Tuesday, April 23, 2024

बस्तर पर बमबारी का ‘राजनीतिक अर्थशास्त्र’

इसी साल 11 जनवरी को सुबह 11 बजे दक्षिण बस्तर में बीजापुर जिले के मडकनगुडा, मेतुगुडा बोटेथांग, सकलीर, मडीनागुडा, कन्नेमर्का, पोटेमनगाम रासापल्ली और एर्रापाडू का जंगली इलाका बम विस्फोटों से थर्रा उठा। यह समय आदिवासियों के महुआ बीनने का समय था। बाद में आदिवासियों ने बताया की उस दिन ड्रोन से पहले बम गिराये गये और फिर हेलिकॉप्टर से अंधाधुंध गोलियां बरसायी गयीं।

countercurrents.org की एक रिपोर्ट के अनुसार इस हमले में एक आदिवासी महिला ‘पोतमहंग’ मारी गयी और कई आदिवासी घायल हो गये। ये ड्रोन और हेलिकॉप्टर न तो चीन से आये थे और ना ही पाकिस्तान से। यह ड्रोन और हेलिकॉप्टर भारत सरकार के थे।

सच तो यह है कि यह हवाई बमबारी पहली बार नहीं हुई है। 2021 और 2022 में भी क्रमशः 19 और 15 अप्रैल को इन्हीं क्षेत्रों में बम गिराए गए थे।

रायपुर पुलिस ने तुरंत इस बात का खंडन किया और कहा कि ऐसी कोई बमबारी नहीं हुई है और माओवादी जनता को बरगला रहे हैं। लेकिन आदिवासियों ने साहस करके बम के खोखे इकट्ठे किये और कई जगहों पर धरना देते हुए पत्रकारों को हवाई बमबारी के सबूत दिए और अपनी आपबीती सुनाई।अपनी ही जनता पर हवाई बमबारी अंतर्राष्ट्रीय कानून का भी खुला उल्लंघन है।

2014 में जब भाजपा की सरकार आई तो देशी-विदेशी पूंजी को इस बात का भरोसा था कि मोदी सरकार बस्तर और झारखण्ड से माओवादियों का सफाया करके आदिवासियों को उजाड़ कर लोहा-बाक्साईट-यूरेनियम-हीरा आदि मूल्यवान धातुओं का खजाना उन्हें सौंप देगी।

इसी रणनीति के तहत 2017 में अजित डोवाल के नेतृत्व में ऑपरेशन ‘समाधान-प्रहार’ शुरू किया गया। मजेदार बात यह है कि 2006 माओवादी समस्या पर एक एक्सपर्ट ग्रुप का गठन किया था। बी. डी. शर्मा, के. बालागोपाल, बेला भाटिया के साथ इस एक्सपर्ट ग्रुप में अजित डोवाल भी शामिल थे। 2008 में इसने अपनी विस्तृत रिपोर्ट दी। इस रिपोर्ट ने साफ़ तौर पर माना कि माओवाद का कोई भी सैन्य समाधान संभव नहीं है।

रिपोर्ट के अनुसार यह एक सामाजिक-राजनीतिक समस्या है और इसे भूमि-सुधार और सामाजिक न्याय द्वारा ही हल किया जाना चाहिए। इन्हीं अजित डोवाल का 2014 में कायांतरण हो गया और 2017 में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनते ही उन्होंने एलान कर दिया कि युद्ध का नया फ्रंटियर अब सिविल सोसाइटी है।

अमित शाह ने भी एलान कर दिया कि 3 साल के अंदर माओवाद का खात्मा हो जायेगा। लेकिन आदिवासियों पर भयंकर दमन के बावजूद 2020 तक वे एक भी खनन को चालू नहीं करा सके। इसके बाद 2021, 2022 और फिर 2023 में आदिवासी जनता पर किया गया हवाई हमला सरकार की बदहवासी और देशी-विदेशी पूंजीपतियों की बेचैनी को ही दर्शाता है।

यहां एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि ड्रोन से बम बरसाने के लिए अमेरिका के नासा की GPS की सहायता ली गयी। यानि आदिवासियों पर इस हमले में साम्राज्यवाद का सक्रिय समर्थन है।

वास्तव में ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। 5 मार्च 1966 को भी भारत सरकार ने मिज़ोरम की जनता पर बम बरसाये थे। इस दिन हवाई बमबारी करके मिज़ोरम के आइज़ोल शहर को लगभग बर्बाद कर दिया गया था। मशहूर पत्रकार शेखर गुप्ता ने अपने एक लेख में खुलासा किया है कि बम बरसाने वाले पायलटों में ‘राजेश पायलट’ और ‘सुरेश कलमाड़ी’ भी शामिल थे, जो बाद में कांग्रेस के बड़े नेता बने।

उस वक़्त भी राष्ट्रीयता के आंदोलन को कुचलने के लिए ऐसा किया गया। उस वक़्त भी जिन जहाजों ने बम बरसाए थे, उनमें से एक ब्रिटिश था तो दूसरा फ्रांसीसी। फ्रांसीसी लड़ाकू विमान को उसी ‘डसाल्ट’ कम्पनी ने बनाया था, जिसने विवादास्पद ‘रफाएल’ विमान बनाया है। इससे आप जनता पर गिराए गए बम का ‘राजनीतिक अर्थशास्त्र’ समझ सकते हैं।

जब असम विधानसभा में बम के खोखे दिखाकर सवाल पूछा गया तो कांग्रेस सरकार ने बेहयाई से उत्तर दिया कि ये बम नहीं ‘फ़ूड पैकेट्स’ हैं।

बस्तर में स्थित ‘बैलाडीला’ से निकलने वाले लौह अयस्क का बड़ा हिस्सा जापान को बहुत ही सस्ती दर पर जाता है। जापान समुद्र के नीचे इन लौह अयस्क को अगले 100 सालों की खपत के लिए जमा कर रहा है। इस एक तथ्य से हम इस हवाई हमले का राजनीतिक अर्थशास्त्र समझ सकते हैं। भारत सरकार जापान का भविष्य सुरक्षित कर रही है और अपने देश के आदिवासियों के वर्तमान और भविष्य पर बम बरसा रही है।

(मनीष आज़ाद लेखक और राजनीतिक कार्यकर्ता हैं)

जनचौक से जुड़े

5 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles