बालासोर रेल हादसा: मोदी जी! बुलेट ट्रेन जरूरी या सुरक्षित ट्रेन?

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मुंबई और अहमदाबाद के बीच 320 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से चलने वाली प्रधानमंत्री मोदी के सपनों की बुलेट ट्रेन परियोजना यद्यपि व्यवहार्यता के कारण कछुवा चाल चल रही है, फिर भी उड़ीसा के बालासोर में हुई भयंकर रेल हादसे ने सवाल खड़ा कर दिया कि भारत को पहले बुलेट ट्रेन की जरूरत है या सुरक्षित ट्रेन की? जब अमेरिका जैसा देश बुलेट ट्रेन के मामले में पिछड़ा हुआ है तो प्रधानमंत्री के सपने की व्यवहार्यता पर भी सवाल उठना लाजिमी ही है। गौरतलब है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सर्वाधिक विकसित देश अमेरिका ने भी रेलों की गति से अधिक यात्रियों की सुरक्षा और वित्तीय पहलू को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है।

इस सदी के अब तक के भीषणतम बालासोर रेल हादसे के कारणों की जांच के आदेश दे दिये गये हैं। लेकिन सरसरी तौर पर इस हादसे में मानवीय चूक साफ नजर आ रही है। रेल या हवाई परिवहन के परिचालन में एक छोटी सी भी मानवीय त्रुटि इसी तरह का भयंकर परिणाम सामने ला सकती है। इस हादसे में मालगाड़ी के साथ हावड़ा एक्सप्रेस और कोरोमण्डल एक्सप्रेस के बीच टक्कर हो गयी। इन एक्सप्रेस ट्रेनों की अधिकतम गति सीमा 130 किमी प्रति घण्टा है।

हालांकि निर्माणाधीन बुलेट ट्रेन परियोजना में सुरक्षा के अतिरिक्त और आधुनिकतम इंतजाम होते हैं, फिर भी जब कम गति की रेलों का परिचालन सही ढंग से नहीं हो पा रहा है तो 320 किमी प्रति घंटा की गति से चलने वाली बुलेट ट्रेन के परिचालन में कोई लापरवाही नहीं होगी, इसकी गारंटी कौन दे सकता है। भारतीय रेलवे गुजरात के अहमदाबाद से महाराष्ट्र के मुंबई तक 508 किलोमीटर के रूट पर देश की पहली बुलेट ट्रेन का निर्माण कर रहा है। हाई स्पीड ट्रेन 350 किलोमीटर प्रति घंटे की टॉप स्पीड से दौड़ेगी और तीन घंटे में यह दूरी तय करेगी।

इससे पहले भी दुनिया में भयंकर रेल हादसे होते रहे हैं। तकनीकी रूप से विकसित यूरोप रेल हादसों में अग्रणी माना जाता है। रूस और चीन में भी विगत में भयंकर हादसे हो चुके हैं। हमारे देश में ही 20 नवम्बर 2016 को इंदौर-पटना एक्सप्रेस रेल हादसा हो चुका है जिसमें 600 से अधिक यात्रियों के मारे जाने का अनुमान था। इनमें से ज्यादातर हादसे मानवीय चूक के कारण हुए हैं।

कमिश्नर ऑफ रेलवे सेफ्टी की 2019-20 की सालाना रिपोर्ट के अनुसार 2015-16 से लेकर 2019-20 तक भारत में कुल 427 छोटे-बड़े रेल हादसे हो चुके हैं जिनमें 353 लोगों की जानें जा चुकी है। आयुक्त की रिपोर्ट के अनुसार इस दौरान प्रतिवर्ष औसतन 85 हादसों में लगभग 71 यात्री मारे गये हैं। भारत में भयंकर रेल हादसों का इतिहास भरा पड़ा है। इन हादसों के लिये मुख्य रूप से रेलों का पटरी से उतरना (डिरेलमेंट) ही मुख्य कारण रहा है और डिरेलमेंट के मुख्य कारणों में पटरियों में डिफेक्ट, रोलिंग स्टाॅक में डिफेक्ट, ड्राइविंग में लापरवाही और सिग्नल फेल्योर जैसे कारण गिनाये गये हैं।

