योगेंद्र यादव के अनुरोध पर एनसीईआरटी ने पाठ्य पुस्तकों से उनका नाम हटाया

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नई दिल्ली। एनसीईआरटी ने योगेन्द्र यादव के अनुरोध को स्वीकरते हुए राजनीति विज्ञान की पाठ्य पुस्तकों से उनका नाम हटा दिया है। योगेन्द्र यादव और सुहास पलशिकर ने एनसीआरटीई को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि पाठ्य पुस्तकों से उनके नाम हटा दिए जाए। जिसके बाद एनसीईआरटी ने योगेन्द्र यादव का नाम हटा दिया है। एनडीटीवी के मुताबिक एनसीईआरटी ने स्पष्ट किया है कि योगेन्द्र यादव का नाम पुस्तकों से हटा दिया गया है।

शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने शुक्रवार को दो पूर्व मुख्य सलाहकारों की तरफ से राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों से नाम हटाने की मांग को खारिज कर दिया था। सुहास पलशिकर और योगेंद्र यादव ने “तर्कहीन कटौती और बड़े बदलाव” के कारण पाठ्यपुस्तकों से अपना नाम हटाने की मांग की थी।

सुहास पलशिकर और योगेंद्र यादव ने शुक्रवार को एनसीईआरटी के निदेशक डीएस सकलानी को संबोधित एक पत्र में अपनी चिंता जताई थी। वे एनसीआरटीसी कि पाठ्य पुस्तकों में बदलाव को लेकर असहमत हैं। उन्होंने कहा कि वे हाल की पाठ्यपुस्तक युक्तिकरण अभ्यास के लिए कोई शैक्षणिक औचित्य खोजने में असमर्थ थे और उन्होंने “कटे-फटे और अकादमिक रूप से बेकार” किताबों के साथ जुड़े होने पर शर्मिंदगी व्यक्त की। ये दोनों 2006-07 में शुरू में कक्षा 9 से 12 के लिए राजनीति विज्ञान की किताबों के लिए मुख्य सलाहकार के रूप में काम कर चुके हैं।

इस पर प्रतिक्रिया देते हुए परिषद ने शुक्रवार रात को एक सार्वजनिक बयान जारी किया था। जिसमें इस बात पर प्रकाश डाला गया कि पाठ्यपुस्तक विकास समितियां (जिनमें से यादव और पलशिकर सदस्य थे) पुस्तकों के प्रकाशित होने के बाद अस्तित्व में नहीं रहीं, और शैक्षिक सामग्री का कॉपीराइट तब से बना हुआ है। समिति ने कहा था कि पाठ्यपुस्तक विकास समिति के सभी सदस्यों ने लिखित में इस व्यवस्था पर सहमति दी थी।

एनसीईआरटी ने कहा था कि “अलग-अलग क्षमताओं में पाठ्यपुस्तक विकास समितियों के सदस्यों की भूमिका पाठ्यपुस्तकों को डिजाइन और विकसित करने या उनकी सामग्री के विकास में योगदान देने के बारे में सलाह देने तक सीमित थी और इससे आगे नहीं। स्कूल स्तर पर पाठ्यपुस्तकें किसी दिए गए विषय के बारे में हमारे ज्ञान और समझ की स्थिति के आधार पर ‘विकसित’ होती हैं। इसलिए, किसी भी स्तर पर व्यक्तिगत ग्रन्थकारिता का दावा नहीं किया जाता है, इसलिए एसोसिएशन की तरफ से किसी एक सदस्य के नाम को वापस लेने का सवाल ही नहीं उठता है।”

इसके अलावा, परिषद ने साफ किया कि वह सभी पाठ्य पुस्तकों में सभी सलाहकारों और समिति के सदस्यों के नाम उनके अकादमिक योगदान को स्वीकार करने और “रिकॉर्ड के लिए” प्रिंट करता है।

एनसीईआरटी स्कूल की पाठ्यपुस्तकें एक और विवाद के केंद्र में हैं, शिक्षाविदों और राजनेताओं ने पिछले साल (और इस साल लागू) किए गए व्यापक बदलावों और विलोपन की आलोचना की है। इन बदलावों के अंतर्गत साल 2002 के गुजरात दंगों के सभी संदर्भों को हटाया गया, मुगल युग और जाति व्यवस्था से संबंधित सामग्री को कम किया गया और विरोध और सामाजिक आंदोलनों के अध्यायों को हटाया गया।

(कुमुद प्रसाद जनचौक में सब एडिटर हैं।)

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