हरियाणा के चुनाव में परिवारवाद पर खामोश रहेंगे मोदी!

Estimated read time 1 min read

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरियाणा में विधानसभा चुनाव के लिए अपना प्रचार अभियान शुरू कर दिया है। उन्होंने शनिवार को कुरुक्षेत्र में अपनी पहली चुनावी रैली में लोगों से हरियाणा में तीसरी बार भाजपा की सरकार बनाने की अपील की। उन्होंने अपने भाषण में तमाम मुद्दों को लेकर कांग्रेस पर हमला किया लेकिन कांग्रेस के खिलाफ अपने सबसे प्रिय मुद्दे ‘परिवारवाद’ का कोई जिक्र नहीं किया। पिछले दस साल के दौरान यह संभवत: पहला चुनाव है जिसमें प्रधानमंत्री मोदी ने परिवारवाद के मुद्दे का जिक्र किए बगैर अपने प्रचार अभियान की शुरुआत की है और संभवत: आगे भी वे हरियाणा के चुनाव में इस मुद्दे पर बोलने से परहेज करेंगे।

राजनीतिक विमर्श में परिवारवाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पसंदीदा मुद्दा रहता है। इस पर बोलने का वे कोई अवसर नहीं चूकते हैं। पिछले दस वर्षों के दौरान उनकी शायद कोई चुनावी रैली ऐसी रही हो, जिसमें उन्होंने इस मुद्दे को न छुआ हो। चुनावी रैलियों के अलावा दूसरे मौकों पर भी वे इस मुद्दे पर बोलने का मोह नहीं छोड़ पाते हैं। इस मुद्दे पर उनके भाषणों का मुख्य निशाना कांग्रेस और गांधी परिवार के अलावा वे क्षेत्रीय पार्टियां होती हैं, जो उनके गठबंधन में शामिल नहीं हैं। वे इस मुद्दे पर संसद में भी और लाल किले की प्राचीर से भी कह चुके हैं कि भारत के लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा परिवारवाद है।

वैसे परिवारवाद को मुद्दा बनाने के लिए हरियाणा बेहद खास जगह है, क्योंकि कांग्रेस की ओर से भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा कमान संभाले हुए हैं, जो एक बड़े राजनीतिक परिवार से आते हैं। परिवार पर आधारित दूसरा और तीसरा मोर्चा चौधरी देवीलाल के बेटे, पोते और पड़पोते संभाले हुए हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी को कायदे से हरियाणा मे परिवारवाद को बड़ा मुद्दा बनाना चाहिए। लेकिन वे ऐसा नहीं करेंगे।

सवाल है कि आखिर ऐसी क्या वजह है जिसके चलते मोदी हरियाणा में परिवारवाद का मुद्दा उठाने से परहेज करेंगे? दरअसल इसकी सबसे अहम वजह यह है कि भाजपा की ओर से इस बार बड़ी संख्या ऐसे उम्मीदवार मैदान में उतारे गए हैं जो राजनीतिक परिवारों से जुडे हैं। पार्टी के 90 में से करीब डेढ़ दर्जन उम्मीदवार ऐसे हैं जो किसी न किसी राजनीतिक परिवार के सदस्य हैं। इतना ही नहीं इनमें कई उम्मीदवार तो ऐसे हैं, जिनके माता पिता अब भी सक्रिय राजनीति में हैं और भाजपा ने उन्हें भी कोई न कोई पद दे रखा है। यानी पिता-पुत्र या पिता-पुत्री, मां-बेटी और मां-बेटे को एक साथ एडजस्ट किया गया है।

यह भी दिलचस्प है कि अपनी पार्टी में राजनीतिक परिवार वाले उम्मीदवार नहीं मिले तो भाजपा ने दूसरी पार्टी से ऐसे नेताओं को लाकर उन्हें उम्मीदवार बनाया है। जैसे कांग्रेस की पुरानी नेता और हरियाणा के तीन मशहूर लालों में से एक चौधरी बंसीलाल की बहू किरण चौधरी को भाजपा ने हाल ही में राज्यसभा में भेजा है। साथ ही उनकी बेटी श्रुति चौधरी को अपनी मां की पारंपरिक तोशाम सीट से उम्मीदवार भी बनाया है। दिलचस्प यह भी है कि पिछली बार भाजपा ने चौधरी बीरेंद्र सिंह के सामने शर्त रखी थी कि उनके और उनके आईएएस बेटे बृजेंद्र सिंह में से किसी एक को ही टिकट मिलेगा। इसीलिए बृजेंद्र सिंह ने नौकरी छोड़ कर चुनाव लड़ा था और सांसद बने थे। लेकिन इस बार किऱण चौधरी के सामने ऐसी कोई शर्त नहीं रखी गई।

बहरहाल, भाजपा ने केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह की बेटी आरती सिंह राव को अटेली सीट से पार्टी का उम्मीदवार बनाया है। हरियाणा के तीसरे बहुचर्चित लाल भजनलाल के पोते भव्य बिश्नोई को पार्टी ने फिर से आदमपुर सीट से टिकट दिया है। महज हफ्ते भर पहले ही भाजपा में शामिल हुईं पूर्व केंद्रीय मंत्री विनोद शर्मा की पत्नी शक्ति रानी शर्मा को कालका सीट से उम्मीदवार बनाया गया हैं। उनके बेटे कार्तिकेय शर्मा दो साल पहले भाजपा की मदद से हरियाणा से ही राज्यसभा सदस्य चुने गए थे।

इसी तरह कुछ दिन पहले ही भाजपा में शामिल हुए पूर्व मंत्री सतपाल सांगवान के बेटे सुनील सांगवान को भाजपा ने दादरी सीट से उम्मीदवार बनाया है। इनके बरे में दिलचस्प बात यह है कि ये रोहतक की सुनरिया जेल के अधीक्षक थे, जहां बलात्कार और हत्या का दोषी गुरमीत राम रहीम बंद था। इनके जेल प्रमुख रहते ही राम रहीम को छह बार पैरोल या फरलो मिली थी। इसके अलावा राव नरबीर सिंह एक बार फिर बादशाहपुर से टिकट लेने में कामयाब रहे। उनके पिता राव महाबीर सिंह यादव राज्य में बंसीलाल और भजनलाल की सरकारों में मंत्री रहे हैं और उनके दादा बाबू मोहर सिंह यादव देश विभाजन से पहले और उसके बाद भी पंजाब में विधान परिषद के सदस्य और तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों के संसदीय सचिव थे। यानी राव नरबीर सिंह तीसरी पीढ़ी के नेता हैं।

अब चुनाव मैदान अपनी ही पार्टी की तरफ से राजनीतिक परिवारों के इतने सारे रंगरूटों के होते प्रधानमंत्री मोदी परिवारवाद पर कैसे कुछ बोल सकते हैं, सो वे पूरे चुनाव में इस मुद्दे से किनारा करे रहेंगे।

(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं और दिल्ली-इंदौर में रहते हैं)

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments

You May Also Like

More From Author