कमिश्नर ऑफ रेलवे सेफ्टी की ताजा रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में रेल हादसों की संख्या घट रही है। लेकिन तमाम सावधानियों के बावजूद हादसों की संभावनाएं समाप्त नहीं हुयी हैं। ऐसे में यात्रियों की सुरक्षा को बुलेट ट्रेन से जरूरी माना जाना स्वाभाविक ही है। यह सही है कि जिस जापान से हम बुलेट ट्रेन की टेक्नाॅलाजी और ऋण ले रहे हैं उससे कहीं तेज रफ्तार की शंघाई-मागलेव ट्रेन (430 किमी प्रति घंटा) चीन में चल रही है।

चीन ने अपनी विशाल जनसंख्या की जरूरतों को पूरा करने के लिये तेज गति की रेलवे व्यवस्था पर काफी निवेश कर रखा है। चीन और जापान के अलावा वर्तमान में फ्रांस, स्पेन, जर्मनी, इटली, दक्षिण कोरिया, ताइवान, ग्रेट ब्रिटेन और तुर्की में तीव्र गति की रेलें चल रही हैं। लेकिन सोचनीय विषय यह है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विश्व का सर्वाधिक विकसित देश अमेरिका बुलेट ट्रेन की तरह अति तीव्र गति के रेल परिवहन के मामले में पिछड़ा क्यों है?

यह सही है कि अमेरिका में कुछ क्षेत्रीय हाई-स्पीड रेल परियोजनाएं चल रही हैं। एक उल्लेखनीय उदाहरण एमट्रैक एसेला एक्सप्रेस सेवा है, जो बोस्टन और वाशिंगटन डीसी के बीच पूर्वोत्तर कॉरिडोर पर संचालित होती है। एसेला एक्सप्रेस वर्तमान में संयुक्त राज्य अमेरिका की सबसे तेज ट्रेन है, जो कुछ निश्चित क्षेत्रों में 240 किमी घंटा तक की गति तक पहुंचती है। हालांकि यह अन्य देशों में बुलेट ट्रेनों द्वारा प्राप्त गति से कम है।

जाहिर है कि जब तक रेल सुरक्षा के मामले में फूल प्रूफ व्यवस्था नहीं हो जाती और तेज गति रेलों के प्रोजेक्ट देश की आर्थिकी के अनुकूल नहीं हो जाते तब तक अमेरिका हमारी तरह उतावली दिखाने के पक्ष में नहीं है। पूर्व में भारत में भी आगरा से दिल्ली और कानपुर के बीच एक हाई-स्पीड रेल लाइन प्रस्तावित की गई थी। लेकिन उस प्रोजेक्ट के अति खर्चीले होने और उसका किराया आम आदमी की हैसियत से बाहर होने के कारण वह विचार ही स्थगित कर दिया गया था। मुबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन का अनुमानित किराया भी हवाई जहाज के किराये के बराबर ही है।

क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत एक विशाल एवं विधिताओं से भरपूर देश होने के कारण इसे आधुनिक बुनियादी ढांचे वाली परिवहन प्रणाली की आवश्यकता है। बुलेट ट्रेन जैसी हाई-स्पीड ट्रेनें प्रमुख शहरों को जोड़ने और यात्रा के समय को कम करने, आर्थिक विकास, पर्यटन और व्यापार के अवसरों को बढ़ावा देने में मदद कर सकती हैं। हाई-स्पीड ट्रेनों में अतिरिक्त सुरक्षा और जोखिम को कम करने के लिए अलग डिजाइन की जाती हैं। उसके रखरखाव, सिग्नलिंग सिस्टम, ट्रैक रखरखाव और स्टाफ प्रशिक्षण सहित रेलवे संचालन के सभी पहलुओं में सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाती है।

हाई-स्पीड ट्रेनों में जीवाश्म ईंधन से चलने वाले वाहनों की तुलना में प्रदूषण नगण्य होता है। हालांकि, हाई-स्पीड रेल इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण और संचालन के पर्यावरणीय प्रभाव पर विचार करना और टिकाऊ व्यवस्था का पालन सुनिश्चित करना आवश्यक है। भारत की परिवहन जरूरतें बहुआयामी हैं, और इसके लिए एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो कनेक्टिविटी, सुरक्षा, पहुंच और पर्यावरणीय प्रभाव पर विचार करे। बुलेट ट्रेन जैसी हाई-स्पीड ट्रेनों का कार्यान्वयन मौजूदा ट्रेन सेवाओं का पूरक हो सकता है लेकिन फिलहाल देश को तेज ट्रेनों के बजाय सुरक्षित और कम किराये वाली ट्रेनों की जरूरत है।

(जयसिंह रावत वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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