नई दिल्ली। कल रात केंद्र सरकार द्वारा लोकसभा में 3 लेबर कोड बिल पास कराए जाने के खिलाफ़ आज दस सेंट्रल ट्रेड यूनियन देशव्यापी विरोध प्रदर्शन कर रही हैं। इसमें इंटक, एटक, एचएमएस, सीटू, एआईयूटीयूसी, टीयूसीसी, एसईडब्ल्यूए, एआईसीसीटीयू, एलपीएफ, यूटीयूसी शामिल हैं।
भाजपा की ट्रेड यूनियन भारतीय मंजदूर संघ (BMS) भी आज सरकार द्वारा लाए गए तीन लेबर कोड बिल के खिलाफ़ प्रोटेस्ट करने की सूचना है।
सुबह से ही देश के तमाम हिस्सों में मजदूर पोस्टर लेकर सड़कों पर उतर आए हैं। वहीं कोरोना काल के नाम पर प्रदर्शनकारियों को पताड़ित करने के लिए पुलिस बल भी मुस्तैद है। कई प्रदर्शनकारियों को पुलिस जंतर-मंतर से गिरफ्तार करके ले गई।
दिल्ली का जंतर-मंतर तीन मजदूर विरोधी लेबर कोड बिलों के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन का मुख्य केंद्र बन गया है। यहां देश के 10 संगठन एक बैनर तले एकजुट हैं।

एआईसीसीटीयू के नेताओं ने सरकार के हमले पर बोलते हुए कहा, “बिना विपक्ष के वो किसानों और मजदूरों का बिल पास कर रहे हैं। न किसानों की राय, न मजदूरों की राय और बिल पास। क्योंकि ये बिल मजदूरों के लिए नहीं, कंपनी मालिकों के लिए है। ये सरकार हमारी ज़िंदग़ी से खिलवाड़ कर रही है। ये हमें कोरोना का भय दिखाकर घरों में क़ैद करके रख रही है और हमारे भय का फायदा उठाकर मजदूर कोड बिल पास कर दे रही है। हमसे हमारे अधिकार छीन ले रही है। और हमें कह रही है कि बाहर कोरोना है बाहर मत आओ। हम जो कर दे रहे हैं उसे चुपचाप स्वीकार कर लो।”
एटक की अध्यक्ष अमरजीत कौर ने इन तीन लेबर कोड बिलों को मजदूर विरोधी बताते हुए कहा है कि ये तीन बिल मजदूरों को कंपनियों का गुलाम बनाने के लिए लाए गए हैं। आप देखिए पहले बिल में क्या है। अब जिन कंपनियों में कर्मचारियों की संख्या 300 से कम है, वे कंपनी कारखाना मालिक सरकार से मंजूरी लिए बिना ही कर्मचारियों की छँटनी कर सकेंगे। अब तक ये प्रावधान सिर्फ उन्हीं कंपनियों के लिए था, जिसमें 100 से कम कर्मचारी हों। लेकिन अब नए बिल में इस सीमा को बढ़ाया गया है।

इस बिल का प्रावधान ही मजदूरों को हायर एंड फायर करने के लिए है। वहीं छँटनी या शटडाउन की इज़ाज़त उन्हीं ऑर्गनाइज़ेशन को दी जाएगी, जिनके कर्मचारियों की संख्या पिछले 12 महीने में हर रोज़ औसतन 300 से कम ही रही हो। सरकार अधिसूचना जारी कर इस न्यूनतम संख्या को बढ़ा भी सकती है।
वहीं मजदूरों को अपने अधिकारों के लिए ‘हड़ताल’ रूपी हथियार को भी छीन लिया गया है। अब किसी भी कंपनी कारखाने या संस्थान में काम करने वाले मजदूर बिना 2 महीने पहले नोटिस दिये हड़ताल नहीं कर सकते हैं। यानि अब कोई भी कामगार मजदूर बिना 60 दिन पहले नोटिस दिए हड़ताल पर नहीं जा सकता। कितना हास्यास्पद लगता है कि आपको कब हड़ताल करना है उससे दो महीने पहले कंपनी को नोटिस दो ताकि वो आपको हटाकर दूसरे मजदूर रख ले। इस सरकार ने नोटिस की शक्ल में मजदूर का रेजिनेशन तैयार कर दिया है। ये तीनों बिल कर्मचारियों के हड़ताल करने के अधिकार को खत्म करते हैं। साथ ही राज्य को, केंद्र को तथा प्राइवेट कंपनियों को ये अधिकार देते हैं कि कभी भी, किसी भी स्थायी कर्मचारी को कभी भी निकाला या कंट्रेक्ट वर्कर में बदला जा सके।

