constitution of India, Indian government आदि की पहचान क्या होगी ? क्या इन सभी की पहचान को इंडियन मुजाहिद्दीन के साथ जोड़ा जाएगा? क्या ईस्ट इंडिया कंपनी ने इंडियन फोर्सेज की स्थापना की थी?  

हक़ीक़त तो यह है कि आप और आपकी पार्टी पहले रोज़ से ही विपक्ष के गठबंधन के नामकरण ‘India’ (Indian National Developmental Inclusive Alliance ) को पचा नहीं पा रहे हैं। इस अनूठे नैरेटिव का तोड़ आपके तरकश में अभी तक नहीं है। अभी तक आपकी एजेंडा सेटिंग की आदत रही है, नैरेटिव गढ़ते रहे हैं। लेकिन, अब विपक्ष ने आपको इस क्षेत्र में शिक़स्त दे दी है। आपके हथियार भोंथरे दिखाई देने लगे हैं। आपके कुटुंब ने हिंदुत्व का नैरेटिव उछाल कर सभी हिन्दुओं का एकाधिकारकरण करने की कोशिश की ;लव जिहाद, गोरक्षा, मॉबलिंचिंग जैसे हथकंडों के ज़रिये भारतीय समाज का ‘ध्रुवीकरण’ की रणनीति अपनाई। लेकिन, कठोर आर्थिक यथार्थ के मैदान में आक्रामक भावनाओं के शस्त्र ज़ंग लगे दिखाई देने लगे हैं। अकाट्य सबूत है कनार्टक का चुनाव परिणाम। 

अब विपक्ष के ‘इंडिया गठबंधन’ को ध्वस्त करने के लिए कुत्सित नैरेटिव की ज़रुरत दिखाई दे रही है। इससे आपकी मनोदशा, आंतरिक भय-बैचेनी और डरावना भविष्य ही उद्घाटित हो रहे हैं। आप जानते हैं कि आपने अपने नौसाला सफ़र में ऐसे सहयात्री और दर्शक तैयार किये हैं जिन्हें राजनेता और प्रधानमंत्री पद की गौरवशाली गरिमा का नितांत बोध नहीं है। इन्हें बोध के ऐसे सांचे में ढाला  गया है जिसमें शालीनता,संवेदनशीलता, परिष्कृत संस्कार, उन्नत दृष्टि, वैज्ञानिक मानस जैसे तत्वों के लिए कोई स्पेस नहीं है।

यदि कोई स्पेस है तो ‘अंधभक्ति’, ‘ट्रोलिंग’, ‘धार्मिक बुनियादपरस्ती’, ‘युद्धोन्माद, कुरूप भव्यता, हिन्दू-मुस्लिम फ़साने आदि के लिए है। मोदी जी, यह आत्मघाती क़वायद है। भाजपा के ही पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी, राजनेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, नानाजी देशमुख आदि ने लोकवृत्त के स्तरों को सदैव ऊंचा रखा था। वैचारिक मतभेदों के बावजूद उन्होंने अपने विरोधियों को ‘देशद्रोही’ नहीं कहा था। इस जगह यह याद दिलाना समीचीन रहेगा कि 2015 में आडवाणी जी ने ही कहा था कि देश में ऐसी शक्तियां अभी भी शक्तिशाली हैं जो लोकतंत्र को समाप्त कर सकती हैं। क्या वजह है कि आपकी शासन शैली में ‘निर्वाचित अधिनायकवाद’ की गंध आती है। 

जब आप अपने सांसदों को सम्बोधित करने के लिए सभागार में बैठे हुए थे तब आपके अगल-बगल की सीटों को खाली रखा गया था। पहले भी ऐसा होता रहा है। आपके आस-पास कोई बैठे, आपको पसंद नहीं है। यह प्रवृत्ति क्या दर्शाती है? अटलजी सहित पूर्व प्रधानमंत्रियों में ऐसी  ‘सनक’ नहीं थी। याद दिलाने के लिए मुझे यह भी लिखना पड़ रहा है कि अटल जी प्रेस वार्ता को सम्बोधित किया करते थे। अपने निवास पर भी प्रेस को बुलाकर सवालों को झेला करते थे। आपकी दृष्टि में मौनी प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह भी प्रेस कॉन्फ्रेंस किया करते थे। यह निजी अनुभव है। लेकिन, आप तो मीडिया से पलायन करते हैं। 2014 से 25 जुलाई, 23 तक आपने स्वतंत्र मीडिया का सामना किया हो, मुझे याद नहीं है। यदि अमेरिका में कोई महिला रिपोर्टर सवाल करती है तो आप बेचैन हो जाते हैं। ऐसा क्यों है? आप सर्वशक्तिमान हैं, प्रखर वक्ता हैं, फिर भी गैर- गोदी मीडिया के सवालों का सामना नहीं करना चाहते हैं। ऐसा क्यों है? इससे तो आपकी छवि निखरती नहीं है। उस पर घबराहट के दाग़ दिखाई देने लगते हैं। इसलिए स्वेच्छारिता के साथ इंडिया को परिभाषित करने से आपका ही क़द घटेगा। 

आपसे पैने सवाल पूछने के लिए अब तो राहुल गांधी भी संसद में नहीं हैं। फिर भी आप मणिपुर पर बहस से भाग रहे हैं। विपक्ष को  अवांछित संज्ञाओं में ढालने से आपका क़द घटेगा ही। आपके गृहमंत्री और जिगरी यार अमित शाह जी ने स्वयं कहा है कि 2024 का चुनाव नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी होगा। अब दोनों में से किसी एक का चुनाव करना होगा। इसका अर्थ यह हुआ कि तथाकथित ‘पप्पू’ (राहुल) आपके क़द के बराबर आ पहुंचा है। सारांश में राहुल गांधी की छवि को पप्पू में ढालने की कोशिशें नाक़ाम हो गई हैं। इसका दूसरा अर्थ यह भी निकला कि आपका क़द घट कर विपक्षी नेता राहुल के बराबर आ गया है। हालांकि, अब उनके भविष्य पर अदालती फैसले की तलवार लटकी हुई है। फिर भी आप ऐसे शत्रु से भयभीत हैं जो कि औपचारिक रूप से रणक्षेत्र से बाहर है। ऐसा क्यों है ? 

(रामशरण जोशी वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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