वहीं सीटू की राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. के हेमलता ने कहा, “तमाम कंपनियों और कारखानों के सारे स्थायी कर्मचारियों को कंट्रेक्ट वर्कर में बदलने के लिया ये बिल लाया गया है। नए बिल में मोदी सरकार ने अब उस प्रावधान को खत्म कर दिया जिसके तहत किसी भी मौजूदा कर्मचारी को कॉन्ट्रेक्ट वर्कर में तब्दील करने पर रोक थी। केंद्र सरकार द्वारा लाए गए बिल कंपनियों को ये छूट देते हैं कि वे अधिकतर मजदूरों को कॉन्ट्रेक्ट बेसिस पर नौकरी दे सकें। यानि कॉन्ट्रैक्ट को कितनी भी बार और कितने भी समय के लिए कंपनी मालिक द्वारा मनमर्जी के हिसाब से बढ़ाया जा सकेगा।”
इंटक महासचिव संजय कुमार सिंह ने कहा, “ केंद्र की मोदी सरकार मजदूरों की दुश्मन है। मौजूदा पूंजीवादी व्यवस्था में मजदूरों के पैस वैसे ही नाममात्र के अधिकार बचे थे। इस सरकार ने तीन लेबर कोड बिलों के जरिये उन्हें भी छीनकर मजदूरों को कंपनियों का बँधुआ मजदूर बनाने जा रही है। अब इस देश में कोई स्थायी कर्मचारी नहीं होगा। कोई मजदूर हड़ताल नहीं कर सकेगा। यानि कंपनी कारखाना मालिकों का गुलाम बनकर रहेगा।”
तीन लेबर कोड बिल क्या हैं
बता दें कि विपक्ष की गैरमौजदूगी में ही सरकार ने संख्या बल के बूते लोकसभा से तीन लेबर कोड बिल पास करवा लिया है। ये हैं-
- इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड-2020
- सोशल सिक्योरिटी कोड-2020
- ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशन बिल- 2020.
देश की भर की ट्रेड यूनियनों द्वारा आयोजित राष्ट्रीय प्रतिवाद दिवस में वर्कर्स फ्रंट ने उत्तर प्रदेश के विभिन्न जनपदों में कार्यक्रम कर विरोध दर्ज कराया। औद्योगिक केंद्र सोनभद्र, आगरा, लखनऊ, मऊ, बस्ती, गोंडा, इलाहाबाद, सीतापुर, चित्रकूट, लखीमपुर खीरी, बाराबंकी आदि जनपदों में हुए इन प्रतिवाद कार्यक्रमों में सरकार से निजीकरण को बंद करने, नई श्रम संहिताएं वापस लेने, विद्युत संशोधन विधेयक 2020 को रद्द करने, नई पेंशन स्कीम को खत्म करने, ठेका मजदूरों, आंगनबाड़ी, आशा, पंचायत मित्र, शिक्षा मित्र आदि स्कीम वर्कर्स को स्थाई करने व सम्मानजनक वेतन देने, मनरेगा में साल भर काम की गारंटी, शहरी क्षेत्रों के लिए रोजगार गारंटी कानून और बुनकरों को विशेष पैकेज देने की मांगे उठाई गई।
वर्कर्स फ्रंट के अध्यक्ष दिनकर कपूर ने प्रेस को जारी अपने बयान में बताया कि मोदी सरकार ने संसद को बंधक बनाकर मजदूरों के विरुद्ध इस मानसून सत्र में तीन विधेयक जो श्रम संहिताओं के नाम से हैं और किसानों के खिलाफ तीन विधेयक पास कराए। उन्होंने कहा कि मजदूरों की श्रम संहिताएं आजादी के पहले और आजादी के बाद लंबे संघर्षों से मिले मजदूरों की सुरक्षा, रोजगार, न्यूनतम मजदूरी और लोकतांत्रिक अधिकारों को खत्म करती हैं।